श्रेणी:अयोध्या काण्ड
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- पितु कह सत्य सनेहँ सुबानी
- पितु पद गहि कहि कोटि
- पितु बनदेव मातु बनदेवी
- पितु बैभव बिलास मैं डीठा
- पितु सुरपुर बन रघुबर केतू
- पितु सुरपुर सिय रामु
- पितु हित भरत कीन्हि जसि करनी
- पितुगृह कबहुँ कबहुँ ससुरारी
- पिय हिय की सिय जाननिहारी
- पुछिहहिं दीन दुखित सब माता
- पुत्रवती जुबती जग सोई
- पुनि कह कटु कठोर कैकेई
- पुनि कह राउ सुहृद जियँ जानी
- पुनि जेहि कहँ जस कहब गोसाईं
- पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ
- पुनि पुनि पूँछत मंत्रिहि राऊ
- पुनि सियँ राम लखन कर जोरी
- पुर जन नारि मगन अति प्रीती
- पुर पगु धारिअ देइ असीसा
- पुरजन परिजन प्रजा गोसाईं
- पुरजन परिजन सकल निहोरी
- पुरजन मिलहिं न कहहिं
- पुलक गात हियँ रामु
- पुलक गात हियँ सिय रघुबीरू
- पुलकि सप्रेम परसपर कहहीं
- पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढ़े
- पूँछे मातु मलिन मन देखी
- पूँछेउँ गुनिन्ह रेख तिन्ह खाँची
- पूँछेहु मोहि कि रहौं
- पूछें कोउ न ऊतरु देई
- पूजनीय प्रिय परम जहाँ तें
- पूजीं ग्रामदेबि सुर नागा
- पूत परम प्रिय तुम्ह सबही के
- पूतु बिदेस न सोचु तुम्हारें
- पूरन राम सुपेम पियूषा
- पेम अमिअ मंदरु बिरहु
- पैठत नगर सचिव सकुचाई
- प्रथम कथा सब मुनिबर बरनी
- प्रथम कुमत करि कपटु सँकेला
- प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए
- प्रथम बासु तमसा
- प्रथम राम भेंटी कैकेई
- प्रभु अपने नीचहु आदरहीं
- प्रभु करुनामय परम बिबेकी
- प्रभु पद पदुम पराग दोहाई
- प्रभु पद पदुम बंदि दोउ भाई
- प्रभु पद रेख बीच बिच सीता
- प्रभु पितु बचन मोह बस पेली
- प्रभु प्रसन्न मन सकुच
- प्रभु प्रसाद सुचि सुभग सुबासा
- प्रभु राजत रुचिर निकेत
- प्रभु सिय लखन बैठि बट छाहीं
- प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू
- प्रमुदित तीरथराज निवासी
- प्रमुदित पुर नर नारि
- प्रात पार भए एकहि खेवाँ
- प्रातक्रिया करि मातु पद
- प्रान कंठगत भयउ भुआलू
- प्रान-प्रान के जीव के
- प्राननाथ करुनायतन सुंदर
- प्राननाथ देवर सहित
- प्राननाथ प्रिय देवर साथा
- प्रिय परिजनहि मिली बैदेही
- प्रिय सिय रामु कहा तुम्ह रानी
- प्रियबादिनि सिख दीन्हिउँ तोही
- प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें
- प्रिया बंधु गति लखि रघुनंदनु
- प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती
- प्रिया बचन मृदु सुनत
- प्रिया हास रिस परिहरहि
- प्रीति प्रतीति बचन मन करनी
- प्रेम पुलकि केवट कहि नामू
- प्रेम मगन तेहि समय
- प्रेमु प्रमोदु न कछु कहि जाई
फ
ब
- बंदि बंदि पग सिय सबही के
- बचन बिनीत मधुर रघुबर के
- बचन सप्रेम लखन पहिचाने
- बचन सप्रेम सुनत मन हरहीं
- बचन सुनत सुरगुरु मुसुकाने
- बचनु न आव हृदयँ पछिताई
- बड़ कुघातु करि पातकिनि
- बड़भागी बनु अवध अभागी
- बन दुख नाथ कहे बहुतेरे
- बन प्रदेस मुनि बास घनेरे
- बन रघुपति सुरपति नरनाहू
- बन हित कोल किरात किसोरी
- बनचर कोल किरात बिचारे
- बनदेबीं बनदेव उदारा
- बनु देखाइ सुरसरि अन्हवाई
- बरनि न जाइ दसा तिन्ह केरी
- बरनि न जाइ मनोहर जोरी
- बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ
- बरनि सप्रेम भरत अनुभाऊ
- बरबस लिए उठाइ
- बरष चारिदस बासु
- बरष चारिदस बिपिन
- बरषि सुमन कह देव समाजू
- बलकल बसन जटिल तनु स्यामा
- बसहिं कुदेस कुगाँव कुबामा
- बहुत कीन्ह प्रभु लखन
- बहुरि कहउँ छबि जसि मन बसई
- बहुरि बच्छ कहि लालु
- बहुरि बिचारि परस्पर कहहीं
- बहुरि लखन पायन्ह सोइ लागा
- बहुरि सपरिजन भरत कहुँ
- बहुरि सोचबस भे सियरवनू
- बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना
- बामदेउ बसिष्ठ तब आए
- बार बार कह राउ सुमुखि
- बार बार गहि चरन सँकोची
- बार बार मिलि भेंटि
- बार बार सब लागहिं पाएँ
- बार बार हिलि मिलि दुहु भाईं
- बार-बार मुख चुंबति माता
- बारहिं बार जोरि जुग पानी
- बारहिं बार लाइ उर लीन्ही
- बाल सखा सुनि हियँ हरषाहीं
- बालक बृद्ध बिहाइ गृहँ
- बालमीकि मन आनँदु भारी
- बिकल बिलोकि मोहि रघुबीरा
- बिकल बिलोकि सुतहि समुझावति
- बिकल सनेहँ सीय सब रानीं
- बिगत बिषाद निषादपति
- बिटप बेलि तृन अगनित जाती
- बिदा किए बटु बिनय
- बिदा किए सिर नाइ सिधाए
- बिदा कीन्ह सनमानि निषादू
- बिद्यमान आपुनि मिथिलेसू
- बिधि कैकई किरातिनि कीन्ही
- बिधि न सकेऊ सहि मोर दुलारा
- बिधि बाम की करनी कठिन
- बिधि हरि हर माया बड़ि भारी
- बिधि हरि हरु सुरपति दिसिनाथा
- बिनती भूप कीन्ह जेहि भाँती
- बिनु पूछें कछु कहउँ गोसाईं
- बिपति बीजु बरषा रितु चेरी
- बिपति हमारि बिलोकि बड़ि
- बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना
- बिप्र बिबेकी बेदबिद
- बिप्रबधू कुलमान्य जठेरी
- बिबरन भयउ न जाइ निहारी
- बिबिध बसन उपधान तुराईं
- बिबिधि कथा कहि कहि मृदु बानी
- बिबुध बिनय सुनि देबि सयानी
- बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं
- बिबुध बिलोकि दसा रघुबर की
- बिमल बंस यहु अनुचित एकू
- बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा
- बिलपत राउ बिकल बहु भाँती
- बिलपहिं बिकल दास अरु दासी
- बिलपहिं बिकल भरत दोउ भाई
- बिषई जीव पाइ प्रभुताई
- बिषई साधक सिद्ध सयाने
- बिषम बिषाद तोरावति धारा
- बिसमय हरष रहित रघुराऊ
- बिहरहिं बन चहु ओर
- बिहसि मागु मनभावति बाता
- बूझिअ मोहि उपाउ अब
- बूढ़ु एकु कह सगुन बिचारी
- बेगहु भाइहु सजहु सँजोऊ
- बेगि बिलंबु न करिअ
- बेचहिं बेदु धरमु दुहि लेहीं
- बेद बचन मुनि मन
- बेद बिदित कहि सकल बिधाना
- बेद बिदित संमत सबही का
- बेलि बिटप सब सफल सफूला
- बेषु न सो सखि सीय न संगा
- बैखानस सोइ सोचै जोगू
- बैठे राजसभाँ सब जाई
- बैरिउ राम बड़ाई करहीं
- बोरति ग्यान बिराग करारे
- बोले गुरु आयस अनुकूला
- बोले बचन बानि सरबसु से
- बोले बचनु राम नय नागर
- बोले मुनिबरु बचन बिचारी
- बोले मुनिबरु समय समाना
- बोले लखन मधुर मृदु बानी
- ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता
- ब्याल कराल बिहग बन घोरा
भ
- भइ दिनकर कुल बिटप कुठारी
- भए अजस अघ भाजन प्राना
- भएँ ग्यानु बरु मिटै न मोहू
- भगत भूमि भूसुर सुरभि
- भट जम नियम सैल रजधानी
- भय उचाट बस मन थिर नाहीं
- भयउ कोलाहलु अवध
- भयउ कौसिलहि बिधि अति दाहिन
- भयउ निषादु बिषादबस
- भयउ पाखु दिन सजत समाजू
- भयउ बिकल बरनत इतिहासा
- भरत अत्रि अनुसासन पाई
- भरत आइ आगें भइ लीन्हे
- भरत कहेउ सुरसरि तव रेनू
- भरत चरित करि नेमु तुलसी
- भरत चरित कीरति करतूती