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*भगतों की प्रतिष्ठा के कारण समय-समय पर इनमें देवी का आवेश, उसके प्रभाव से बड़बड़ाने तथा हिलने, [[मुख|मुँह]] से गाज निकालने, कच्चा मांस खाने तथा भूत व भविष्य की बातों का बख़ान करना है। | *भगतों की प्रतिष्ठा के कारण समय-समय पर इनमें देवी का आवेश, उसके प्रभाव से बड़बड़ाने तथा हिलने, [[मुख|मुँह]] से गाज निकालने, कच्चा मांस खाने तथा भूत व भविष्य की बातों का बख़ान करना है। | ||
*गृहदेवों की स्थापना, पारिवारिक तथा कौटुम्बिक धार्मिक कृत्यों का प्रतिपादन, फ़सल की वृद्धि करना, बीमारी को अच्छा करना आदि कार्य भगत के हैं। | *गृहदेवों की स्थापना, पारिवारिक तथा कौटुम्बिक धार्मिक कृत्यों का प्रतिपादन, फ़सल की वृद्धि करना, बीमारी को अच्छा करना आदि कार्य भगत के हैं। |
05:52, 23 अप्रैल 2011 का अवतरण
- भगत (भक्त) वनवासी जाति में उग्र स्वभाव के देवों को शान्त करने व पूजा करने का कार्य जो करता है, उसे कहते हैं।
- भगतों की प्रतिष्ठा के कारण समय-समय पर इनमें देवी का आवेश, उसके प्रभाव से बड़बड़ाने तथा हिलने, मुँह से गाज निकालने, कच्चा मांस खाने तथा भूत व भविष्य की बातों का बख़ान करना है।
- गृहदेवों की स्थापना, पारिवारिक तथा कौटुम्बिक धार्मिक कृत्यों का प्रतिपादन, फ़सल की वृद्धि करना, बीमारी को अच्छा करना आदि कार्य भगत के हैं।
- भगत की पत्नी को भगतानी कहते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'हिन्दू धर्मकोश') पृष्ठ संख्या-466