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बंदा सिहं बहादुर
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{अत्यधिक ऊँचे तापों की माप किससे की जाती है?
 
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-प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी से
 
-ताप युग्म तापमापी से
 
+पूर्ण विकिरण उत्तापमापी से
 
-[[नाइट्रोजन]] गैस तापमापी से
 
  
{[[इन्द्रधनुष]] बनने का कारण क्या है?
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लछमन दास, लछमन देव या माधो दास भी कहलाते हैं (ज़ – 1670, रजौरी, भारत; मृ-जून 1716, दिल्ली ) भारत के मुग़ल शासकों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने वाले पहले सिक्ख सैन्य प्रमुख, जिन्होंने सिक्खों के राज्य का अस्थायी विस्तार भी किया।
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युवावस्था में उन्होंने पहले समन (योगी) बनने का निश्चय किया और 1708 में गुरु गोबिंद सिंह का शिष्य बनने तक वह माधो दास के नाम से जाने जाते रहे। सिक्ख बिरादरी में शामिल होने के बाद उनका नाम बंदा सिंह बहादुर हो गया और वह लोकप्रिय तो नहीं, सम्मानित सेनानी अवश्य बन गए, उनके तटस्थ, ठंडे और अवैयक्तिक स्व्भाव ने उन्हें उनके लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं बनने दिया।
+वायुमंडल में [[सूर्य]] की किरणों का [[जल]] बूंदों के द्वारा परावर्तन
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बंदा सिंह ने 1709 में मुग़लों पर हमला करके बहुत बड़े क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया। दक्कन क्षेत्र में उनके द्वारा लूटमार और क़त्लेआम से मुग़लों को उन पर पूरी ताकत से हमला करना पड़ा। 1715 में आठ महीनों की घेरेबंदी के बाद मुग़लों ने क़िलेबंद शहर गुरुदास नांगल पर क़ब्ज़ा कर लिया। बंदा सिंह और उनके साथियों को कैद करके दिल्ली ले जाया गया, जहां जहां छह महीने तक हर दिन उनके कुछ लोगों को मौत की सज़ा दी जाती रही। जब उनकी बारी आई, तो बंदा सिंह ने मुसलमान न्यायाधीश से कहा कि उनका यही हाल होना था, क्योंकि अपने प्यारे गुरु गोबिंद सिंह की इच्छाओं को पूरा करने में वह नाक़ाम रहे। उन्हें लाल गर्म लोहे की छड़ों से यातना देकर मार डाला गया।
-वायुमंडल में [[सूर्य]] की किरणों का धूलकणों के द्वारा परावर्तन
 
-प्रकाश का प्रकीर्णन
 
-प्रकाश का ध्रुवण
 
  
{[[सूर्य]] का ताप किसके द्वारा मापा जाता है?
 
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-प्लेटिनम तापमापी द्वारा
 
-[[गैस]] तापमापी द्वारा
 
+पाइरोमीटर तापमापी द्वारा
 
-वाष्पन [[दाब]] तापमापी
 
  
{सेल्सियस मापक्रम पर [[जल]] के [[क्वथनांक]] तथा [[हिमांक]] क्या होते हैं?
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बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी
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-0 डिग्री C तथा 100 डिग्री C
 
+100 डिग्री C तथा 0 डिग्री C
 
-212 डिग्री C तथा 32 डिग्री C
 
-32 डिग्री C तथा 212 डिग्री C
 
  
{[[तरंग]] का [[वेग]] (V) [[आवृति]] (n) तथा [[तरंग दैर्ध्य]] (λ) में क्या सम्बन्ध होता है?
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ब्रिटिश अधिवक्ता एवं प्राच्यविद सर विलियम जोन्स द्वारा 15 जनवरी 1784 को प्राच्य विद्याध्ययन को प्रोत्साहन देने के लिये गठित सभा।
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संस्थापना दिवस के उपलक्ष्य में जोन्स ने अपने प्रसिध्द अभिभाषणों की श्रृंखला का पहला भाषण दिया।
+v = nλ
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इस सभा को तत्कालीन बंगाल के प्रथम गवर्नर-जनरल ( 1772-95 ) वॉरेन हेस्टिग्ज़ का सहयोग और प्रोत्साहन मिला। जोन्स की मृत्यु ( 1794 ) तक यह सभा हिंदू संस्कृति तथा ज्ञान के महत्त्व व आर्य भाषाओं में संस्कृत की अहम भूमिका जैसे उनके विचारों की संवाहक थी।
-v = λ / n
 
-v = n - λ
 
-v = n + λ
 
  
{न्यूनतम सम्भव ताप क्या है?
 
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+ -273 डिग्री C
 
- 0 डिग्री C
 
- -300 डिग्री C
 
- 1 डिग्री C
 
  
{निम्नलिखित में से किसमें सर्वोच्च विशिष्ट ऊष्मा का मान होता है?
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बरारी घाटी का युद्ध
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-काँच
 
-[[तांबा]]
 
-सीसा
 
+[[जल]]
 
  
{[[प्रकाश]] का [[वेग]] अधिकतम किसमें होता है? 
 
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-[[हीरा|हीरे में]]
 
+निर्वात में
 
-पानी में
 
-कांच में
 
  
{एक मनुष्य का तापक्रम 60 डिग्री C है, तो उसका तापक्रम फारेनहाइट में क्या होगा?
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(9 जन॰ 1760), भारतीय इतिहास में पतन की ओर अग्रसर मुग़ल साम्राज्य पर नियंत्रण के लिए मराठों पर की गई अफ़ग़ान विजयों में से एक, जिसने अंग्रजों को बंगाल में पैर जमाने का समय दे दिया। दिल्ली से 16 किमी उत्तर में यमुना नदी के बरारी घाट (नौका घाट ) पर पंजाब से अहमद शाह दुर्रानी की अफ़ग़ान सेना से पीछे हट रहे मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया पर ऊंचे उगे सरकंडों की आड़ में छिपे अफ़गान सिपाहियों ने नदी पार करके अचानक हमला कर दिया। दत्ताजी मारे गए और उनकी सेना तितर-बितर हो गई। उनकी पराजय से दिल्ली पर अफ़ग़ानों के अधिकार का मार्ग प्रशस्त हो गया।
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+140 डिग्री F
 
-120 डिग्री F
 
-130 डिग्री F
 
-98 डिग्री F
 
  
{[[सूर्य]] विकिरण का कौन- सा भाग सोलर कुकर को गर्म कर देता है?
 
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-पराबैंगनी किरण
 
+अवरक्त किरण
 
-कॉस्मिक किरण
 
-प्रकाशीय किरण
 
  
{[[ऊष्मा]] गतिकी का प्रथम नियम किस अवधारणा की पुष्टि करता है ?
+
बर्द्धमान ज़िला
|type="()"}
 
-ऊर्जा संरक्षण
 
+ताप संरक्षण
 
-कार्य संरक्षण
 
-इनमें से कोई नहीं
 
  
{कमरे को ठंडा कैसे किया जा सकता है?
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बर्द्धमान ज़िला दो अलग क्षेत्रों में बंटा है। पूर्वी भाग एक निम्न जलोढ़ मैदान है, जो सघन जनसंख्यायुक्त और पानी से भरा व दलदली रहता है। पूर्व की प्रमुख फ़सलें चावल, मक्का, दलहन और तिलहन हैं। पश्चिमी क्षेत्र बंगाल के सर्वाधिक व्यस्त औधोगिक क्षेत्रों में से एक है, यहां रानीगंज के बढ़िया कोयला भंडार और पड़ोसी क्षेत्रों में कच्चा लोहा और दूसरे खनिज़ उपलब्ध हैं। दामोदर नदी तट पर विकसित दुर्गापुर और आसनसोल के औद्योगिक नगर व कुछ और नगर, जिन्हें सामुहिक तौर पर दुर्गापुर औद्योगिक पट्टी के नाम से जाना जाता है, कोलकाता के बाद बंगाल का सबसे महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र हैं। इस ज़िले में बर्द्धमान विश्वविद्यालय से संबद्ध एक इंजीनियरिंग कॉलेज और अनेक महाविद्यालय हैं। दामोदर घाटी निगम सिंचाई, औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति और बाढ़ नियंत्रण का काम करता है। पूर्व की प्रमुख फ़सलें चावल, मक्का, दलहन और तिलहन हैं। जनसंख्या (2001) शहर 2,85,871; ज़िला कुल 69,19,698।
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-पानी के बहने से  
 
+सम्पीडित गैस को छोड़ने से  
 
-रसोई गैस से
 
-ठोस को पिघलाने से
 
  
{ध्वनि तरंगों की प्रकृति कैसी होती है?
 
|type="()"}
 
-अनुप्रस्थ
 
+अनुदैर्घ्य
 
-अप्रगामी
 
-विद्युत चुम्बकीय
 
  
{[[प्रकाश]] के चिकने पृष्ठ से टकराकर वापस लौटने की घटना को क्या कहते हैं?
 
|type="()"}
 
-प्रकाश का अपवर्तन
 
+प्रकाश का परावर्तन
 
-प्रकाश का विवर्तक
 
-प्रकाश का प्रकीर्णन
 
  
{किसी मनुष्य के शरीर का सामान्य तापक्रम क्या होता है?
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बरौनी
|type="()"}
 
+98 डिग्री F
 
-98 डिग्री C
 
-68 डिग्री F
 
-66 डिग्री F
 
  
{चिल्लाते समय व्यक्ति हमेशा हथेली को मुंह के समीप क्यों रखते हैं?
 
|type="()"}
 
+उस स्थिति में [[ध्वनि]] [[ऊर्जा]] सिर्फ एक दिशा में इंगित होगी।
 
-[[ध्वनि]] स्वर का उतार- चढ़ाव घट जाता है।
 
-[[ध्वनि]] स्वर का उतार- चढ़ाव बढ़ जाता है।
 
-इस कार्यवाही का [[ध्वनि]] पर कोई प्रभाव नहीं होता है।
 
  
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बसव
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12वीं शताब्दी के धार्मिक सुधारक, उपदेशक, धर्म मीमांसक और चालुक्य राजा बिज्जला I (शासनकाल, 1156-67) के राजसी कोषागार के प्रबंधक, बसव हिंदू वीरशैव (लिंगायत) मत के पवित्र ग्रंथों में से एक, बसव पुराण के रचयिता हैं। परंपरा के अनुसार, वह वीरशैव के वास्तविक संस्थापक थे, परंतु चालुक्य अभिलेखों से पता चलता है कि उन्होंने वास्तव में पहले से मौजूद मत को पुनर्जीवित किया।
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बसव ने वीरशैव संस्थाओं को सहायता देकर और वीरशैव मत की शिक्षा देकर प्रचार में सहायता दी थी। उनके चाचा प्रधानमंत्री थे और उन्होंने बसव को कोषागार प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था। कई वर्ष तक उनके गुट को काफ़ी लोकप्रियता मिली, परंतु दरबार में अन्य गुट उनकी शक्तियों और उनकी शह में वीरशैल मत के प्रसार से क्षुब्ध थे। उनके द्वारा लगाए गए आरोपों के कारण वह राज्य छोड़ कर चले गए और शीघ्र ही उनकी मृत्यु हो गई। भगवान शिव की स्तुति में उनके रचित भजनों से उन्हें कन्नड़ साहित्य में प्रमुख स्थान तथा हिंदू भक्ति साहित्य में भी स्थान मिला।
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बाउल
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बंगाल के धार्मिक गायकों के एक संप्रदाय के सदस्य, जो अपने अपारंपरित व्यवहार तथा रहस्यात्मक गीतों की सहजता एवं उन्मुक्तता के लिए जाने जाते है। इनके हिंदू ( मूल रूप से वैष्णव ) और मुसलमान ( आमतौर पर सूफ़ी ), दोनों है। इनके गीत अक्सर मनुष्य एवं उसके भीतर बसे इष्टदेव के बीच प्रेम से संबंधित होते हैं। इस संप्रदाय के विकास के बारे में बहुत कम जानकारी है, क्योंकि इनके गीतों का संकलन एवं लेखन 20 वीं सदी में ही शुरू हुआ। रबींद्रनाथ ठाकुर उन कई बांग्ला लेखकों में से एक थे, जिन्होंने बाउल गीतों से प्रेरणा लिए जाने की बात स्वीकार की।
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दास
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दस्यु भी कहा जाता है, भारत में आदिम समुदाय के लोग, जिनका यहां आ कर बसने वाले आर्यों के साथ टकराव हुआ, 1500 ई॰पू॰ में आर्यों ने इनका काली चमड़ी वाले, कटु भाषी लोगों के रूप में वर्णन किया है, जो लिंग की पूजा करते थे। इस प्रकार कई विद्वानों की यह धारणा बनी कि हिंदुओं के धार्मिक प्रतीक लिंगम की पूजा की यहां से शुरुआत हुई, हांलांकि हो सकता है कि इसका संबंध उनकी यौन क्रियाओं से रहा हो। वे क़िलेबंद स्थानों पर रहते थे जहां से वे अपनी सेनाएं भेजते थे। वे संभवत: मूल शूद्र या श्रमिक रहे होंगे, जो तीनों उच्च वर्गों, ब्राह्मणों (पुरोहित), क्षत्रियों (योध्दाओं) और वैश्यों ( व्यापारियों) की सेवा करते थे और जिन्हें उनके धार्मिक अनुष्ठानों से अलग रखा गया था।

11:35, 14 मई 2013 के समय का अवतरण

बंदा सिहं बहादुर

लछमन दास, लछमन देव या माधो दास भी कहलाते हैं (ज़ – 1670, रजौरी, भारत; मृ-जून 1716, दिल्ली ) भारत के मुग़ल शासकों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने वाले पहले सिक्ख सैन्य प्रमुख, जिन्होंने सिक्खों के राज्य का अस्थायी विस्तार भी किया। युवावस्था में उन्होंने पहले समन (योगी) बनने का निश्चय किया और 1708 में गुरु गोबिंद सिंह का शिष्य बनने तक वह माधो दास के नाम से जाने जाते रहे। सिक्ख बिरादरी में शामिल होने के बाद उनका नाम बंदा सिंह बहादुर हो गया और वह लोकप्रिय तो नहीं, सम्मानित सेनानी अवश्य बन गए, उनके तटस्थ, ठंडे और अवैयक्तिक स्व्भाव ने उन्हें उनके लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं बनने दिया। बंदा सिंह ने 1709 में मुग़लों पर हमला करके बहुत बड़े क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया। दक्कन क्षेत्र में उनके द्वारा लूटमार और क़त्लेआम से मुग़लों को उन पर पूरी ताकत से हमला करना पड़ा। 1715 में आठ महीनों की घेरेबंदी के बाद मुग़लों ने क़िलेबंद शहर गुरुदास नांगल पर क़ब्ज़ा कर लिया। बंदा सिंह और उनके साथियों को कैद करके दिल्ली ले जाया गया, जहां जहां छह महीने तक हर दिन उनके कुछ लोगों को मौत की सज़ा दी जाती रही। जब उनकी बारी आई, तो बंदा सिंह ने मुसलमान न्यायाधीश से कहा कि उनका यही हाल होना था, क्योंकि अपने प्यारे गुरु गोबिंद सिंह की इच्छाओं को पूरा करने में वह नाक़ाम रहे। उन्हें लाल गर्म लोहे की छड़ों से यातना देकर मार डाला गया।


बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी

ब्रिटिश अधिवक्ता एवं प्राच्यविद सर विलियम जोन्स द्वारा 15 जनवरी 1784 को प्राच्य विद्याध्ययन को प्रोत्साहन देने के लिये गठित सभा। संस्थापना दिवस के उपलक्ष्य में जोन्स ने अपने प्रसिध्द अभिभाषणों की श्रृंखला का पहला भाषण दिया। इस सभा को तत्कालीन बंगाल के प्रथम गवर्नर-जनरल ( 1772-95 ) वॉरेन हेस्टिग्ज़ का सहयोग और प्रोत्साहन मिला। जोन्स की मृत्यु ( 1794 ) तक यह सभा हिंदू संस्कृति तथा ज्ञान के महत्त्व व आर्य भाषाओं में संस्कृत की अहम भूमिका जैसे उनके विचारों की संवाहक थी।


बरारी घाटी का युद्ध


(9 जन॰ 1760), भारतीय इतिहास में पतन की ओर अग्रसर मुग़ल साम्राज्य पर नियंत्रण के लिए मराठों पर की गई अफ़ग़ान विजयों में से एक, जिसने अंग्रजों को बंगाल में पैर जमाने का समय दे दिया। दिल्ली से 16 किमी उत्तर में यमुना नदी के बरारी घाट (नौका घाट ) पर पंजाब से अहमद शाह दुर्रानी की अफ़ग़ान सेना से पीछे हट रहे मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया पर ऊंचे उगे सरकंडों की आड़ में छिपे अफ़गान सिपाहियों ने नदी पार करके अचानक हमला कर दिया। दत्ताजी मारे गए और उनकी सेना तितर-बितर हो गई। उनकी पराजय से दिल्ली पर अफ़ग़ानों के अधिकार का मार्ग प्रशस्त हो गया।


बर्द्धमान ज़िला

बर्द्धमान ज़िला दो अलग क्षेत्रों में बंटा है। पूर्वी भाग एक निम्न जलोढ़ मैदान है, जो सघन जनसंख्यायुक्त और पानी से भरा व दलदली रहता है। पूर्व की प्रमुख फ़सलें चावल, मक्का, दलहन और तिलहन हैं। पश्चिमी क्षेत्र बंगाल के सर्वाधिक व्यस्त औधोगिक क्षेत्रों में से एक है, यहां रानीगंज के बढ़िया कोयला भंडार और पड़ोसी क्षेत्रों में कच्चा लोहा और दूसरे खनिज़ उपलब्ध हैं। दामोदर नदी तट पर विकसित दुर्गापुर और आसनसोल के औद्योगिक नगर व कुछ और नगर, जिन्हें सामुहिक तौर पर दुर्गापुर औद्योगिक पट्टी के नाम से जाना जाता है, कोलकाता के बाद बंगाल का सबसे महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र हैं। इस ज़िले में बर्द्धमान विश्वविद्यालय से संबद्ध एक इंजीनियरिंग कॉलेज और अनेक महाविद्यालय हैं। दामोदर घाटी निगम सिंचाई, औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति और बाढ़ नियंत्रण का काम करता है। पूर्व की प्रमुख फ़सलें चावल, मक्का, दलहन और तिलहन हैं। जनसंख्या (2001) शहर 2,85,871; ज़िला कुल 69,19,698।


बरौनी


बसव

12वीं शताब्दी के धार्मिक सुधारक, उपदेशक, धर्म मीमांसक और चालुक्य राजा बिज्जला I (शासनकाल, 1156-67) के राजसी कोषागार के प्रबंधक, बसव हिंदू वीरशैव (लिंगायत) मत के पवित्र ग्रंथों में से एक, बसव पुराण के रचयिता हैं। परंपरा के अनुसार, वह वीरशैव के वास्तविक संस्थापक थे, परंतु चालुक्य अभिलेखों से पता चलता है कि उन्होंने वास्तव में पहले से मौजूद मत को पुनर्जीवित किया। बसव ने वीरशैव संस्थाओं को सहायता देकर और वीरशैव मत की शिक्षा देकर प्रचार में सहायता दी थी। उनके चाचा प्रधानमंत्री थे और उन्होंने बसव को कोषागार प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था। कई वर्ष तक उनके गुट को काफ़ी लोकप्रियता मिली, परंतु दरबार में अन्य गुट उनकी शक्तियों और उनकी शह में वीरशैल मत के प्रसार से क्षुब्ध थे। उनके द्वारा लगाए गए आरोपों के कारण वह राज्य छोड़ कर चले गए और शीघ्र ही उनकी मृत्यु हो गई। भगवान शिव की स्तुति में उनके रचित भजनों से उन्हें कन्नड़ साहित्य में प्रमुख स्थान तथा हिंदू भक्ति साहित्य में भी स्थान मिला।


बाउल


बंगाल के धार्मिक गायकों के एक संप्रदाय के सदस्य, जो अपने अपारंपरित व्यवहार तथा रहस्यात्मक गीतों की सहजता एवं उन्मुक्तता के लिए जाने जाते है। इनके हिंदू ( मूल रूप से वैष्णव ) और मुसलमान ( आमतौर पर सूफ़ी ), दोनों है। इनके गीत अक्सर मनुष्य एवं उसके भीतर बसे इष्टदेव के बीच प्रेम से संबंधित होते हैं। इस संप्रदाय के विकास के बारे में बहुत कम जानकारी है, क्योंकि इनके गीतों का संकलन एवं लेखन 20 वीं सदी में ही शुरू हुआ। रबींद्रनाथ ठाकुर उन कई बांग्ला लेखकों में से एक थे, जिन्होंने बाउल गीतों से प्रेरणा लिए जाने की बात स्वीकार की।


दास


दस्यु भी कहा जाता है, भारत में आदिम समुदाय के लोग, जिनका यहां आ कर बसने वाले आर्यों के साथ टकराव हुआ, 1500 ई॰पू॰ में आर्यों ने इनका काली चमड़ी वाले, कटु भाषी लोगों के रूप में वर्णन किया है, जो लिंग की पूजा करते थे। इस प्रकार कई विद्वानों की यह धारणा बनी कि हिंदुओं के धार्मिक प्रतीक लिंगम की पूजा की यहां से शुरुआत हुई, हांलांकि हो सकता है कि इसका संबंध उनकी यौन क्रियाओं से रहा हो। वे क़िलेबंद स्थानों पर रहते थे जहां से वे अपनी सेनाएं भेजते थे। वे संभवत: मूल शूद्र या श्रमिक रहे होंगे, जो तीनों उच्च वर्गों, ब्राह्मणों (पुरोहित), क्षत्रियों (योध्दाओं) और वैश्यों ( व्यापारियों) की सेवा करते थे और जिन्हें उनके धार्मिक अनुष्ठानों से अलग रखा गया था।