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शरतचंद्र के नायाब उपन्यास पर आधारित फ़िल्म देवदास पी.सी. बरुआ के निर्देशन में बनी हिन्दी फ़िल्म थी। जिसका प्रदर्शन [[1935]] में हुआ था।  
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शरतचंद्र के नायाब उपन्यास पर आधारित फ़िल्म देवदास पी.सी. बरुआ के निर्देशन में बनी हिन्दी फ़िल्म थी। जिसका प्रदर्शन [[1936]] में हुआ था।  
 
==कथावस्तु==
 
==कथावस्तु==
[[हिन्दी]] सिनेमा की एक महत्त्वपूर्न कृति ’देवदास’ 1935 में बनी थी। ‘देवदास” की पार्वती प्रेम और परंपरा का अन्तर्द्वन्द्व झेलती है और अन्तत: उसे परंपरा के दबाब में प्रेम का परित्याग करना पड़ता है। पार्वती कर्तव्यपरायण हिंदू धर्म पत्नी का फर्ज़ निभाती है। पूरी फ़िल्म स्त्री की इस कशमकश को व्यक्त करती है किन्तु फ़िल्म का अंत ‘परंपरा’ के पुराने पड़ जाने और स्त्री की मुक्त आकांक्षा का संकेत कर जाता है। 1935 में इस तरह के संकेत भी महत्त्वपूर्ण माने जा सकते है। शायद यही रूप फ़िल्म की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण था। यह फ़िल्म स्त्री का रोमानी चित्र प्रस्तुत करती है तो अछूत कन्या(1936) में इसका थोड़ा विस्तार होता है। ‘देवदास’ अमीर-गरीब के तनाव पर रची गयी फ़िल्म है।<ref>{{cite web |url=http://hindimedia.blogspot.com/2010/04/blog-post.html |title= इलेक्ट्रोनिक मीडिया और महिलाएँ |accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=मंत्रा |language=हिन्दी }}</ref>
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[[हिन्दी]] सिनेमा की एक महत्त्वपूर्ण कृति ’देवदास’ 1936 में बनी थी। ‘देवदास” की पार्वती, प्रेम और परंपरा का अन्तर्द्वन्द्व झेलती है और अन्तत: उसे परंपरा के दबाब में प्रेम का परित्याग करना पड़ता है। पार्वती कर्तव्यपरायण हिंदू धर्म पत्नी का फर्ज़ निभाती है। पूरी फ़िल्म स्त्री की इस कशमकश को व्यक्त करती है किन्तु फ़िल्म का अंत ‘परंपरा’ के पुराने पड़ जाने और स्त्री की मुक्त आकांक्षा का संकेत कर जाता है। 1936 में इस तरह के संकेत भी महत्त्वपूर्ण माने जा सकते है। शायद यही रूप फ़िल्म की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण था। यह फ़िल्म स्त्री का रोमानी चित्र प्रस्तुत करती है तो अछूत कन्या(1936) में इसका थोड़ा विस्तार होता है। ‘देवदास’ अमीर-गरीब के तनाव पर रची गयी फ़िल्म है।<ref>{{cite web |url=http://hindimedia.blogspot.com/2010/04/blog-post.html |title= इलेक्ट्रोनिक मीडिया और महिलाएँ |accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=मंत्रा |language=हिन्दी }}</ref>
  
 
==कुंदनलाल सहगल बने देवदास==
 
==कुंदनलाल सहगल बने देवदास==
 
हिन्दी फ़िल्मों में कुंदनलाल सहगल वैसे तो एक बेमिसाल गायक के रूप में विख़्यात हैं लेकिन देवदास जैसी चंद फ़िल्मों में अभिनय के कारण उनके प्रशंसक उन्हें एक उम्दा अभिनेता भी करार देते हैं।  
 
हिन्दी फ़िल्मों में कुंदनलाल सहगल वैसे तो एक बेमिसाल गायक के रूप में विख़्यात हैं लेकिन देवदास जैसी चंद फ़िल्मों में अभिनय के कारण उनके प्रशंसक उन्हें एक उम्दा अभिनेता भी करार देते हैं।  
समीक्षक सहगल के अभिनय जीवन में देवदास फ़िल्म का विशेष स्थान मानते हैं। इस फ़िल्म का मुख्य पात्र और उस किरदार को निभा रहे सहगल की निजी जिंदगी दोनों में एक समानता थी कि दोनों काफी अधिक शराब पीते थे।
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समीक्षक सहगल के अभिनय जीवन में देवदास फ़िल्म का विशेष स्थान मानते हैं। इस फ़िल्म का मुख्य पात्र और उस किरदार को निभा रहे सहगल की निजी जिंदगी दोनों में एक समानता थी कि दोनों काफ़ी अधिक शराब पीते थे।
इस फ़िल्म में देवदास के ट्रेन के अंतिम सफर और उसके पारो के ससुराल पहुँचने के दृश्यों में सहगल ने बेमिसाल भूमिका अदा की थी। इन दृश्यों में एक शराबी व्यक्ति के बावज़ूद उन्होंने प्रेम के उदात्त चरित्र को जीवंत कर दिया। सहगल के कुछ प्रशंसक तो यहां तक दावा करते हैं कि देवदास में उनका अभिनय बाद में बनी देवदास में दिलीप कुमार के अभिनय से भी कहीं बेहतर हैं।
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इस फ़िल्म में देवदास के ट्रेन के अंतिम सफर और उसके पारो के ससुराल पहुँचने के दृश्यों में सहगल ने बेमिसाल भूमिका अदा की थी। इन दृश्यों में एक शराबी व्यक्ति के बावज़ूद उन्होंने प्रेम के उदार चरित्र को जीवंत कर दिया। सहगल के कुछ प्रशंसक तो यहाँ तक दावा करते हैं कि देवदास में उनका अभिनय बाद में बनी देवदास में दिलीप कुमार के अभिनय से भी कहीं बेहतर है।
 
==गीत-संगीत==
 
==गीत-संगीत==
देवदास में अभिनेता का किरदार निभाने वाले कुंदनलाल सहगल ने ही देवदास के गाने भी गाए हैं। कुंदनलाल सहगल न सिर्फ़ गायक थे बल्कि अच्छे अभिनेता भी थे और उनकी फ़िल्म देवदास ने 1935 में कामयाबी के ऐसे झंडे गाड़े थे जो एक मिसाल बन चुके हैं। सहगल की जगह कोई नहीं ले पाया है। आज तक न तो कोई दूसरा सहगल पैदा हुआ है और न ही भविष्य में होगा।
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देवदास में अभिनेता का किरदार निभाने वाले कुंदनलाल सहगल ने ही देवदास के गाने भी गाए हैं। कुंदनलाल सहगल न सिर्फ़ गायक थे बल्कि अच्छे अभिनेता भी थे और उनकी फ़िल्म देवदास ने 1936 में कामयाबी के ऐसे झंडे गाड़े थे जो एक मिसाल बन चुके हैं। सहगल की जगह कोई नहीं ले पाया है। आज तक न तो कोई दूसरा सहगल पैदा हुआ है और न ही भविष्य में होगा।
  
 
"बालम आए बसो मोरे मन में" और "अब दिन बितत नाहीं, दुख के" इसके प्रमुख गाने हैं। श्री केदार शर्मा के लिखे गानों ने शरतचंद्र के एक नाकाम, निराश प्रेमी की छवि को अमर बना दिया था।<ref>{{cite web |url=http://podcast.hindyugm.com/2009_01_18_archive.htm |title= लेकिन दुनिया में कोई दूसरा 'सहगल' नहीं आया |accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=मंत्रा |language=हिन्दी }}</ref>
 
"बालम आए बसो मोरे मन में" और "अब दिन बितत नाहीं, दुख के" इसके प्रमुख गाने हैं। श्री केदार शर्मा के लिखे गानों ने शरतचंद्र के एक नाकाम, निराश प्रेमी की छवि को अमर बना दिया था।<ref>{{cite web |url=http://podcast.hindyugm.com/2009_01_18_archive.htm |title= लेकिन दुनिया में कोई दूसरा 'सहगल' नहीं आया |accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=मंत्रा |language=हिन्दी }}</ref>
 
==निर्देशन==
 
==निर्देशन==
देवदास पर फ़िल्म बनाने की शुरुआत की बात करें, तो सबसे पहले याद आते हैं पी.सी. बरुआ। यह बात सन 1935 की है। फ़िल्म देवदास सबसे पहले बनी थी बांग्ला में। बरुआ निर्देशित इस फ़िल्म में देवदास बने थे खुद बरुआ। चंद्रमुखी बनी थीं चंद्रबती देवी और पार्वती का रोल जमुना ने किया था। इस फ़िल्म को जब अपार सफलता मिली, तब निर्माता ने बरुआ से इसे हिंदी में बनाने को कहा। उसकी तैयारी शुरू हुई। इस बार बरुआ ने सिर्फ निर्देशन की कमान संभाली और देवदास के रोल के लिए गायक-अभिनेता के रूप में चर्चा में आए कुंदनलाल सहगल को चुना। देवदास के रोल में सहगल को चुनने की वजह यह थी कि फ़िल्म हिंदी में बननी थी और वह जमाना ऐसा था, जब अभिनेता खुद फ़िल्मों में गीत गाते थे। पार्वती बनीं इस बार भी जमुना और चंद्रमुखी के लिए ख़ूबसूरत हीरोइन राजकुमारी को चुना गया।  
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देवदास पर फ़िल्म बनाने की शुरुआत की बात करें, तो सबसे पहले याद आते हैं पी.सी. बरुआ। यह बात सन 1936 की है। फ़िल्म देवदास सबसे पहले बनी थी बांग्ला में। बरुआ निर्देशित इस फ़िल्म में देवदास बने थे खुद बरुआ। चंद्रमुखी बनी थीं चंद्रबती देवी और पार्वती का रोल जमुना ने किया था। इस फ़िल्म को जब अपार सफ़लता मिली, तब निर्माता ने बरुआ से इसे हिंदी में बनाने को कहा। उसकी तैयारी शुरू हुई। इस बार बरुआ ने सिर्फ निर्देशन की कमान संभाली और देवदास के रोल के लिए गायक-अभिनेता के रूप में चर्चा में आए कुंदनलाल सहगल को चुना। देवदास के रोल में सहगल को चुनने की वज़ह यह थी कि फ़िल्म हिंदी में बननी थी और वह जमाना ऐसा था, जब अभिनेता ख़ुद फ़िल्मों में गीत गाते थे। पार्वती बनीं इस बार भी जमुना और चंद्रमुखी के लिए ख़ूबसूरत हीरोइन राजकुमारी को चुना गया।  
 
==सफ़लता==
 
==सफ़लता==
इस फ़िल्म को भी अपार सफलता मिली। बांग्ला संस्करण को जहां बंगाल और उससे जुड़े क्षेत्र में ही सफलता मिली, वहीं हिंदी संस्करण का क्षेत्र व्यापक था। फ़िल्म को चहुंओर कामयाबी मिली। फ़िल्म की सफलता ने सभी कलाकारों को रातोंरात स्टार बना दिया।
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इस फ़िल्म को भी अपार सफलता मिली। बांग्ला संस्करण को जहाँ बंगाल और उससे जुड़े क्षेत्र में ही सफ़लता मिली, वहीं हिंदी संस्करण का क्षेत्र व्यापक था। फ़िल्म को चहुंओर क़ामयाबी मिली। फ़िल्म की सफ़लता ने सभी कलाकारों को रातोंरात स्टार बना दिया।
  
 
==मुख्य कलाकार==
 
==मुख्य कलाकार==

06:02, 31 अगस्त 2010 का अवतरण

देवदास (1936)
[[चित्र:||200px|center]]
निर्देशक पी.सी. बरुआ
निर्माता न्यू थियेटर्स
लेखक शरत चंद्र चट्टोउपाध्याय
कलाकार कुंदनलाल सहगल, जमुना बरुआ, राजकुमारी, केदार शर्मा, विक्रम कपूर
प्रसिद्ध चरित्र देवदास
संगीत आर.सी. बोरल, पंकज मलिक
गायक कुंदनलाल सहगल
प्रसिद्ध गीत "बालम आए बसो मोरे मन में" और "अब दिन बितत नाहीं, दुख के"
छायांकन विमल रॉय
प्रदर्शन तिथि 1936
अवधि 139 मीटर
भाषा हिन्दी

शरतचंद्र के नायाब उपन्यास पर आधारित फ़िल्म देवदास पी.सी. बरुआ के निर्देशन में बनी हिन्दी फ़िल्म थी। जिसका प्रदर्शन 1936 में हुआ था।

कथावस्तु

हिन्दी सिनेमा की एक महत्त्वपूर्ण कृति ’देवदास’ 1936 में बनी थी। ‘देवदास” की पार्वती, प्रेम और परंपरा का अन्तर्द्वन्द्व झेलती है और अन्तत: उसे परंपरा के दबाब में प्रेम का परित्याग करना पड़ता है। पार्वती कर्तव्यपरायण हिंदू धर्म पत्नी का फर्ज़ निभाती है। पूरी फ़िल्म स्त्री की इस कशमकश को व्यक्त करती है किन्तु फ़िल्म का अंत ‘परंपरा’ के पुराने पड़ जाने और स्त्री की मुक्त आकांक्षा का संकेत कर जाता है। 1936 में इस तरह के संकेत भी महत्त्वपूर्ण माने जा सकते है। शायद यही रूप फ़िल्म की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण था। यह फ़िल्म स्त्री का रोमानी चित्र प्रस्तुत करती है तो अछूत कन्या(1936) में इसका थोड़ा विस्तार होता है। ‘देवदास’ अमीर-गरीब के तनाव पर रची गयी फ़िल्म है।[1]

कुंदनलाल सहगल बने देवदास

हिन्दी फ़िल्मों में कुंदनलाल सहगल वैसे तो एक बेमिसाल गायक के रूप में विख़्यात हैं लेकिन देवदास जैसी चंद फ़िल्मों में अभिनय के कारण उनके प्रशंसक उन्हें एक उम्दा अभिनेता भी करार देते हैं। समीक्षक सहगल के अभिनय जीवन में देवदास फ़िल्म का विशेष स्थान मानते हैं। इस फ़िल्म का मुख्य पात्र और उस किरदार को निभा रहे सहगल की निजी जिंदगी दोनों में एक समानता थी कि दोनों काफ़ी अधिक शराब पीते थे। इस फ़िल्म में देवदास के ट्रेन के अंतिम सफर और उसके पारो के ससुराल पहुँचने के दृश्यों में सहगल ने बेमिसाल भूमिका अदा की थी। इन दृश्यों में एक शराबी व्यक्ति के बावज़ूद उन्होंने प्रेम के उदार चरित्र को जीवंत कर दिया। सहगल के कुछ प्रशंसक तो यहाँ तक दावा करते हैं कि देवदास में उनका अभिनय बाद में बनी देवदास में दिलीप कुमार के अभिनय से भी कहीं बेहतर है।

गीत-संगीत

देवदास में अभिनेता का किरदार निभाने वाले कुंदनलाल सहगल ने ही देवदास के गाने भी गाए हैं। कुंदनलाल सहगल न सिर्फ़ गायक थे बल्कि अच्छे अभिनेता भी थे और उनकी फ़िल्म देवदास ने 1936 में कामयाबी के ऐसे झंडे गाड़े थे जो एक मिसाल बन चुके हैं। सहगल की जगह कोई नहीं ले पाया है। आज तक न तो कोई दूसरा सहगल पैदा हुआ है और न ही भविष्य में होगा।

"बालम आए बसो मोरे मन में" और "अब दिन बितत नाहीं, दुख के" इसके प्रमुख गाने हैं। श्री केदार शर्मा के लिखे गानों ने शरतचंद्र के एक नाकाम, निराश प्रेमी की छवि को अमर बना दिया था।[2]

निर्देशन

देवदास पर फ़िल्म बनाने की शुरुआत की बात करें, तो सबसे पहले याद आते हैं पी.सी. बरुआ। यह बात सन 1936 की है। फ़िल्म देवदास सबसे पहले बनी थी बांग्ला में। बरुआ निर्देशित इस फ़िल्म में देवदास बने थे खुद बरुआ। चंद्रमुखी बनी थीं चंद्रबती देवी और पार्वती का रोल जमुना ने किया था। इस फ़िल्म को जब अपार सफ़लता मिली, तब निर्माता ने बरुआ से इसे हिंदी में बनाने को कहा। उसकी तैयारी शुरू हुई। इस बार बरुआ ने सिर्फ निर्देशन की कमान संभाली और देवदास के रोल के लिए गायक-अभिनेता के रूप में चर्चा में आए कुंदनलाल सहगल को चुना। देवदास के रोल में सहगल को चुनने की वज़ह यह थी कि फ़िल्म हिंदी में बननी थी और वह जमाना ऐसा था, जब अभिनेता ख़ुद फ़िल्मों में गीत गाते थे। पार्वती बनीं इस बार भी जमुना और चंद्रमुखी के लिए ख़ूबसूरत हीरोइन राजकुमारी को चुना गया।

सफ़लता

इस फ़िल्म को भी अपार सफलता मिली। बांग्ला संस्करण को जहाँ बंगाल और उससे जुड़े क्षेत्र में ही सफ़लता मिली, वहीं हिंदी संस्करण का क्षेत्र व्यापक था। फ़िल्म को चहुंओर क़ामयाबी मिली। फ़िल्म की सफ़लता ने सभी कलाकारों को रातोंरात स्टार बना दिया।

मुख्य कलाकार

  • कुंदनलाल सहगल- देवदास
  • जमुना- पार्वती (पारो)
  • राजकुमारी- चंद्रमुखी


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इलेक्ट्रोनिक मीडिया और महिलाएँ (हिन्दी) (एच टी एम एल) मंत्रा। अभिगमन तिथि: 27 अगस्त, 2010
  2. लेकिन दुनिया में कोई दूसरा 'सहगल' नहीं आया (हिन्दी) (एच टी एम एल) मंत्रा। अभिगमन तिथि: 27 अगस्त, 2010