"अंधियार ढल कर ही रहेगा -गोपालदास नीरज" के अवतरणों में अंतर
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आंधियां चाहें उठाओ, | आंधियां चाहें उठाओ, | ||
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है जवानी तो हवा हर एक घूंघट खोलती है, | है जवानी तो हवा हर एक घूंघट खोलती है, | ||
टोक दो तो आंधियों की बोलियों में बोलती है, | टोक दो तो आंधियों की बोलियों में बोलती है, | ||
− | वह नहीं | + | वह नहीं क़ानून जाने, वह नहीं प्रतिबन्ध माने, |
वह पहाड़ों पर बदलियों सी उछलती डोलती है, | वह पहाड़ों पर बदलियों सी उछलती डोलती है, | ||
जाल चांदी का लपेटो, | जाल चांदी का लपेटो, | ||
खून का सौदा समेटो, | खून का सौदा समेटो, | ||
− | आदमी हर | + | आदमी हर क़ैद से बाहर निकलकर ही रहेगा। |
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा। | जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा। | ||
05:28, 14 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
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अंधियार ढल कर ही रहेगा |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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