श्रेणी:उत्तरकाण्ड
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- जदपि प्रथम दुख पावइ
- जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी
- जद्यपि सब बैकुंठ बखाना
- जनकसुता समेत रघुराई
- जनमत मरत दुसह दुख होई
- जनु धेनु बालक बच्छ तजि
- जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि
- जप तप नियम जोग निज धर्मा
- जप तप मख सम दम ब्रत दाना
- जब काहू कै देखहिं बिपती
- जब ते राम प्रताप खगेसा
- जब न लेउँ मैं तब बिधि मोही
- जब रघुनाथ कीन्हि रन क्रीड़ा
- जब सो प्रभंजन उर गृहँ जाई
- जय निर्गुन जय जय गुन सागर
- जय राम रमारमनं समनं
- जय सगुन निर्गुन रूप रूप
- जलज बिलोचन स्यामल गातहि
- जहँ तहँ धावन पठइ पुनि
- जहँ तहँ नर रघुपति गुन गावहिं
- जहँ तहँ नारि निछावरि करहीं
- जहँ लगि साधन बेद बखानी
- जाइ सुनहु तहँ हरि गुन भूरी
- जातरूप मनि रचित अटारीं
- जातुधान बरूथ बल भंजन
- जानि समय सनकादिक आए
- जानिअ तब मन बिरुज गोसाँई
- जाने ते छीजहिं कछु पापी
- जानें बिनु न होइ परतीती
- जामवंत नीलादि सब
- जासु कृपा कटाच्छु सुर
- जासु नाम भव भेषज
- जासु पतित पावन बड़ बाना
- जासु बिरहँ सोचहु दिन राती
- जिन्हहि सोक ते कहउँ बखानी
- जिमि थल बिनु जल रहि न सकाई
- जीव हृदयँ तम मोह बिसेषी
- जीवन जन्म सफल मम भयऊ
- जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित
- जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका
- जे अपकारी चार तिन्ह
- जे असि भगति जानि परिहरहीं
- जे ग्यान मान बिमत्त तव
- जे चरन सिव अज पूज्य रज
- जे जैसेहिं तैसेहिं उठि धावहिं
- जे बरनाधम तेलि कुम्हारा
- जे ब्रह्म अजमद्वैतमनुभवगम्य
- जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं
- जे सठ गुर सन इरिषा करहीं
- जेहि ते नीच बड़ाई पावा
- जेहि पूँछउँ सोइ मुनि अस कहई
- जेहि बिधि कपिपति कीस पठाए
- जेहि बिधि कृपासिंधु सुख मानइ
- जेहि बिधि राम नगर निज आए
- जेहि सुख लाग पुरारि
- जेहिं आश्रम तुम्ह बसब पुनि
- जो अति आतप ब्याकुल होई
- जो ग्यानिन्ह कर चित अपहरई
- जो चेतन कहँ जड़ करइ
- जो न तरै भव सागर नर
- जो नहिं देखा नहिं सुना
- जो माया सब जगहि नचावा
- जोइ तनु धरउँ तजउँ
- जोग अगिनि करि प्रगट
- जोरि पानि कह तब हनुमंता
- जौं करनी समुझै प्रभु मोरी
- जौं परलोक इहाँ सुख चहहू
- जौं प्रभु होइ प्रसन्न बर देहू
- जौं प्रसन्न प्रभो मो पर
- जौं सब कें रह ज्ञान एकरस
त
- तजउँ न तन निज इच्छा मरना
- तदपि साप सठ दैहउँ तोही
- तनु धनु धाम राम हितकारी
- तब अंगद उठि नाइ सिरु
- तब अति सोच भयउ मन मोरें
- तब कछु काल मराल
- तब खगपति बिरंचि पहिं गयऊ
- तब तब अवधपुरी मैं जाऊँ
- तब तब जाइ राम पुर रहऊँ
- तब ते जीव भयउ संसारी
- तब ते मोहि न ब्यापी माया
- तब प्रभु भूषन बसन मगाए
- तब फिरि जीव बिबिधि बिधि
- तब बिग्यानरूपिनी बुद्धि
- तब मुनि कहेउ सुमंत्र
- तब मुनीस रघुपति गुन गाथा
- तब मैं कहा कृपानिधि
- तब मैं निर्गुन मत कर दूरी
- तब मैं भागि चलेउँ उरगारी
- तब मैं हृदयँ बिचारा
- तब सुग्रीव चरन गहि नाना
- तब हनुमंत नाइ पद माथा
- तरहिं न बिनु सेएँ मम स्वामी
- तव बिषम माया बस
- तव माया बस जीव
- तव सरूप गारुड़ि रघुनायक
- तहाँ रहे सनकादि भवानी
- ताते उमा न मैं समुझावा
- ताते करहिं कृपानिधि दूरी
- ताते नास न होइ दास कर
- ताते मोहि तुम्ह अति प्रिय लागे
- ताते यह तन मोहि प्रिय
- ताते सुर सीसन्ह चढ़त
- तामस धर्म करिहिं नर
- तामस बहुत रजोगुन थोरा
- तारन तरन हरन सब दूषन
- तासु चरन सिरु नाइ करि
- ताहि प्रसंसि बिबिधि
- तिन्ह कै दसा देखि रघुबीरा
- तिन्ह ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा
- तिन्ह पर एक एक बिटप बिसाला
- तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी
- तिन्ह सहस्र महुँ सबसुख खानी
- तिमि रघुपति निज दास
- तीनि अवस्था तीनि गुन
- तुम्ह जानहु कपि मोर सुभाऊ
- तुम्ह निज मोह कही खग साईं
- तुम्ह मम सखा भरत सम भ्राता
- तुम्ह सर्बग्य तग्य तम पारा
- तुम्हरी कृपाँ कृपायतन
- तुम्हहि आदि खग मसक प्रजंता
- तुम्हहि न ब्यापत काल
- तुम्हहि न संसय मोह न माया
- तुम्हहि बिचारि कहहु नरनाहा
- तुरत भयउँ मैं काग तब
- तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
- तृषा जाइ बरु मृगजल पाना
- ते बिप्रन्ह सन आपु पुजावहिं
- ते सठ हठ बस संसय करहीं
- तेइ तृन हरित चरै जब गाई
- तेउ यह चरित देखि ठगि रहहीं
- तेहि कौतुक कर मरमु न काहूँ
- तेहि बिलोकि माया सकुचाई
- तेहि सेवउँ मैं कपट समेता
- तेहिं अवसर मुनि नारद
- तेहिं कलिकाल बरष बहु
- तेहिं कलिजुग कोसलपुर जाई
- तेहिं गिरि रुचिर बसइ खग सोई
- तेहिं मम पद सादर सिरु नावा
- त्यागहिं कर्म सुभासुभ दायक
- त्रिजग देव नर जोइ तनु धरउँ
द
- दंड जतिन्ह कर भेद
- दच्छ जग्य तव भा अपमाना
- दधि दुर्बा रोचन फल फूला
- दम दान दया नहिं जानपनी
- दसकंधर मारीच बतकही
- दसरथ कौसल्या सुनु ताता
- दससीस बिनासन बीस भुजा
- दीनबंधु रघुपति कर किंकर
- दूरि फराक रुचिर सो घाटा
- देखत हनूमान अति हरषेउ
- देखि कृपाल बिकल
- देखि चरित अति नर अनुसारी
- देखि चरित यह सो प्रभुताई
- देखि मातु आतुर उठि धाई
- देखि राम मुनि आवत
- देखु गरु़ड़ निज हृदयँ बिचारी
- देखेउँ करि सब करम गोसाईं
- देव दनुज गन नाना जाती
- देहु भगति रघुपति अति पावनि
- दैहिक दैविक भौतिक तापा
- दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर
- द्वापर करि रघुपति पद पूजा
- द्विज द्रोहिहि न सुनाइअ कबहूँ
ध
न
- न जानामि योगं जपं नैव पूजां
- न यावद् उमानाथ पादारविंदं
- नभ दुंदुभीं बाजहिं बिपुल
- नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
- नयन दोष जा कहँ जब होई
- नर तन सम नहिं कवनिउ देही
- नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो
- नर पीड़ित रोग न भोग कहीं
- नर सरीर धरि जे पर पीरा
- नर सहस्र महँ सुनहु पुरारी
- नव ग्रह निकर अनीक बनाई
- नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं
- नहिं राग न लोभ न मान सदा
- नाथ इहाँ कछु कारन आना
- नाथ एक बर मागउँ
- नाथ कृतारथ भयउँ मैं
- नाथ जथामति भाषेउँ
- नाथ तवानन ससि स्रवत
- नाथ न मोहि संदेह कछु
- नाथ सुना मैं अस सिव पाहीं
- नाना कर्म धर्म ब्रत दाना
- नाना जनम कर्म पुनि नाना
- नाना भाँति निछावरि करहीं
- नाना भाँति मनहिं समुझावा
- नारदादि सनकादि मुनीसा
- नारि कुमुदिनीं अवध सर