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मुडिबद्री तीर्थ का इतिहास श्री भद्रबाहु स्वामी तथा [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के साथ जुड़ा हुआ है। [[विजयनगर साम्राज्य]] के माण्डलिक सामंतों के अधिकार-क्षेत्रों में अनेकानेक [[जैन]] स्थापत्य-कृतियों का निर्माण हुआ। इनमें मुडिबद्री का नाम अग्रगण्य है, जिसमें किये गये दान का उल्लेख 1390 ई. के एक अभिलेख में हुआ है। चौदहवीं शताब्दी में विजयनगर सम्राट [[देवराय द्वितीय]] के शासनकाल में मुडिबद्री में त्रिभुवन-चूड़ामणि-महाचैत्य का निर्माण हुआ। इसमें एक मनोहारी और उल्लेखनीय स्तंभ-मण्डप है। इसे पश्चिम-तट की शैली में निर्मित स्थापत्य का सुंदर उदाहरण माना जाता है। | मुडिबद्री तीर्थ का इतिहास श्री भद्रबाहु स्वामी तथा [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के साथ जुड़ा हुआ है। [[विजयनगर साम्राज्य]] के माण्डलिक सामंतों के अधिकार-क्षेत्रों में अनेकानेक [[जैन]] स्थापत्य-कृतियों का निर्माण हुआ। इनमें मुडिबद्री का नाम अग्रगण्य है, जिसमें किये गये दान का उल्लेख 1390 ई. के एक अभिलेख में हुआ है। चौदहवीं शताब्दी में विजयनगर सम्राट [[देवराय द्वितीय]] के शासनकाल में मुडिबद्री में त्रिभुवन-चूड़ामणि-महाचैत्य का निर्माण हुआ। इसमें एक मनोहारी और उल्लेखनीय स्तंभ-मण्डप है। इसे पश्चिम-तट की शैली में निर्मित स्थापत्य का सुंदर उदाहरण माना जाता है। | ||
− | मुडिबद्री में पन्द्रहवीं-सोलहवीं सदी का शिखर सहित वर्गाकार सुंदर मंदिर है, जो पूर्व गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा में है। यह मंदिर इस बात का प्रमाण है कि गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा उत्तरी भारत में तो विदेशी प्रभावों के कारण शीघ्र ही नष्ट हो गई किंतु दक्षिण में पन्द्रहवीं-सोलहवीं सदी तक प्रचलित रही। यह स्थान प्राचीनकाल में जैन विद्यार्थियों का केन्द्र था। आज भी यहाँ जैन ग्रंथों की प्राचीनतम प्रतियाँ सुरक्षित हैं। यहाँ 22 जैन मंदिर हैं, जिनमें चन्द्रप्रभु का विशाल एवं प्राचीन मंदिर मुख्य है। चन्द्रप्रभु की मूर्ति पंच धातु की बनी है, जो अति भव्य है। इस मंदिर का निर्माण 1429 ई. में 10 करोड़ रुपये की लागात से करवाया गया था। इसी मंदिर के सहस्त्रकूट जिनालय में धातु की 1008 प्रतिमाएँ हैं। | + | मुडिबद्री में पन्द्रहवीं-सोलहवीं [[सदी]] का शिखर सहित वर्गाकार सुंदर मंदिर है, जो पूर्व गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा में है। यह मंदिर इस बात का प्रमाण है कि गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा उत्तरी भारत में तो विदेशी प्रभावों के कारण शीघ्र ही नष्ट हो गई किंतु दक्षिण में पन्द्रहवीं-सोलहवीं [[सदी]] तक प्रचलित रही। यह स्थान प्राचीनकाल में जैन विद्यार्थियों का केन्द्र था। आज भी यहाँ जैन ग्रंथों की प्राचीनतम प्रतियाँ सुरक्षित हैं। यहाँ 22 जैन मंदिर हैं, जिनमें चन्द्रप्रभु का विशाल एवं प्राचीन मंदिर मुख्य है। चन्द्रप्रभु की मूर्ति पंच धातु की बनी है, जो अति भव्य है। इस मंदिर का निर्माण 1429 ई. में 10 करोड़ रुपये की लागात से करवाया गया था। इसी मंदिर के सहस्त्रकूट जिनालय में धातु की 1008 प्रतिमाएँ हैं। |
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10:58, 3 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
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मुडिबद्री एक प्राचीन तीर्थस्थल जो कर्नाटक राज्य के कनारा ज़िले में अवस्थित है।
इतिहास
मुडिबद्री तीर्थ का इतिहास श्री भद्रबाहु स्वामी तथा चंद्रगुप्त मौर्य के साथ जुड़ा हुआ है। विजयनगर साम्राज्य के माण्डलिक सामंतों के अधिकार-क्षेत्रों में अनेकानेक जैन स्थापत्य-कृतियों का निर्माण हुआ। इनमें मुडिबद्री का नाम अग्रगण्य है, जिसमें किये गये दान का उल्लेख 1390 ई. के एक अभिलेख में हुआ है। चौदहवीं शताब्दी में विजयनगर सम्राट देवराय द्वितीय के शासनकाल में मुडिबद्री में त्रिभुवन-चूड़ामणि-महाचैत्य का निर्माण हुआ। इसमें एक मनोहारी और उल्लेखनीय स्तंभ-मण्डप है। इसे पश्चिम-तट की शैली में निर्मित स्थापत्य का सुंदर उदाहरण माना जाता है।
मुडिबद्री में पन्द्रहवीं-सोलहवीं सदी का शिखर सहित वर्गाकार सुंदर मंदिर है, जो पूर्व गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा में है। यह मंदिर इस बात का प्रमाण है कि गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा उत्तरी भारत में तो विदेशी प्रभावों के कारण शीघ्र ही नष्ट हो गई किंतु दक्षिण में पन्द्रहवीं-सोलहवीं सदी तक प्रचलित रही। यह स्थान प्राचीनकाल में जैन विद्यार्थियों का केन्द्र था। आज भी यहाँ जैन ग्रंथों की प्राचीनतम प्रतियाँ सुरक्षित हैं। यहाँ 22 जैन मंदिर हैं, जिनमें चन्द्रप्रभु का विशाल एवं प्राचीन मंदिर मुख्य है। चन्द्रप्रभु की मूर्ति पंच धातु की बनी है, जो अति भव्य है। इस मंदिर का निर्माण 1429 ई. में 10 करोड़ रुपये की लागात से करवाया गया था। इसी मंदिर के सहस्त्रकूट जिनालय में धातु की 1008 प्रतिमाएँ हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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