"सत्यनारायण जी की आरती" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "{{आरती स्तुति स्त्रोत}}" to "{{आरती स्तुति स्तोत्र}}")
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
[[चित्र:God-Vishnu.jpg|thumb|[[विष्णु|भगवान विष्णु]]]]
 
*[[विष्णु]] जी की पूजा के समय यह [[आरती पूजन|आरती]] की जाती है।
 
*[[विष्णु]] जी की पूजा के समय यह [[आरती पूजन|आरती]] की जाती है।
  
पंक्ति 27: पंक्ति 28:
 
श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावै।
 
श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावै।
 
तन-मन-सुख-सम्पत्ति मन-वांछित फल पावै।। जय..</poem></span></blockquote>
 
तन-मन-सुख-सम्पत्ति मन-वांछित फल पावै।। जय..</poem></span></blockquote>
 
+
{{प्रचार}}
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{आरती स्तुति स्त्रोत}}
+
{{आरती स्तुति स्तोत्र}}
[[Category:आरती स्तुति स्त्रोत]]
+
[[Category:आरती स्तुति स्तोत्र]]
  
 
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]]
 
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]]
 +
[[Category:विष्णु]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

12:56, 12 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

जय लक्ष्मी रमणा, श्री लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी जन-पातक-हरणा।। जय..

रत्नजटित सिंहासन अद्भुत छबि राजै।
नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजै।। जय..

प्रकट भये कलि कारण, द्विज को दरस दियो।
बूढ़े ब्राह्मण बनकर कंचन-महल कियो।।जय.।।

दुर्बल भील कठारो, जिनपर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा, जिनकी बिपति हरी।। जय..

वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं।
सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर अस्तुति कीन्हीं।। जय..

भाव-भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो।
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो।। जय..

ग्वाल-बाल सँग राजा वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों दीनदयालु हरी।। जय..

चढ़त प्रसाद सवायो कदलीफल, मेवा।
धूप-दीप-तुलसी से राजी सत्यदेवा।। जय..

श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावै।
तन-मन-सुख-सम्पत्ति मन-वांछित फल पावै।। जय..

संबंधित लेख