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दक्षिण की ओर पहाड़ियों की ऊँचाई बढ़ती गई है, वहीं घाटियाँ नीची होती गई हैं। ऊपरी हिस्से की अपेक्षा जंगल अधिक सघन है, लेकिन इसके ऊँचे-नीचे हिस्से को पार करने के बाद खुली हुई भूमि है, जिसमें बहुत से गाँव बने थे तथा खेती-बाड़ी होती थी। रियासत के दक्षिण का यह जंगली भाग 'छप्पन' के नाम से जाना जाता है। मेवाड़ के पश्चिम की ओर की समस्त पहाड़ी दूरी दक्षिण में डूंगरपुर की सीमा से उत्तर में [[सिरोही]] व मारवाड़ की सीमा तक 'मगरा' कहलाती थी। इस हिस्से का बहाव दक्षिण की ओर है, जिसमें '[[खंभात की खाड़ी]]' में गिरने वाली नदी के मुख्य सोतें है।<ref name="ab"/>
 
दक्षिण की ओर पहाड़ियों की ऊँचाई बढ़ती गई है, वहीं घाटियाँ नीची होती गई हैं। ऊपरी हिस्से की अपेक्षा जंगल अधिक सघन है, लेकिन इसके ऊँचे-नीचे हिस्से को पार करने के बाद खुली हुई भूमि है, जिसमें बहुत से गाँव बने थे तथा खेती-बाड़ी होती थी। रियासत के दक्षिण का यह जंगली भाग 'छप्पन' के नाम से जाना जाता है। मेवाड़ के पश्चिम की ओर की समस्त पहाड़ी दूरी दक्षिण में डूंगरपुर की सीमा से उत्तर में [[सिरोही]] व मारवाड़ की सीमा तक 'मगरा' कहलाती थी। इस हिस्से का बहाव दक्षिण की ओर है, जिसमें '[[खंभात की खाड़ी]]' में गिरने वाली नदी के मुख्य सोतें है।<ref name="ab"/>
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11:35, 5 मार्च 2013 का अवतरण

मेवाड़ भौगोलिक दृष्टिकोण से काफ़ी समृद्ध व सम्पन्न रहा है। यहाँ की भूमि पर प्रकृति की विशेष कृपा रही है। इसकी भौगोलिक स्थिति प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से यहाँ के राणाओं और निवासियों के लिए मददगार रही। राज्य की सीमाएँ समय-समय पर बदलती रही हैं। जब मेवाड़ अपनी उन्नति की पराकाष्ठा पर था, तब इसका विस्तार उत्तर-पूर्व में बयाना तक, दक्षिण में रेवाकण्ठा तथा महिकण्ठा तक, पश्चिम में पालनपुर तक तथा दक्षिण-पूर्व में मालवा तक था। यद्यपि समय के साथ-साथ इसकी सीमाओं में परिवर्तन होते रहे थे।

भौगोलिक स्थिति

मेवाड़, राजपूताना के दक्षिण भाग में स्थित है। यह उत्तरी अक्षांश 25° 58' से 49° 12' तक तथा पूर्वी देशांतर 45° 51' 30' से 73° 7' तक फैला हुआ है। लंबाई में यह उत्तर से दक्षिण तक 147.6 मील तथा चौड़ाई में पूर्व से पश्चिम तक 163.04 मील था। इस प्रकार मेवाड़ का कुल विस्तार 12,691 वर्ग मील था। इसके उत्तर में अजमेर-मेवाड़ प्रदेश तथा शाहपुरा राज्य थे, पश्चिम में सिरोही, दक्षिण-पश्चिम में इडर, दक्षिण में डुंगरपुर, बाँसवाड़ा का कुछ हिस्सा तथा प्रतापगढ़ के राज्य थे। पूर्व में नीमच व निंबाहेड़ा के ज़िले तथा बूँदी और कोटा राज्य स्थित थे।[1]

संरचना

मेवाड़ राज्य आकार में आयताकार है। क़रीब-क़रीब अधिकांश क्षेत्र अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से आच्छादित है, जिसके पर्वत पृष्ठ तीव्र तथा पठार उथले हैं। बैरत, दुधेश्वर, कमलीघाट आदि इस क्षेत्र की प्रमुख श्रृंखलाएँ हैं तथा जागरा, रणकपुर, गोगुंडा, बोमट, गिरवा तथा मागरा आदि पठारों के उदाहरण हैं। मेवाड़ की सीमा रेखा का कार्य खाड़ी नदी करती रही, जिसका प्रादुर्भाव पश्चिमी पर्वत श्रृंखलाओं से हुआ है। मेवाड़ अजमेर-मारवाड़ के बीच एक प्राकृतिक सीमा रेखा का कार्य करता है। विभिन्न बाँध तथा पोखरियाँ अपनी प्राकृतिक बनावट के कारण इसे सुरक्षा प्रदान करती हैं। मेवाड़ के देशभक्त व समर्पित योद्धा अपनी धरती के लिए लड़ने तथा अपना अधिकार प्राप्त करने के सतत् प्रयास के लिए एक आदर्श उदाहरण के रूप में सदियों तक याद किये जाते रहेंगे।

नजदीकी क्षेत्र

कोटा सिर्फ़ भैंसरोड़ के पास मेवाड़ राज्य के एक निकले हुए जमीन के टुकड़े से स्पर्श करता है, जिसके दक्षिण में होल्कर का ज़िला रामपुरा है। अग्निकोण में कई रियासतों के हिस्से हैं और टौंक, ग्वालियरइंदौर की अमल्दारी के छोटे-छोटे टुकड़े चारों तरफ़ मेवाड़ की भूमि से घिरे हुए हैं। सिंधिया के कुछ गाँव, जो एक-दूसरे से कुछ दूरी पर हैं तथा मिलकर गंगापुर परगना बनाते हैं, मेवाड़ के बीचों-बीच पड़ते हैं।[1]

भूमि

मेवाड़ अपनी भौगोलिक विशेषताओं के लिए भी विख्यात रहा है। रियासत के उत्तर व पूर्वी हिस्से में ऊँची-नीची जमीन बहुत दूर तक फैली हुई है। इस हरे-भरे उपजाऊ पठारी क्षेत्र को 'उत्तरमाल' कहते हैं। ईशान कोण पर जमीन कुछ ढलाऊ है। बनास तथा उसकी सहायक नदियाँ अरावली के पहाड़ से निकल कर पहले चंबल तथा अंत में यमुना और गंगा के साथ मिल जाती है। पहाड़ियाँ अलग-अलग व समुहों दोनों में है। छोटे ऊँचाई की पहाड़ियाँ तो समस्त रियासत में फैली है। उदयपुर नगर समुद्र तल से 1,957 फीट तथा देवली स्थान 1,922 फीट ऊँचा है।

नदी तथा पहाड़

मेवाड़ का मध्य भाग मैदान है, जहाँ अरावली पर्वत से निकलने वाली नदियों के जल से सिंचित हरे-भरे खेत दृष्टिगत होते हैं। अरावली पर्वत की ऊँचाई अजमेर-मेवाड़ की तरफ़ समुद्र की सतह से 2,383 फुट है। इसकी चौड़ाई कुछ कम है, लेकिन दक्षिण-पश्चिम की तरफ़ इसकी ऊँचाई बढ़ती जाती है। यह ऊँचाई कुंभलगढ़ पर 3,568 फुट है तथा जर्गा पर इसकी सर्वोच्च चोटी समुद्र की सतह से 4,315 फुट ऊँची है। इन पर्वतीय प्रदेश में कई तंग घाटियाँ भी हैं, जो यातायात की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है। इन घाटियों में सर्वाधिक घाटी जीलवाड़े के पास है, जो जीलवाड़ा की नाल व पागल्या नाल के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी लंबाई लगभग 4 मील (लगभग 6.4 कि.मी.) है। उत्तर-पूर्व हिस्से से भिन्न, दक्षिण और पश्चिम का हिस्सा चट्टानों, पहाड़ियों व घने जंगलों से ढ़का हुआ है।

दक्षिण की ओर पहाड़ियों की ऊँचाई बढ़ती गई है, वहीं घाटियाँ नीची होती गई हैं। ऊपरी हिस्से की अपेक्षा जंगल अधिक सघन है, लेकिन इसके ऊँचे-नीचे हिस्से को पार करने के बाद खुली हुई भूमि है, जिसमें बहुत से गाँव बने थे तथा खेती-बाड़ी होती थी। रियासत के दक्षिण का यह जंगली भाग 'छप्पन' के नाम से जाना जाता है। मेवाड़ के पश्चिम की ओर की समस्त पहाड़ी दूरी दक्षिण में डूंगरपुर की सीमा से उत्तर में सिरोही व मारवाड़ की सीमा तक 'मगरा' कहलाती थी। इस हिस्से का बहाव दक्षिण की ओर है, जिसमें 'खंभात की खाड़ी' में गिरने वाली नदी के मुख्य सोतें है।[1]

इन्हें भी देखें: मेवाड़ की नदियाँ


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 मेवाड़, भौगोलिक पृष्ठभूमि (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 जनवरी, 2013।

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