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  • इस अनुवाक में सर्वरूप, वेदों में सर्वश्रेष्ठ उपास्य देव 'इन्द्र' की उपासना करते हुए ऋषि कहते हैं कि वे उन्हें अमृत-स्वरूप परमात्मा को धारण करने वाला मेधा-सम्पन्न बनायें।
  • शरीर में स्फूर्ति, जिह्वा में माधुर्य और कानों में शुभ वचन प्रदान करें।
  • उन्हें सभी लोगों में यशस्वी, धनवान और ब्रह्मज्ञानी बनायें।
  • उनके पास जो शिष्य आयें, वे ब्रह्मचारी, कपटहीन, ज्ञानेच्छु और मन का निग्रह करने वाले हों।
  • इसी के लिए वे यज्ञ में उनके नाम की आहुतियां देते हैं।


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