एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "०"।

"गुरु रामदास" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
  
  
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
{{cite book | last =शर्मा | first =लीलाधर  | title =भारतीय चरित कोश  | edition = | publisher =शिक्षा भारती, दिल्ली | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय  | language =हिन्दी  | pages =पृष्ठ 234| chapter =}}
 
{{cite book | last =शर्मा | first =लीलाधर  | title =भारतीय चरित कोश  | edition = | publisher =शिक्षा भारती, दिल्ली | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय  | language =हिन्दी  | pages =पृष्ठ 234| chapter =}}

12:25, 17 नवम्बर 2011 का अवतरण

गुरु रामदास

सिक्खों के चौथे गुरु रामदास 1574 में गद्दी पर बैठे और 1581 ई. तक उन्होंने गुरु की गद्दी संभाली। वे तीसरे गुरु अमरदास के दामाद थे। उन्होंने 1577 ई. में अमृतसर नगर की स्थापना की और 'अमृतसर' तथा 'सतोषसर' नामक दो पवित्र सरोवरों की खुदाई आरंभ कराई।

  • गुरु रामदास के समय में लोगों से 'गुरु' के लिए चंदा या दान लेना शुरु हुआ। वे बड़े साधु स्वभाव के व्यक्ति थे। इस कारण सम्राट अकबर भी उनका सम्मान करता था।
  • गुरु रामदास के कहने पर अकबर ने एक वर्ष पंजाब से लगान नहीं लिया। इस कारण गुरु की गद्दी को लोगों से पर्याप्त धन प्राप्त हो गया था।
  • गुरु रामदास के बाद गुरु की गद्दी वंश-परंपरा में चलने लगी। उन्होंने अपने पुत्र अर्जुन देव को अपने बाद गुरु नियुक्त किया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 234।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख