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'''शेख मोहम्मद अब्दुल्ला''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Sheikh Abdullah'' ; जन्म: [[5 दिसंबर]], [[1905]], सौरा [[श्रीनगर]]; मृत्यु: [[7 नवम्बर]], [[1982]]) [[भारत]] के एक राजनीति नेता थे, जो[[जम्मू और कश्मीर|जम्मू और श्रीनगर]] के [[मुख्यमंत्री]] थे। ये मुस्लिम कवि इक़बाल की इस्लामिक शिक्षा तथा [[गांधीजी]], [[अब्दुल कलाम|मौलाना अब्दुल कलाम]] एवं [[जवाहर लाल नेहरु]] के विचारों से अत्यंत प्रभावित थे। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला एक उदार व्यक्तित्व के धनी थे तथा इन्हें कश्मीर का शेर कहकर पुकारा जाता था।<ref>{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/jammu%20kashmir%20krantikari.php|title=शेख मोहम्मद अब्दुल्ला  |accessmonthday=14 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=
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==जन्म एवं शिक्षा==
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शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का जन्म 5 दिसंबर, 1905 को श्रीनगर के एक उपनगर सौरा में हुआ था। इनका जन्म इनके पिता शेख मोहम्मद इब्राहिम के मौत के ग्यारह दिनों के बाद हुआ था। इनका [[परिवार]] पशमीना तथा शाल का व्यापार किया करता था। इन्होंने श्रीनगर, जम्मू तथा अलीगढ़ विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। जहाँ इन्होंने [[1930]] में [[भौतिक विज्ञान|भौतिकी विषय]] से (एम.एस.सी. की) स्नात्तकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने सन [[1932]] में अकबर बहान नामक महिला से निकाह किया। इनकी दो पुत्रियाँ तथा तीन पुत्र थे।
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==राजनैतिक जीवन==
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शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने एक सरकारी अध्यापक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की किंतु राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय होने के कारण उन्हें इस पद से बर्खास्त कर दिया गया। [[1932]] में ये मुस्लिम सभा के सदस्य चुने गए। [[1939]] में यह संगठन राष्ट्रीय सभा में बदल गया। इन्होंने [[मई]], [[1946]] को [[कश्मीर]] के महाराजा को शासन समाप्त करने के लिए उनके अधिकार को चुनौती दी और जेल चले गए। [[1947]] में ये जेल से रिहा कर दिए गए। इन्होंने घोषणा की कि कश्मीर के लोग स्वयं अपने भाग्य का निर्णय लेंगे। [[पाकिस्तान]] ने कश्मीर का विलय करने के लिए एक जनजाति हमला किया। शेख अब्दुल्ला ने लोकप्रिय प्रतिरोध को संचालित किया। इन्होंने जम्मू और कश्मीर का भारत राज्य में विलय का समर्थन किया। सन [[1949]] में ये राज्य के [[प्रधानमंत्री]] नियुक्त किए गए तथा [[भारतीय संविधान|भारत के संविधान]] के हस्ताक्षरकर्ता बने।
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[[भारत सरकार]] एवं शेख अब्दुल्ला के मध्य बढ़ते अविश्वास की परिवति [[9 अगस्त]], [[1953]] में हुई। इन्होंने [[भारत]] के प्रधान मंत्री एवं [[पाकिस्तान]] के प्रधान मंत्री अयुब खां के साथ बैठकों की एक श्रृंखला की। [[26 मई]], [[1964]] में [[जवाहर लाल नेहरू|नेहरूजी]] की मृत्युपरांत बातचीत की प्रक्रिया अवरुद्ध हो गई। सन [[1971]] में शेख अब्दुल्ला देश से निष्कासित कर दिए गए। बाद में इनका प्रधान मंत्री [[इंदिरा गांधी]] के साथ सामंजस्य होने के कारण एक बार फिर इन्हें [[जम्मू काश्मीर]] के [[मुख्यमंत्री]] के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया गया।। इनके पुत्र [[फ़ारूक़ अब्दुल्ला, डॉ. |फारूख अब्दुल्ला]] उनके उत्तराधिकारी के रूप में आये। शेख़ एक उदार व्यक्तित्व के धनी थे तथा उन्हें कश्मीर का शेर कहकर पुकारा जाता है।
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|अन्य जानकारी=तारा चेरियन के मन में विकलाँगों की सहायता करने का विषेय महत्त्व थ। वह कहती थीं कि जो निरुपाय, असहाय, पराश्रित हैं, ऐसे अपंगों की सेवा मानवता की सबसे महान सेवा होती है।
 
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'''तारा चेरियन''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Tara Cherian'', जन्म: [[मई]], [[1913]], [[मद्रास]]; मृत्यु: [[7 नवम्बर]], [[2000]]) [[भारत]] की एक समाज सेविका थीं। यह [[मद्रास]] की पहली महिला थीं, जो मेयर बनीं। मेयर के रूप में इन्होंने स्कूली बच्चों के लिये शिक्षा पद्धति में सरलता एवं सानुकूलता का समावेश कराया तथा इनके स्वास्थ्य के लिये दोपहर में पोषक तत्वों से पूर्ण स्वल्पाहार की व्यवस्था कराई, जिसके फलस्वरूप बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ। स्वास्थ्य में सुधार होने से बच्चों में पढ़ने की रुचि बढ़ने लगी, जिसको देखकर प्रायः सभी नागरिक अपने बच्चों को पाठशाला भेजने के लिये समुत्सुक होने लगे। इनके सेवा भाव को देखकर ही [[भारत सरकार]] ने इन्हें [[1967]] में [[पद्म भूषण]] पुरस्कार से सम्मानित किया था।<ref>{{cite web |url=http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1966/April/v2.18|title=परम परिश्रमी-श्रीमती तारा चेरियन|accessmonthday=7 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=literature.awgp.orglanguage|language=हिन्दी }}</ref>
 
==परिचय==
 
तारा चेरियन का जन्म मई, 1913 को मद्रास (वर्तमान [[चेन्नई]]) में हुआ था। इन्होंने वीमेन्ट्र क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक किया। इनका [[विवाह]] पी.वी चेरियन के साथ हुआ था, जो मद्रास के [[गवर्नर-जनरल|गवर्नर]] थे। इनके 5 बच्चे हुए।
 
==विद्यार्थी जीवन==
 
तारा चेरियन विद्यार्थी जीवन में कभी भी किताबी कीड़ा बनकर नहीं रहीं, बल्कि कॉलेज के विविध कार्यक्रमों से लेकर खेल-कूद तक में भाग लेती थीं। इनका सदैव यह विश्वास रहा है कि जो अपने जीवन में कोई विशेष उन्नति करना चाहता है, अपने व्यक्तित्व को ठीक-ठीक विकसित करना चाहता है, तो उसे उपलब्ध कार्य-क्रमों में पूरे मन से भाग लेना चाहिए। अपने इसी विश्वास के आधार पर ये अपने कॉलेज की मूर्धन्य कार्यकर्त्री रहीं और अनेक बार [[मद्रास विश्वविद्यालय|मद्रास विश्व विद्यालय]] के सीनेट की सदस्या चुनी गईं। अपनी कुशाग्रता, तत्परता और निःसंकोचता से ये अपने कॉलेज की गौरव बनी रहीं। कॉलेज की प्रत्येक प्रतियोगिता में भाग लेना, प्रत्येक कार्यक्रम में सम्मिलित होना इन्होंने अपना एक नैतिक कर्त्तव्य बना लिया था। अनेक बार प्रतियोगिताओं में असफल होने पर जब कोई उनसे पूछता क्यों तारा, अब आगे की प्रतियोगिता के लिए क्या इरादा है? तो उनका केवल एक ही उत्तर रहता था कि प्रतियोगिता की हार-जीत से प्रभावित होने वाले व्यक्ति निर्बल-हृदय के होते हैं। मैं तो प्रत्येक प्रतियोगिता में बुद्धि-विकास के दृष्टिकोण से भाग लेती हूँ, किसी पुरस्कार के लोभ से नहीं।
 
 
 
==समाज सेवा==
 
तारा चेरियन के बच्चे जब कुछ बड़े हो गये तो इन्होंने सार्वजनिक कार्यों में अभिरुचि लेना प्रारम्भ किया। सबसे पहले अपनी विद्या, बुद्धि एवं अनुभव के विकास के लिये इन्होंने विदेश यात्रा की। जिसमें ये [[ब्रिटेन]], बर्लिन और सान्फ्राँसिस्को में विशेष रूप से घूमी। अपनी विदेश-यात्रा के समय इन्होंने मनोरंजक स्थानों की अपेक्षा जन-सेवी संस्थाओं को अधिक महत्त्व दिया। मनोरंजक कार्यक्रमों में भाग लेने के बजाय इन्होंने समाज-सेवा के स्थलों और कार्य-विधियों का गम्भीरता के साथ अध्ययन किया। जिसका लाभ इन्होंने अपनी समाज-सेवाओं में उठाया। विदेशों से वापिस आने पर इनकी योग्यता का लाभ उठाने के लिये अनेक संस्थाओं ने इन्हें अपने में सम्मिलित करने के लिये आमन्त्रित किया। श्रीमती तारा चेरियन ने पहले ‘एग्मोर’ स्थित महिलाओं और बच्चों के अस्पताल के सलाहकार मण्डल की अध्यक्षा के रूप में पदार्पण किया। अपनी कार्यकुशलता से श्रीमती चेरियन ने संस्था में चार-चाँद लगा दिये। इनका कार्यक्रम अध्यक्ष के कार्यालय तक ही सीमित ही नहीं रहा, बल्कि ये अस्पताल में प्रत्येक स्त्री-बच्चे के पास स्वयं जातीं, उनका दुःख-सुख पूछतीं और यथासम्भव दूर करने का प्रयत्न करतीं। इन्होंने अस्पताल की कमियों को दूर किया और अपने उदाहरण से कार्यकर्त्ताओं तथा कर्मचारियों में सच्ची सेवा-भावना का जागरण किया। श्रीमती चेरियन की सहानुभूतिपूर्ण सेवा भावना का ही यह परिणाम था कि वे उक्त अस्पताल के सलाहकार-मण्डल की बीस वर्ष तक अध्यक्षा रहीं। श्रीमती तारा चेरियन के सेवा कार्यों से प्रभावित होकर [[मद्रास]] की जनता ने इन्हें नगर-महापालिका का अध्यक्ष मनोनीत किया था।
 
==मेयर के रूप में किये कार्य==
 
श्रीमती तारा चेरियन ने महा-नगरपालिका का अध्यक्ष पद सँभालने के [[दिन]] से ही अपने को नगर-कल्याण के सेवा-कार्यों में स्वयं को डुबा दिया था। ये जब नगर का दौरा करतीं, गन्दी और गरीब बस्तियों को देखतीं, तो उनके सुधार की व्यवस्था करतीं और असहायों को सहानुभूति के साथ सहायता प्रदान करतीं। विकलाँगों की सहायता इनके कार्यक्रम का विशेष अंग था। यह कहती थीं कि जो निरुपाय, असहाय, पराश्रित हैं, ऐसे अपंगों की सेवा मानवता की सबसे महान सेवा होती है। यह एक समाज-सुधार कार्य होने के साथ-साथ धार्मिक [[पुण्य]] भी है। श्रीमती तारा चेरियन विकलाँग सेवा के इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं थी। इन्होंने उनके लिये अनेक आश्रमों एवं कार्य-शालाओं की स्थापना का प्रयास किया, तथा उनकी आर्थिक तथा शारीरिक सहायता की व्यवस्था की। एक सुसंस्कृत, संभ्रान्त एवं सभ्य समाज की रचना के दृष्टिकोण से इन्होंने स्कूली बच्चों की ओर समुचित ध्यान दिया तथा उनकी शिक्षा पद्धति में सरलता एवं सानुकूलता का समावेश कराया। उनके स्वास्थ्य के लिये दोपहर में पोषक तत्वों से पूर्ण स्वल्पाहार की व्यवस्था कराई, जिसके फलस्वरूप बच्चों के स्वास्थ्य में ध्यानाकर्षण सुधार हुआ। स्वास्थ्य में सुधार होने से बच्चों में पढ़ने की रुचि बढ़ने लगी, जिसको देखकर प्रायः सभी नागरिक अपने बच्चों को पाठशाला भेजने के लिये समुत्सुक होने लगे। महा नगरपालिका की अध्यक्षा होने के साथ-साथ श्रीमती तारा चेरियन - महिला कल्याण विभाग, बाल मन्दिर, स्कूल आफ शोसल-वर्कस एण्ड द गिल्ड आफ सर्विस, भारतीय समाज सेवा संगठन, अखिल भारतीय महिला खाद्यान्न परिषद्, क्षेत्रीय पर्यटन सलाहकार समिति तथा जीवन-बीमा निगम की सलाहकार परिषद् की अभिभाविका एवं कार्यकर्त्री भी थीं।
 
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
तारा चेरियन की मृत्यु [[7 नवम्बर]] [[2000]] को हो गईं।
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शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का निधन [[7 नवम्बर]], [[1982]]) को 77 वर्ष की आयु में हो गया।

11:04, 14 फ़रवरी 2017 का अवतरण

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला (अंग्रेज़ी:Sheikh Abdullah ; जन्म: 5 दिसंबर, 1905, सौरा श्रीनगर; मृत्यु: 7 नवम्बर, 1982) भारत के एक राजनीति नेता थे, जोजम्मू और श्रीनगर के मुख्यमंत्री थे। ये मुस्लिम कवि इक़बाल की इस्लामिक शिक्षा तथा गांधीजी, मौलाना अब्दुल कलाम एवं जवाहर लाल नेहरु के विचारों से अत्यंत प्रभावित थे। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला एक उदार व्यक्तित्व के धनी थे तथा इन्हें कश्मीर का शेर कहकर पुकारा जाता था।[1]

जन्म एवं शिक्षा

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का जन्म 5 दिसंबर, 1905 को श्रीनगर के एक उपनगर सौरा में हुआ था। इनका जन्म इनके पिता शेख मोहम्मद इब्राहिम के मौत के ग्यारह दिनों के बाद हुआ था। इनका परिवार पशमीना तथा शाल का व्यापार किया करता था। इन्होंने श्रीनगर, जम्मू तथा अलीगढ़ विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। जहाँ इन्होंने 1930 में भौतिकी विषय से (एम.एस.सी. की) स्नात्तकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने सन 1932 में अकबर बहान नामक महिला से निकाह किया। इनकी दो पुत्रियाँ तथा तीन पुत्र थे।

राजनैतिक जीवन

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने एक सरकारी अध्यापक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की किंतु राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय होने के कारण उन्हें इस पद से बर्खास्त कर दिया गया। 1932 में ये मुस्लिम सभा के सदस्य चुने गए। 1939 में यह संगठन राष्ट्रीय सभा में बदल गया। इन्होंने मई, 1946 को कश्मीर के महाराजा को शासन समाप्त करने के लिए उनके अधिकार को चुनौती दी और जेल चले गए। 1947 में ये जेल से रिहा कर दिए गए। इन्होंने घोषणा की कि कश्मीर के लोग स्वयं अपने भाग्य का निर्णय लेंगे। पाकिस्तान ने कश्मीर का विलय करने के लिए एक जनजाति हमला किया। शेख अब्दुल्ला ने लोकप्रिय प्रतिरोध को संचालित किया। इन्होंने जम्मू और कश्मीर का भारत राज्य में विलय का समर्थन किया। सन 1949 में ये राज्य के प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए तथा भारत के संविधान के हस्ताक्षरकर्ता बने।

मुख्यमंत्री

भारत सरकार एवं शेख अब्दुल्ला के मध्य बढ़ते अविश्वास की परिवति 9 अगस्त, 1953 में हुई। इन्होंने भारत के प्रधान मंत्री एवं पाकिस्तान के प्रधान मंत्री अयुब खां के साथ बैठकों की एक श्रृंखला की। 26 मई, 1964 में नेहरूजी की मृत्युपरांत बातचीत की प्रक्रिया अवरुद्ध हो गई। सन 1971 में शेख अब्दुल्ला देश से निष्कासित कर दिए गए। बाद में इनका प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के साथ सामंजस्य होने के कारण एक बार फिर इन्हें जम्मू काश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया गया।। इनके पुत्र फारूख अब्दुल्ला उनके उत्तराधिकारी के रूप में आये। शेख़ एक उदार व्यक्तित्व के धनी थे तथा उन्हें कश्मीर का शेर कहकर पुकारा जाता है।

मृत्यु

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का निधन 7 नवम्बर, 1982) को 77 वर्ष की आयु में हो गया।

  1. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला (हिन्दी) www.kranti1857.org। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2017।