"ह्वेन त्सांग" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "यहां" to "यहाँ")
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
[[चित्र:Xuanzang.jpg|thumb|ह्वेन त्सांग<br />Xuanzang]]
 
[[चित्र:Xuanzang.jpg|thumb|ह्वेन त्सांग<br />Xuanzang]]
 
*ह्वेन त्सांग एक प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु था। इसके साथ ही वह एक स्कॉलर, घुमक्कड़ और अनुवादक भी था। इसने ही भारत और चीन के बीच आरम्भिक तंग वंश काल में समन्वय किया था।  
 
*ह्वेन त्सांग एक प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु था। इसके साथ ही वह एक स्कॉलर, घुमक्कड़ और अनुवादक भी था। इसने ही भारत और चीन के बीच आरम्भिक तंग वंश काल में समन्वय किया था।  
*इसने भारत की सत्रह वर्ष यात्रा की और वापस चीन गया, और अपनी आत्मकथा और अन्य पुस्तकों में यहां के ब्यौरे दिये हैं, जो काफ़ी रोचक, और ऐतिहासिक दृष्टि से शिक्षाप्रद है। इसके कई नाम प्रचलित हैं, जो कि चीन के अलग अलग प्रांतों की बोली के अनुसार हैं।  
+
*इसने भारत की सत्रह वर्ष यात्रा की और वापस चीन गया, और अपनी आत्मकथा और अन्य पुस्तकों में यहाँ के ब्यौरे दिये हैं, जो काफ़ी रोचक, और ऐतिहासिक दृष्टि से शिक्षाप्रद है। इसके कई नाम प्रचलित हैं, जो कि चीन के अलग अलग प्रांतों की बोली के अनुसार हैं।  
 
*ह्वेन त्सांग का जन्म चीन के लुओयंग स्थान पर सन 602 ई॰ में हुआ था, और मृत्यु 5 फ़रवरी, 664 में हुई थी। ह्वेन त्सांग चार बच्चों में सबसे छोटा था। इसके प्रपितामह राजधानी के शाही महाविद्यालय में 'निरीक्षक' थे, और पितामह प्राध्यापक थे। इसके पिता एक कन्फ़्यूशस वादी थे, जिन्होंने अपनी राजसी नौकरी त्याग कर राजनैतिक उठापलट, जो कि चीन में कुछ समय बाद होने वाला था, से अपने को बचाया।  
 
*ह्वेन त्सांग का जन्म चीन के लुओयंग स्थान पर सन 602 ई॰ में हुआ था, और मृत्यु 5 फ़रवरी, 664 में हुई थी। ह्वेन त्सांग चार बच्चों में सबसे छोटा था। इसके प्रपितामह राजधानी के शाही महाविद्यालय में 'निरीक्षक' थे, और पितामह प्राध्यापक थे। इसके पिता एक कन्फ़्यूशस वादी थे, जिन्होंने अपनी राजसी नौकरी त्याग कर राजनैतिक उठापलट, जो कि चीन में कुछ समय बाद होने वाला था, से अपने को बचाया।  
 
*इसकी जीवनियों के अनुसार, यह प्रतिभाशाली छात्र रहा। इसके पिता के कन्फ़्यूशस वादी होने के बावजूद भी शुरुआती काल से ही इसने बौद्ध भिक्षु बनने की इच्छा व्यक्त की थी। इसके एक बड़े भ्राता ने ऐसा ही किया था। यहीं एक बुद्धिमान प्रज्ञावान बौद्ध भिक्षु के साथ दो वर्ष व्यतीत किये।  
 
*इसकी जीवनियों के अनुसार, यह प्रतिभाशाली छात्र रहा। इसके पिता के कन्फ़्यूशस वादी होने के बावजूद भी शुरुआती काल से ही इसने बौद्ध भिक्षु बनने की इच्छा व्यक्त की थी। इसके एक बड़े भ्राता ने ऐसा ही किया था। यहीं एक बुद्धिमान प्रज्ञावान बौद्ध भिक्षु के साथ दो वर्ष व्यतीत किये।  
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
   
 
   
 
* [[यमुना नदी|यमुना]] के तीरे चलते-चलते। मथुरा पहुँचा [[मथुरा]] में 2000 भिक्षु मिले, और हिन्दू बहुल क्षेत्र होने के बाद भी, दोनों ही बौद्ध शाखाएं वहां थीं। उसने श्रुघ्न नदी तक यात्रा की, और फिर पूर्ववत मतिपुर के लिये नदी पार की। यह सन 635 की बात है। फिर [[गंगा नदी|गंगा]] नदी पार करके दक्षिण में [[संकस्य]] (कपित्थ) पहुंचा, जहां कहते हैं, कि [[गौतम बुद्ध]] स्वर्ग से अवतरित हुए थे।  
 
* [[यमुना नदी|यमुना]] के तीरे चलते-चलते। मथुरा पहुँचा [[मथुरा]] में 2000 भिक्षु मिले, और हिन्दू बहुल क्षेत्र होने के बाद भी, दोनों ही बौद्ध शाखाएं वहां थीं। उसने श्रुघ्न नदी तक यात्रा की, और फिर पूर्ववत मतिपुर के लिये नदी पार की। यह सन 635 की बात है। फिर [[गंगा नदी|गंगा]] नदी पार करके दक्षिण में [[संकस्य]] (कपित्थ) पहुंचा, जहां कहते हैं, कि [[गौतम बुद्ध]] स्वर्ग से अवतरित हुए थे।  
*वहां से उत्तरी भारत के महासम्राट [[हर्षवर्धन]] की राजधानी [[कान्यकुब्ज]] (वर्तमान [[कन्नौज]]) पहुंचा। यहां सन 636 में उसने सौ मठ और 10,000 भिक्षु देखे ([[महायन]] और [[हीनयान]], दोनों ही)। वह सम्राट की [[बौद्ध धर्म]] की संरक्षण और पालन से अतीव प्रभावित हुआ।  
+
*वहां से उत्तरी भारत के महासम्राट [[हर्षवर्धन]] की राजधानी [[कान्यकुब्ज]] (वर्तमान [[कन्नौज]]) पहुंचा। यहाँ सन 636 में उसने सौ मठ और 10,000 भिक्षु देखे ([[महायन]] और [[हीनयान]], दोनों ही)। वह सम्राट की [[बौद्ध धर्म]] की संरक्षण और पालन से अतीव प्रभावित हुआ।  
*उसने यहां [[थेरवड़ा लेखों]] का अध्ययन किया।
+
*उसने यहाँ [[थेरवड़ा लेखों]] का अध्ययन किया।
  
 
[[Category:इतिहास कोश]]
 
[[Category:इतिहास कोश]]

14:56, 20 अप्रैल 2010 का अवतरण

ह्वेन त्सांग / युवानच्वांग / Huen Sang / Xuanzang

ह्वेन त्सांग
Xuanzang
  • ह्वेन त्सांग एक प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु था। इसके साथ ही वह एक स्कॉलर, घुमक्कड़ और अनुवादक भी था। इसने ही भारत और चीन के बीच आरम्भिक तंग वंश काल में समन्वय किया था।
  • इसने भारत की सत्रह वर्ष यात्रा की और वापस चीन गया, और अपनी आत्मकथा और अन्य पुस्तकों में यहाँ के ब्यौरे दिये हैं, जो काफ़ी रोचक, और ऐतिहासिक दृष्टि से शिक्षाप्रद है। इसके कई नाम प्रचलित हैं, जो कि चीन के अलग अलग प्रांतों की बोली के अनुसार हैं।
  • ह्वेन त्सांग का जन्म चीन के लुओयंग स्थान पर सन 602 ई॰ में हुआ था, और मृत्यु 5 फ़रवरी, 664 में हुई थी। ह्वेन त्सांग चार बच्चों में सबसे छोटा था। इसके प्रपितामह राजधानी के शाही महाविद्यालय में 'निरीक्षक' थे, और पितामह प्राध्यापक थे। इसके पिता एक कन्फ़्यूशस वादी थे, जिन्होंने अपनी राजसी नौकरी त्याग कर राजनैतिक उठापलट, जो कि चीन में कुछ समय बाद होने वाला था, से अपने को बचाया।
  • इसकी जीवनियों के अनुसार, यह प्रतिभाशाली छात्र रहा। इसके पिता के कन्फ़्यूशस वादी होने के बावजूद भी शुरुआती काल से ही इसने बौद्ध भिक्षु बनने की इच्छा व्यक्त की थी। इसके एक बड़े भ्राता ने ऐसा ही किया था। यहीं एक बुद्धिमान प्रज्ञावान बौद्ध भिक्षु के साथ दो वर्ष व्यतीत किये।
  • इसी काल में चौथी बौद्ध सम्मेलन हुआ, कुषाण राजा कनिष्क की देख रेख में। सन 633 में ह्वेन त्सांग ने कश्मीर से दक्षिण की ओर चिनाभुक्ति जिसे वर्तमान में फ़िरोज़पुर कहते हैं, को प्रस्थान किया। वहां भिक्षु विनीतप्रभा के साथ एक वर्ष तक अध्ययन किया। सन 634 में पूर्व मे जालंधर पहुंचा। इससे पूर्व उसने कुल्लू घाटी में हीनयान के मठ भी भ्रमण किये। फिर वहां से दक्षिण में बैरत, मेरठ और मथुरा की यात्रा की।
  • यमुना के तीरे चलते-चलते। मथुरा पहुँचा मथुरा में 2000 भिक्षु मिले, और हिन्दू बहुल क्षेत्र होने के बाद भी, दोनों ही बौद्ध शाखाएं वहां थीं। उसने श्रुघ्न नदी तक यात्रा की, और फिर पूर्ववत मतिपुर के लिये नदी पार की। यह सन 635 की बात है। फिर गंगा नदी पार करके दक्षिण में संकस्य (कपित्थ) पहुंचा, जहां कहते हैं, कि गौतम बुद्ध स्वर्ग से अवतरित हुए थे।
  • वहां से उत्तरी भारत के महासम्राट हर्षवर्धन की राजधानी कान्यकुब्ज (वर्तमान कन्नौज) पहुंचा। यहाँ सन 636 में उसने सौ मठ और 10,000 भिक्षु देखे (महायन और हीनयान, दोनों ही)। वह सम्राट की बौद्ध धर्म की संरक्षण और पालन से अतीव प्रभावित हुआ।
  • उसने यहाँ थेरवड़ा लेखों का अध्ययन किया।