"साँचा:साप्ताहिक सम्पादकीय" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
| style="background:transparent;"|
 
| style="background:transparent;"|
 
{| style="background:transparent; width:100%"
 
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
+
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 15 अप्रॅल 2013|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
 
|-
 
|-
 
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
 
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
|- valign="top"
 
|- valign="top"
 
|  
 
|  
[[चित्र:Sant-Kabirdas.jpg|border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013]]
+
[[चित्र:Chair-neta.jpg|border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 15 अप्रॅल 2013]]
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|कबीर का कमाल]]</center>
+
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 15 अप्रॅल 2013|वोटरानी और वोटर]]</center>
 
<poem>
 
<poem>
               दुनिया की रीत निराली है। लोग 'प्रयासों' को नहीं, 'परिणामों' को देखकर शाबाशी देते हैं। 'पश्चाताप' को नहीं, 'प्रायश्चित' को सराहते हैं। 'खेती' को नहीं, 'फ़सल' को देखकर मुग्ध होते हैं। सुन्दरता की प्रशंसा 'फूल' की होती है न कि 'बीज' की। इसलिए कबीर के इस क़िस्से से हम यह समझ सकते हैं कि कबीर ने किसी को सफ़ाई नहीं दी कि वह स्त्री झूठ बोल रही है बल्कि उस स्त्री के मुख से ही सच कहलवा लिया और वह भी पूर्णत: अहिंसक तरीक़े से। [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|...पूरा पढ़ें]]
+
               "अरे तो कौन सा दस-बीस साल पहले मरा है ? अभी छ: महीने पहले ही तो मरा है, एकदम से इतनी जल्दी वोट थोड़े ही ख़तम होता है... एक-दो साल तो चलेगा ही। हम भी पढ़े-लिखे हैं साहब ! दिखाओ कौन से क़ानून में लिखा है कि मरा आदमी वोट नहीं डालेगा... ये हिन्दुस्तान है बाबूजी हिन्दुस्तान... सबको बराबर का हक़ है ज़िन्दा को भी और मरे हुए को भी... डेमोकिरेसी है, डेमोकिरेसी... सब एक बराबर चाहे आदमी-औरत, बड़ा-छोटा, राजा-भिखारी... और चाहे ज़िन्दा चाहे मरा... समझे" छोटे पहलवान ने अधिकारी को समझाया। [[भारतकोश सम्पादकीय 15 अप्रॅल 2013|...पूरा पढ़ें]]
 
</poem>
 
</poem>
 
<center>
 
<center>
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
|-
 
|-
 
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
 
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
 +
| [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|कबीर का कमाल]]  ·
 
| [[भारतकोश सम्पादकीय 22 फ़रवरी 2013|प्रतीक्षा की सोच]]  ·
 
| [[भारतकोश सम्पादकीय 22 फ़रवरी 2013|प्रतीक्षा की सोच]]  ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जनवरी 2013|अहम का वहम]]
+
| [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जनवरी 2013|अहम का वहम]]
 
|}</center>
 
|}</center>
 
|}  
 
|}  
 
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
 
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>

12:50, 15 अप्रैल 2013 का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी
Chair-neta.jpg
वोटरानी और वोटर

              "अरे तो कौन सा दस-बीस साल पहले मरा है ? अभी छ: महीने पहले ही तो मरा है, एकदम से इतनी जल्दी वोट थोड़े ही ख़तम होता है... एक-दो साल तो चलेगा ही। हम भी पढ़े-लिखे हैं साहब ! दिखाओ कौन से क़ानून में लिखा है कि मरा आदमी वोट नहीं डालेगा... ये हिन्दुस्तान है बाबूजी हिन्दुस्तान... सबको बराबर का हक़ है ज़िन्दा को भी और मरे हुए को भी... डेमोकिरेसी है, डेमोकिरेसी... सब एक बराबर चाहे आदमी-औरत, बड़ा-छोटा, राजा-भिखारी... और चाहे ज़िन्दा चाहे मरा... समझे" छोटे पहलवान ने अधिकारी को समझाया। ...पूरा पढ़ें

पिछले लेख कबीर का कमाल · प्रतीक्षा की सोच · अहम का वहम