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इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय रायबहादुर दयाराम साहनी को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शन के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में श्री राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में पाकिस्तान के संध प्रान्त के लरकाना जिले के [[मोहन जोदड़ो]] में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने के उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवत: यह सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित हैं, अत: इस सभ्यता का नाम '''सिंधु घाटी की सभ्यता''' रखा गया। सबसे पहले 1921 में हड़प्पा नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण सिन्धु सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ा। पर कालान्तर में पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को 'एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियाँ' बतलाया। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थानों का पता चला है जिनमें कुछ ही परिपक्व अवस्था में प्राप्त हुए हैं। इन स्थानों में केवल 6 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है। ये हैं- हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, [[चन्हूदड़ों]], [[लोथल]], [[कालीबंगा]], [[हिसार]] एवं [[बनवाली]]।  
 
इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय रायबहादुर दयाराम साहनी को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शन के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में श्री राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में पाकिस्तान के संध प्रान्त के लरकाना जिले के [[मोहन जोदड़ो]] में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने के उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवत: यह सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित हैं, अत: इस सभ्यता का नाम '''सिंधु घाटी की सभ्यता''' रखा गया। सबसे पहले 1921 में हड़प्पा नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण सिन्धु सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ा। पर कालान्तर में पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को 'एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियाँ' बतलाया। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थानों का पता चला है जिनमें कुछ ही परिपक्व अवस्था में प्राप्त हुए हैं। इन स्थानों में केवल 6 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है। ये हैं- हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, [[चन्हूदड़ों]], [[लोथल]], [[कालीबंगा]], [[हिसार]] एवं [[बनवाली]]।  
 
==सभ्यता का विस्तार==
 
==सभ्यता का विस्तार==
इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और [[भारत]] के पंजाब, [[सिंध]], [[बलूचिस्तान]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]], पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]], [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू-कश्मीर]] के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में जम्मू के मांदा से लेकर दक्षिण में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के मुहाने भगतराव तक और पश्चिम में मकरान समुद्र तट पर सुत्कागेनडोर से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में [[मेरठ]] तक है। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेनडोर, पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर, उत्तरी पुरास्थल मांडा तथा दक्षिण पुरास्थल दायमाबाद है। लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल करीब 12,99,600 वर्ग किसी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। सिन्धु सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम तक 1600 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किमी. था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्त्र या सुमेरियन सभ्यता से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी।
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इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और [[भारत]] के पंजाब, [[सिंध]], [[बलूचिस्तान]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]], पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]], [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू-कश्मीर]] के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में जम्मू के मांदा से लेकर दक्षिण में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के मुहाने भगतराव तक और पश्चिम में मकरान समुद्र तट पर सुत्कागेनडोर से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में [[मेरठ]] तक है। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेनडोर, पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर, उत्तरी पुरास्थल मांडा तथा दक्षिण पुरास्थल दायमाबाद है। लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल क़रीब 12,99,600 वर्ग किसी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। सिन्धु सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम तक 1600 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किमी. था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्त्र या सुमेरियन सभ्यता से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी।
  
 
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12:45, 25 अगस्त 2010 का अवतरण

आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रांत के माण्टगोमरी ज़िले में स्थित हड़प्पा के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों के निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईंटें नहीं, बल्कि लगभग 5000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित एक सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हें तब हुआ जब 1856 ई. में जॉन विलियम ब्रन्टन ने करांची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईंटों की आपूर्ति के लिए इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया गया।

इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय रायबहादुर दयाराम साहनी को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शन के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में श्री राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में पाकिस्तान के संध प्रान्त के लरकाना जिले के मोहन जोदड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने के उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवत: यह सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित हैं, अत: इस सभ्यता का नाम सिंधु घाटी की सभ्यता रखा गया। सबसे पहले 1921 में हड़प्पा नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण सिन्धु सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ा। पर कालान्तर में पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को 'एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियाँ' बतलाया। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थानों का पता चला है जिनमें कुछ ही परिपक्व अवस्था में प्राप्त हुए हैं। इन स्थानों में केवल 6 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है। ये हैं- हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, चन्हूदड़ों, लोथल, कालीबंगा, हिसार एवं बनवाली

सभ्यता का विस्तार

इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में जम्मू के मांदा से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने भगतराव तक और पश्चिम में मकरान समुद्र तट पर सुत्कागेनडोर से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ तक है। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेनडोर, पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर, उत्तरी पुरास्थल मांडा तथा दक्षिण पुरास्थल दायमाबाद है। लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल क़रीब 12,99,600 वर्ग किसी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। सिन्धु सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम तक 1600 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किमी. था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्त्र या सुमेरियन सभ्यता से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी।


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