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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
 
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[[चित्र:Helecopter-01.jpg|border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012]]
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[[चित्र:Vigyapan-lok.png|border|right|110px|link=भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012]]
 
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[[भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012|चमचारथी]]
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[[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|विज्ञापन लोक]]
           छोटे शहरों की नालियाँ सूचना तंत्र का काम करती हैं। यदि किसी घर की नाली काफ़ी दिन से सूखी है, तो चोरों को सूचना देती हैं कि इस घर में दो-चार दिन से कोई नहीं है। यदि बरसात में रुक गई हैं, तो पर्यावरण वालों को सूचना देती हैं कि पॉलीथिन का इस्तेमाल, इस शहर में अभी तक जारी है। यदि नालियों के किनारे सफ़ेद चूने की लाइन बनी हों, तो किसी वी.आई.पी. के आने की सूचना देती हैं। [[भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012|पूरा पढ़ें]]
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           जैसे नेताओं को हम वोटर और वकीलों को हम क्लाइंट दिखाई देते हैं, वैसे ही विज्ञापन एजेंसियों और विक्रेता को हम ग्राहक और उपभोक्ता दिखाई देते हैं। हरेक दुकानदार मरने से पहले अपनी औलाद को वसीयत के साथ साथ एक नसीहत भी देकर मरता है-
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"मेरे बच्चों हमेशा ध्यान रखना कि मौत और ग्राहक का क्या पता कब आ जाये।" [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|पूरा पढ़ें]]
 
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 10 जून 2012|लक्ष्य और साधना]] ·
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012|चमचारथी]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 2 जून 2012|लेकिन एक रिटेक और लेते हैं]]  
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 10 जून 2012|लक्ष्य और साधना]]  
 
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15:01, 25 जून 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी
Vigyapan-lok.png

विज्ञापन लोक
          जैसे नेताओं को हम वोटर और वकीलों को हम क्लाइंट दिखाई देते हैं, वैसे ही विज्ञापन एजेंसियों और विक्रेता को हम ग्राहक और उपभोक्ता दिखाई देते हैं। हरेक दुकानदार मरने से पहले अपनी औलाद को वसीयत के साथ साथ एक नसीहत भी देकर मरता है-
"मेरे बच्चों हमेशा ध्यान रखना कि मौत और ग्राहक का क्या पता कब आ जाये।" पूरा पढ़ें

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