"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 खण्ड-1 से 2" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - "Category:उपनिषद" to "Category:उपनिषदCategory:संस्कृत साहित्य") |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | *[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6|अध्याय | + | {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय |
− | + | |चित्र=Chandogya-Upanishad.jpg | |
− | + | |चित्र का नाम=छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ | |
− | पहले दो खण्डों में 'जगत की उत्पत्ति' के विषय में बताया गया है। | + | |विवरण='छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस [[उपनिषद|उपनिषदों]] में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार [[छन्द]] है। |
− | + | |शीर्षक 1=अध्याय | |
+ | |पाठ 1=छठा | ||
+ | |शीर्षक 2=कुल खण्ड | ||
+ | |पाठ 2=16 (सोलह) | ||
+ | |शीर्षक 3=सम्बंधित वेद | ||
+ | |पाठ 3=[[सामवेद]] | ||
+ | |शीर्षक 4= | ||
+ | |पाठ 4= | ||
+ | |शीर्षक 5= | ||
+ | |पाठ 5= | ||
+ | |शीर्षक 6= | ||
+ | |पाठ 6= | ||
+ | |शीर्षक 7= | ||
+ | |पाठ 7= | ||
+ | |शीर्षक 8= | ||
+ | |पाठ 8= | ||
+ | |शीर्षक 9= | ||
+ | |पाठ 9= | ||
+ | |शीर्षक 10= | ||
+ | |पाठ 10= | ||
+ | |संबंधित लेख=[[उपनिषद]], [[वेद]], [[वेदांग]], [[वैदिक काल]], [[संस्कृत साहित्य]] | ||
+ | |अन्य जानकारी= [[सामवेद]] की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। | ||
+ | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
+ | |अद्यतन= | ||
+ | }} | ||
+ | *[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6|अध्याय छठे]] का यह प्रथम से दूसरा खण्ड है। इस अध्याय के पहले दो खण्डों में 'जगत की उत्पत्ति' के विषय में बताया गया है। | ||
+ | *अपने पुत्र [[श्वेतकेतु]] को समझाते हुए [[उद्दालक|ब्रह्मऋषि उद्दालक]] ने कहा कि "सृष्टि के प्रारम्भ में एक मात्र 'सत्' ही विद्यमान था। फिर किसी समय उसने अपने आपकों अनेक रूपों में विभक्त करने का संकल्प किया। उसके संकल्प करते ही उसमें से 'तेज' प्रकट हुआ। तेज में से '[[जल]]' प्रकट हुआ। संकल्प द्वारा प्रकट होने वाले उस 'तेज' को [[वेद]] में 'हिरण्यगर्भ' कहा गया है। सृष्टि का मूल क्रियाशील प्रवाह यह 'जलतत्त्व' ही है, जो तेज से प्रकट होता है। उस जल के प्रवाह से अतिसूक्ष्म कण बने और कालान्तर में यही सूक्ष्म कण एकत्र होकर '[[पृथ्वी]]' का कारण बने। प्रारम्भ से सृष्टि-सृजन की पहली आहुति द्युलोक में ही हुई थी। उसी में विद्यमान 'सत्' से 'तेज' और तेज से 'जल' की उत्पत्ति हुई थी तथा जल के सूक्ष्म पदार्थ कणों के सम्मिलन से पृथ्वी का निर्माण हुआ था। धरती से अन्न का उत्पादन हुआ तथा दूसरे चरण में [[सूर्य]] उत्पन्न हुआ। | ||
− | {{लेख प्रगति|आधार= | + | |
− | + | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
− | |||
− | |||
− | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{छान्दोग्य उपनिषद}} | {{छान्दोग्य उपनिषद}} | ||
− | [[Category:छान्दोग्य उपनिषद]] | + | [[Category:छान्दोग्य उपनिषद]][[Category:दर्शन कोश]][[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] |
− | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
− | [[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] | ||
− | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
12:23, 23 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 खण्ड-1 से 2
| |
विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | छठा |
कुल खण्ड | 16 (सोलह) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
- छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय छठे का यह प्रथम से दूसरा खण्ड है। इस अध्याय के पहले दो खण्डों में 'जगत की उत्पत्ति' के विषय में बताया गया है।
- अपने पुत्र श्वेतकेतु को समझाते हुए ब्रह्मऋषि उद्दालक ने कहा कि "सृष्टि के प्रारम्भ में एक मात्र 'सत्' ही विद्यमान था। फिर किसी समय उसने अपने आपकों अनेक रूपों में विभक्त करने का संकल्प किया। उसके संकल्प करते ही उसमें से 'तेज' प्रकट हुआ। तेज में से 'जल' प्रकट हुआ। संकल्प द्वारा प्रकट होने वाले उस 'तेज' को वेद में 'हिरण्यगर्भ' कहा गया है। सृष्टि का मूल क्रियाशील प्रवाह यह 'जलतत्त्व' ही है, जो तेज से प्रकट होता है। उस जल के प्रवाह से अतिसूक्ष्म कण बने और कालान्तर में यही सूक्ष्म कण एकत्र होकर 'पृथ्वी' का कारण बने। प्रारम्भ से सृष्टि-सृजन की पहली आहुति द्युलोक में ही हुई थी। उसी में विद्यमान 'सत्' से 'तेज' और तेज से 'जल' की उत्पत्ति हुई थी तथा जल के सूक्ष्म पदार्थ कणों के सम्मिलन से पृथ्वी का निर्माण हुआ था। धरती से अन्न का उत्पादन हुआ तथा दूसरे चरण में सूर्य उत्पन्न हुआ।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 |