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बंगाल में ब्रिटिश कारखानों को पुनर्स्थापित करने के लिए [[मद्रास]] से कुमुक के साथ भेजे गए क्लाइव को नवाब के विश्वासघाती सेनापति [[मीर ज़ाफ़र]] एवं अन्य सहयोगियों का भी सहयोग मिला। यह लड़ाई कुछ घंटे ही चली-सुबह प्रारम्भ हुई तथा दोपहर तक समाप्त हो गयी। नवाब की हार हुई। इसे लड़ाई न कहकर झड़प कहना ही युक्तिसंगत होगा। फिर भी इसके गम्भीर परिणाम हुए। नवाब सिराजुद्दौला, जो युद्ध भूमि से भाग गया था, शीघ्र बन्दी बना लिया गया और उसकी हत्या कर दी गयी। विजयी अंग्रेज सेना अपनी [[कठपुतली]], विश्वासघाती मीर ज़ाफ़र को लेकर [[मुर्शिदाबाद]] की ओर बढ़ी और उसके पहुँचते ही मुर्शिदाबाद ने बिना किसी लड़ाई के आत्मसमर्पण कर दिया। मीर ज़ाफ़र बंगाल का नवाब घोषित कर दिया गया। मीर ज़ाफ़र ने सारा ख़ज़ाना रॉबर्ट क्लाइव तथा उसके सहयोगियों को पुरस्कृत करने में लुटा दिया। अब वह अंग्रेजों के आश्रित हो गया। अंग्रेज एक प्रकार से बंगाल के सर्वेसर्वा बन गये। बंगाल की जो दौलत [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] के हाथ लगी, उसने उनको भारत में [[फ्रांसीसी|फ्रांसीसियों]] पर विजय प्राप्त करने में बहुत मदद मिली। इस प्रकार प्लासी की लड़ाई महत्त्वपूर्ण न होकर भी परिणाम की दृष्टि से दूरगामी प्रभाव वाली सिद्ध हुई। निश्चय की लड़ाई ने बंगाल में ब्रिटिश अधिग्रहण और शेष [[भारत]] पर अपनी भावी योजनाएँ थोपने का मार्ग प्रशस्त किया। इस युद्ध से अंग्रेजों को भारतीय नरेशों की सैनिक संगठन की दुर्बलता तथा आपसी फूट का स्पष्ट ज्ञान हो गया। प्लासी में बना स्मारक आज भी इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का साक्षी है।  
 
  
 
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14:34, 28 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

प्लासी पूर्व-मध्य पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। प्लासी भागीरथी नदी के ठीक पूर्व में बायें तट पर बसा हुआ है।

प्लासी युद्ध

प्लासी में 23 जून, 1757 में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला तथा रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना के बीच निर्णायक युद्ध हुआ था, जिससे अंग्रेजो की जीत हुई थी। बंगाल में ब्रिटिश कारखानों को पुनर्स्थापित करने के लिए मद्रास से कुमुक के साथ भेजे गए क्लाइव को नवाब के विश्वासघाती सेनापति मीर ज़ाफ़र एवं अन्य सहयोगियों का भी सहयोग मिला। यह लड़ाई कुछ घंटे ही चली-सुबह प्रारम्भ हुई तथा दोपहर तक समाप्त हो गयी। नवाब की हार हुई। इसे लड़ाई न कहकर झड़प कहना ही युक्तिसंगत होगा। फिर भी इसके गम्भीर परिणाम हुए। नवाब सिराजुद्दौला, जो युद्ध भूमि से भाग गया था, शीघ्र बन्दी बना लिया गया और उसकी हत्या कर दी गयी। विजयी अंग्रेज़ सेना अपनी कठपुतली, विश्वासघाती मीर ज़ाफ़र को लेकर मुर्शिदाबाद की ओर बढ़ी और उसके पहुँचते ही मुर्शिदाबाद ने बिना किसी लड़ाई के आत्मसमर्पण कर दिया। मीर ज़ाफ़र बंगाल का नवाब घोषित कर दिया गया। मीर ज़ाफ़र ने सारा ख़ज़ाना रॉबर्ट क्लाइव तथा उसके सहयोगियों को पुरस्कृत करने में लुटा दिया। अब वह अंग्रेजों के आश्रित हो गया। अंग्रेज़ एक प्रकार से बंगाल के सर्वेसर्वा बन गये। बंगाल की जो दौलत अंग्रेजों के हाथ लगी, उसने उनको भारत में फ्रांसीसियों पर विजय प्राप्त करने में बहुत मदद मिली। इस प्रकार प्लासी की लड़ाई महत्त्वपूर्ण न होकर भी परिणाम की दृष्टि से दूरगामी प्रभाव वाली सिद्ध हुई। निश्चय की लड़ाई ने बंगाल में ब्रिटिश अधिग्रहण और शेष भारत पर अपनी भावी योजनाएँ थोपने का मार्ग प्रशस्त किया। इस युद्ध से अंग्रेजों को भारतीय नरेशों की सैनिक संगठन की दुर्बलता तथा आपसी फूट का स्पष्ट ज्ञान हो गया। प्लासी में बना स्मारक आज भी इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का साक्षी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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