"दुर्मिल सवैया" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कात्या सिंह (चर्चा | योगदान) |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
− | {{लेख प्रगति|आधार= | + | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
− | + | {{छन्द}} | |
− | [[Category:व्याकरण]][[Category:हिन्दी भाषा]][[Category:भाषा कोश]][[Category: | + | [[Category:व्याकरण]][[Category:हिन्दी भाषा]][[Category:भाषा कोश]][[Category:छन्द]] |
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
14:00, 1 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
दुर्मिल सवैया में 24 वर्ण होते हैं, जो आठ सगणों (।।ऽ) से बनते हैं और 12, 12 वर्णों पर यति होती है, अन्त सम तुकान्त ललितान्त्यानुप्रास होता है। यह छन्द तोटक वृत्त का दुगुना है। इसका प्रयोग केशव[1], तुलसी [2] से लेकर रीतिकाल तथा आधुनिक कवियों तक ने किया है।
- "जल हू थल हू परिपूरण श्री निमि के कुल अद्भुत जाति जगे।"[3]
- "अवधेस के द्वारे सकारे गयी सुत गोद मै भूपति लै निकसे।"[4]
- "सखि, नील नभस्सर से उतरा, यह हँस अहा तिरता-तिरता।"[5]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 741।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख