"यति" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "ref>(" to "ref>")
छो (Text replace - ")</ref" to "</ref")
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*यति एक प्राचीन कुल का नाम है, जिसका सम्बन्ध भृगुओं से [[ऋग्वेद]] के दो परिच्छेदों में बतलाया गया है।<ref>8.3.9;6.18)</ref>
+
*यति एक प्राचीन कुल का नाम है, जिसका सम्बन्ध भृगुओं से [[ऋग्वेद]] के दो परिच्छेदों में बतलाया गया है।<ref>8.3.9;6.18</ref>
*ऋग्वेद में यति के लोग वास्तविक व्यक्ति जान पड़ते हैं। दूसरी ऋचा में<ref>10.72.7)</ref> वे [[पुराण|पौराणिक]] दिखाई पड़ते हैं। [[यजुर्वेद]] संहिता<ref>तै. सं. 2.4, 9,2;6.2,7,5; का. सं. 8.5; 10.10 आदि)</ref> तथा अन्य स्थानों में यति एक जाति है, जिसे [[इन्द्र]] ने किसी बुरे क्षण में सालावृक (लकड़बग्घों) का खिला दिया था।  
+
*ऋग्वेद में यति के लोग वास्तविक व्यक्ति जान पड़ते हैं। दूसरी ऋचा में<ref>10.72.7</ref> वे [[पुराण|पौराणिक]] दिखाई पड़ते हैं। [[यजुर्वेद]] संहिता<ref>तै. सं. 2.4, 9,2;6.2,7,5; का. सं. 8.5; 10.10 आदि</ref> तथा अन्य स्थानों में यति एक जाति है, जिसे [[इन्द्र]] ने किसी बुरे क्षण में सालावृक (लकड़बग्घों) का खिला दिया था।  
 
*यति का क्या अर्थ है, अभी तक किसी को ज्ञात नहीं है। यति का उल्लेख भृगु के साथ [[सामवेद]] में भी मिलता है।<ref>पुस्तक 'हिन्दू धर्मकोश') पृष्ठ संख्या-533</ref>
 
*यति का क्या अर्थ है, अभी तक किसी को ज्ञात नहीं है। यति का उल्लेख भृगु के साथ [[सामवेद]] में भी मिलता है।<ref>पुस्तक 'हिन्दू धर्मकोश') पृष्ठ संख्या-533</ref>
  

12:49, 27 जुलाई 2011 का अवतरण

  • यति एक प्राचीन कुल का नाम है, जिसका सम्बन्ध भृगुओं से ऋग्वेद के दो परिच्छेदों में बतलाया गया है।[1]
  • ऋग्वेद में यति के लोग वास्तविक व्यक्ति जान पड़ते हैं। दूसरी ऋचा में[2] वे पौराणिक दिखाई पड़ते हैं। यजुर्वेद संहिता[3] तथा अन्य स्थानों में यति एक जाति है, जिसे इन्द्र ने किसी बुरे क्षण में सालावृक (लकड़बग्घों) का खिला दिया था।
  • यति का क्या अर्थ है, अभी तक किसी को ज्ञात नहीं है। यति का उल्लेख भृगु के साथ सामवेद में भी मिलता है।[4]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 8.3.9;6.18
  2. 10.72.7
  3. तै. सं. 2.4, 9,2;6.2,7,5; का. सं. 8.5; 10.10 आदि
  4. पुस्तक 'हिन्दू धर्मकोश') पृष्ठ संख्या-533

संबंधित लेख