"अब तुम रूठो -गोपालदास नीरज" के अवतरणों में अंतर
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− | <poem>अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है। | + | <poem> |
+ | अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है। | ||
दीप, स्वयं बन गया शलभ अब जलते-जलते, | दीप, स्वयं बन गया शलभ अब जलते-जलते, | ||
मंजिल ही बन गया मुसाफिर चलते-चलते, | मंजिल ही बन गया मुसाफिर चलते-चलते, | ||
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अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है। | अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है। | ||
− | अब हर एक | + | अब हर एक नज़र पहचानी सी लगती है, |
अब हर एक डगर कुछ जानी सी लगती है, | अब हर एक डगर कुछ जानी सी लगती है, | ||
बात किया करता है, अब सूनापन मुझसे, | बात किया करता है, अब सूनापन मुझसे, |
08:57, 3 नवम्बर 2011 का अवतरण
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अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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