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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
 
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[[भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012|मैं तो एक भूत हूँ]]
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[[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|बस एक चान्स !]]
       "अभी-अभी मरे हो...नये-नये भूत बने हो... और एक दम से रहने के लिए फ़्लॅट चाहिए ? रूल तो रूल है... सबके लिए बराबर है तुमको बताया ना ! पहले 10 लोगों को डराओ तो खटिया मिलेगी सोने को... उसके बाद 25 लोगों को डरा लोगे तो एक कमरा मिल जायेगा इसी तरह 100 पर फ़्लॅट और 500 पर बंगला और नौकर-चाकर भी... [[भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012|पूरा पढ़ें]]
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       इस बात का पता 'चंद लोगों' को ही था कि छोटे पहलवान दुनियाँ का सबसे अक़्लमंद लड़का है। इन 'चंद लोगों' में थे- एक तो छोटे पहलवान ख़ुद और बाक़ी उसके माता-पिता और परिवारी जन। बाहर की दुनियाँ से छोटे का ज़्यादा सम्पर्क हुआ नहीं था। इसी दौर में उसे यह भी महसूस होने लगा कि वह दुनियाँ का महानतम विद्वान भी है... [[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|पूरा पढ़ें]]
 
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अप्रॅल 2012|सफलता का शॉर्ट-कट]] ·
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012|एक महान डाकू की शोक सभा]]  
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अप्रॅल 2012|सफलता का शॉर्ट-कट]]  
 
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14:47, 5 मई 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी
Editorial-5-may.jpg

बस एक चान्स !
      इस बात का पता 'चंद लोगों' को ही था कि छोटे पहलवान दुनियाँ का सबसे अक़्लमंद लड़का है। इन 'चंद लोगों' में थे- एक तो छोटे पहलवान ख़ुद और बाक़ी उसके माता-पिता और परिवारी जन। बाहर की दुनियाँ से छोटे का ज़्यादा सम्पर्क हुआ नहीं था। इसी दौर में उसे यह भी महसूस होने लगा कि वह दुनियाँ का महानतम विद्वान भी है... पूरा पढ़ें

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