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''एस. सत्यमूर्ति'' ([[अंग्रेज़ी]]: ''S. Satymurti'', जन्म: [[19 अगस्त]], [[1887]], ज़िला तिरूचेरापल्ली [[तमिलनाडु]]; मृत्यु: [[20 मार्च]], [[1943]]) [[भारत]] के क्रांतिकारी नेता थे। जिन्होंने आदोंलन में भाग लिया और जेल की सजाएं भोगीं।
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'''जे.सी. कुमारप्पा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''J. C. Kumarappa'', जन्म: [[4 जनवरी]], [[1892]], [[मद्रास]]; मृत्यु: [[30 जनवरी]], [[1960]], [[मदुरई]]) [[भारत]] के एक अर्थशास्त्री थे। इनका मूल नाम 'जोसेफ चेल्लादुरई कॉर्नेलिअस' था। ये [[महात्मा गांधी]] के निकट सहयोगी रहे थे। जे सी कुमारप्पा को भारत में गाँधीवादी अर्थशास्त्र का प्रथम गुरु माना जाता है। 
 
 
 
 
==परिचय==
 
==परिचय==
जे.सी. कुमारप्पा मद्रास में थानजीवर नामक स्थान पर 4 जनवरी, 1892 में पैदा हुए थे। ये [[मदुरई]] के मध्यमवर्गीय परम्परागत इक़साई [[परिवार]] से थे। इनके बचपन का नाम जोसफ़ चेल्लादुरै कॉर्नेलियस था। इन्होंने मद्रास से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की तथा उसके बाद [[लंदन]] जाकर लेखा-विधि (एकाउंटेंसी) में प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर वहीं लंदन में एकाउंटेंट के रूप में कुछ वर्षों तक काम भी किया। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर और अपनी माता के बुलाने पर ये [[भारत]] लौट आये और [[बम्बई]] में कुछ समय तक एक ब्रिटिश कम्पनी में काम किया। उसके बाद [[1924]] में इन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया।<ref>{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/tamilnadu%20krantikari.php#Kumarappa/|title=जे.सी. कुमारप्पा |accessmonthday=18 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=
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एस. सत्यमूर्ति का जन्म तमिलनाडु के तिरूचेरापल्ली ज़िले में, 19 अगस्त, 1887 में हुथा था। ये एक मध्यवर्गीय [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] से थे। इन्होंने [[गांव]] में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा तथा [[मद्रास]] से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने लॉ में अध्ययन किया तथा मद्रास से अपनी वकालत शुरू कर दी।
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==जेल यात्रा==
==शिक्षा==
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एस. सत्यमूर्ति सन् [[1919]] में [[कांग्रेस]] में सक्रिय रूप से शामिल हुए। ये सन् [[1923]] में एक [[स्वराज पार्टी]] के उम्मीदवार के रूप में मद्रास विधानसभा में चुने गये। सत्यमूर्ति ने [[1930]] के [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] में भाग लिया। सन् [[1931]] और [[1932]] में इन्हें जेल की सजा हुई। [[दिल्ली]] में इन्हें भारतीय [[विधान परिषद]] के लिए चुना गया तथा बाद में कांग्रेस पार्टी के उपनेता चुने गये। सन् [[1940]] में उन्होंने व्यक्तिगत [[सत्याग्रह]] में भाग लिया। जिसमें उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने [[भारत छोड़ो आन्दोलन]] में भी हिस्सा लिया जिसमें उन्हें जेल हुई।
जे.सी. कुमारप्पा [[1927]] में फिर उच्च अध्ययन के लिए [[अमेरिका]] गये और सायराक्रुज़ विश्वविद्यालय से वाणिज्य एवं व्यापार प्रबंधन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद इन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय में सार्वजनिक वित्त का अध्ययन करके अपने समय के प्रख्यात अर्थशास्त्री एडविन सेलिग्मन के मार्गदर्शन में 'सार्वजनिकवित्त एवं भारत की निर्धनता' पर शोध पत्र लिखा जिसमें भारत की आर्थिक दुर्दशा में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की नीतियों से हुए नुकसान का अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन के दौरान ही कुमारप्पा ने पाया कि भारत की दयनीय आर्थिक स्थिति का मुख्य कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अनैतिक और शोषक नीतियाँ हैं। इसी बीच उन्होंने अपने मूल पारिवारिक नाम कुमारप्पा को अपने नाम के साथ जोड़ने का फ़ैसला किया।
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==व्यक्तित्व==
==स्वतंत्रता में योगदान==
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एस. सत्यमूर्ति एक महान वक्ता, शिक्षाविद और कला के पारखी थे। ये बाद के दिनों में बहुत से राजनीतिज्ञों के पितामह रहे। [[20 मार्च]], [[1943]] में उन्होंने उस दुनिया से विदा ले ली।
जे.सी. कुमारप्पा [[1929]] में भारत वापिस लौट आए। उन्होंने स्वयं [[महात्मा गांधी|महात्मा गांधीजी]] के साथ मिलकर [[गुजरात]] में ग्रामीण सर्वेक्षण संचालित किया तथा केन्द्रीय प्रान्तों में औद्योगिक सर्वेक्षण किया। इन्होंने [[1929]]-[[1931]] के दौरान गुजरात विद्यापीठ में पढ़ाया और गांधीजी की गैर-मोजूदगी में यंग इण्डिया का सम्पादन किया। यंग इण्डिया में कुमारप्पा के लेख ‘सार्वजनिक वित्त और हमारी निर्धनता’ का सिलसिलेवार प्रकाशन भी शुरू हो गया। साथ ही मातर ताल्लुका के आर्थिक सर्वेक्षण का प्रकाशन भी हो रहा था। इन प्रकाशनों के बीच गाँधी ने [[नमक सत्याग्रह]] के लिए [[दांडी यात्रा]] भी शुरू कर दी। नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण जब ब्रिटिश प्रशासन ने गाँधी को गिरफ्तार कर लिया तो यंग इण्डिया के संचालन की ज़िम्मेदारी कुमारप्पा पर आ गयी। इस पत्र में लेखन के कारण कुमारप्पा को भी गिरफ्तार करके डेढ़ साल के लिए जेल भेज दिया गया।
 
 
 
[[1931]] में [[गाँधी-इरविन समझौता|गाँधी-इरविन समझौते]] के बाद कुमारप्पा रिहा हुए और इन्हें लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में [[ब्रिटिश सरकार]] और [[भारत]] के बीच के वित्तीय लेन देन की समुचित पड़ताल करने के लिए गठित समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इस [[कांग्रेस अधिवेशन]] के बाद गाँधी [[गोलमेज़ सम्मेलन]] में भाग लेने के लिए इंग्लैण्ड चले गये। गाँधी की अनुपस्थिति में कुमारप्पा ने यंग इण्डिया के सम्पादन की ज़िम्मेदारी फिर से उठायी और उनके आक्रामक लेखन के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पुनः गिरफ्तार करके ढाई साल के लिए ज़ेल भेज दिया। जेल से रिहा होने के बाद कुमारप्पा ने बिहार में विनाशकारी [[भूकम्प]] के राहत-कार्य के पैसे के लेन-देन का काम देखने लगे। सन् [[1934]] में ये ऑल इण्डिया विलेज इन्डस्ट्रीज एसोशिएशन के सचिव बनाये गये और [[गांधीजी]] के देहान्त के बाद ये इसके अध्यापक बनाये गये कुमारप्पा ने महात्मा गांधी के आर्थिक विचारों को एक वैज्ञानिक आत्मा के साथ व्याख्यायित किया। आधारभूत शिक्षा के प्रतिपादन में भी इन्होंने मुख्य भूमिका निभायी।
 
==रचनाएं==
 
जे.सी. कुमारप्पा एक बहुसर्जक रचनाकार थे और उन्होंने गांधीवादी अर्थशास्त्र में अनेक पुस्तकें लिखी। उनमें दो पुस्तकें इनकी अत्यंत लोकप्रिय हुई जो निम्न प्रकार है-
 
#इकोनोमी ऑफ प्रमानेन्स (Economy of Permanence)
 
#गांधीयन इकोनोमीक थोट (Gandhian Economic)
 
==मृत्यु==
 
जे.सी. कुमारप्पा का निधन [[30 जनवरी]], [[1960]] हुआ। इनकी स्मृति में कुमारप्पा इंस्टीट्यूट ऑफ़ ग्राम स्वराज की स्थापना की गयीं।
 

11:32, 19 फ़रवरी 2017 का अवतरण

एस. सत्यमूर्ति (अंग्रेज़ी: S. Satymurti, जन्म: 19 अगस्त, 1887, ज़िला तिरूचेरापल्ली तमिलनाडु; मृत्यु: 20 मार्च, 1943) भारत के क्रांतिकारी नेता थे। जिन्होंने आदोंलन में भाग लिया और जेल की सजाएं भोगीं।

परिचय

एस. सत्यमूर्ति का जन्म तमिलनाडु के तिरूचेरापल्ली ज़िले में, 19 अगस्त, 1887 में हुथा था। ये एक मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार से थे। इन्होंने गांव में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा तथा मद्रास से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने लॉ में अध्ययन किया तथा मद्रास से अपनी वकालत शुरू कर दी।

जेल यात्रा

एस. सत्यमूर्ति सन् 1919 में कांग्रेस में सक्रिय रूप से शामिल हुए। ये सन् 1923 में एक स्वराज पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मद्रास विधानसभा में चुने गये। सत्यमूर्ति ने 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। सन् 1931 और 1932 में इन्हें जेल की सजा हुई। दिल्ली में इन्हें भारतीय विधान परिषद के लिए चुना गया तथा बाद में कांग्रेस पार्टी के उपनेता चुने गये। सन् 1940 में उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया। जिसमें उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसमें उन्हें जेल हुई।

व्यक्तित्व

एस. सत्यमूर्ति एक महान वक्ता, शिक्षाविद और कला के पारखी थे। ये बाद के दिनों में बहुत से राजनीतिज्ञों के पितामह रहे। 20 मार्च, 1943 में उन्होंने उस दुनिया से विदा ले ली।