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{{सूचना बक्सा साहित्यकार
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#REDIRECT [[आलपिन कांड‌‌ -अशोक चक्रधर]]
|चित्र=Ashok chakradhar-1.jpg
 
|पूरा नाम=डॉ. अशोक चक्रधर
 
|अन्य नाम=
 
|जन्म=[[8 फ़रवरी]], सन [[1951]] ई.
 
|जन्म भूमि=खुर्जा ([[बुलन्दशहर]], [[उत्तर प्रदेश]])
 
|अविभावक=डा. राधेश्याम 'प्रगल्भ', श्रीमती कुसुम 'प्रगल्भ'
 
|पति/पत्नी=बागेश्री चक्रधर
 
|संतान=अनुराग, स्नेहा
 
|कर्म भूमि=
 
|कर्म-क्षेत्र=हिन्दी कविता, कविसम्मेलन, रंगमंच
 
|मृत्यु=
 
|मृत्यु स्थान=
 
|मुख्य रचनाएँ=बूढ़े बच्चे, भोले भाले, तमाशा, बोल-गप्पे, मंच मचान, कुछ कर न चम्पू , अपाहिज कौन , मुक्तिबोध की काव्यप्रक्रिया
 
|विषय=काव्य संकलन, निबंध-संग्रह, नाटक, बाल साहित्य, प्रौढ़ एवं नवसाक्षर साहित्य, समीक्षा, अनुवाद, पटकथा, लेखन-निर्देशन, वृत्तचित्र, फीचर फ़िल्म लेखन
 
|भाषा=[[हिन्दी भाषा]]
 
|विद्यालय=
 
|शिक्षा=एम.ए., एम.लिट्., पी-एच.डी. (हिन्दी)
 
|पुरस्कार-उपाधि=हास्य-रत्न उपाधि, बाल साहित्य पुरस्कार, आउटस्टैंडिंग परसन अवार्ड, निरालाश्री पुरस्कार, शान-ए-हिन्द अवार्ड
 
|प्रसिद्धि=हास्य व्यंग्य कवि
 
|विशेष योगदान=हिन्दी के विकास में कम्प्यूटर की भूमिका विषयक शताधिक पावर-पाइंट प्रस्तुतियाँ।
 
|नागरिकता=भारतीय
 
|संबंधित लेख=[[अशोक चक्रधर|अशोक चक्रधर जीवन परिचय]]
 
|शीर्षक 1=पद-भार और सदस्यता
 
|पाठ 1=उपाध्यक्ष [[हिन्दी अकादमी]] और [[केन्द्रीय हिन्दी संस्थान]],  ग्रीनमार्क आर्ट गैलरी नौएडा, काका हाथरसी पुरस्कार ट्रस्ट
 
|शीर्षक 2=
 
|पाठ 2=
 
|अन्य जानकारी=बोल बसंतो (धारावाहिक), छोटी सी आशा (धारावाहिक)' में अभिनय भी किया
 
|बाहरी कड़ियाँ=[http://chakradhar.in/ आधिकारिक वेबसाइट]
 
|अद्यतन=19:43, 8 अगस्त 2011 (IST)
 
}}
 
==आलपिन कांड‌‌ <sub>कविता</sub>==
 
<poem>
 
बंधुओ, उस बढ़ई ने
 
चक्कू तो ख़ैर नहीं लगाया
 
पर आलपिनें लगाने से
 
बाज़ नहीं आया।
 
ऊपर चिकनी-चिकनी रैग्ज़ीन
 
अंदर ढेर सारे आलपीन।
 
 
 
तैयार कुर्सी
 
नेताजी से पहले दफ़्तर में आ गई,
 
नेताजी आए
 
तो देखते ही भा गई।
 
और,
 
बैठने से पहले
 
एक ठसक, एक शान के साथ
 
मुस्कान बिखेरते हुए
 
उन्होंने टोपी संभालकर
 
मालाएं उतारीं,
 
गुलाब की कुछ पत्तियां भी
 
कुर्ते से झाड़ीं,
 
फिर गहरी उसांस लेकर
 
चैन की सांस लेकर
 
कुर्सी सरकाई
 
और भाई, बैठ गए।
 
बैठते ही ऐंठ गए।
 
दबी हुई चीख़ निकली, सह गए
 
पर बैठे-के-बैठे ही रह गए।
 
 
 
उठने की कोशिश की
 
तो साथ में कुर्सी उठ आई
 
उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगाई-
 
किसने बनाई है?
 
 
 
चपरासी ने पूछा- क्या?
 
 
 
क्या के बच्चे कुर्सी!
 
क्या तेरी शामत आई है?
 
जाओ फ़ौरन उस बढ़ई को बुलाओ।
 
 
 
बढ़ई बोला-
 
सर मेरी क्या ग़लती है
 
यहां तो ठेकेदार साब की चलती है।
 
 
 
उन्होंने कहा-
 
कुर्सियों में वेस्ट भर दो
 
सो भर दी
 
कुर्सी आलपिनों से लबरेज़ कर दी।
 
मैंने देखा कि आपके दफ़्तर में
 
काग़ज़ बिखरे पड़े रहते हैं
 
कोई भी उनमें
 
आलपिनें नहीं लगाता है
 
प्रत्येक बाबू
 
दिन में कम-से-कम
 
डेढ़ सौ आलपिनें नीचे गिराता है।
 
और बाबूजी,
 
नीचे गिरने के बाद तो
 
हर चीज़ वेस्ट हो जाती है
 
कुर्सियों में भरने के ही काम आती है।
 
तो हुज़ूर,
 
उसी को सज़ा दें
 
जिसका हो कुसूर।
 
ठेकेदार साब को बुलाएं
 
वे ही आपको समझाएं।
 
अब ठेकेदार बुलवाया गया,
 
सारा माजरा समझाया गया।
 
ठेकेदार बोला-
 
बढ़ई इज़ सेइंग वैरी करैक्ट सर!
 
हिज़ ड्यूटी इज़ ऐब्सोल्यूटली
 
परफ़ैक्ट सर!
 
सरकारी आदेश है
 
कि सरकारी सम्पत्ति का सदुपयोग करो
 
इसीलिए हम बढ़ई को बोला
 
कि वेस्ट भरो।
 
ब्लंडर मिस्टेक तो आलपिन कंपनी के
 
प्रोपराइटर का है
 
जिसने वेस्ट जैसा चीज़ को
 
इतना नुकीली बनाया
 
और आपको
 
धरातल पे कष्ट पहुंचाया।
 
वैरी वैरी सॉरी सर।
 
 
 
अब बुलवाया गया
 
आलपिन कंपनी का प्रोपराइटर
 
पहले तो वो घबराया
 
समझ गया तो मुस्कुराया।
 
बोला-
 
श्रीमान,
 
मशीन अगर इंडियन होती
 
तो आपकी हालत ढीली न होती,
 
क्योंकि
 
पिन इतनी नुकीली न होती।
 
पर हमारी मशीनें तो
 
अमरीका से आती हैं
 
और वे आलपिनों को
 
बहुत ही नुकीला बनाती हैं।
 
अचानक आलपिन कंपनी के
 
मालिक ने सोचा
 
अब ये अमरीका से
 
किसे बुलवाएंगे
 
ज़ाहिर है मेरी ही
 
चटनी बनवाएंगे।
 
इसलिए बात बदल दी और
 
अमरीका से भिलाई की तरफ
 
डायवर्ट कर दी-
 
</poem>
 
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
{{भारत के कवि}}
 
 
 
[[Category:नया पन्ना]]
 
__NOTOC__
 
__NOEDITSECTION__
 
__INDEX__
 

12:51, 19 अगस्त 2011 के समय का अवतरण