श्रेणी:अयोध्या काण्ड
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- जग जग भाजन चातक मीना
- जग मंगल भल काजु बिचारा
- जगु अनभल भल एकु गोसाईं
- जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे
- जगु भय मगन गगन भइ बानी
- जटा मुकुट सीसनि सुभग
- जटाजूट सिर मुनिपट धारी
- जड़ चेतन मग जीव घनेरे
- जथा जोगु करि बिनय प्रनामा
- जथाजोग सनमानि प्रभु
- जद्यपि जनमु कुमातु
- जद्यपि नीति निपुन नरनाहू
- जद्यपि मैं अनभल अपराधी
- जद्यपि सम नहिं राग न रोषू
- जनक राम गुर आयसु पाई
- जनकसुता तब उर धरि धीरा
- जनम मरन सब दुख सुख भोगा
- जनमे एक संग सब भाई
- जनु कठोरपनु धरें सरीरू
- जब जब रामु अवध सुधि करहीं
- जब तें आइ रहे रघुनायकु
- जब तें प्रभु पद पदुम निहारे
- जब तें रामु ब्याहि घर आए
- जब मैं कुमति कुमत जियँ ठयऊ
- जब लगि जिऔं कहउँ कर जोरी
- जब सिय कानन देखि डेराई
- जबहिं जाम जुग जामिनि बीती
- जमुन तीर तेहि दिन करि बासू
- जमुना उतरि पार सबु भयऊ
- जरउ सो संपति सदन
- जरहिं बिषम जर लेहिं उसासा
- जलदु जनम भरि सुरति बिसारउ
- जसु तुम्हार मानस बिमल
- जहँ जस मुनिबर आयसु दीन्हा
- जहँ जहँ राम चरन चलि जाहीं
- जहँ तहँ लोगन्ह डेरा कीन्हा
- जहँ लगि जगत सनेह सगाई
- जहँ लगिनाथ नेह अरु नाते
- जहँ लगिबेद कही बिधि करनी
- जहँ सिंसुपा पुनीत तर
- जहँ सिय रामु लखनु निसि सोए
- जहाँ जनक गुरु गति मति भोरी
- जहाँ बैठि मुनिगन सहित
- जाइ दीख रघुबंसमनि
- जाइ न बरनि मनोहरताई
- जाइ निकट पहिचानि तरु
- जाउँ राम पहिं आयसु देहू
- जागे सकल लोग भएँ भोरू
- जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई
- जानउँ सदा भरत कुलदीपा
- जानहिं सानुज रामहि मारी
- जानहु तात तरनि कुल रीती
- जानहुँ रामु कुटिल करि मोही
- जाना मरमु नहात प्रयागा
- जानि तुम्हहि मृदु कहउँ कठोरा
- जानि लखन सम देहिं असीसा
- जानी श्रमित सीय मन माहीं
- जानेउँ मरमु राउ हँसि कहई
- जारै जोगु सुभाउ हमारा
- जासु ग्यान रबि भव निसि नासा
- जासु नाम सुमिरत एक बारा
- जासु बियोग बिकल पसु ऐसें
- जासु बिलोकि भगति लवलेसू
- जासु सनेह सकोच बस
- जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु
- जिअन मरन फलु दसरथ पावा
- जिऐ मीन बरु बारि बिहीना
- जिति सुरसरि कीरति सरि तोरी
- जिन्ह जिन्ह देखे पथिक
- जिन्ह तरुबरन्ह मध्य बटु सोहा
- जिमि कुलीन तिय साधु सयानी
- जिमि जलु निघटत सरद प्रकासे
- जिय बिनु देह नदी बिनु बारी
- जीति मोह महिपालु दल
- जीवत सकल जनम फल पाए
- जीवन लाहु लखन भल पावा
- जे अघ मातु पिता सुत मारें
- जे गुर चरन रेनु सिर धरहीं
- जे गुर पद अंबुज अनुरागी
- जे जन कहहिं कुसल हम देखे
- जे नहिं साधुसंग अनुरागे
- जे परिहरि हरि हर चरन
- जे पातक उपपातक अहहीं
- जे पुर गाँव बसहिं मग माहीं
- जे भरि नयन बिलोकहिं रामहि
- जे महिसुर दसरथ पुर बासी
- जे हरषहिं पर संपति देखी
- जेठ स्वामि सेवक लघु भाई
- जेहि चाहत नर नारि सब
- जेहि तरु तर प्रभु बैठहिं जाई
- जेहि बिधि अवध आव फिरि सीया
- जेहि भाँति सोकु कलंकु
- जेहि लखि लखनहु तें
- जेहिं उपाय पुनि पाय
- जेहिं बन जाइ रहब रघुराई
- जेहिं राउर अति अनभल ताका
- जेहिं-जेहिं जोनि करम बस भ्रमहीं
- जो अचवँत नृप मातहिं तेई
- जो अपराधु भगत कर करई
- जो कह रामु लखनु बैदेही
- जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा
- जो सुनि सरु अस लाग तुम्हारें
- जो सेवकु साहिबहि सँकोची
- जो हठि भयउ सकल दुख भाजनु
- जोई पूँछिहि तेहि ऊतरु देबा
- जोग बियोग भोग भल मंदा
- जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाईं
- जोगवहिं प्रभुसिय लखनहि कैसें
- जौं असत्य कछु कहब बनाई
- जौं ए कंदमूल फल खाहीं
- जौं ए मुनि पट धर
- जौं केवल पितु आयसु ताता
- जौं जियँ होति न कपट कुचाली
- जौं न होत जग जनम भरत को
- जौं नहिं फिरहिं धीर दोउ भाई
- जौं नहिं लगिहहु कहें हमारे
- जौं परिहरहिं मलिन मनु जानी
- जौं पाँचहि मत लागै नीका
- जौं पै इन्हहिं दीन्ह बनबासू
- जौं पै कुरुचि रही अति तोही
- जौं बिधि जनमु देइ करि छोहू
- जौं बिधि पुरब मनोरथु काली
- जौं बिनु अवसर अथवँ दिनेसू
- जौं मागा पाइअ बिधि पाहीं
- जौं सिय भवन रहै कह अंबा
- जौं हठ करहु प्रेम बस बामा
- ज्यों मुखु मुकुर मुकुरु निज पानी
त
- तजब छोभु जनि छाड़िअ छोहू
- तजि श्रुतिपंथु बाम पथ चलहीं
- तदपि करहिं सम बिषम बिहारा
- तन मन बचन उमग अनुरागा
- तनु पुलकेउ हियँ हरषु
- तब किछु कीन्ह राम रुख जानी
- तब केवट ऊँचे चढ़ि धाई
- तब गनपति सिव सुमिरि
- तब जानकी सासु पग लागी
- तब तब तुम्ह कहि कथा पुरानी
- तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए
- तब नृप सीय लाइ उर लीन्ही
- तब प्रभु भरद्वाज पहिं आए
- तब बसिष्ठ मुनि समय
- तब मज्जनु करि रघुकुलनाथा
- तब मुनि बोले भरत
- तब रघुनाथ कौसिकहि कहेऊ
- तब रघुबीर अनेक बिधि
- तब रघुबीर श्रमित सिय जानी
- तब सुमंत्र नृप बचन सुनाए
- तब सेवकन्ह सरस थलुदेखा
- तबहिं लखन रघुबर रुख जानी
- तरपन होम करहिं बिधि नाना
- तहँ तहँ तुम्हहि अहेर खेलाउब
- तहँउँ तुम्हार अलप अपराधू
- तात कृपा करि कीजिअ सोई
- तात चढ़हु रथ बलि महतारी
- तात जाउँ बलि बेगि नाहाहू
- तात जायँ जियँ करहु गलानी
- तात तात बिनु बात हमारी
- तात तुम्हहि मैं जानउँ नीकें
- तात तुम्हारि मोरि परिजन की
- तात बचन पुनि मातु हित
- तात बात फुरि राम कृपाहीं
- तात बात मैं सकल सँवारी
- तात भरत अस काहे न कहहू
- तात भरत तुम्ह सब बिधि साधू
- तात राम जस आयसु देहू
- तात हृदयँ धीरजु धरहु
- तापस बेष जनक सिय देखी
- तापस बेष बिसेषि उदासी
- तापस मुनि महिसुर सुनि देखी
- तासु तरक तियगन मन मानी
- तासु बचन मेटत मन सोचू
- तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता
- तिन्हहि बिलोकि बिलोकति धरनी
- तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा
- तिमिरु तरुन तरनिहि मकु गिलई
- तुम्ह अपराध जोगु नहिं ताता
- तुम्ह कहँ भरत कलंक
- तुम्ह कहुँ बन सब भाँति सुपासू
- तुम्ह कानन गवनहु दोउ भाई
- तुम्ह गलानि जियँ जनि
- तुम्ह जो हमहि बड़ि बिनय सुनाई
- तुम्ह तौ देहु सरल सिख सोई
- तुम्ह त्रिकाल दरसी मुनिनाथा
- तुम्ह पुनि पितु सम अति हित मोरें
- तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराउँ
- तुम्ह पै पाँच मोर भल मानी
- तुम्ह प्रिय पाहुने बन पगु धारे
- तुम्ह प्रेरक सब के
- तुम्ह बिनु दुखी सुखी तुम्ह तेहीं
- तुम्ह सब कहहु कढ़ावन टीका
- तुम्ह सर्बग्य कहउँ सतिभाऊ
- तुम्हरें अनुग्रह तात कानन