श्रेणी:अयोध्या काण्ड
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- तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं
- तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं
- तुम्हहि न सोचु सोहाग बल
- तुम्हहि बिदित सबही कर करमू
- तुलसी तरुबर बिबिध सुहाए
- तुहूँ सराहसि करसि सनेहू
- ते अब फिरत बिपिन पदचारी
- ते पितु मातु कहहु सखि कैसे
- ते पितु मातु धन्य जिन्ह जाए
- ते सिय रामु साथरीं सोए
- तेइ रघुनंदनु लखनु
- तेउ बिलोकि रघुबर
- तेउ सुनि सरन सामुहें आए
- तेऊ आजु राम पदु पाई
- तेल नावँ भरि नृप तनु राखा
- तेहि अवसर आए लखन
- तेहि अवसर एक तापसु आवा
- तेहि अवसर फल फूल
- तेहि अवसर रघुबर रुख पाई
- तेहि तें कहउँ बहोरि बहोरी
- तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू
- तेहि पर राम सपथ करि आई
- तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा
- तेहि बासर बसि प्रातहीं
- तेहिं पुर बसत भरत बिनु रागा
- तैसेहिं भरतहि सेन समेता
- तोर कलंकु मोर पछिताऊ
- तौ भल जतनु करब सुबिचारी
द
- दंड चारि महँ भा सबु पारा
- दरनि धामु धनु पुर परिवारू
- दरसनु देब जानि निज दासी
- दलि दुख सजइ सकल कल्याना
- दामिनि बरन लखन सुठि नीके
- दारुन दुसह दाहु उर ब्यापा
- दासिन्ह दीख सचिव बिकलाई
- दासीं दास बोलाइ बहोरी
- दाहिन दइउ होइ जब सबही
- दीख निषादनाथ भल टोलू
- दीख मंथरा नगरु बनावा
- दीन बचन कह बहुबिधि रानी
- दीन बचन गुह कह कर जोरी
- दीनबंधु सुनि बंधु के
- दीन्हि असीस मुनीस उर
- दीन्हि असीस सासु मृदु बानी
- दीन्हि मोहि सिख नीकि गोसाईं
- दुइ कि होइ एक समय भुआला
- दुइ बरदान भूप सन थाती
- दुघरी साधि चले ततकाला
- दुचित कतहुँ परितोषु न लहहीं
- दूतन्ह आइ भरत कइ करनी
- देखत बन सर सैल सुहाए
- देखत स्यामल धवल हलोरे
- देखि करहिं सब दंड प्रनामा
- देखि दुखारी दीन
- देखि दूरि तें कहि निज नामू
- देखि पाय मुनिराय तुम्हारे
- देखि प्रभाउ सुरेसहि सोचू
- देखि प्रीति सुनि बिनय सुहाई
- देखि भरत गति अकथ अतीवा
- देखि सचिवँ जय जीव
- देखि सनेहु लोग अनुरागे
- देखि सुभाउ कहत सबु कोई
- देखि सुभाउ सनेहु सुसेवा
- देखी ब्याधि असाध
- देखु देवपति भरत प्रभाऊ
- देखे थल तीरथ सकल
- देखेउँ पाय सुमंगल मूला
- देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना
- देन कहेहु अब जनि बरु देहू
- देबि परन्तु भरत रघुबर की
- देव एक बिनती सुनि मोरी
- देव देव अभिषेक हित
- देव पितर सब तुम्हहि गोसाईं
- देवँ दीन्ह सबु मोहि अभारू
- देस काल अवसर अनुसारी
- देसु कोसु परिजन परिवारू
- देह दिनहुँ दिन दूबरि होई
- देहउँ उतरु कौनु मुहु लाई
- दोउ दिसि समुझि कहत सबु लोगू
- दोउ बर कूल कठिन हठ धारा
- दोउ समाज निमिराजु
- दोहाथ बेगि पाउ धारिअ
- द्रवहिं बचन सुनि कुलिस पषाना
- द्वार भीर सेवक सचिव
ध
- धन्य जनमु जगतीतल तासू
- धन्य भरत जय राम गोसाईं
- धन्य भूमि बन पंथ पहारा
- धरम धुरंधर धीर
- धरम धुरीन धरम गति जानी
- धरम धुरीन धीर नय नागर
- धरम नीति उपदेसिअ ताही
- धरम सनेह उभयँ मति घेरी
- धरमु न दूसर सत्य समाना
- धरि धीरजु उठि बैठ भुआलू
- धरि धीरजु करि भरत बड़ाई
- धरि धीरजु तब कहइ निषादू
- धरि धीरजु सुत बदनु निहारी
- धर्म सेतु करुनायतन
- धाइ उठाइ लाइ उर लीन्हे
- धाइ पूँछिहहिं मोहि
- धीरजु धरिअ त पाइअ पारू
- धीरजु धरेउ कुअवसर जानी
- ध्रुव बिस्वासु अवधि राका सी
- ध्वज पताक तोरन
न
- नगर लोग सब सजि सजि जाना
- नतरु जाहिं बन तीनिउ भाई
- नदी पनच सर सम दम दाना
- नदी पुनीत पुरान बखानी
- नयनवंत रघुबरहि बिलोकी
- नर अहार रजनीचर चरहीं
- नव गयंदु रघुबीर मनु
- नव बिधु बिमल तात जसु तोरा
- नव रसाल बन बिहरनसीला
- नहिं अचिरिजु जुग जुग चलि आई
- नहिं असत्य सम पातक पुंजा
- नहिं तृन चरहिं न पिअहिं
- नहिं पद त्रान सीस नहिं छाया
- नाथ आजु मैं काह न पावा
- नाथ कुसल पद पंकज देखें
- नाथ निपट मैं कीन्हि ढिठाई
- नाथ लोग सब निपट दुखारी
- नाथ समुझि मन करिअ बिचारू
- नाथ साथ मुनिनाथ के
- नाथ साथ साँथरी सुहाई
- नाथ सुहृद सुठि सरल
- नामु मंथरा मंदमति
- नारि सनेह बिकल बस होहीं
- नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी
- नाहिं त कोसलनाथ
- नाहिं त मोर मरनु परिनामा
- नाहिन डरु बिगरिहि परलोकू
- नाहिन रामु राज के भूखे
- निंदहिं आपु सराहहिं मीना
- निकसि बसिष्ठ द्वार भए ठाढ़े
- निज कर नयन काढ़ि चह दीखा
- निज गुन सहित राम गुन गाथा
- निज निज साजु समाजु बनाई
- नित पूजत प्रभु पाँवरी
- निदरहिं सरित सिंधु सर भारी
- निधरक बैठि कहइ कटु बानी
- निपट निरंकुस निठुर निसंकू
- निरखि बदनु कहि भूप रजाई
- निरखि बिबेक बिलोचनन्हि
- निरखि राम रुख सचिवसुत
- निरखि सिद्ध साधक अनुरागे
- निरवधि गुन निरुपम पुरुषु
- निसि न नीद नहिं भूख
- नीति प्रीति परमारथ स्वारथु
- नीलकंठ कलकंठ
- नृप अस कहेउ गोसाइँ
- नृप कर सुरपुर गवनु सुनावा
- नृप बूझे बुध सचिव समाजू
- नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें
- नृपतनु बेद बिदित अन्हवावा
- नृपहि प्रानप्रिय तुम्ह रघुबीरा
- नृपहि बचन प्रिय नहिं प्रिय प्राना
- नृपहिं धीर धरि हृदयँ बिचारी
- नैहर जनमु भरब बरु जाई
प
- पछिले पहर भूपु नित जागा
- पति देवता सुतीय मनि
- पति देवर सँग कुसल बहोरी
- पतिहि प्रेममय बिनय सुनाई
- पथ गति कुसल साथ सब लीन्हें
- पथिक अनेक मिलहिं मग जाता
- पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव
- पद नख निरखि देवसरि हरषी
- पद पखारि जलु पान करि
- पय अहार फल असन एक
- पय पयोधि तजि अवध बिहाई
- परउँ कूप तुअ बचन
- परदखिना करि करहिं प्रनामा
- परनकुटी प्रिय प्रियतम संगा
- परम तुम्हार राम कर जानिहि
- परम पुनीत भरत आचरनू
- परम हानि सब कहँ बड़ लाहू
- परमारथ स्वारथ सुख सारे
- परसत मृदुल चरन अरुनारे
- परसुराम पितु अग्या राखी
- परिजन पुरजन प्रजा बोलाए
- परिजन मातु पितहि मिलि सीता
- परिहरि रामु सीय जग माहीं
- परी न राजहि नीद
- परीं बधिक बस मनहुँ मरालीं
- परेउ राउ कहि कोटि
- पलँग पीठ तजि गोद हिंडोरा
- पाइ नयन फलु होहिं सुखारी
- पाइ रजायसु नाइ
- पाउ रोपि सब मिलि मोहि घाला
- पाप करत निसि बासर जाहीं
- पाप पुंज कुंजर मृगराजू
- पाय पखारि बैठि तरु छाहीं
- पारबती सम पतिप्रिय होहू
- पालव बैठि पेड़ु एहिं काटा
- पावन पयँ तिहुँ काल नहाहीं
- पावन पाथ पुन्यथल राखा
- पितहि बुझाइ कहहु बलि सोई
- पिता जनक भूपाल
- पितु असीस आयसु मोहि दीजै
- पितु आयस भूषन