"बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-4 ब्राह्मण-4" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{बृहदारण्यकोपनिषद}}")
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
*जो पुरुष निष्काम भाव से शरीर छोड़ते हैं, वे जीवन-मरण के चक्र से छूटकर मुक्त हो जाते हैं और सदैव के लिए ब्रह्म की दिव्य ज्योति में विलीन हो जाते हैं।  
 
*जो पुरुष निष्काम भाव से शरीर छोड़ते हैं, वे जीवन-मरण के चक्र से छूटकर मुक्त हो जाते हैं और सदैव के लिए ब्रह्म की दिव्य ज्योति में विलीन हो जाते हैं।  
  
 
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{बृहदारण्यकोपनिषद}}
 
{{बृहदारण्यकोपनिषद}}
[[Category:बृहदारण्यकोपनिषद]]
+
[[Category:बृहदारण्यकोपनिषद]][[Category:हिन्दू दर्शन]]
[[Category:दर्शन कोश]]
+
[[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] [[Category:दर्शन कोश]]
[[Category:उपनिषद]]  
 
  
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

10:33, 3 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

  • इस ब्राह्मण में शरीर त्यागने से पूर्व 'आत्मा' और 'शरीर' की जो स्थिति होती है, उसका विवेचन किया गया है।
  • याज्ञवल्क्य ऋषि बताते हैं कि जब आत्मा शरीर छोड़ने लगता है, तब वह इन्द्रियों में व्याप्त अपनी समस्त शक्ति को समेट लेता है और हृदय क्षेत्र में समाहित होकर एक 'लिंग शरीर' का सृजन कर लेता है।
  • यह लिंग शरीर ही आत्मा को अपने साथ लेकर शरीर छोड़ता है।
  • यह जिस मार्ग से निकलता है, वह अंग तीव्र आवेग से खुला रह जाता है।
  • उस समय आत्मा पूरी तरह चेतनामय होता है।
  • उसमें जीव की प्रबलतम वासनाओं और संस्कारों का आवेग रहता है।
  • उन्हीं कामनाओं के आधार पर वह नया शरीर धारण करता है। जैसे स्वर्णकार स्वर्ण को पिघलाकर एक रूप की रचना करता है, उसी प्रकार 'आत्मा' पंचभूतों के मिश्रण से एक नये शरीर की रचना कर लेता है।
  • जो पुरुष निष्काम भाव से शरीर छोड़ते हैं, वे जीवन-मरण के चक्र से छूटकर मुक्त हो जाते हैं और सदैव के लिए ब्रह्म की दिव्य ज्योति में विलीन हो जाते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-1

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5 | ब्राह्मण-6

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-2

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5 | ब्राह्मण-6

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-3

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5 | ब्राह्मण-6 | ब्राह्मण-7 | ब्राह्मण-8 | ब्राह्मण-9

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-4

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5 | ब्राह्मण-6

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-5

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 से 4 | ब्राह्मण-5 से 12 | ब्राह्मण-13 | ब्राह्मण-14 | ब्राह्मण-15

बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-6

ब्राह्मण-1 | ब्राह्मण-2 | ब्राह्मण-3 | ब्राह्मण-4 | ब्राह्मण-5