वैष्णो देवी

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वैष्णो देवी मंदिर

निर्बलों को बल, नेत्रहीनों को नेत्र, विद्याहीनों को विद्या, धनहीनों को धन, संतानहीनों को संतान देकर अपने भक्तों के सभी कार्यों को पूर्ण करने वाली पूरे जगत में माता रानी और वैष्णवी के नाम से जानी जाने वाली शेरावाली माता वैष्णो देवी का जागृत और पवित्र मंदिर भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के हसीन वादियों में उधमपुर जिले में कटरा से १२ किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिमी हिमालय के त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित है। यह एक दुर्गम यात्रा है। किंतु माता के भक्तों की आस्था और विश्वास की शक्ति सब कुछ संभव कर देती है। नवरात्रों के दौरान मां वैष्णो देवी के दर्शन की विशेष मान्यता है। इन नौ दिनों तक क्या देश क्या विदेश लाखों लोग मां वैष्णो देवी के दर्शन करने को आते हैं। वैसे कहते भी हैं कि पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है - माता वैष्णो देवी का । माता के भक्त मानते हैं कि माता जब बुलाती है तो भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुँच ही जाता है। जो बिना बुलाए जाता है, वह कितना ही चाह ले माता के दर्शन नहीं कर पाता है। व्यावहारिक दृष्टि से माता वैष्णो देवी ज्ञान, वैभव और बल का सामुहिक रुप है। क्योंकि यहां आदिशक्ति के तीन रुप हैं - पहली महासरस्वती जो ज्ञान की देवी हैं, दूसरी महालक्ष्मी जो धन-वैभव की देवी और तीसरी महाकाली या दुर्गा शक्ति स्वरुपा मानी जाती है। जीवन के धरातल पर भी श्रेष्ठ और सफल बनने और ऊंचाईयों को छूने के लिए विद्या, धन और बल ही जरुरी होता है। जो मेहनत और परिश्रम के द्वारा ही संभव है। माता की इस यात्रा से भी जीवन के सफर में आने वाली कठिनाईयों और संघर्षों का सामना कर पूरे विश्वास के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेरणा और शक्ति मिलती है। मां वैष्णो देवी का यह प्रसिद्ध दरबार हिन्दू धर्मावलम्बियों का एक प्रमुख तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ 51 शक्तिपीठों में से एक मानी जाती हैं, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं। यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है। यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है। इस मंदिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल द्वारा की जाती है। तीर्थ-यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उधमपुर से कटरा तक एक रेल संपर्क बनाया जा रहा है।

पौराणिक कथाएं

यूं तो जगत माता वैष्णो देवी के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं लेकिन प्रमुख्य 2 है ---

  • हिंदू पौराणिक मान्यताओं में जगत में धर्म की हानि होने और अधर्म की शक्तियों के बढऩे पर आदिशक्ति के सत, रज और तम तीन रुप महासरस्वती, महालक्ष्मी और महादुर्गा ने अपनी सामूहिक बल से धर्म की रक्षा के लिए एक कन्या प्रकट की। यह कन्या त्रेतायुग में भारत के दक्षिणी समुद्री तट रामेश्वर में पण्डित रत्नाकर की पुत्री के रुप में अवतरित हुई। कई सालों से संतानहीन रत्नाकर ने बच्ची को त्रिकुता नाम दिया, परन्तु भगवान विष्णु के अंश रूप में प्रकट होने के कारण वैष्णवी नाम से विख्यात हुई। लगभग 9 वर्ष की होने पर उस कन्या को जब यह मालूम हुआ है भगवान विष्णु ने भी इस भू - लोक में भगवान श्रीराम के रुप में अवतार लिया है। तब वह भगवान श्रीराम को पति मानकर उनको पाने के लिए कठोर तप करने लगी। जब श्रीराम सीता हरण के बाद सीता की खोज करते हुए रामेश्वर पहुंचे। तब समुद्र तट पर ध्यानमग्र कन्या को देखा। उस कन्या ने भगवान श्रीराम से उसे पत्नी के रुप में स्वीकार करने को कहा। भगवान श्रीराम ने उस कन्या से कहा कि उन्होंने इस जन्म में सीता से विवाह कर एक पत्नीव्रत का प्रण लिया है। किंतु कलियुग में मैं कल्कि अवतार लूंगा और तुम्हें अपनी पत्नी रुप में स्वीकार करुंगा। उस समय तक तुम हिमालय स्थित त्रिकूट पर्वत की श्रेणी में जाकर तप करो और भक्तों के कष्ट और दु:खों का नाश कर जगत कल्याण करती रहो। जब श्री राम ने रावण के विरुद्ध विजय प्राप्त किया तब मां ने 'नवरात्र' मनाने का निर्णय लिया। इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी. त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ