"एक साहित्यिक की डायरी -गजानन माधव मुक्तिबोध" के अवतरणों में अंतर
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‘डायरी’ शब्द एक भ्रम पैदा करता है और यह गलतफहमी भी हो सकती है कि [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध'|मुक्तिबोध]] की ये डायरियाँ भी तिथिवार डायरियाँ होंगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि ‘एक साहित्यिक की डायरी’ केवल उस स्तम्भ का नाम था, जिसके अन्तर्गत समय-समय पर मुक्तिबोध को अनेक प्रश्नों पर विचार करने की छूट न केवल सम्पादन की ओर से बल्कि स्वयं अपनी ओर से भी होती थी। ‘वसुधा’ के पहले [[नागपुर]] के ‘नया खून’ साप्ताहिक में वह ‘एक साहित्यिक की डायरी’ स्तम्भ के अन्तर्गत कभी अर्द्ध-साहित्यिक और कभी गैर-साहित्यिक विषयों पर छोटी-छोटी टिप्पणियाँ लिखा करते थे, जो एक अलग संकलन के रूप में प्रकाशन के लिए प्रस्तावित हैं। डायरी में केवल ‘वसुधा’ में प्रकाशित किस्तों-जो स्वयं में स्वतन्त्र निबन्ध हैं-को शामिल करने का उनका उद्देश्य ही यही था कि वे न तो सामयिक टिप्पणियों को [[साहित्य]] मानते थे और न साहित्य को सामयिक टिप्पणी वस्तुतः जैसा कि श्री ‘अदीब’ ने लिखा है, मुक्तिबोध की डायरी उस सत्य की खोज है, जिसके आलोक में [[कवि]] अपने अनुभव को सार्वभौमिक अर्थ दे देता है।<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/home.php?bookid=1298|title= एक साहित्यिक की डायरी|accessmonthday=21 दिसम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink=|format= |publisher= पुस्तक.ओआरजी|language= हिन्दी}}</ref> | ‘डायरी’ शब्द एक भ्रम पैदा करता है और यह गलतफहमी भी हो सकती है कि [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध'|मुक्तिबोध]] की ये डायरियाँ भी तिथिवार डायरियाँ होंगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि ‘एक साहित्यिक की डायरी’ केवल उस स्तम्भ का नाम था, जिसके अन्तर्गत समय-समय पर मुक्तिबोध को अनेक प्रश्नों पर विचार करने की छूट न केवल सम्पादन की ओर से बल्कि स्वयं अपनी ओर से भी होती थी। ‘वसुधा’ के पहले [[नागपुर]] के ‘नया खून’ साप्ताहिक में वह ‘एक साहित्यिक की डायरी’ स्तम्भ के अन्तर्गत कभी अर्द्ध-साहित्यिक और कभी गैर-साहित्यिक विषयों पर छोटी-छोटी टिप्पणियाँ लिखा करते थे, जो एक अलग संकलन के रूप में प्रकाशन के लिए प्रस्तावित हैं। डायरी में केवल ‘वसुधा’ में प्रकाशित किस्तों-जो स्वयं में स्वतन्त्र निबन्ध हैं-को शामिल करने का उनका उद्देश्य ही यही था कि वे न तो सामयिक टिप्पणियों को [[साहित्य]] मानते थे और न साहित्य को सामयिक टिप्पणी वस्तुतः जैसा कि श्री ‘अदीब’ ने लिखा है, मुक्तिबोध की डायरी उस सत्य की खोज है, जिसके आलोक में [[कवि]] अपने अनुभव को सार्वभौमिक अर्थ दे देता है।<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/home.php?bookid=1298|title= एक साहित्यिक की डायरी|accessmonthday=21 दिसम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink=|format= |publisher= पुस्तक.ओआरजी|language= हिन्दी}}</ref> |
08:20, 22 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
एक साहित्यिक की डायरी -गजानन माधव मुक्तिबोध
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लेखक | गजानन माधव 'मुक्तिबोध' |
मूल शीर्षक | 'एक साहित्यिक की डायरी' |
प्रकाशक | भारतीय ज्ञानपीठ |
प्रकाशन तिथि | 25 जून, सन 2000 |
ISBN | 81-263-0061-2 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 152 |
भाषा | हिन्दी |
विधा | लेख-निबन्ध |
विशेष | मुक्तिबोध की मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा ने उनकी केवल 'एक साहित्यिक की डायरी' प्रकाशित की थी, जिसका दूसरा संस्करण 'भारतीय ज्ञानपीठ' से उनकी मृत्यु के दो महीने बाद प्रकाशित हुआ। |
एक साहित्यिक की डायरी भारत के प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि और हिन्दी साहित्य की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व गजानन माधव 'मुक्तिबोध' द्वारा लिखी गई पुस्तक है। यह पुस्तक 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा 25 जून, सन 2000 में प्रकाशित की गई थी। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध एक कहानीकार होने के साथ ही समीक्षक भी थे।
पुस्तक अंश
‘डायरी’ शब्द एक भ्रम पैदा करता है और यह गलतफहमी भी हो सकती है कि मुक्तिबोध की ये डायरियाँ भी तिथिवार डायरियाँ होंगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि ‘एक साहित्यिक की डायरी’ केवल उस स्तम्भ का नाम था, जिसके अन्तर्गत समय-समय पर मुक्तिबोध को अनेक प्रश्नों पर विचार करने की छूट न केवल सम्पादन की ओर से बल्कि स्वयं अपनी ओर से भी होती थी। ‘वसुधा’ के पहले नागपुर के ‘नया खून’ साप्ताहिक में वह ‘एक साहित्यिक की डायरी’ स्तम्भ के अन्तर्गत कभी अर्द्ध-साहित्यिक और कभी गैर-साहित्यिक विषयों पर छोटी-छोटी टिप्पणियाँ लिखा करते थे, जो एक अलग संकलन के रूप में प्रकाशन के लिए प्रस्तावित हैं। डायरी में केवल ‘वसुधा’ में प्रकाशित किस्तों-जो स्वयं में स्वतन्त्र निबन्ध हैं-को शामिल करने का उनका उद्देश्य ही यही था कि वे न तो सामयिक टिप्पणियों को साहित्य मानते थे और न साहित्य को सामयिक टिप्पणी वस्तुतः जैसा कि श्री ‘अदीब’ ने लिखा है, मुक्तिबोध की डायरी उस सत्य की खोज है, जिसके आलोक में कवि अपने अनुभव को सार्वभौमिक अर्थ दे देता है।[1]
मुक्तिबोध की मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा ने उनकी केवल 'एक साहित्यिक की डायरी' प्रकाशित की थी, जिसका दूसरा संस्करण 'भारतीय ज्ञानपीठ' से उनकी मृत्यु के दो महीने बाद प्रकाशित हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एक साहित्यिक की डायरी (हिन्दी) पुस्तक.ओआरजी। अभिगमन तिथि: 21 दिसम्बर, 2014।
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