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==प्राचीन हिंदी==
 
हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय [[हिंदी]] का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।
 
  
{| class="bharattable-purple" border="1" width="25%" style="float:right; margin:10px"
 
|+ अपभ्रंश से आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का विकास
 
|-
 
| rowspan="3" style="background:#dfe8e9"| '''शौरसेनी'''
 
| पश्चिमी हिंदी
 
|-
 
| [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]]
 
|-
 
| [[गुजराती भाषा|गुजराती]]
 
|-
 
| style="background:#dfe8e9"| '''अर्द्धमागधी'''
 
| पूर्वी हिंदी
 
|-
 
| rowspan="4" style="background:#dfe8e9" | '''मागधी'''
 
| [[बिहारी भाषाएँ|बिहारी]]
 
|-
 
| [[उड़िया भाषा|उड़िया]]
 
|-
 
| [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]]
 
|-
 
| [[असमिया भाषा|असमिया]]
 
|-
 
| style="background:#dfe8e9"|'''खस'''
 
| [[पहाड़ी बोली|पहाड़ी]] (शौरसेनी से प्रभावित)
 
|-
 
| rowspan="2" style="background:#dfe8e9" | '''ब्राचड़'''
 
| [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]](शौरसेनी से प्रभावित)
 
|-
 
| [[सिंधी भाषा|सिंधी]]
 
|-
 
| style="background:#dfe8e9"| '''महाराष्ट्री'''
 
| [[मराठी भाषा|मराठी]]
 
|}
 
*मध्यदेशीय भाषा परम्परा की विशिष्ट उत्तराधिकारिणी होने के कारण हिंदी का स्थान आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में सर्वोपरी है।
 
*प्राचीन हिंदी से अभिप्राय है— अपभ्रंश– अवहट्ट के बाद की भाषा।
 
*हिंदी का आदिकाल हिंदी भाषा का शिशुकाल है। यह वह काल था, जब अपभ्रंश–अवहट्ट का प्रभाव हिंदी भाषा पर मौजूद था और हिंदी की बोलियों के निश्चित व स्पष्ट स्वरूप विकसित नहीं हुए थे।
 
==हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति==
 
हिंदी शब्द की व्युपत्ति भारत के उत्तर–पश्चिम में प्रवाहमान [[सिंधु नदी]] से सम्बन्धित है। अधिकांश [[विदेशी यात्री]] और आक्रान्ता उत्तर–पश्चिम सिंहद्वार से ही भारत आए। भारत में आने वाले इन विदेशियों ने जिस देश के दर्शन किए, वह '[[सिंधु]]' का देश था। [[ईरान]] ([[फ़ारस]]) के साथ भारत के बहुत प्राचीन काल से ही सम्बन्ध थे और ईरानी 'सिंधु' को 'हिन्दु' कहते थे। (सिंधु - हिन्दु, स का ह में तथा ध का द में परिवर्तन - [[पहलवी भाषा]] प्रवृत्ति के अनुसार ध्वनि परिवर्तन)। '''हिन्दू शब्द [[संस्कृत]] से प्रचलित है परंतु यह संस्कृत के 'सिन्धु' शब्द से विकसित है।''' हिन्दू से 'हिन्द' बना और फिर 'हिन्द' में [[फ़ारसी भाषा]] के सम्बन्ध कारक प्रत्यय 'ई' लगने से 'हिंदी' बन गया। 'हिंदी' का अर्थ है—'हिन्द का'। इस प्रकार हिंदी शब्द की उत्पत्ति हिन्द देश के निवासियों के अर्थ में हुई। आगे चलकर यह शब्द 'हिंदी की भाषा' के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा।
 
उपर्युक्त बातों से तीन बातें सामने आती हैं—
 
#'हिंदी' शब्द का विकास कई चरणों में हुआ- '''सिंधु'''→ '''हिन्दु'''→ '''हिन्द+ई'''→ '''हिंदी'''। प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने अपने “हिन्दी-उर्दू का अद्वैत” शीर्षक आलेख में विस्तार से स्पष्ट किया है कि [[ईरान]] की प्राचीन [[अवेस्ता भाषा|भाषा अवेस्ता]] में “स्” ध्वनि नहीं बोली जाती थी। अवेस्ता में “स्” का उच्चारण “ह्” किया जाता था। उदाहरण के लिए [[संस्कृत]] के असुर शब्द का उच्चारण अहुर किया जाता था। अफ़ग़ानिस्तान के बाद की [[सिन्धु नदी]] के पार के हिन्दुस्तान के इलाके को प्राचीन फारसी साहित्य में “हिन्द” एवं “हिन्दुश” के नामों से पुकारा गया है। “हिन्द” के भूभाग की किसी भी वस्तु, भाषा तथा विचार के लिए विशेषण के रूप में “हिन्दीक” का प्रयोग होता था। हिन्दीक माने हिन्द का या हिन्द की। यही हिन्दीक शब्द [[अरबी भाषा|अरबी]] से होता हुआ ग्रीक में “इंदिका” तथा “इंदिके” हो गया। ग्रीक से लैटिन में यह “इंदिया” तथा लैटिन से अंग्रेज़ी में “इंडिया” शब्द रूप बन गए। यही कारण है कि अरबी एवं फ़ारसी साहित्य में “हिन्द” में बोली जाने वाली ज़बानों के लिए “ज़बान-ए-हिन्द” लफ्ज़ मिलता है। [[भारत]] में आने के बाद मुसलमानों ने “ज़बान-ए-हिन्दी” का प्रयोग [[आगरा]]-[[दिल्ली]] के आसपास बोली जाने वाली भाषा के लिए किया। “ज़बान-ए-हिन्दी” माने हिन्द में बोली जाने वाली जबान। इस इलाक़े के गैर-मुस्लिम लोग बोले जाने वाले भाषा-रूप को “भाखा” कहते थे, हिन्दी नहीं। [[कबीरदास]] की प्रसिद्ध पंक्ति है – संस्किरित है कूप जल, भाखा बहता नीर।
 
#'हिंदी' शब्द मूलतः फ़ारसी का है न कि 'हिंदी' भाषा का। यह ऐसे ही है जैसे बच्चा हमारे घर जनमे और उसका नामकरण हमारा पड़ोसी करे। हालाँकि कुछ कट्टर हिंदी प्रेमी 'हिंदी' शब्द की व्युत्पत्ति हिंदी भाषा में ही दिखाने की कोशिश करते हैं, जैसे - हिन (हनन करने वाला) + दु (दुष्ट)= हिन्दू अर्थात् दुष्टों का हनन करने वाला हिन्दू और उन लोगों की भाषा 'हिंदी'; हीन (हीनों)+दु (दलन)= हिन्दू अर्थात् हीनों का दलन करने वाला हिन्दू और उनकी भाषा 'हिंदी'। चूँकि इन व्युत्पत्तियों में प्रमाण कम, अनुमान अधिक है, इसलिए सामान्यतः इन्हें स्वीकार नहीं किया जाता।
 
#'हिंदी' शब्द के दो अर्थ हैं— 'हिन्द देश के निवासी' (यथा— '''हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा'''— इक़बाल) और 'हिंदी की भाषा'। हाँ, यह बात अलग है कि अब यह शब्द दो आरम्भिक अर्थों से पृथक हो गया है। इस देश के निवासियों को अब कोई हिंदी नहीं कहता, बल्कि भारतवासी, हिन्दुस्तानी आदि कहते हैं। दूसरे, इस देश की व्यापक भाषा के अर्थ में भी अब 'हिंदी' शब्द का प्रयोग नहीं होता, क्योंकि भारत में अनेक भाषाएँ हैं, जो सब 'हिंदी' नहीं कहलाती हैं। बेशक ये सभी 'हिन्द' की भाषाएँ हैं, लेकिन केवल 'हिंदी' नहीं हैं। उन्हें हम [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[असमिया भाषा|असमिया]], [[उड़िया भाषा|उड़िया]], [[मराठी भाषा|मराठी]] आदि नामों से पुकारते हैं। इसलिए 'हिंदी' की इन सब भाषाओं के लिए 'हिंदी' शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता। हिंदी' शब्द भाषा विशेष का वाचक नहीं है, बल्कि यह भाषा समूह का नाम है। हिंदी जिस भाषा समूह का नाम है, उसमें आज के हिंदी प्रदेश/क्षेत्र की 5 उपभाषाएँ तथा 17 बोलियाँ शामिल हैं। बोलियों में [[ब्रजभाषा]], [[अवधी भाषा|अवधी]] एवं [[खड़ी बोली]] को आगे चलकर [[मध्यकाल]] में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है।
 
*'''ब्रजभाषा'''- प्राचीन हिंदी काल में [[ब्रजभाषा]] अपभ्रंश–अवहट्ट से ही जीवन रस लेती रही। अपभ्रंश–अवहट्ट की रचनाओं में ब्रजभाषा के फूटते हुए अंकुर को देखा जा सकता है। ब्रजभाषा [[साहित्य]] का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ सुधीर अग्रवाल का 'प्रद्युम्न चरित' (1354 ई.) है।
 
*'''अवधी'''- [[अवधी भाषा|अवधी]] की पहली कृति मुल्ला दाउद की 'चंद्रायन' या 'लोरकहा' (1370 ई.) मानी जाती है। इसके उपरान्त अवधी भाषा के साहित्य का उत्तरोत्तर विकास होता गया।
 
*'''खड़ी बोली'''- प्राचीन हिंदी काल में रचित [[खड़ी बोली]] साहित्य में खड़ी बोली के आरम्भिक प्रयोगों से उसके आदि रूप या बीज रूप का आभास मिलता है। खड़ी बोली का आदिकालीन रूप सरहपा आदि सिद्धों, [[गोरखनाथ]] आदि नाथों, [[अमीर ख़ुसरो]] जैसे सूफ़ियों, [[जयदेव]], [[संत नामदेव|नामदेव]], [[रामानंद]] आदि संतों की रचनाओं में उपलब्ध है। इन रचनाकारों में हमें अपभ्रंश–अवहट्ट से निकलती हुई खड़ी बोली स्पष्टतः दिखाई देती है।
 
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://www.pravakta.com/indian-aryan-languages-of-the-indo-european-family भारोपीय परिवार की भारतीय भाषाएँ]
 
*[http://www.pravakta.com/reflections-in-relation-to-hindi-language हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार]
 
*[http://www.rachanakar.org/2010/03/blog-post_3350.html हिन्दी भाषा-क्षेत्र एवं हिन्दी के क्षेत्रगत रूप]
 
*[http://www.scribd.com/doc/22142436/Hindi-Urdu हिन्दी-उर्दू का अद्वैत]
 
*[http://www.scribd.com/doc/22573933/Hindi-kee-antarraashtreeya-bhoomikaa हिन्दी की अन्तरराष्ट्रीय भूमिका]
 
 
==संबंधित लेख==
 
{{हिन्दी भाषा}}{{भाषा और लिपि}}{{व्याकरण}}
 
[[Category:भाषा और लिपि]][[Category:भाषा कोश]][[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:हिन्दी भाषा]]
 
[[Category:जनगणना अद्यतन]]
 
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12:47, 21 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण