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==हिंदी भाषा का विकास==
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{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक पात्र
'''हिंदी''' भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय [[हिंदी]] का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।
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|चित्र=blankimage.jpg
 
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|चित्र का नाम=दौलतराव शिन्दे
==वर्गीकरण==
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|पूरा नाम=  
*हिंदी विश्व की लगभग 3,000 भाषाओं में से एक है।
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|अन्य नाम=
*आकृति या रूप के आधार पर हिंदी वियोगात्मक या विश्लिष्ट भाषा है।
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|जन्म=1779 ई.  
*भाषा–परिवार के आधार पर हिंदी भारोपीय परिवार की भाषा है।
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|जन्म भूमि=
*[[भारत]] में 4 भाषा–परिवार— [[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय]], द्रविड़, आस्ट्रिक व चीनी–तिब्बती मिलते हैं। [[भारत]] में बोलने वालों के प्रतिशत के आधार पर भारोपीय परिवार सबसे बड़ा भाषा परिवार है।
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|मृत्यु तिथि=1827 ई.  
*हिंदी भारोपीय/ भारत [[यूरोप|यूरोपीय]] के भारतीय– [[ईरान|ईरानी]] शाखा के भारतीय आर्य (Indo–Aryan) उपशाखा से विकसित एक भाषा है।
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|मृत्यु स्थान=
*भारतीय आर्यभाषा को तीन कालों में विभक्त किया जाता है।
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|पिता/माता=
{{भारत के भाषा परिवार सूची1}}
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|पति/पत्नी=
हिंदी की आदि जननी [[संस्कृत]] है। संस्कृत [[पालि भाषा|पालि]], [[प्राकृत भाषा]] से होती हुई [[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]] तक पहुँचती है। फिर अपभ्रंश, [[अवहट्ट]] से गुजरती हुई प्राचीन/प्रारम्भिक हिंदी का रूप लेती है। विशुद्धतः, हिंदी भाषा के इतिहास का आरम्भ अपभ्रंश से माना जाता है।
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|संतान=
*हिंदी का विकास क्रम- '''[[संस्कृत भाषा|संस्कृत]][[पालि भाषा|पालि]][[प्राकृत भाषा|प्राकृत]][[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]]→ अवहट्ट→ प्राचीन / प्रारम्भिक हिंदी'''
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|उपाधि=
==अपभ्रंश==
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|शासन=
{{main|अपभ्रंश भाषा}}
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|धार्मिक मान्यता=
[[अपभ्रंश भाषा]] का विकास 500 ई. से लेकर 1000 ई. के मध्य हुआ और इसमें [[साहित्य]] का आरम्भ 8वीं [[सदी]] ई. (स्वयंभू [[कवि]]) से हुआ, जो 13वीं सदी तक जारी रहा। अपभ्रंश (अप+भ्रंश+घञ्) शब्द का यों तो शाब्दिक अर्थ है 'पतन', किन्तु अपभ्रंश साहित्य से अभीष्ट है— प्राकृत भाषा से विकसित भाषा विशेष का साहित्य।
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|राज्याभिषेक=
;प्रमुख रचनाकार-
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|युद्ध=
[[स्वयंभुव मनु|स्वयंभू]]— अपभ्रंश का [[वाल्मीकि]] ('[[पउम चरिउ]]' अर्थात् राम काव्य), धनपाल ('भविस्सयत कहा'–अपभ्रंश का पहला प्रबन्ध काव्य), पुष्पदंत ('महापुराण', '[[जसहर चरिउ]]'), सरहपा, कण्हपा आदि सिद्धों की रचनाएँ ('चरिया पद', 'दोहाकोशी') आदि।
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|प्रसिद्धि= दौलतराव शिन्दे का शासन काल [[बसई की सन्धि]] तथा [[सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि]] के नाम से प्रसिद्ध है। 
==अवहट्ट==
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|निर्माण=
{{main|अवहट्ट भाषा}}
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|सुधार-परिवर्तन=
अवहट्ट 'अपभ्रंष्ट' शब्द का विकृत रूप है। इसे 'अपभ्रंश का अपभ्रंश' या 'परवर्ती अपभ्रंश' कह सकते हैं। अवहट्ट अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के बीच की संक्रमणकालीन/संक्रांतिकालीन भाषा है। इसका कालखंड 900 ई. से 1100 ई. तक निर्धारित किया जाता है। वैसे साहित्य में इसका प्रयोग 14वीं सदी तक होता रहा है। अब्दुर रहमान, दामोदर पंडित, ज्योतिरीश्वर ठाकुर, [[विद्यापति]] आदि रचनाकारों ने अपनी भाषा को 'अवहट्ट' या 'अवहट्ठ' कहा है। विद्यापति प्राकृत की तुलना में अपनी भाषा को मधुरतर बताते हैं। देश की भाषा सब लोगों के लिए मीठी है। इसे अवहट्ठा कहा जाता है।<ref>'देसिल बयना सब जन मिट्ठा/ते तैसन जम्पञो अवहट्ठा'</ref>
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|राजधानी=[[ग्वालियर]]
;प्रमुख रचनाकार-
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|पूर्वाधिकारी=
अद्दहमाण/अब्दुर रहमान ('संनेह रासय'/'संदेश रासक'), दामोदर पंडित ('उक्ति–व्यक्ति–प्रकरण'), ज्योतिरीश्वर ठाकुर ('वर्ण रत्नाकर'), विद्यापति ('कीर्तिलता') आदि।
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|राजघराना=
 
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|वंश=
 
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|शासन काल=1794 ई.-1827 ई.
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}}
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|स्मारक=
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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|मक़बरा=
<references>
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|संबंधित लेख=[[शिवाजी]], [[शाहजी भोंसले]], [[शम्भाजी|शम्भाजी पेशवा]], [[बालाजी विश्वनाथ]], [[बाजीराव प्रथम]], [[बाजीराव द्वितीय]], [[राजाराम शिवाजी]], [[ग्वालियर]], [[नाना फड़नवीस]], [[सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि]], [[बसई की सन्धि]]  
==बाहरी कड़ियाँ==
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|शीर्षक 1=
*[http://www.pravakta.com/indian-aryan-languages-of-the-indo-european-family भारोपीय परिवार की भारतीय भाषाएँ]
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|पाठ 1=
*[http://www.pravakta.com/reflections-in-relation-to-hindi-language हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार]
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|शीर्षक 2=
*[http://www.rachanakar.org/2010/03/blog-post_3350.html हिन्दी भाषा-क्षेत्र एवं हिन्दी के क्षेत्रगत रूप]
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|पाठ 2=
*[http://www.scribd.com/doc/22142436/Hindi-Urdu हिन्दी-उर्दू का अद्वैत]
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|अन्य जानकारी=दौलतराव के [[फ़्राँसीसी]] सेनापति पेरों ने नौकरी छोड़ दी। विवश होकर शिन्दे को [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से 30 दिसम्बर, 1820 ई. को सन्धि करनी पड़ी, जो [[सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि]] के नाम से प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार उसे अपना दक्षिण का प्रदेश तथा [[गंगा]]-[[यमुना]] के बीच का दौआब अंग्रेज़ों को दे देना पड़ा।
*[http://www.scribd.com/doc/22573933/Hindi-kee-antarraashtreeya-bhoomikaa हिन्दी की अन्तरराष्ट्रीय भूमिका]
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|बाहरी कड़ियाँ=[http://ketkardnyankosh.com/index.php/2012-09-06-10-43-51/8709-2013-02-15-07-54-23 महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश]
 
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|अद्यतन=
==संबंधित लेख==
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}}
{{हिन्दी भाषा}}{{भाषा और लिपि}}{{व्याकरण}}
 
[[Category:भाषा और लिपि]][[Category:भाषा कोश]][[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:हिन्दी भाषा]]
 
[[Category:जनगणना अद्यतन]]
 
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07:55, 8 मई 2016 का अवतरण

नवनीत
दौलतराव शिन्दे
जन्म 1779 ई.
मृत्यु तिथि 1827 ई.
प्रसिद्धि दौलतराव शिन्दे का शासन काल बसई की सन्धि तथा सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है।
राजधानी ग्वालियर
शासन काल 1794 ई.-1827 ई.
संबंधित लेख शिवाजी, शाहजी भोंसले, शम्भाजी पेशवा, बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बाजीराव द्वितीय, राजाराम शिवाजी, ग्वालियर, नाना फड़नवीस, सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि, बसई की सन्धि
अन्य जानकारी दौलतराव के फ़्राँसीसी सेनापति पेरों ने नौकरी छोड़ दी। विवश होकर शिन्दे को अंग्रेज़ों से 30 दिसम्बर, 1820 ई. को सन्धि करनी पड़ी, जो सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार उसे अपना दक्षिण का प्रदेश तथा गंगा-यमुना के बीच का दौआब अंग्रेज़ों को दे देना पड़ा।
बाहरी कड़ियाँ महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश