"गांधारी से संवाद (2) -कुलदीप शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | तुमने तो की थी प्रतिज्ञा | |
कि लड़ोगे तुम | कि लड़ोगे तुम | ||
अन्तिम कारण तक | अन्तिम कारण तक | ||
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पर तुम्हीं ने बांध ली | पर तुम्हीं ने बांध ली | ||
− | आंखों पर | + | आंखों पर पट्टी |
और चुन लिया अपने लिए अंधेरा | और चुन लिया अपने लिए अंधेरा | ||
ताकि देखना न पड़े | ताकि देखना न पड़े | ||
पंक्ति 70: | पंक्ति 70: | ||
न्याय और जीवन के लिए | न्याय और जीवन के लिए | ||
लड़ते आदमी का चेहरा देखना | लड़ते आदमी का चेहरा देखना | ||
− | सचमुच | + | सचमुच मुश्किल होता है |
− | तब और भी | + | तब और भी ज़्यादा |
जब तुम अन्धेरे में हो | जब तुम अन्धेरे में हो | ||
और चेहरा मशाल की तरह जल रहा हो़ | और चेहरा मशाल की तरह जल रहा हो़ | ||
− | तब और भी | + | तब और भी ज़्यादा |
जब तुम खड़े हो | जब तुम खड़े हो | ||
मूक दर्शकों की पंक्ति में | मूक दर्शकों की पंक्ति में | ||
पंक्ति 92: | पंक्ति 92: | ||
काले कव्वे से नहीं डरता है झूठ | काले कव्वे से नहीं डरता है झूठ | ||
− | काले कव्वे की | + | काले कव्वे की शह पर |
इतराता है, गुर्राता है | इतराता है, गुर्राता है | ||
कानून की किसी उपधारा को | कानून की किसी उपधारा को | ||
पंक्ति 112: | पंक्ति 112: | ||
देखती नहीं कुछ | देखती नहीं कुछ | ||
सुनती है बस | सुनती है बस | ||
− | पर | + | पर फ़र्क़ नहीं कर सकती |
घायल की कराहट | घायल की कराहट | ||
और अपराधी की गुर्राहट के बीच़ | और अपराधी की गुर्राहट के बीच़ | ||
पंक्ति 120: | पंक्ति 120: | ||
सदियों से खड़ी है गांधारी | सदियों से खड़ी है गांधारी | ||
− | जिसकी आंखों पर | + | जिसकी आंखों पर पट्टी |
हाथ में तराजू है | हाथ में तराजू है | ||
और तोलने को कुछ भी नहीं | और तोलने को कुछ भी नहीं | ||
संविधान की आड़ी तिरछी रेखाओं ने | संविधान की आड़ी तिरछी रेखाओं ने | ||
− | जिसे | + | जिसे ऊँची कुर्सी पर टॉंग रखा है |
उसके एक हाथ में | उसके एक हाथ में | ||
मरी हुई परिभाषाओं से भरी | मरी हुई परिभाषाओं से भरी | ||
पंक्ति 141: | पंक्ति 141: | ||
महज़ डुगडुगी बजाता मदारी है़ | महज़ डुगडुगी बजाता मदारी है़ | ||
− | जिन्दा आदमी के जले | + | जिन्दा आदमी के जले गोश्त की |
गन्ध से घबराई ज़ाहिरा | गन्ध से घबराई ज़ाहिरा | ||
एक और बुर्का ओढ़ लेती है झूठ का | एक और बुर्का ओढ़ लेती है झूठ का | ||
पंक्ति 153: | पंक्ति 153: | ||
जैसिका को किसी ने नहीं मारा | जैसिका को किसी ने नहीं मारा | ||
जैसिका कभी मरी ही नहीं | जैसिका कभी मरी ही नहीं | ||
− | उसे दफन किया गया है फाईलों में | + | उसे दफन किया गया है फाईलों में ज़िन्दा़ |
− | गांधारी के | + | गांधारी के शब्दकोश में आदमी |
न जिंदा है न मरा है | न जिंदा है न मरा है | ||
अदालत का एक कटघरा है | अदालत का एक कटघरा है | ||
पंक्ति 161: | पंक्ति 161: | ||
गवाह और अपराधी के बीच | गवाह और अपराधी के बीच | ||
एक अदालती रिश्ता है | एक अदालती रिश्ता है | ||
− | जो सच की | + | जो सच की क़ब्र पर |
फूल की तरह खिलता है़। | फूल की तरह खिलता है़। | ||
</poem> | </poem> |
13:23, 14 मई 2013 के समय का अवतरण
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