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− | + | ऐसा कैसे हो सकता है कि न कोई मित्र है और न कोई शत्रु है ? न कोई मान है, न कोई अपमान है ! मित्र तो मित्र होता है, शत्रु तो शत्रु होता है। जो मित्र है, वह शत्रु कैसे हो सकता है और जो शत्रु है, वह मित्र कैसे हो सकता है ? ...[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012|पूरा पढ़ें]] | |
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12:59, 19 मई 2012 का अवतरण
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