श्रेणी:अयोध्या काण्ड
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- भरत तीसरे पहर
- भरत दरसु देखत खुलेउ
- भरत दसा तेहि अवसर कैसी
- भरत प्रेमु तेहि समय जस
- भरत बचन सब कहँ प्रिय लागे
- भरत बचन सुचि सुनि सुर हरषे
- भरत बचन सुनि देखि सनेहू
- भरत बचन सुनि देखि सुभाऊ
- भरत बचन सुनि मुनि सुखु पाई
- भरत बिनय सादर
- भरत बिमल जसु बिमल
- भरत मातु पद बंदि
- भरत मातु पहिं गइ बिलखानी
- भरत रहनि समुझनि करतूती
- भरत राम गुन ग्राम सनेहू
- भरत राम संबादु
- भरत सपथ तोहि सत्य
- भरत सरिस को राम सनेही
- भरत सरिस प्रिय को जग माहीं
- भरत सील गुन बिनय बड़ाई
- भरत सील गुर सचिव समाजू
- भरत सुजान राम रुख देखी
- भरत सुभाउ न सुगम निगमहूँ
- भरत हृदयँ सिय राम निवासू
- भरतहि देखि मातु उठि धाई
- भरतहि बिसरेउ पितु
- भरतहि भयउ परम संतोषू
- भरतहि होइ न राजमदु
- भरतहुँ मातु सकल समुझाईं
- भरतु कमल कर जोरि
- भरतु जनकु मुनिजन
- भरतु न मोहि प्रिय राम समाना
- भरतु प्रानप्रिय पावहिं राजू
- भरतु मुनिहि मन भीतर भाए
- भरतु राम प्रिय पुनि लघु भ्राता
- भरहिं निरंतर होहिं न पूरे
- भा सब कें मन मोदु न थोरा
- भाइ सचिव गुर पुरजन साथा
- भाइहु लावहु धोख जनि
- भानु कमल कुल पोषनिहारा
- भानुबंस भए भूप घनेरे
- भायप भगति भरत आचरनू
- भावी बस प्रतीति उर आई
- भूप भगीरथ सुरसरि आनी
- भूप मनोरथ सुभग
- भूप सुमंत्रु लीन्ह उर लाई
- भूपँ प्रतीति तोरि किमि कीन्ही
- भूपति जिअब मरब उर आनी
- भूपति भवन सुभायँ सुहावा
- भूपति मरन प्रेम पनु राखी
- भूपति राम सपथ जब करई
- भूमि सयन बलकल बसन
- भूरि भाग भाजनु भयहु
- भूषन बसन भोग सुख भूरी
- भूसुर बोलि भरत कर जोरे
- भे अति अहित रामु तेउ तोहीं
- भेंटत भरतु ताहि अति प्रीती
- भेंटेउ लखन ललकि लघु भाई
- भेटीं रघुबर मातु सब करि
- भोग बिभूति भूरि भरि राखे
- भोग रोगसम भूषन भारू
- भोर न्हाइ सबु जुरा समाजू
- भोरु भएँ रघुनंदनहि
- भोरेहुँ भरत न पेलिहहिं
म
- मंगल सकल सोहाहिं न कैसें
- मंगल सगुन होहिं सब काहू
- मंगल समय सनेह
- मंगलमूल रामु सुत जासू
- मंजु बिलोचन मोचति बारी
- मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी
- मइकें ससुरें सकल
- मगबासी नर नारि सुनि
- मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ
- मति अनुसार सराहन लागे
- मन प्रसन्न तन तेजु बिराजा
- मन मुसुकाइ भानुकुल भानू
- मनहीं मन मागहिं बरु एहू
- मनहुँ न आनिअ अमरपति
- मनहुँ बारिनिधि बूड़ जहाजू
- मनु प्रसन्न करि सकुच
- मरम बचन सुनि राउ
- मलिन बसन बिबरन
- मसक फूँक मकु मेरु उड़ाई
- महिसुर मंत्री मातु
- महीं सकल अनरथ कर मूला
- महूँ सनेह सकोच बस
- मागउँ भीख त्यागि निज धरमू
- मागहु बिदा मातु सन जाई
- मागी नाव न केवटु आना
- मागु माथ अबहीं देउँ तोही
- मागेउ बिदा प्रनामु करि
- मातु कुमत बढ़ई अघ मूला
- मातु चरन सिरु नाइ चले
- मातु तात कहँ देहि देखाई
- मातु पिता गुरु स्वामि
- मातु पिता भगिनी प्रिय भाई
- मातु बचन सुनि अति अनुकूला
- मातु भरत के बचन
- मातु मंदि मैं साधु सुचाली
- मातु मते महुँ मानि मोहि
- मातु सकल मोरे बिरहँवा
- मातु सचिव गुर पुर नर नारी
- मातु समीप कहत सकुचाहीं
- माथें हाथ मूदि दोउ लोचन
- मानहुँ तिमिर अरुनमय रासी
- मारग चलहु पयादेहि पाएँ
- मिटा मोदु मन भए मलीने
- मिटिहहिं पाप प्रपंच
- मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी
- मिलनि बिलोकि भरत रघुबर की
- मिलि केवटहि उमगि अनुरागा
- मिलि जननिहि सानुज रघुराऊ
- मिलि न जाइ नहिं गुदरत बनई
- मिलि सपेम रिपुसूदनहि
- मिलेहि माझ बिधि बात बेगारी
- मीजि हाथ सिरु धुनि पछिताई
- मीन पीन पाठीन पुराने
- मुख प्रसन्न मन रंग न रोषू
- मुख सुखाहिं लोचन स्रवहिं
- मुखिआ मुखु सो चाहिऐ
- मुदित महीपति मंदिर आए
- मुदित मातु सब सखीं सहेली
- मुनि कहुँ राम दंडवत कीन्हा
- मुनि तापस जिन्ह तें दुखु लहहीं
- मुनि पद बंदि करिअ सोइ आजू
- मुनि पूँछब कछु यह बड़ सोचू
- मुनि प्रभाउ जब भरत बिलोका
- मुनि बटु चारि संग तब दीन्हे
- मुनि महिसुर गुर भरत भुआलू
- मुनि रघुबरहि लाइ उर लेहीं
- मुनि समाजु अरु तीरथराजू
- मुनिगन गुर धुर धीर जनक से
- मुनिगन निकट बिहग मृग जाहीं
- मुनिगन मिलनु बिसेषि
- मुनिबर अतिथि प्रानप्रिय पाए
- मुनिबर बहुरि राम समुझाए
- मुनिहि बंदि भरतहि सिरु नाई
- मुनिहि सोच पाहुन बड़ नेवता
- मृदु मूरति सुकुमार सुभाऊ
- मेटि जाइ नहिं राम रजाई
- मैं आपन किमि कहौं कलेसू
- मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ
- मैं धिग धिग अघ उदधि अभागी
- मैं पुनि करि प्रवान पितु बानी
- मैं पुनि पुत्रबधू प्रिय पाई
- मैं पुनि समुझि दीखि मन माहीं
- मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा
- मैं सठु सब अनरथ कर हेतू
- मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला
- मो कहुँ काह कहब रघुनाथा
- मोर तुम्हार परम पुरुषारथु
- मोहि अछत यहु होइ उछाहू
- मोहि अनुचर कर केतिक बाता
- मोहि उपदेसु दीन्ह गुरु नीका
- मोहि कुमातु समेत बिहाई
- मोहि दीन्ह सुखु सुजसु सुराजू
- मोहि न लाज निज नेहु निहारी
- मोहि मग चलत न होइहि हारी
- मोहि लगि यहु कुठाटु तेहिं ठाटा
- मोहि लगि सहेउ सबहिं संतापू
- मोहि समान को पाप निवासू
य
- यह कुल उचित राम कहुँ टीका
- यह जियँ जानि सँकोचु
- यह न अधिक रघुबीर बड़ाई
- यह बड़ दोषु दूरि करि स्वामी
- यह बड़ि बात भरत कइ नाहीं
- यह बिचारि नहिं
- यह बिचारु उर आनि
- यह सुधि कोल किरातन्ह पाई
- यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई
- यह सुधि पाइ प्रयाग निवासी
- यह सुनि मन गुनि सपथ
- यह हमारि अति बड़ि सेवकाई
- यहउ कहत भल कहिहि न कोऊ
- यों सुधारि सनमानि
र
- रउरे अंग जोगु जग को है
- रघुकुलतिलक जोरि दोउ हाथा
- रघुपति प्रजा प्रेमबस देखी
- रघुपति भगति सुमंगल मूला
- रघुबर कहेउ लखन भल घाटू
- रघुबर बरन बिलोकि
- रघुराउ सिथिल सनेहँ साधु
- रचहु मंजु मनि चौकें चारू
- रचि पचि कोटिक कुटिलपन
- रथु पहिचानि बिकल लखि घोरे
- रथु हाँकेउ हय राम
- रमा रमन पद बंदि बहोरी
- रहसी रानि राम रुख पाई
- रहहु करहु सब कर परितोषू
- राउ धीर गुन उदधि अगाधू
- राउ सुनाइ दीन्ह बनबासू
- राउरि रीति सुबानि बड़ाई
- राखि न सकइ न कहि सक जाहू
- राखि राम रुख धरमु
- राखिअ अवध जो अवधि
- राखें राम रजाइ रुख
- रागु रोषु इरिषा मदु मोहू
- राज काज सब लाज
- राजधरम सरबसु एतनोई
- राजन राउर नामु जसु