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*पीलिया : पीलिया के रोगी को पीपल की नर्म टहनी (जो की पेंसिल जैसी पतली हो) के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर माला बना लें। यह माला पीलिया रोग के रोगी को एक सप्ताह धारण करवाने से पीलिया नष्ट हो जाता है।
 
*पीलिया : पीलिया के रोगी को पीपल की नर्म टहनी (जो की पेंसिल जैसी पतली हो) के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर माला बना लें। यह माला पीलिया रोग के रोगी को एक सप्ताह धारण करवाने से पीलिया नष्ट हो जाता है।
 
*रतौंधी : बहुत से लोगों को रात में दिखाई नहीं पड़ता। शाम का झुट-पुटा फैलते ही आंखों के आगे अंधियारा सा छा जाता है। इसकी सहज औषध है पीपल। पीपल की लकड़ी का एक टुकड़ा लेकर गोमूत्र के साथ उसे शिला पर पीसें। इसका अंजन दो-चार दिन आंखों में लगाने से रतौंधी में लाभ होता है। उपचार के लिए इसके उपयोग से पूर्व किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
 
*रतौंधी : बहुत से लोगों को रात में दिखाई नहीं पड़ता। शाम का झुट-पुटा फैलते ही आंखों के आगे अंधियारा सा छा जाता है। इसकी सहज औषध है पीपल। पीपल की लकड़ी का एक टुकड़ा लेकर गोमूत्र के साथ उसे शिला पर पीसें। इसका अंजन दो-चार दिन आंखों में लगाने से रतौंधी में लाभ होता है। उपचार के लिए इसके उपयोग से पूर्व किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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| <small>बुद्ध पीपल के वृक्ष के नीचे</small>
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16:16, 26 फ़रवरी 2011 का अवतरण

पीपल
Peepal22.jpg
जगत पादप
संघ सपुष्पक
वर्ग मैग्नोलियोप्सीडा
गण रोज़ेलेस
कुल मोरेसी
जाति F. religiosa
प्रजाति फाइकस
द्विपद नाम फाइकस रेलीजियोसा

परिचय

पीपल का वृक्ष सबके लिए जाना पहचाना है, यह हर जगह पाया जाता है। पीपल को संस्कृत भाषा में पिप्पल:, अश्वत्थ:, हिन्दी में पीपली, पीपर और पीपल, गुजराती में पीप्पलो और पीपुलजरी व बंगाली में अश्वत्थ, आशुदगाछ और असवट, पंजाबी में भोर और पीपल, मराठी में पिंगल, नेपाली में पिप्पली, अरबी में थजतुल-मुर्कअश, फारसी में दरख्तेलस्भंग, बौद्ध साहित्य में बोधिवृक्ष और अंग्रेजी में फिगट्रीया बो ट्रीके जैसे कई नामो से जाना जाता है। पीपल का वृक्ष का विस्तार, फैलाव तथा ऊंचाई व्यापक और विशाल होती है। यह सौ फुट से भी ऊंचा पाया जाता है। हजारों पशु और मनुष्य इसकी छाया के नीचे विश्राम कर सकते हैं। बरगद और गूलर वृक्ष की भाँति इसके पुष्प भी गुप्त रहते हैं अतः इसे गुह्यपुष्पक भी कहा जाता है। अन्य क्षीरी (दूध वाले) वृक्षों की तरह पीपल भी दीर्घायु होता है। इसके पत्ते हाथियों के लिए उत्तम चारे का काम देते हैं। पीपल का वृक्ष हमें हमेशा कर्म करने की शिक्षा देता है। जब अन्य वृक्ष शांत हो पीपल की पत्तियों तब भी हिलती रहती है। इसी कारण पीपल का एक नाम चलपत्र भी है।

ग्रंथों में पीपल

पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश

भारतीय ग्रंथों एवं उपनिषदों में ऎसे बहुत से वृक्ष हैं, जो पवित्र और पूजनीय माने जाते हैं। इनकी पूजा श्रद्धा से की जाती है। इन वृक्षों में भी कुछ की पूजा गौणरूप से होती है और कुछ केवल पवित्र ही माने जाते हैं। प्राचीनकाल में जब लोगों का जीवन ही वृक्षों पर निर्भर था, तब वे वृक्षों का बहुत सम्मान करते थे, परंतु जब मनुष्य ने अपना बसेरा ईट-पत्थरों से बने घरों को बना लिया तब से वृक्षों के सम्मान और महत्त्व को हम भूलते जा रहे हैं। हमें कभी भी वृक्षों या वनस्पतियों की उपयोगिता नहीं भूलन चाहिए। यदि हम भूलते हैं तो यह हमारी गलती होगी।

भारतीय ग्रंथों में यज्ञों में समिधा के निमित्त पीपल, बरगद, गूलर और पाकर वृक्षों की काष्ठ को पवित्र माना गया है और कहा गया है ये चारों वृक्ष सूर्य की रश्मियों के घर हैं। इनमें पीपल सबसे पवित्र माना जाता है। इसकी सर्वाधिक पूजा होती है। क्योंकि इसके जड़ से लेकर पत्र तक में अनेक औषधीय गुण हैं। इसीलिए हमारे पूर्वज-ऋषियों ने उन गुणों को पहचान कर आम लोगों को समझाने के लिए उन्हीं की भाषा में कहा था इन वृक्षों में देवताओं का वास है तथा इसे देववृक्ष यानी देवताओं का वृक्ष माना गया है। यह किसी अंधविश्वास या आडंबर के चलते नहीं है बल्कि इसके अनेक दिव्य गुणों के चलते ही है। इन्हें कभी नष्ट न किया जाए। पीपल श्री विष्णु, शिव-शंकर तथा ब्रह्मा का एकीभूत रूप है। अतः उस को प्रणाम मात्र से ही समस्त देवता प्रसन्न हो जाते हैं | इसलिए यह वृक्ष न केवल गाय, ब्राह्मण व देवता के समान पावन माना जाता है, बल्कि पूजनीय भी। पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत: मूर्तिमान स्वरूप है। यह सभी अभीष्टों का साधक है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप ताप का शमन करता है।

पीपल अक्षय वृक्ष, पीपल को कभी क्षीण न होने वाला अक्षय वृक्ष मन गया है! जड़ से ऊपर तक का तना नारायण कहा गया है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश ही इसकी शाखाओ के रूप में स्थित है। पीपल के पत्ते संसार के प्राणियों के समान है। प्रत्येक वर्ष नए पत्ते निकलते है पतझड़ होता, मिट जाते है, फिर नए पत्ते निकलते है, यही जन्म-मरण का चक्र है। पीपल के वृक्ष के नीचे गौतम को इस तथ्य का बोध हुआ था और वे बुध कहलाये थे। पीपल की जड़ के निकट बैठ कर जो जप, दान, होम, स्तोत्र पाठ, ध्यान व अनुष्ठान किया जाता है उनका फल अक्षय होता है | पीपल के नीचे किया गया दान अक्षय हो कर जन्म-जन्मान्तरों तक फलदाई होता है |

स्कन्दपुराण में वर्णित है कि अश्वत्थ (पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं। पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत: मूर्तिमान स्वरूप है। यह सभी अभीष्टों का साधक है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप ताप का शमन करता है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं - अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम् (अर्थात् समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं) कहकर पीपल को अपना स्वरूप बताया है। इसलिए धर्मशास्त्रों में पीपल के पत्तों को तोडना वर्जित माना गया है। स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त किया है। शास्त्रों में वर्णित है कि अश्वत्थ: पूजितोयत्र पूजिता: सर्व देवता:। अर्थात् पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं। श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। इसका प्रभाव तन-मन तक ही नहीं भाव जगत तक रहता है। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। पीपल का वृक्ष इसीलिए ब्रह्मस्थान है। इससे सात्विकता बढती है।

प्रसिद्ध ग्रन्थ व्रतराज में अश्वत्थोपासना में पीपल वृक्ष की महिमा का उल्लेख है। इसमें अर्थवण ऋषि पिप्पलाद मुनि को बताते हैं कि प्राचीन काल में दैत्यों के अत्याचारों से पीडित समस्त देवता जब विष्णु के पास गए और उनसे कष्ट मुक्ति का उपाय पूछा, तब प्रभु ने उत्तर दिया - मैं अश्वत्थ के रूप में भूतल पर प्रत्यक्षत: विद्यमान हूं। आप सभी को सब प्रकार से पीपल वृक्ष की आराधना करनी चाहिए। इसके पूजन से यम लोक के दारुण दु:ख से मुक्ति मिलती है। अश्वत्थोपनयन व्रत में महर्षि शौनकवर्णित करते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल के वृक्ष को लगाकर आठ वर्षो तक पुत्र की भांति उसका लालन-पालन करना चाहिए। इसके अनन्तर उपनयन संस्कार करके नित्य सम्यक् पूजा करने से अक्षय लक्ष्मी मिलती हैं। पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष के पूजन और सात परिक्रमा करने से तथा काले तिल से युक्त सरसो तेल के दीपक को जलाकर छायादान से शनि की पीडा का शमन होता है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से बडे संकट से मुक्ति मिल जाती है।

पीपल वृक्ष की प्रार्थना के लिए अश्वत्थस्तोत्रम्में दिया गया मंत्र है - अश्वत्थ सुमहाभागसुभग प्रियदर्शन। इष्टकामांश्चमेदेहिशत्रुभ्यस्तुपराभवम्॥ आयु: प्रजांधनंधान्यंसौभाग्यंसर्व संपदं। देहिदेवि महावृक्षत्वामहंशरणंगत:॥ वृहस्पति की प्रतिकूलता से उत्पन्न होने वाले अशुभ फल में पीपल समिधा से हवन करने पर शांति मिलती है। प्राय: यज्ञ में इसकी समिधा को बडा उपयोगी और महत्वपूर्ण माना गया है।

पौराणिक काल से ही पीपल को पवित्र और पूज्य मानने की आस्था रही है। संपूर्ण भारतवर्ष में पीपल से लोगों की आस्था जुड़ी है। श्रद्धा, आस्था, विश्वास और भक्ति का यह पेड़ वास्तव में बहुत शक्ति रखता है। पवित्र और पूज्य पीपल का पेड़ बहुत परोपकारी गुणों से भरा होता है। शास्त्रों के अनुसार, जो लोग अश्वत्थ वृक्ष की पूजा वैशाख माह में करते हैं और जल भी अर्पित करते हैं, उनका जीवन पाप मुक्त हो जाता है। पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी विनष्ट नहीं होती। पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं।

वैदिक काल में यज्ञ करने के लिए स्वयं अग्नि को प्रज्वलित करना पडता था। इसका अर्थ यह हुआ कि पहले से जलती हुई आग से यज्ञ नहीं किया जाता था। यज्ञ में अग्नि उत्पन्न करने वाला वृक्ष पीपल होता था। उसे शमी गर्भ के नाम से पुकारा जाता था। इसकी लकडियों में घर्षण किया जाता था, जिससे अग्नि उत्पन्न होती थी। साथ ही, अग्नि मंत्रों का उच्चारण किया जाता था।

जन सामान्य में पीपल के संबंध में अनेक भ्रांतिया और अंध -विश्वास व्याप्त है यह आम धारणा है की पीपल के वृक्ष पर ब्रह्म राक्षस एवं बहुत -प्रेतों का वास होता है ! दाह- संस्कार के बाद जो अस्थिया चुनी जाती है उन्हें एक लाल कपडे में बाँध कर एक छोटी सी मटकी में रख पीपल के वृक्ष पर टांगने की प्रथा भी है ! यह इसलिए की विसर्जन के लिए चुनी गयी ! यह अस्थिया घर नहीं ले जायी जा सकती, अत: उन्हें पीपल के वृक्ष पर टांग दिया जाता है! इस कारण भी पीपल के विषय में अंध -विश्वास बढ़ा है! कर्म कांड में विश्वास रखने वाले लोगो की मान्यता है की पीपल के वृक्ष पर ब्रह्मा का निवास होता है !

विश्वास है की पितृ-प्रकोप अर्थात पितरों की नाराज़गी के कारण भी कोई व्यक्ति जीवन में विकास नहीं कर पाता। पितरों को प्रसन्न करने के लिए इस विधि से पीपल की पूजा की जाये, तो तत्काल फल मिलता है। उनकी विधि इस प्रकार है --- पीपल के नीचे संकल्प रविवार की रात्रि को भोजन के बाद पीपल की दातून से दांत साफ़ करे, फिर स्नान कर पूजन सामग्री लेकर पीपल के वृक्ष के नीचे जाये। जल लेकर संकल्प करे कि मै इस जन्म एवं पूरे जन्म के पापों के नाश के लिए यह पूजन कर रहा हूँ। फिर यह संकल्पित जल जड़ में छोड़ दे। गणेश पूजन कर पीपल वृक्ष को गंगा जल तथा पंचामृत से स्नान कराए और तने में कच्चा सूत लपेट कर, जनेऊ अर्पण करे। पुष्प आदि अर्पण कर आरती करे, नमस्कार कर वृक्ष कि 108 बार परिक्रमा करे। प्रत्येक परिक्रमा पर वृक्ष को मिष्ठान अथवा एक फल अर्पित कर दीप जलाये। अर्थात् 108 पताशे और 108 दीपक जलाये। सोमवती अमावस्या पर इस तरह पीपल पूजन से तत्काल फल मिलता है।

पीपल की पूजा से जूङी कथायें

  • एक बार अगस्त्य ऋषि तीर्थयात्रा के उद्देश्य से दक्षिण दिशा में अपने शिष्यों के साथ गोमती नदी के तट पर पहुंचे और सत्रयाग की दीक्षा लेकर एक वर्ष तक यज्ञ करते रहे। उस समय स्वर्ग पर राक्षसों का राज था। कैटभ नामक राक्षस अश्वत्थ और पीपल वृक्ष का रूप धारण करके ब्राह्मणों द्वारा आयोजित यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब कोई ब्राह्मण इन वृक्षों की समिधा के लिए टहनियां तोड़ने वृक्षों के पास जाता तो यह राक्षस उसे खा जाता और ऋषियों का पता भी नहीं चलता। धीरे-धीरे ऋषि कुमारों की संख्या कम होने लगी। तब दक्षिण तीर पर तपस्या रत मुनिगण सूर्य पुत्र शनि के पास गए और उन्हें अपनी समस्या बतायी। शनि ने विप्र का रूप धारण किया और पीपल के वृक्ष की प्रदक्षिणा करने लगा। अश्वत्थ राक्षस उसे साधारण विप्र समझकर निगल गया। शनि अश्वत्थ राक्षस के पेट में घूमकर उसकी आंतों को फाड़कर बाहर निकल आया। शनि ने यही हाल पीपल नामक राक्षस का किया। दोनों राक्षस नष्ट हो गए। ऋषियों ने शनि का स्तवन कर उसे खूब आशीर्वाद दिया। तब शनि ने प्रसन्न होकर कहा - अब आप निर्भय हो जाओ। मेरा वरदान है कि जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन पीपल के समीप आकर स्नान, ध्यान व हवन व पूजा करेगा और प्रदिक्षणा कर जल से सींचेगा। साथ में सरसों के तेल का दीपक जलाएगा तो वह ग्रह जन्य पीडा से मुक्त हो जाएगा। शनि के उक्त वरदान के बाद भारत में पीपल की पूजा-अर्चना होने लगी। अमावस के शनिवार को उस पीपल पर जिसके नीचे हनुमान स्थापित हों पर जाकर दर्शन व पूजा करने से शनि जन्य दोषों से मुक्ति मिलती है। सामान्यतः बिना नागा प्रतिदिन पीपल के वृक्ष की जड़ पर जल चढ़ाने से या उसकी सेवा करने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं और मनोकांक्षा पूर्ण करते हैं।
  • एक कथा और प्रचलित है। पिप्पलाद मुनि के पिता का बालयावस्था में ही देहान्त हो गया था। यमुना नदी के तट पर पीपल की छाया में तपस्यारत पिता की अकाल मृत्यु का कारण शनिजन्य पीड़ा थी। उनकी माता ने उसे अपने पति की मृत्यु का एकमात्र कारण शनि का प्रकोप बताया। मुनि पिप्पलाद जब वयस्क हुए। उनकी तपस्या पूर्ण हो गई तब माता से सारे तथ्य जानकर पितृहन्ता शनि के प्रति पिप्पलाद का क्रोध भड़क उठा। उन्होंने तीनों लोकों में शनि को ढूंढना प्रारम्भ कर दिया। एक दिन अकस्मात पीपल वृक्ष पर शनि के दर्शन हो गए। मुनि ने तुरन्त ब्रह्मदण्ड उठाया और उसका प्रहार शनि पर कर दिया। शनि यह भीषण प्रहार सहन करने में असमर्थ थे। वे भागने लगे। ब्रह्मदण्ड ने उनका तीनों लोकों में पीछा किया और अन्ततः भागते हुए शनि के दोनों पैर तोड़ डाले। शनि विकलांग हो गए। उन्होंने शिव जी से प्रार्थना की। शिवजी प्रकट हुए और पिप्पलाद मुनि से बोले - शनि ने सृष्टि के नियमों का पालन किया है। उन्होंने श्रेष्ठ न्यायाधीश सदृश दण्ड दिया है। तुम्हारे पिता की मृत्यु पूर्वजन्म कृत पापों के परिणाम स्वरूप हुई है। इसमें शनि का कोई दोष नहीं है। शिवजी से जानकर पिप्पलाद मुनि ने शनि को क्षमा कर दिया। तब पिप्लाद मुनि ने कहा - जो व्यक्ति इस कथा का ध्यान करते हुए पीपल के नीचे शनि देव की पूजा करेगा। उसके शनि जन्य कष्ट दूर हो जाएंगे। पिप्पलेश्वर महादेव की अर्चना शनि जनित कष्टों से मुक्ति दिलाती है। पीपल की उपासना शनिजन्य कष्टों से मुक्ति पाने के लिए की जाती है। यह सत्य है और अनुभूत है। आप शनि पीड़ा से पीड़ित हैं तो सात शनिश्चरी अमावस को या सात शनिवार पीपल की उपासना कर उसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएंगे तो आप कष्ट मुक्त हो जाएंगे।

पीपल के औषधीय गुण

पीपल के वृक्षों में अनेक औषधीय गुण हैं। तथा इसके औषधीय गुणों को बहुत कम लोग जानते हैं। जो गुणी होता है, लोग उसका आदर करते ही हैं। लोग उसे पूजते हैं। पीपल को प्राणवायु यानी ऑक्सीजन को शुद्ध करने वाले वृक्षों में सर्वोत्तम माना जा सकता है, पीपल ही एक ऐसा वृक्ष है, जो चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देता है। इस वृक्ष का सबसे बड़ा उपयोग पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने में किया जा सकता है, क्योंकि यह प्राणवायु प्रदान कर वायु मण्डल को शुद्ध करता है और इसी गुणवत्ता के कारण भारतीय शास्त्रों ने इस वृक्ष को सम्मान दिया। पीपल के जितने ज्यादा वृक्ष होंगे, वायु मण्डल उतना ही ज्यादा शुद्ध होगा। पीपल के नीचे ली हुई श्वास ताजगी प्रदान करती है। बुद्धि तेज करती है। पीपल के नीचे रहने वाले लोग बुद्धिमान, निरोगी और दीर्घायु होते हैं।

सभी मौसम में पीपल का औषधि रूप समान रहता है। बच्चे से लेकर वृद्धों तक यह सभी के लिए लाभदायक है। आयुर्वेद में भी पीपल का कई औषधि के रूप में प्रयोग होता है। श्वास, तपेदिक, रक्त-पित्त विषदाह भूख बढ़ाने के लिए यह वरदान है। शास्त्रों में भी पीपल को बहुपयोगी माना गया है तथा उसको धार्मिक महत्व बनाकर उसको काटने का निषेध किया गया हमारे पूर्वजों की हमारे ऊपर यह विशेष कृपा है। इस प्रकार पीपल अपने धार्मिक औषधिय एवं सामाजिक गुणों के कारण सभी के लिए वंदनीय है।

पीपल रोगों का विनाश करता है। पीपल के औषधीय गुण का उल्लेख सुश्रुत संहिता, चरक संहिता में किया गया है। पीपल फेफड़ों के रोग जैसे तपेदिक, अस्थमा, खांसी तथा कुष्ठ, प्लेग, भगन्दर आदि रोगों पर बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है। इसके अलावा रतौंधि, मलेरिया ज्वर, कान दर्द या बहरापन, खांसी, बांझपन, महिने की गड़बड़ी, सर्दी सरदर्द सभी में पीपल औषधि के रूप में प्रयोग होता है। पीपल का वृक्ष रक्तपित्त और कफ के रोगों को दूर करने वाला होता है। पीपल की छाया बहुत शीतल और सुखद होती है। इसके पत्ते कोमल, चिकने और हरे रंग के होते हैं जो आंखों को बहुत सुहावने लगते हैं। औषधि के रूप में इसके पत्र, त्वक्, फल, बीज और दुग्ध व लकड़ी आदि इसका प्रत्येक अंग और अंश हितकारी लाभकारी और गुणकारी होता है। सांप और बिच्छु का विष उतारने में पीपल की लकडिय़ों का प्रयोग होता है। पीपल को सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय माना जा सकता है। किसी भी रोग में पीपल के उपयोग से पूर्व किसी आयुर्वेदाचार्य या विशेषज्ञ से सलाह के बाद ही इसका उपयोग करें।

फलों का गुण

पीपल वृक्ष के पके हुए फल ह्वदय रोगों को शीतलता और शांति देने वाले होते हैं। इसके साथ ही पित्त, रक्त और कफ के दोष को दूर करने वाले गुण भी इनमें निहित हैं। दाह, वमन, शोथ, अरूचि आदि रोगों में यह रामबाण है। पीपल का फल पाचक, आनुलोमिक, संकोच, विकास-प्रतिबंधक और रक्त शोषक है। पीपल के सूखे फल दमे के रोग को दूर करने में काफी लाभकारी साबित हुआ है। महिलाओं में बांझपन को दूर करने और सन्तानोत्पत्ति में इसके फलों का सफल प्रयोग किया गया है।

पीपल का दूध
  • पीपल का दूध अति शीघ्र रक्तशोधक, वेदनानाशक, शोषहर होता है। दूध का रंग सफेद होता है। पीपल का दूध आंखों के अनेक रोगों को दूर करता है। पीपल के पत्ते या टहनी तोड़ने से जो दूध निकलता है उसे थोड़ी मात्रा में प्रतिदिन सलाई से लगाने पर आँखों के रोग जैसे पानी आना, मल बहना, फोला, आंखों में दर्द और आंखों की लाली आदि रोगों में आराम मिलता है।
  • इसकी छाल का रस या दूध लगाने से पैरों की बिवाई ठीक हो जाती है।
पीपल की छाल
  • पीपल की छाल स्तम्भक, रक्त संग्राहक और पौष्टिक होती है। सुजाक में पीपल की छाल का उपयोग किया जाता है। इसके छाल के अंदर फोड़ों को पकाने के तत्व भी होते हैं। इसकी छाल के शीत निर्यास का इस्तेमाल गीली खुजली को दूर करने में भी किया जाता है। पीपल की छाल के चूर्ण का मरहम एक शोषक वस्तु के समान सूजन पर लगाया जाता है। इसकी ताजा जलाई हुई छाल की राख को पानी में घोलकर और उसके निथरे हुए जल को पिलाने से भयंकर हिचकी भी रूक जाती है। इसके छाल का चूर्ण भगन्दर रोग को भगाने में किया जाता है। श्रीलंका में तो इसके छाल का रस दांत मसूड़ों की दर्द को दूर करने में कुल्ले के रूप में किया जाता है। यूनानी मत में पीपल की छाल को कब्ज करने वाली माना गया है। इसकी ताजा छाल को जल में भिगोकर कमर में बांघने से ताकत आती है। यूनानी चिकित्सा में इसके छाल को वीर्य वर्धक माना गया है। इसका अर्क खून को साफ करता है। इसकी छाल का क्वाथ पीने से पेशाब की जलन, पुराना सुजाक और हडडी की जलन मिटने की बात कही गयी है।
  • दमा : पीपल की अन्तरछाल (छाल के अन्दर का भाग) निकालकर सुखा लें और कूट-पीसकर खूब महीन चूर्ण कर लें, यह चूर्ण दमा रोगी को देने से दमा में आराम मिलता है। पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर उसमें यह चूर्ण बुरककर खीर को 4-5 घंटे चन्द्रमा की किरणों में रखें, इससे खीर में ऐसे औषधीय तत्व आ जाते हैं कि दमा रोगी को बहुत आराम मिलता है। इसके सेवन का समय पूर्णिमा की रात को माना जाता है।
  • पीपल की छाल को जलाकर राख कर लें, इसे एक कप पानी में घोलकर रख दें, जब राख नीचे बैठ जाए, तब पानी नितारकर पिलाने से हिचकी आना बंद हो जाता है।
  • मसूड़े : मसूड़ों की सूजन दूर करने के लिए इसकी छाल के काढ़े से कुल्ले करें।
पीपल के पत्ते
  • पीपल के पत्ते आनुलोमिक होते हैं। पीपल के पत्तों को गर्म करके सूजन पर बाधने से कुछ ही दिनों में सूजन उतर आता है। खांसी के रोग में पीपल के पत्तों को छाया में सुखाकर कूट- छानकर समान भागकर मिसरी मिला लें तथा कीकर का गोंद मिलाकर चने के आकार समान गोली बना ले। दिनभर में दो से तीन गोलियां कुछ दिनों तक चूसें, खांसी में आराम मिलेगा।
  • कान दर्द : पीपल की ताजी हरी पत्तियों को निचोड़कर उसका रस कान में डालने से कान दर्द दूर होता है। कुछ समय तक इसके नियमित सेवन से कान का बहरापन भी जाता रहता है।
  • खांसी और दमा : पीपल के सूखे पत्ते को खूब कूटें। जब पाउडर सा बन जाए, तब उसे कपड़े से छान लें। लगभग 5 ग्राम चूर्ण को दो चम्मच मधु मिलाकर एक महीना सुबह चाटने से दमा और खांसी में लाभ होता है।
  • सर्दी और सिरदर्द : सर्दी के सिरदर्द के लिए सिर्फ पीपल की दो-चार कोमल पत्तियों को चूसें। दो-तीन बार ऎसा करने से सर्दी जुकाम में लाभ होना संभव है।
  • दाद-खाज : पीपल के 4-5 कोमल, नरम पत्ते खूब चबा-चबाकर खाने से, इसकी छाल का काढ़ा बनाकर आधा कप मात्रा में पीने से दाद, खाज, खुजली आदि चर्म रोगों में आराम होता है।
  • इसके पत्तों को जलाकर राख कर लें, यह राख घावों पर बुरकने से घाव ठीक हो जाते हैं।
पीपल की टहनियां
  • पीपल की टहनियों में से दातुन बना लें। प्रतिदिन पीपल का दातुन करने से लाभ होता है। यदि आप पित्त प्रकृति के हैं तो यह दातुन आपको विशेषकर लाभकारी होगा। पीपल के दातुन से दांतों के रोगों जैसे दांतों में कीड़ा लगना, मसूड़ों में सूजन, पीप या खून निकलना, दांतों के पीलापन, दांत हिलना आदि में लाभ देता है। पीपल का दातुन मुंह की दुर्गध को दूर करता है और साथ ही साथ आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
  • मलेरिया : पीपल की टहनी का दातुन कई दिनों तक करने से तथा उसको चूसने से मलेरिया बुखार उतर जाता है।
  • पीलिया : पीलिया के रोगी को पीपल की नर्म टहनी (जो की पेंसिल जैसी पतली हो) के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर माला बना लें। यह माला पीलिया रोग के रोगी को एक सप्ताह धारण करवाने से पीलिया नष्ट हो जाता है।
  • रतौंधी : बहुत से लोगों को रात में दिखाई नहीं पड़ता। शाम का झुट-पुटा फैलते ही आंखों के आगे अंधियारा सा छा जाता है। इसकी सहज औषध है पीपल। पीपल की लकड़ी का एक टुकड़ा लेकर गोमूत्र के साथ उसे शिला पर पीसें। इसका अंजन दो-चार दिन आंखों में लगाने से रतौंधी में लाभ होता है। उपचार के लिए इसके उपयोग से पूर्व किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
पीपल
पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश
पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश श्रीकृष्ण पीपल के वृक्ष में और अर्जुन
श्रीकृष्ण पीपल के वृक्ष में और अर्जुन पीपल के वृक्ष का पूजा करते लोग
पीपल के वृक्ष का पूजा करते लोग सिंधु घाटी के अवशेष में पीपल का वृक्ष
सिंधु घाटी के अवशेष में पीपल का वृक्ष बुद्ध पीपल के वृक्ष के नीचे
बुद्ध पीपल के वृक्ष के नीचे



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टीका टिप्पणी और संदर्भ