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सरकार के साथ- साथ में निजी संगठनों ने भी स्कूल और महाविद्यालय स्तर पर बालक- बालिकाओं की शिक्षा के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मान्यता प्राप्त निजी प्रबंधन वाले संस्थानों को काफ़ी हद तक सरकार से मदद मिलती है। छह से ग्यारह साल तक के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य है। वस्तुत: प्रत्येक गाँव के निकट प्राथमिक विद्यालय और राज्य में उच्चतर माध्यमिक, उच्च और मध्य विद्यालयों के सधन नेटवर्क के बावजूद [[पंजाब]] में [[1991]] तक सिर्फ़ 58.5 प्रतिशत जनसंख्या (सात साल और उससे अधिक आयू के) साक्षर थी, जबकि [[भारत]] का औसत 52.2 प्रतिशत है। साक्षरता दर अनुसूचित जनजाति (41 प्रतिशत), विशेषकर महिलाओं में (31 प्रतिशत ), काफ़ी कम है
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सरकार के साथ- साथ में निजी संगठनों ने भी स्कूल और महाविद्यालय स्तर पर बालक- बालिकाओं की शिक्षा के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मान्यता प्राप्त निजी प्रबंधन वाले संस्थानों को काफ़ी हद तक सरकार से मदद मिलती है। छह से ग्यारह साल तक के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य है। वस्तुत: प्रत्येक गाँव के निकट प्राथमिक विद्यालय और राज्य में उच्चतर माध्यमिक, उच्च और मध्य विद्यालयों के सधन नेटवर्क के बावजूद [[पंजाब]] में [[1991]] तक सिर्फ़ 58.5 प्रतिशत जनसंख्या (सात साल और उससे अधिक आयू के) साक्षर थी, जबकि [[भारत]] का औसत 52.2 प्रतिशत है। साक्षरता दर अनुसूचित जनजाति (41 प्रतिशत), विशेषकर महिलाओं में (31 प्रतिशत ), काफ़ी कम है।
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*[[असम]] में छह से बारह वर्ष की उम्र तक के बच्चों के लिए माध्यमिक स्तर तक अनिवार्य तथा नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है।
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*[[गुवाहाटी]], योरहाट एवं डिब्रूगढ़ में विश्वविद्यालय हैं।
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*राज्य के 80 से भी ज़्यादा केंद्रों से लोक कल्याण की विभिन्न योजनाओं का संचालन हो रहा है।
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[[भारत]] की सबसे विकसित शैक्षणिक प्रणालियों में से एक [[केरल]] में है। साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफ़ी अधिक है। 6 से 11 वर्ष के बीच प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य है। यहाँ प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय, पॉलिटेक्निक और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, कला, विज्ञान और व्यावसायिक महाविद्यालय हैं। केरल में केरल विश्वविद्यालय, कालीकट विश्वविद्यालय, श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, कन्नूर विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय और श्री चित्र थिरूनाल इंस्टिट्यूट फ़ॉर मेडिकल साइंस एंड टेक्नोकलॉजी अवस्थित हैं। क्न्नुर, कोट्टयम, कोषिकोड, त्रिशुर, आलप्पुषा और तिरूवनंतपुरम में मेडिकल कॉलेज हैं; ओल्लूर, कोट्टाकाल, त्रिपुनिथुरा और तिरूवनंतपुरम में आयुर्वेदिक कॉलेज और कोषिकोड में एक डेंटल कॉलेज स्थित है। कोषिकोड, आलप्पुषा, अडूर, कासरगोड़, कोच्चि, कोल्लम, कन्नूर, त्रिशुर, कोट्टयम, एर्णाकुलम, पलक्काड़ और तिरूवनंतपुरम में इंजीनियरिंग कॉलेज हैं।
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[[गोवा]] में साक्षरता का प्रतिशत 82.32 है, जो [[भारत]] में [[केरल]] (90.86) और [[मिज़ोरम]] (88.80) के बाद तीसरी सबसे अधिक है। गोवा में पुरुष 88.88 प्रतिशत और स्त्री 75.51 प्रतिशत साक्षर है। गोवा में स्कूल से लेकर कॉलेज व तकनीकी संस्थानों तक विभिन्न श्रेणी के शिक्षण व प्रशिक्षण संस्थान हैं। पणजी के नज़दीक ही गोवा विश्वविद्यालय स्थित है। घाट और पोत गोदी गतिविधियों से परिपूर्ण हैं और इससे अलग मिरामर तट है। जहाँ दक्षिणी ध्रुव के बारे में अपने शोधों व अभियानों के लिए प्रसिद्ध समुद्र विज्ञान संस्थान स्थित है।
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*[[जम्मू और कश्मीर]] में शिक्षा हर स्तर पर निःशुल्क है। साक्षरता की दर, विशेषकर [[लेह]] में, राज्य के औसत के बराबर है।
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*उच्च शिक्षा के दो केन्द्र हैं। दोनों [[1969]] में स्थापित हुए थे।
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*ये हैं– कश्मीर महाविद्यालय, श्रीनगर और जम्मू विश्वविद्यालय, चिकित्सा सेवा राज्य भर में फैले हुए अस्पतालों और दवाख़ानों द्वारा प्रदान की जाती है।
  
 
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12:24, 12 जून 2011 का अवतरण

1911 में भारतीय जनगणना के समय साक्षरता को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "एक पत्र पढ़-लिखकर उसका उत्तर दे देने की योग्यता" साक्षरता है।

प्राचीन काल

Blockquote-open.gif हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि भारत ने जितना ॠण ग्रहण किया है, उतना ही अथवा उससे भी अधिक उसने प्रदान किया है। भारत के प्रति विश्व के ॠण का सारांश इस प्रकार है-

सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया को अपनी अधिकांश संस्कृति भारत से प्राप्त हुई। ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में पश्चिमी भारत के उपनिवेशी लंका में बस गये, जिन्होंने अशोक के राज्यकाल में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। इस समय तक कुछ भारतीय व्यापारी सम्भवतया मलाया, सुमात्रा तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य भागों में आने जाने लगे थे। धीरे धीरे उन्होंने स्थायी अपनिवेश स्थापित कर लिए। इसमें संदेह नहीं कि प्राय: उन्होंने स्थानीय स्त्रियों से विवाह किये। व्यापारियों के पश्चात वहाँ ब्राह्मण तथा बौद्ध भिक्षुक पहुँचे और भारतीय प्रभाव ने शनै: शनै: वहाँ की स्वदेशी संस्कृति को जाग्रत किया। यहाँ तक कि चौथी शताब्दी में संस्कृत उस क्षेत्र की राजभाषा हो गयी और वहाँ ऐसी महान सभ्यताएँ विकसित हुईं जो विशाल समुद्रतटीय साम्राज्यों का संगठन करने तथा जावा में बरोबदूर का बुद्ध स्तूप अथवा कम्बोडिया में अंगकोर के शैव मंदिर जैसे आश्चर्यजनक स्मारक निर्मित करने में समर्थ हुई। दक्षिण-पूर्व एशिया में अन्य सांस्कृतिक प्रभाव चीन एवं इस्लामी संसार द्वारा अनुभव किए गये परन्तु सभ्यता की प्रारम्भिक प्रेरणा भारत से ही प्राप्त हुई

भारतीय इतिहासकार जो अपने देश के अतीत पर गर्व करते हैं प्राय: इस क्षेत्र को 'वृहत्तर भारत' का नाम देते हैं तथा भारतीय उपनिवेशों का वर्णन करते हैं। अपने सामान्य अर्थ में 'उपनिवेश' शब्द युक्तिसंगत नहीं जान पड़ता है फिर भी यह कहा जाता है कि पौराणिक आर्य विजेता विजय ने तलवार के बल से लंका द्वीप पर विजय प्राप्त की थी। इसके अतिरिक्त भारत की सीमा के बाहर किसी स्थायी भारतीय विजय का कोई वास्तविक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। भारतीय उपनिवेश शान्तिप्रिय थे और उन क्षेत्रों के भारतीय नृपति स्वदेशी सेनापति थे। जिन्होंने भारत से ही सारी शिक्षा ग्रहण की थी।- बाशम [1] Blockquote-close.gif

भारत में लम्बे समय से लिखित भाषा का अस्तित्व है, किन्तु प्रत्यक्ष सूचना के अभाव के कारण इसका संतोषजनक विकास नहीं हुआ। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की लेखन चित्रलिपि तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व और बाद की है। यद्यपि अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, तथापि इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों के पास कई शताब्दियों पहले से ही एक लिखित भाषा थी और यहाँ के लोग पढ़ और लिख सकते थे। हड़प्पा और अशोक के काल के बीच में पन्द्रह सौ वर्षों का ऐसा समय रहा है, जिसमें की कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन पाणिनि ने उस समय भारतीयों के द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का उल्लेख किया है। बुद्ध के समय में और उनसे भी पहले इस देश में भाषा के 60 से भी अधिक रूपों को जाना जाता था तथा शाक्यमुनि ने लेखन की एक पद्धति की शिक्षा दी थी। भारत के एक राष्ट्र के रूप में विकसित होने से पहले संस्कृत भाषा एकता का महत्त्वपूर्ण कारक थी। यदि यह मान भी लिया जाए कि उस समय देश की सम्पूर्ण आबादी की एक तिहाई से ज़्यादा ऊँची जातियों की आबादी नहीं थी तो भी यह माना जा सकता है कि अशोक के समय में भारत में दो करोड़ से ज़्यादा लोग शिक्षित थे (यह मानते हुए कि उस समय की जनसंख्या में लगभग 1/5 छोटी आयु वाले बच्चे थे तथा सभी लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त नहीं कर रही थीं)। यह संख्या बहुत अधिक प्रतीत नहीं होती, क्योंकि उस भारत की जनसंख्या पूरी मानवता के एक-तिहाई के लगभग थी। अतः उस समय के शिक्षित लोगों की संख्या इससे अधिक रही होगी और यह उस समय की सबसे कम संख्या ही मानी जा सकती है। आरम्भ में महिलाओं के लिए भी शिक्षा अनिवार्य थी, लेकिन समय के साथ उनकी विवाह आयु कम होती गई और इस वजह से महिलाओं की शिक्षा में बाधा आई, उसे प्रतिबन्धित कर दिया गया।[2]

सल्तनत काल

अलग-अलग भाषाओं और लिपियों में लिखे गए अशोक के प्रसिद्ध शासनादेश भारत के विभिन्न भागों में शिलालेख के रूप में थे। ये शासनादेश जनता को सम्बोधित थे, जिसका मतलब है कि जनता उन्हें पढ़ एवं समझ सकती थी। उत्तर भारत की मुस्लिम विजय भी एक निश्चित सीमा तक साक्षरता और शिक्षा में कमी आने के लिए उत्तरदायी है। यदि हम युद्धों के एवं तनावों के घातक परिणामों का उल्लेख न करें तो भी भारत में इस्लाम की विजय से एक सीमा तक जनता की शिक्षा में गिरावट आई, जो पहले महिलाओं के कारण लिख एवं पढ़ सकते थे। वैदिक युग में एक कन्या की विवाह की आयु 16 से 18 वर्ष थी; 12वीं सदी में यह आयु 12-14 हो गई और आगे चलकर तो यह 7-9 हो गई, इसका परिणाम यह हुआ कि महिलाओं के लिए तो शिक्षा के दरवाज़े बन्द ही कर दिये गए।

औपनिवेश काल

शिक्षा की यूरोपीय शैली स्थापित करने के बाद देश के बजट का केवल 1.7% शिक्षा पर ख़र्च किया गया। यह उपनिवेशकालीन भारत में शिक्षा की स्थिति को बताने के लिए पर्याप्त है कि उस समय लोकप्रिय शिक्षा का स्तर क्या था। "तुर्की सरकार के अपवाद को छोड़कर यूरोप में एक भी सरकार ऐसी नहीं थी, जो लोक-शिक्षा पर इतनी कम राशि व्यय करने वाली हो।"

क्रमवार विकास

भारत में शिक्षा के प्रति रुझान प्राचीन काल से ही देखने को मिलती है। प्राचीन काल में गुरुकुलों, आश्रमों तथा बौद्ध मठों में शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था होती थी। तत्कालीन शिक्षा केन्द्रों में नालन्दा, तक्षशिला एवं वल्लभी की गणना की जाती है। मध्य काल में शिक्षा मदरसों में प्रदान की जाती थी। मुग़ल काल में प्राथमिक शिक्षा ‘मक़तव’ में दी जाती थी और उच्च शिक्षा मदरसों में दी जाती थी। शिक्षा के यही दो रूप थे, प्राथमिक और उच्च अर्थात माध्यमिक शिक्षा नहीं थी। मुग़ल शासकों ने दिल्ली, अजमेर, लखनऊ एवं आगरा में मदरसों का निर्माण करवाया। इन्हें भी देखें: भारत के प्रमुख शिक्षा संस्थान

  • भारत में आधुनिक व पाश्चात्य शिक्षा की शुरूआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन काल से हुई। 1813 ई. के चार्टर में सर्वप्रथम भारतीय शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए एक लाख रुपये की व्यवस्था की गई।
  • लोक शिक्षा के लिए स्थापित सामान्य समिति के दस सदस्यों में दो दल बन गये थे। एक आंग्ल या पाश्चात्य विद्या का समर्थक था तो दूसरा प्राच्य विद्या का। प्राच्य विद्या के समर्थकों का नेतृत्व लोक शिक्षा समिति के सचिव एच.टी. प्रिंसेप ने किया जबकि इनका समर्थन समिति के मंत्री एच.एच. विल्सन ने किया। ‘अधोमुखी निस्यंदन सिद्धान्त’, जिसका अर्थ था- शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को दी जाये, को सर्वप्रथम सरकारी नीति के रूप में आकलैण्ड ने लागू किया। ‘वुड डिस्पैच’ के पहले तक इस सिद्धान्त के तहत भारतीयों को शिक्षित किया गया।
  • बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के प्रधान चार्ल्स वुड ने 19 जुलाई, 1854 को भारतीय शिक्षा पर एक व्यापक योजना प्रस्तुत की जिसे ‘वुड का डिस्पैच’ कहा जाता है।
  • वुड के घोषणा-पत्र द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति की समीक्षा हेतु 1882 ई. में सरकार ने डब्ल्यू. हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की इस आयोग में 8 सदस्य भारतीय थे। आयोग को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा की समीक्षा तक ही सीमित कर दिया गया था।
  • 1917 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन के लिए डॉ. एम.ई. सैडलर के नेतृत्व में एक आयोग गठित किया गया।
  • 1929 ई. में ‘भारतीय परिनीति आयोग ने सर फिलिप हार्टोग के नेतृत्व में शिक्षा के विकास पर रिपोर्ट हेतु एक सहायक समिति का गठन किया गया। समिति ने प्राथमिक शिक्षा के महत्त्व की बात की। हार्टोग समिति की सिफारिश के आधार पर 1935 में ‘केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का पुनर्गठन किया गया।
  • वर्धा योजना को कई नामों से जाना जाता है यथा- बुनियादी शिक्षा, बेसिक शिक्षा आदि। गांधीजी द्वारा 1937 ई. में वर्धा नामक स्थान पर इस योजना का सूत्रपात हुआ। इसमें शिक्षा के माध्यम से हस्त उत्पादन कार्यों को महत्त्व दिया गया। इसमें बालक अपनी मातृभाषा के द्वारा 7 वर्ष तक अध्ययन करता था।
  • 1944 ई. में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार मण्डल ने ‘सार्जेण्ट योजना’ (सार्जेण्ट भारत सरकार में शिक्षा सलाहकार थे) के नाम से एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना प्रस्तुत की। इसमें 6 से 11 वर्ष के बच्चों के लिए नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा दिये जाने की व्यवस्था की गई थी।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सन 1948-49 में उच्च शिक्षा के सुझाव के लिए राधाकृष्णन आयोग का गठन किया गया।
  • 1953 ई. में राधाकृष्णन आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान अयोग की स्थापना की गयी।
  • मुदालियर या माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन सन 1952-53 में हुआ। इसने माध्यमिक शिक्षा के लिए सुझाव दिए।
  • डॉ. डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में जुलाई 1964 ई. में कोठारी आयोग की नियुक्ति की गई। इसने प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्च अर्थात विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ या सुझाव दिये।
भारतीय इतिहास के विभिन्न युगों में साक्षरता[2]
काल कुल जनसंख्या (दस लाख में) शिक्षित (दस लाख में) कुल प्रतिशत शिक्षित पुरुष % शिक्षित महिला %
प्राचीन भारत
(300 ई.पू. से 300 ईसवी)
120 20 17 27 7
मध्यकालीन भारत
(1200 ईसवी)
100 9 9 15 3
उपनिवेशककाल भारत
(1900 तक)
300 18 6 11 0.6
आधुनिक भारत (1961) 439 105 24 34 13
आधुनिक भारत (1971) 548 161 29 40 18
आधुनिक भारत (1981) 634 238 36 47 25
उपनिवेशकालीन जनगणनाओं में दस वर्ष से अधिक आयु वर्ग में शिक्षा आँकड़े[2]
जनगणना वर्ष कुल जनसंख्या पुरुष महिलाएं
1891 6.1 11.4 0.5
1901 6.2 11.5 0.7
1911 7.0 12.6 1.1
1921 8.3 14.2 1.9
1931 9.2 15.4 2.4

उत्तर प्रदेश में शिक्षा

  • उत्तर प्रदेश में 16 विश्वविद्यालय, 400 से अधिक संबद्ध महाविद्यालय, कई चिकित्सा महाविद्यालय और विशिष्ट अध्ययनों व शोध के लिए कई संस्थान हैं।
  • 1950 के दशक के बाद से राज्य में विद्यालयों व सभी स्तरों पर विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने के बावजूद राज्य की जनसंख्या का 57.36 प्रतिशत हिस्सा ही साक्षर है।
  • प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम हिंदी (कुछ निजी विद्यालयों में माध्यम अंग्रेज़ी) है, उच्चतर विद्यालय के विद्यार्थी हिंदी व अंग्रेज़ी में पढ़ाई करते हैं, जबकि विश्वविद्यालय स्तर पर आमतौर पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी है।

झारखण्ड में शिक्षा

  • झारखंड में साक्षरता दर 1991 के 41.39 प्रतिशत की तुलना में 54.13 प्रतिशत हो गई है।
  • यहाँ 21,386 विद्यालय और पाँच विश्वविद्यालय हैं।
  • इसके अलावा यहाँ इंडियन स्कूल ऑफ़ माइंस, जाना- माना व्यापार एवं प्रबंधन संस्थान, ज़ेवियर लेबर रिलेशंस इंस्टिट्यूट और केंद्रीय खनन शोध संस्थान जैसे शैक्षणिक व शोध संस्थान स्थित हैं।

राजस्थान में शिक्षा

  • राजस्थान में अनेक शैक्षणिक संस्थान हैं।
  • जिनमें राज्य द्वारा संचालित जयपुर, उदयपुर, जोधपुर व अजमेर विश्वविद्यालय; कोटा खुला विश्वविद्यालय; पिलानी में बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एण्ड साइन्स शामिल हैं।
  • यहाँ अनेक राजकीय अस्पताल और दवाख़ाने हैं।
  • यहाँ कई आयुर्वेदिक, यूनानी (जड़ी-बूटियों पर आधारित चिकित्सा पद्धति) एवं होमियोपैथी संस्थान हैं।

तमिलनाडु में शिक्षा

  • तमिलनाडु का साक्षरता दर लगभग 73.47 प्रतिशत (2001) है।
  • यहाँ प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च विद्यालय और कला एवं विज्ञान महाविद्यालयों के साथ- साथ चिकित्सा महाविद्यालय, अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पॉलीटेक्निक संस्थाएं तथा औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाएं हैं।
  • तमिलनाडु में 21 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें- चेन्नई में मद्रास विश्वविद्यालय; अन्ना विश्वविद्यालय; डॉ. अंबेडकर विधि विश्वविद्यालय; चिदंबरम में अन्नामलाई विश्वविद्यालय; कोयंबत्तूर में भरथियार विश्वविद्यालय, तिरूचिराप्पल्ली में भारतीदसन विश्वविद्यालय; मदुरै में मदुरै कामराज विश्वविद्यालय; कोडैकनाल में मदर टेरेसा वीनस विश्वविद्यालय; सेलम में पेरियार विश्वविद्यालय और तंजावुर में तमिल विश्वविद्यालय शामिल हैं।

गुजरात में शिक्षा

  • गुजरात में 500 या इससे ज़्यादा जनसंख्या वाले लगभग सभी गाँवों में सात से ग्यारह वर्ष के सभी बच्चों के लिए प्राथमिक पाठशालाएँ खोली जा चुकी हैं।
  • आदिवासी बच्चों को कला और शिल्प की शिक्षा देने के लिए विशेष विद्यालय चलाए जाते हैं।
  • यहाँ अनेक माध्यमिक और उच्चतर विद्यालयों के साथ-साथ नौ विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा के लिए बड़ी संख्या में शिक्षण संस्थान हैं।
  • अभियांत्रिकी महाविद्यालयों और तकनीकी विद्यालयों द्वारा तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है।

मेघालय में शिक्षा

  • मेघालय भारत के सबसे कम विकसित राज्यों में से एक है।
  • लगभग आधे से अधिक लोग (63.3 प्रतिशत) साक्षर हैं।
  • राज्य में 5,517 शिक्षण संस्थाएं हैं।

त्रिपुरा में शिक्षा

21 जनवरी 1972 में त्रिपुरा के संपूर्ण राज्य बनने के बाद से शिक्षा के क्षेत्र में राज्य ने तेज गति से विकास किया है। आकार में छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत राज्य त्रिपुरा, क्षेत्र और क्षेत्र के बाहर के विद्यार्थिंयों के लिए शिक्षा की बहुत अच्छी सुविधा उपलब्ध करा रहा है। प्रदेश में शासकीय विद्यालयों के साथ-साथ निजी विद्यालय भी संचालित किए जा रहे हैं। धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले बहुत से धार्मिक संस्थान भी इस छोटे से भारतीय राज्य में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

विद्यालय

त्रिपुरा के विद्यालय या तो त्रिपुरा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (टीबीएसई) या केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से संबद्ध हैं। कुछ विद्यालय कौंसिल फ़ॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एक्जामिनेशन्स (सीआईएससीई) से भी संबद्ध हैं। प्रदेश में लगभग 4,287 विद्यालय हैं, जिनमें से 2,378 जूनियर बेसिक, 1,139 के लगभग सीनियर बेसिक, 459 उच्च और 311 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय राज्य सरकार और एडीसी प्राधिकरण द्वारा चलाए जा रहे हैं। सभी श्रेणियों के 34,985 से अधिक शिक्षक राज्य सरकार द्वारा संचालित इस शिक्षा संजाल को चलायमान रखने में लगे हैं।

पंजाब में शिक्षा

सरकार के साथ- साथ में निजी संगठनों ने भी स्कूल और महाविद्यालय स्तर पर बालक- बालिकाओं की शिक्षा के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मान्यता प्राप्त निजी प्रबंधन वाले संस्थानों को काफ़ी हद तक सरकार से मदद मिलती है। छह से ग्यारह साल तक के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य है। वस्तुत: प्रत्येक गाँव के निकट प्राथमिक विद्यालय और राज्य में उच्चतर माध्यमिक, उच्च और मध्य विद्यालयों के सधन नेटवर्क के बावजूद पंजाब में 1991 तक सिर्फ़ 58.5 प्रतिशत जनसंख्या (सात साल और उससे अधिक आयू के) साक्षर थी, जबकि भारत का औसत 52.2 प्रतिशत है। साक्षरता दर अनुसूचित जनजाति (41 प्रतिशत), विशेषकर महिलाओं में (31 प्रतिशत ), काफ़ी कम है।

असम में शिक्षा

  • असम में छह से बारह वर्ष की उम्र तक के बच्चों के लिए माध्यमिक स्तर तक अनिवार्य तथा नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है।
  • गुवाहाटी, योरहाट एवं डिब्रूगढ़ में विश्वविद्यालय हैं।
  • राज्य के 80 से भी ज़्यादा केंद्रों से लोक कल्याण की विभिन्न योजनाओं का संचालन हो रहा है।

केरल में शिक्षा

भारत की सबसे विकसित शैक्षणिक प्रणालियों में से एक केरल में है। साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफ़ी अधिक है। 6 से 11 वर्ष के बीच प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य है। यहाँ प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय, पॉलिटेक्निक और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, कला, विज्ञान और व्यावसायिक महाविद्यालय हैं। केरल में केरल विश्वविद्यालय, कालीकट विश्वविद्यालय, श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, कन्नूर विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय और श्री चित्र थिरूनाल इंस्टिट्यूट फ़ॉर मेडिकल साइंस एंड टेक्नोकलॉजी अवस्थित हैं। क्न्नुर, कोट्टयम, कोषिकोड, त्रिशुर, आलप्पुषा और तिरूवनंतपुरम में मेडिकल कॉलेज हैं; ओल्लूर, कोट्टाकाल, त्रिपुनिथुरा और तिरूवनंतपुरम में आयुर्वेदिक कॉलेज और कोषिकोड में एक डेंटल कॉलेज स्थित है। कोषिकोड, आलप्पुषा, अडूर, कासरगोड़, कोच्चि, कोल्लम, कन्नूर, त्रिशुर, कोट्टयम, एर्णाकुलम, पलक्काड़ और तिरूवनंतपुरम में इंजीनियरिंग कॉलेज हैं।

गोवा में शिक्षा

गोवा में साक्षरता का प्रतिशत 82.32 है, जो भारत में केरल (90.86) और मिज़ोरम (88.80) के बाद तीसरी सबसे अधिक है। गोवा में पुरुष 88.88 प्रतिशत और स्त्री 75.51 प्रतिशत साक्षर है। गोवा में स्कूल से लेकर कॉलेज व तकनीकी संस्थानों तक विभिन्न श्रेणी के शिक्षण व प्रशिक्षण संस्थान हैं। पणजी के नज़दीक ही गोवा विश्वविद्यालय स्थित है। घाट और पोत गोदी गतिविधियों से परिपूर्ण हैं और इससे अलग मिरामर तट है। जहाँ दक्षिणी ध्रुव के बारे में अपने शोधों व अभियानों के लिए प्रसिद्ध समुद्र विज्ञान संस्थान स्थित है।

जम्मू और कश्मीर में शिक्षा

  • जम्मू और कश्मीर में शिक्षा हर स्तर पर निःशुल्क है। साक्षरता की दर, विशेषकर लेह में, राज्य के औसत के बराबर है।
  • उच्च शिक्षा के दो केन्द्र हैं। दोनों 1969 में स्थापित हुए थे।
  • ये हैं– कश्मीर महाविद्यालय, श्रीनगर और जम्मू विश्वविद्यालय, चिकित्सा सेवा राज्य भर में फैले हुए अस्पतालों और दवाख़ानों द्वारा प्रदान की जाती है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अद्भुत भारत- लेखक- ए.एल. बाशम
  2. 2.0 2.1 2.2 भारत का जनसंख्या मूलक अध्ययन, लेखक- विक्तर पेत्रोव

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