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<div style="padding:3px">[[चित्र:Jetavan-Monastery-Temple-2.jpg|right|botom|130px|जेतवन मठ, श्रावस्ती|link=श्रावस्ती|border]]</div>
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<div style="padding:3px">[[चित्र:Ashokthegreat1.jpg|right|botom|130px|भारतीय संविधान की मूल सुलेखित प्रतिलिपि में प्रदर्शित अशोक के चित्र की प्रतिलिपि |link=अशोक|border]]</div>
*'''[[श्रावस्ती]]''' न केवल [[बौद्ध]] और [[जैन धर्म|जैन]] धर्मों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था अपितु यह ब्राह्मण धर्म एवं [[वेद]] विद्या का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था।
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हर दशा में दूसरे सम्प्रदायों का आदर करना ही चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य अपने सम्प्रदाय की उन्नति और दूसरे सम्प्रदायों का उपकार करता है। इसके विपरीत जो करता है वह अपने सम्प्रदाय की जड़ काटता है और दूसरे सम्प्रदायों का भी अपकार करता है ... ।<br />
*[[बुद्ध]] के जीवन काल में श्रावस्ती [[कौशल महाजनपद|कोशल देश]] की राजधानी थी। एक बौद्ध [[ग्रन्थ]] के अनुसार वहाँ 57 हज़ार कुल रहते थे और कोसल-नरेशों की आमदनी सबसे ज़्यादा इसी नगर से हुआ करती थी।
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... इसलिए समवाय (परस्पर मेलजोल से रहना) ही अच्छा है अर्थात् लोग एक-दूसरे के धर्म को ध्यान देकर सुनें और उसकी सेवा करें -[[अशोक|सम्राट अशोक महान]] [[अशोक|... और पढ़ें]]
* गौतम बुद्ध के समय में [[भारत]] के 6 बड़े नगरों में श्रावस्ती की गणना हुआ करती थी। [[श्रावस्ती|... और पढ़ें]]
 
 
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15:02, 21 जनवरी 2012 का अवतरण

विशेष आलेख
भारतीय संविधान की मूल सुलेखित प्रतिलिपि में प्रदर्शित अशोक के चित्र की प्रतिलिपि

हर दशा में दूसरे सम्प्रदायों का आदर करना ही चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य अपने सम्प्रदाय की उन्नति और दूसरे सम्प्रदायों का उपकार करता है। इसके विपरीत जो करता है वह अपने सम्प्रदाय की जड़ काटता है और दूसरे सम्प्रदायों का भी अपकार करता है ... ।
... इसलिए समवाय (परस्पर मेलजोल से रहना) ही अच्छा है अर्थात् लोग एक-दूसरे के धर्म को ध्यान देकर सुनें और उसकी सेवा करें -सम्राट अशोक महान ... और पढ़ें


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