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*[[महेन्द्र वर्मन प्रथम|महेन्द्रवर्मा]] के बाद उसका पुत्र नरसिंहवर्मा प्रथम [[कांची|काञ्जी]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
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'''नरसिंह वर्मन प्रथम''' (630-668ई.) अपने पिता [[महेन्द्र वर्मन प्रथम]] की मुत्यु के बाद गद्दी पर बैठा।
*वह इस वंश का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था। उसने पल्लवों की सैन्यशक्ति को पुनः संगठित कर उत्तर दिशा में विजय यात्रा प्रारम्भ की, और चालुक्यराज [[पुलकेशी द्वितीय]] को परास्त कर [[वातापी]] पर क़ब्ज़ा कर लिया।
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*वह अपने अभिलेखों में 'वातापीकोड' के रूप में उद्धृत है। वह [[पल्लव वंश]] का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था।
*नरसिंहवर्मा की सेना के साथ युद्ध करते हुए ही पुलकेशी ने वीरगति प्राप्त की थी।  
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*असाधारण धैर्य एवं पराक्रम के कारण उसे 'महामल्ल' भी कहा गया है।
*प्रतापी चालुक्यों को परास्त कर उसकी राजधानी वातापी को जीत लेना नरसिंहवर्मा के जीवन की गौरवमयी घटना है। इसीलिए उसने 'वातापीकोड' का विरुद भी अपने नाम के साथ जोड़ लिया। *सिहलद्वीप पर आक्रमण करके नरसिंहवर्मा ने अपनी नौसेना की शक्ति का परिचय दिया।
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*'कुर्रम दान पत्र' अभिलेख से ज्ञात होता है कि, नरसिंह वर्मन प्रथम ने [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] नरेश [[पुलकेशी द्वितीय]] को परिमल, मणिमंगलाई एवं शूरमार के युद्धों में परास्त किया था।
*सिंहल के राजसिंहासन पर किसका अधिकार हो, इस सवाल को लेकर वहाँ गृहकलह चल रहा था।
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*नरसिंह वर्मन प्रथम की सेना के साथ युद्ध करते हुए ही पुलकेशी द्वितीय ने वीरगति प्राप्त की थी।
*राजपद के अन्यतम उम्मीदवार मानवम्म ने नरसिंहवर्मा की शरण ली, और उसकी सहायता के लिए पल्लवराज ने दो बार नौसेना द्वारा सिंहल पर आक्रमण किया।  
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*नरसिंह वर्मन ने पुलकेशी द्वितीय की पीठ पर 'विजय' शब्द अंकित करवाया था।
*नरसिंहवर्मा का एक विरुद 'महामल्ल' भी था, इसी को लेकर उसने 'महामल्लपुरम' नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर में उसने अनेक विशाल मन्दिरों का निर्माण कराया, जिनमें से 'धर्मराजरथ मन्दिर' अब तक भी विद्यमान है, और उसके गौरव व महत्ता का साक्षी है।
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*इस विजय का उल्लेख [[बादामी]] में मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे एक पाषाण पर उत्कीर्ण है, जिसे उसके सेनापति [[शिरुतोण्ड]] ने उत्कीर्ण करवाया था।
*[[भारत]] का पर्यटन करते हुए चीनी यात्री [[ह्वेनसांग|ह्यू-एन-त्सांग]] पल्लव राज्य में भी गया था। उसने इस प्रदेश को 'रत्नों का आकर' लिखा है।
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*नरसिंह वर्मन प्रथम के काशाक्कुटि ताम्रपत्र अभिलेख एवं महावंश के उल्लेख से उसकी लंका विजय प्रमाणित होती है।
*इस प्रसिद्ध चीनी यात्री के अनुसार काञ्जी में 100 संघाराम थे, जिनमें 1000 भिक्षु निवास करते थे।  
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*राजपद के अन्यतम उम्मीदवार मानवम्म ने नरसिंह वर्मन की शरण ली, और उसकी सहायता के लिए पल्लवराज ने दो बार नौसेना द्वारा लंका पर आक्रमण किया।  
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*इसी कारण इस लेख में नरसिंह वर्मा प्रथम की तुलना लंका विजय [[राम]] से की गई।
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*महावंश के 47वें अध्याय के अनुसार लंका का राजकुमार [[मारवर्मन]] भारतीय राजा नरसिंह वर्मन के दरबार में रहता था।
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*[[कांची]] के निकट एक बन्दरगाह वाला नगर महामल्लपुरम ([[महाबलीपुरम]]) बसाने का श्रेय भी नरसिंह वर्मन प्रथम को दिया जाता है।
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*उसके शासन काल में चीनी यात्री [[ह्वेनसांग]] कांची गया था।
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*इस प्रसिद्ध चीनी यात्री के अनुसार [[कांची]] में 100 संघाराम थे, जिनमें 1000 भिक्षु निवास करते थे।  
 
*[[बौद्ध]] विहारों के अतिरिक्त अन्य धर्मों के भी 80 मन्दिर और बहुत से चैत्य वहाँ पर थे।  
 
*[[बौद्ध]] विहारों के अतिरिक्त अन्य धर्मों के भी 80 मन्दिर और बहुत से चैत्य वहाँ पर थे।  
 
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*इसके समय में सिंह शीर्षक स्तम्भ की नई शैली का विकास हुआ, जिसे इसके नाम पर '''मामल्य शैली''' का नाम दिया गया।
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*महाबलीपुरम के सप्तरथ इसी के शासनकाल में बनाए गए थे। इनका नामकरण [[पाण्डव]], [[द्रौपदी]] तथा [[गणेश]] के नाम पर किया गया था।
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05:40, 14 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

नरसिंह वर्मन प्रथम (630-668ई.) अपने पिता महेन्द्र वर्मन प्रथम की मुत्यु के बाद गद्दी पर बैठा।

  • वह अपने अभिलेखों में 'वातापीकोड' के रूप में उद्धृत है। वह पल्लव वंश का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था।
  • असाधारण धैर्य एवं पराक्रम के कारण उसे 'महामल्ल' भी कहा गया है।
  • 'कुर्रम दान पत्र' अभिलेख से ज्ञात होता है कि, नरसिंह वर्मन प्रथम ने चालुक्य नरेश पुलकेशी द्वितीय को परिमल, मणिमंगलाई एवं शूरमार के युद्धों में परास्त किया था।
  • नरसिंह वर्मन प्रथम की सेना के साथ युद्ध करते हुए ही पुलकेशी द्वितीय ने वीरगति प्राप्त की थी।
  • नरसिंह वर्मन ने पुलकेशी द्वितीय की पीठ पर 'विजय' शब्द अंकित करवाया था।
  • इस विजय का उल्लेख बादामी में मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे एक पाषाण पर उत्कीर्ण है, जिसे उसके सेनापति शिरुतोण्ड ने उत्कीर्ण करवाया था।
  • नरसिंह वर्मन प्रथम के काशाक्कुटि ताम्रपत्र अभिलेख एवं महावंश के उल्लेख से उसकी लंका विजय प्रमाणित होती है।
  • राजपद के अन्यतम उम्मीदवार मानवम्म ने नरसिंह वर्मन की शरण ली, और उसकी सहायता के लिए पल्लवराज ने दो बार नौसेना द्वारा लंका पर आक्रमण किया।
  • इसी कारण इस लेख में नरसिंह वर्मा प्रथम की तुलना लंका विजय राम से की गई।
  • महावंश के 47वें अध्याय के अनुसार लंका का राजकुमार मारवर्मन भारतीय राजा नरसिंह वर्मन के दरबार में रहता था।
  • कांची के निकट एक बन्दरगाह वाला नगर महामल्लपुरम (महाबलीपुरम) बसाने का श्रेय भी नरसिंह वर्मन प्रथम को दिया जाता है।
  • उसके शासन काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग कांची गया था।
  • इस प्रसिद्ध चीनी यात्री के अनुसार कांची में 100 संघाराम थे, जिनमें 1000 भिक्षु निवास करते थे।
  • बौद्ध विहारों के अतिरिक्त अन्य धर्मों के भी 80 मन्दिर और बहुत से चैत्य वहाँ पर थे।
  • इसके समय में सिंह शीर्षक स्तम्भ की नई शैली का विकास हुआ, जिसे इसके नाम पर मामल्य शैली का नाम दिया गया।
  • महाबलीपुरम के सप्तरथ इसी के शासनकाल में बनाए गए थे। इनका नामकरण पाण्डव, द्रौपदी तथा गणेश के नाम पर किया गया था।
  • प्रतापी चालुक्यों को परास्त कर उसकी राजधानी बादामी को जीत लेना, नरसिंह वर्मन प्रथम के जीवन की गौरवमयी घटना है। इसीलिए उसने 'वातापीकोड' का विरुद भी अपने नाम के साथ जोड़ लिया।


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