"बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-3 ब्राह्मण-5" के अवतरणों में अंतर

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*इस ब्राह्मण में कहोल और याज्ञवल्क्य के मध्य शास्त्रार्थ का विवरण है।  
 
*इस ब्राह्मण में कहोल और याज्ञवल्क्य के मध्य शास्त्रार्थ का विवरण है।  
 
*इसमें पुन: 'ब्रह्म' के अपरोक्ष रूप और 'आत्मा' के सर्वान्तर रूप के विषय में प्रश्न हैं।  
 
*इसमें पुन: 'ब्रह्म' के अपरोक्ष रूप और 'आत्मा' के सर्वान्तर रूप के विषय में प्रश्न हैं।  

11:09, 5 सितम्बर 2011 का अवतरण

  • इस ब्राह्मण में कहोल और याज्ञवल्क्य के मध्य शास्त्रार्थ का विवरण है।
  • इसमें पुन: 'ब्रह्म' के अपरोक्ष रूप और 'आत्मा' के सर्वान्तर रूप के विषय में प्रश्न हैं।
  • इसका उत्तर देते हुए याज्ञवल्क्य कहते हैं कि तुम्हारी आत्मा ही सर्वान्तर में प्रतिष्ठित है।
  • आत्मा भूख, प्यास, जरा, मृत्यु, शोक और मोह से परे है।
  • इसे जानने के उपरान्त कोई इच्छा शेष नहीं रहती।


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