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'''आनंदी जोशी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Anandi joshi'', जन्म: [[31 मार्च]], [[1865]], [[पुणे]]; मृत्यु: [[26 फ़रवरी]], [[1887]]) पहली भारतीय महिला थीं, जिन्‍होंने डॉक्‍टरी की डिग्री ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल करना अपने-आप में एक मिसाल है। इनका विवाह नौ साल की अल्‍पायु में इनसे करीब 20 साल बड़े गोपालराव से हो गया था। जब 14 साल की उम्र में ये माँ बनीं और उनकी एकमात्र संतान की मृत्‍यु 10 दिनों में ही गई तो उन्‍हें बहुत बड़ा आघात लगा। अपनी संतान को खो देने के बाद उन्‍होंने यह प्रण किया कि वह एक दिन डॉक्‍टर बनेंगी और ऐसी असमय मौत को रोकने का प्रयास करेंगी।
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'''आनंदी गोपाल जोशी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Anandi Gopal Joshi'', जन्म: [[31 मार्च]], [[1865]], [[पुणे]]; मृत्यु: [[26 फ़रवरी]], [[1887]]) पहली भारतीय महिला थीं, जिन्‍होंने डॉक्‍टरी की डिग्री ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल करना अपने-आप में एक मिसाल है। इनका विवाह नौ साल की अल्‍पायु में इनसे करीब 20 साल बड़े गोपालराव से हो गया था।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म एक मराठी परिवार में 31 मार्च 1865 को कल्याण, थाने, [[महाराष्ट्र]] में हुआ था। इनके माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा। इनका [[परिवार]] एक रूढ़िवादी परिवार था, जो केवल [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] पढ़ना जानते थे। इनके पिता जमींदार थे। ब्रिटिश शासकों द्वारा महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा समाप्त किए जाने के बाद इनके के परिवार की स्थिति बेहद खराब हो गई थी। वे किसी तरह अपना गुजर बसर कर रहे थे। ऐसे ही परिवार में जन्मी आनंदी गोपाल उर्फ यमुना की शादी नौ वर्ष की उम्र में ही उनसे 20 वर्ष बड़े एक विधुर से कर दी गई थी। हिंदू समाज के रिवाज के अनुसार शादी के बाद इनका नाम बदल कर आनंदी रख दिया गया और डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी यमुना से आनंदी बन गर्इं।<ref> {{cite web |url= http://bit.ly/2ngKm6Z|title=डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर|accessmonthday= 17 मार्च|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=tarzezindagi.com|language= हिंदी}}</ref>
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डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म एक [[मराठी]] परिवार में 31 मार्च 1865 को कल्याण, थाणे, [[महाराष्ट्र]] में हुआ था। इनके माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा। इनका [[परिवार]] एक रूढ़िवादी परिवार था, जो केवल [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] पढ़ना जानते थे। इनके पिता जमींदार थे। ब्रिटिश शासकों द्वारा महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा समाप्त किए जाने के बाद इनके के परिवार की स्थिति बेहद खराब हो गई थी। वे किसी तरह अपना गुजर बसर कर रहे थे। ऐसे ही परिवार में जन्मी आनंदी गोपाल उर्फ यमुना की शादी नौ वर्ष की उम्र में ही उनसे 20 वर्ष बड़े एक विधुर से कर दी गई थी। हिंदू समाज के रिवाज के अनुसार शादी के बाद इनका नाम बदल कर आनंदी रख दिया गया और डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी यमुना से आनंदी बन गर्इं।<ref> {{cite web |url= http://bit.ly/2ngKm6Z|title=डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर|accessmonthday= 17 मार्च|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=tarzezindagi.com|language= हिंदी}}</ref>
 
==डॉक्टर बनने का संकल्प==
 
==डॉक्टर बनने का संकल्प==
डॉक्टर आनंदी जोशी के पति गोपाल राव प्रगतिशील विचारधारा को अपनाने वाले व्यक्ति थे। उस दौरान शहर में शिक्षा का माहौल अच्छा था। आनंदी के पति महिलाओं के शिक्षा के हक में पहले से ही थे, लेकिन [[कोलकाता]] आकर इनकी सोच और मजबूत हो गई। दरअसल, उस दौर में ब्राह्मण समाज में केवल [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] पढ़ने का चलन था, [[अंग्रेज़ी]] नहीं पढ़ी जाती थी। इसके दो कारण थे। एक तो यह उनकी मातृभाषा थी, दूसरी अंग्रेज़ों से नफरत। लेकिन गोपाल राव [[अंग्रेज़ी साहित्य]] पढ़ने के शौकीन थे और वे पढ़ने के लिए अंग्रेज़ी किताबें लाया करते थे। उन्होंने एक बार देखा कि आनंदी उनकी किताबों को पढ़ रही थीं। राव ने आनंदी से पूछा कि क्या आप भी अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ने में रुचि रखती हो। आनंदी ने हां में सिर हिलाया। गोपाल के लिए यह खुशी की बात थी। उन्होंने डॉक्टर आनंदी को अंग्रेजी सिखाना शुरू कर दिया। इस दौरान आनंदी राव जोशी के आंगन में किलकारियां गूजीं। उसने एक लड़के को जन्म दिया, लेकिन घर में आई खुशी को 10 दिन बाद ही ग्रहण लग गया। इलाज के अभाव में आनंदी की पहली संतान की मौत हो गई। आनंदी जोशी उस समय केवल 14 वर्ष की थी। बच्चे की मौत का कारण था [[भारत]] में महिला डॉक्टरों का ना होना। उस समय तक भारत में एक भी महिला डॉक्टर नहीं थी। बेटे की मौत आनंदी जोशी के जीवन का एक अहम मोड़ सबित हुआ। उसी क्षण उन्होंने डॉक्टर बनने का संकल्प लिया। उन्होंने मन ही मन में कहा कि अब भारत में इलाज के अभाव में किसी महिला या बच्चे की मौत नहीं होगी।
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आनंदी गोपाल जोशी उस मात्र चौदह साल की थी, जब उन्होंने अपने बेटे को जन्म दिया। लेकिन दुर्भाग्यवश उचित चिकित्सा के अभाव में दस दिनों में उसका देहांत हो गया। इस घटना से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा। वह भीतर-ही-भीतर टूट-सी गई। उनके पति गोपल राव एक प्रगतिशील विचारक थे और महिला-शिक्षा का समर्थन भी करते थे। आनंदी गोपाल जोशी ने कुछ दिनों बाद अपने आपको संभाला और खुद एक डॉक्टर बनने का निश्चय लिया। वह चिकित्सा के अभाव में असमय होने वाली मौतों को रोकने का प्रयास करना चाहती थी चूँकि उस समय [[भारत]] में ऐलोपैथिक डॉक्टरी की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए उन्हें पढ़ाई करने के लिए विदेश जाना पड़ता था।<ref>{{cite web |url=https://feminisminindia.com/2017/03/18/anandibai-joshi-hindi/|title=आनंदीबाई जोशी: देश की पहली महिला डॉक्टर|accessmonthday= 18 मार्च|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=feminisminindia.com|language= हिंदी}}</ref>
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==रूढ़िवादी हिंदू समाज द्वारा विद्रोह करना==
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आनंदी गोपाल जोशी द्वारा अचानक लिए गए उनके इस फ़ैसले से उनके परिजन और आस-पड़ोस में विरोध की लहर उठ खड़ी हुई। उनकी काफी आलोचना भी की गयी। समाज को यह कतई गवारा नहीं था कि एक शादीशुदा हिंदू औरत विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करे क्योंकि उन्हें आशंका थी कि वहां जाकर दोनों पति-पत्नी अपना [[धर्म]] बदल कर [[ईसाई धर्म]] अपना लेंगे। जब यह बात डॉक्टर आनंदी राव को पता चली, तो उन्होंने सिरमपुर कॉलेज के हॉल में लोगों को जमा करके यह ऐलान किया कि मैं केवल डॉक्टरी की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए [[अमेरिका]] जा रही हूं। मेरा इरादा न तो धर्म बदलने का है न वहां नौकरी करने का। मेरा मकसद भारत में रह कर यहां के लोगों की सेवा करने का है, क्योंकि भारत में एक भी महिला डॉक्टर नहीं है, जिसके अभाव में असमय ही बहुत-सी महिलाओं और बच्चों की मौत हो जाती है। आनंदी गोपाल जोशी के भाषण का रूढ़िवादी लोगों पर व्यापक असर हुआ और पूरे देश से उनकी डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए मदद देने के लिए पेशकश की गई।<ref> {{cite web |url= http://pratibhaba-bhagwanbharose.blogspot.in/2010/03/blog-post_08.html|title=डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर|accessmonthday= 18 मार्च|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=pratibhaba-bhagwanbharose.blogspot.in|language= हिंदी}}</ref>
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==अमेरिका में उनके द्वारा किया गया संघर्ष==
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आनंदी गोपाल जोशी के इस वक्तव्य के प्रकाशित होने के बाद पूरे [[भारत]] ने उन्हें सहायता प्रदान की, यहां तक की [[वाइसराय]] ने भी उन्हें 200 रुपये की सहायता राशि भेजी। उन्होंने अपने सोने के सभी जेवरात बेच दिए और कुछ यूरोपियन महिलाओं के साथ [[कोलकाता]] से न्यूयार्क के लिए रवाना हो गईं। जहां [[जून]] [[1883]] में उनकी मुलाकात मसेज कारपेंटर से हुई। इसके बाद उन्होंने वीमेन्स कॉलेज ऑफ फिलाडेल्फिया के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए आवेदन किया और शीघ्र ही कॉलेज के डीन का पत्र उन्हें मिला जिसमें उनसे कालेज में प्रवेश लेने के लिए कहा गया था। अमेरिका आनंदी के लिए एक अजनबी शहर था। वहां की बहुत सारी बातें उन्हें समझ नहीं आती। उनके और अमरीकियों के रहन-सहन और खान-पान में बहुत अंतर था। लेकिन उनके और मिसेज कारपेंटर के बीच एक आत्मीय रिश्ता कायम हो गया था। कॉलेज के सुपरिंटेंडेट और सेक्रेट्री इस बात से बहुत प्रभावित थे कि एक लड़की सामाजिक विरोधों को झेलते हुए यहां इतनी दूर पढ़ने आयी है। उन्होंने तीन साल की उनकी पढ़ाई के लिए 600 डॉलर की स्कॉलरशिप मंजूर कर दी।
  
==प्रथम महिला डॉक्टर==
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लेकिन समस्याएं अभी खत्म नहीं हुई थी। उनके वस्त्र वहां की सर्दी के अनुकूल नहीं थे। नौ गजी महाराष्ट्रियन साड़ी पहनने पर उनकी कमर और हाथ खुले रहते थे। जबकि पश्चिमी पोशाकें सर्दी से बचाव के लिए ज्यादा उपयुक्त थीं। वैसे उनके पति ने उन्हें आश्वस्त किया था कि यदि वे मांसाहार करती है और पश्चिमी ढंग की पोशाक पहनती हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन वे इसके लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी। उन्होंने गीता का स्मरण किया जिसमें कहा गया है कि शरीर तो मात्र आत्मा का आवरण है जो अपवित्र नहीं हो सकता। उन्होंने सोचा कि अगर यह सत्य हैं तो मेरे पश्चिमी सभ्यता के वस्त्र पहनने से मेरी आत्मा कैसे अपवित्र हो सकती है? काफी सोचने-विचारने के बाद उन्होंने गुजराती ढंग से साड़ी पहनने का निश्चय किया और अपने पति को इस बात की सूचना भी दे दी। कॉलेज की तरफ से उनको रहने के लिए जो कमरा दिया गया था, उसका फायर प्लेस ठीक से काम नहीं करता था। लकड़ियां जलाते वक्त उससे लगातार धुँआ उठता रहता। उनके पास दो ही विकल्प थे या तो ठंड में रहो या धुँएं में। उन्होंने दूसरा कमरा तलाश करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी भारतीय हिंदू लड़की को जो डॉक्टर बनने की कोशिश कर रही थी, कमरा देने को तैयार नहीं था। लगातार डेढ़-दो साल तक उस कमरे में रहने के कारण उन्हें बुखार और खाँसी की शिकायत हो गई।
डॉक्टर आनंदी जोशी को पति राव द्वारा प्रेरित करने पर इन्होंने [[1880]] में रॉयल वर्ल्ड को एक पत्र लिखा, जिसमें इन्होंने मेडिसिन पढ़ने की इच्छा जताई। चुने जाने पर अमेरिकन मिशनरी द्वारा [[अमेरिका]] में आनंदी राव जोशी की मेडिकल की पढ़ाई शुरू हो गई। वहीं मिशनरी के एक सदस्य लॉर्ड ने उनके पति को अमेरिका में एक बेहतर नौकरी देने की पेशकश की और यह शर्त रखी कि वे दोनों [[ईसाई धर्म]] अपना लें, लेकिन गोपाल राव और आनंदी ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। मेडिसिन के पहले सत्र की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्हें दांतों के डॉक्टर की पढ़ाई के लिए चुन लिया गया, जबकि डॉक्टर आनंदी राव जोशी महिला डॉक्टर बनना चाहती थीं। उनके पति ने उन्हें समझाया और वह न्यूजर्सी के रोजैल में रहकर काम करने लगीं, लेकिन आनंदी के बार-बार बीमार रहने के कारण दंपति भारत लौट आया। वह बुखार, सिरदर्द, कमजोरी और बेहोशी की बीमारी से परेशान थीं। शायद कम उम्र में शादी और मां बनने के कारण उनकी तबियत खराब रहने लगी थी। यहां आकर भी उनकी बीमारी कम नहीं हुई। उनकी अमेरिकन मित्र थ्यूडिका कारपेंटर ने उनके लिए दवाइयां भी भेजी, लेकिन दवाई से उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। 1883 में गोपाल राव जोशी ने अपना तबादला सिरमपुर करा लिया और आनंदी राव को आगे की शिक्षा के लिए दोबारा अमेरिका भेजने का फैसला किया, लेकिन इसके लिए आनंदी राव तैयार नहीं हुर्इं। पति गोपाल राव ने उन्हें बहुत समझाया कि तुम उच्च शिक्षा प्राप्त करके भारत की महिलाओं के लिए एक उदाहरण बनो, ताकि महिलाएं तुम से प्रेरित होकर उच्च शिक्षा प्राप्त करें। उनके समझाने पर आनंदी गोपाल जोशी आगे की पढ़ाई के लिए तैयार हो गर्इं।
 
;रूढ़िवादी हिंदू समाज द्वारा विद्रोह करना
 
एक डॉक्टर परिवार ने आनंदी राव जोशी को सलाह दी कि Women’s Medical College of Pennsylvania में आवेदन करो। डॉक्टर दंपति के कहने पर आनंदी राव ने ऐसा ही किया और उन्हें वहां दाखिला मिल गया। डॉक्टर आनंदी राव जोशी एक बार फिर अमेरिका जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने की तैयारियों में जुट गईं, लेकिन रूढ़िवादी हिंदू समाज ने इसका विरोध शुरू कर दिया। उन्हें आशंका थी कि वहां जाकर दोनों पति-पत्नी अपना [[धर्म]] बदल कर [[ईसाई धर्म]] अपना लेंगे। जब यह बात डॉक्टर आनंदी राव को पता चली, तो उन्होंने सिरमपुर कॉलेज के हॉल में लोगों को जमा करके यह ऐलान किया कि मैं केवल डॉक्टरी की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका जा रही हूं। मेरा इरादा न तो धर्म बदलने का है न वहां नौकरी करने का। मेरा मकसद भारत में रह कर यहां के लोगों की सेवा करने का है, क्योंकि भारत में एक भी महिला डॉक्टर नहीं है, जिसके अभाव में असमय ही बहुत-सी महिलाओं और बच्चों की मौत हो जाती है। श्रीमति राव के भाषण का रूढ़िवादी लोगों पर व्यापक असर हुआ और पूरे देश से उनकी डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए मदद देने के लिए पेशकश की गई।
 
  
विक्टोरिया आॅफ़ इंडिया ने भी आनंदी राव को 200 रुपये की मदद दी। उस समय यह बहुत बड़ी रकम थी। डॉक्टर आनंदी राव जोशी ने [[कोलकाता]] से न्यूयॉर्क के लिए अपना सफर पानी के जहाज से शुरू किया। [[जून]] [[1883]] में आनंदी न्यूयॉर्क पहुंचीं, जहां उनका स्वागत उनकी दोस्त थ्यूडिका कारपेंटर ने किया। डॉक्टर आनंदी राव जोशी ने मेडिसिन के क्षेत्र में आगे की पढ़ाई आरंभ की। उस समय उनकी आयु केवल 19 वर्ष थी। उन्होंने पहले मेडिसिन में ग्रेजुएशन और फिर [[11 मार्च]], [[1886]] को अपना एमडी भी पूरा कर लिया। यह डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी के लिए नहीं, बल्कि [[भारत]] के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। जब उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया, तो क्वीन विक्टोरिया ने उन्हें बधाई संदेश भेजा था।
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==बनी देश की पहली महिला डॉक्टर==
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डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी के पति गोपालराव ने हर कदम पर इनका हौसला अफजाई किया। साल [[1883]] में आनंदी गोपाल ने अमेरिका (पेनसिल्वेनिया) के जमीं पर कदम रखा उस दौर में वे किसी भी विदेशी जमीं पर कदम रखने वाली वह पहली भारतीय हिंदू महिला थी। न्यू जार्नी में रहने वाली थियोडिशिया ने उनका पढ़ाई के दौरान सहयोग किया। उन्नीस साल की उम्र में साल 1886 में आनंदीबाई ने एमडी कर लिया। डिग्री लेने के बाद वह [[भारत]] लौट आई। जब उन्होंने यह डिग्री प्राप्त की, तब महारानी विक्टोरिया ने उन्हें बधाई-पत्र लिखा और भारत में उनका स्वागत एक नायिका के तरह किया गया।<ref>{{cite web |url=https://feminisminindia.com/2017/03/18/anandibai-joshi-hindi/|title=आनंदीबाई जोशी: देश की पहली महिला डॉक्टर|accessmonthday= 18 मार्च|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=feminisminindia.com|language= हिंदी}}</ref>
  
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
डॉक्टर आनंदी राव जोशी [[1886]] के अंत में देश से लौट आईं और अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल, प्रिंसलि स्टेट आॅफ़ कोल्हापुर में एक महिला डॉक्टर के रूप में चार्ज ले लिया, लेकिन वह अधिक समय तक लोगों की सेवा नहीं कर पार्इं। डॉक्टर आनंदी राव [[26 फ़रवरी]], [[1887]] में केवल 22 वर्ष की आयु में हमेशा के लिए इस संसार से विदा हो गर्इं।
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डॉक्टर आनंदी राव जोशी [[1886]] के अंत में भारत लौट आईं और अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल, प्रिंसलि स्टेट आॅफ़ कोल्हापुर में एक महिला डॉक्टर के रूप में चार्ज ले लिया। लेकिन कुछ ही दिनों बाद ही वह टीबी की शिकार हो गई| जिससे [[26 फ़रवरी]], [[1987]] को मात्र इक्कीस साल की उम्र में इनका निधन हो गया। इनके जीवन पर कैरोलिन विल्स ने साल [[1888]] में बायोग्राफी भी लिखी। इस बायोग्राफी पर दूरदर्शन चैनल ‘आनंदी गोपाल’ नाम से हिंदी टीवी सीरियल का प्रसारण किया गया जिसका निर्देशन कमलाकर सारंग ने किया था।<ref> {{cite web |url= http://bit.ly/2ngKm6Z|title=डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर|accessmonthday= 17 मार्च|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=tarzezindagi.com|language= हिंदी}}</ref>

12:39, 19 मार्च 2017 का अवतरण

कविता बघेल 8
आनंदी गोपाल जोशी
पूरा नाम आनंदी गोपाल जोशी
अन्य नाम यमुना
जन्म 31 मार्च, 1865
जन्म भूमि पुणे, महाराष्ट्र
मृत्यु 26 फ़रवरी, 1887
पति/पत्नी गोपाल विनायक
भाषा संस्कृत
विद्यालय वीमेन्स कॉलेज ऑफ फिलाडेल्फिया के मेडिकल कॉलेज
पुरस्कार-उपाधि डॉक्टर
प्रसिद्धि भारत की प्रथम महिला डॉक्टर
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जब आनंदी गोपाल जोशी ने अपने बेटे को जन्म दिया। लेकिन दुर्भाग्यवश उचित चिकित्सा के अभाव में दस दिनों में उसका देहांत हो गया। इस घटना से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा। कुछ दिनों बाद इन्होंने अपने आपको संभाला और खुद एक डॉक्टर बनने का निश्चय किया।

आनंदी गोपाल जोशी (अंग्रेज़ी:Anandi Gopal Joshi, जन्म: 31 मार्च, 1865, पुणे; मृत्यु: 26 फ़रवरी, 1887) पहली भारतीय महिला थीं, जिन्‍होंने डॉक्‍टरी की डिग्री ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल करना अपने-आप में एक मिसाल है। इनका विवाह नौ साल की अल्‍पायु में इनसे करीब 20 साल बड़े गोपालराव से हो गया था।

परिचय

डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म एक मराठी परिवार में 31 मार्च 1865 को कल्याण, थाणे, महाराष्ट्र में हुआ था। इनके माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा। इनका परिवार एक रूढ़िवादी परिवार था, जो केवल संस्कृत पढ़ना जानते थे। इनके पिता जमींदार थे। ब्रिटिश शासकों द्वारा महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा समाप्त किए जाने के बाद इनके के परिवार की स्थिति बेहद खराब हो गई थी। वे किसी तरह अपना गुजर बसर कर रहे थे। ऐसे ही परिवार में जन्मी आनंदी गोपाल उर्फ यमुना की शादी नौ वर्ष की उम्र में ही उनसे 20 वर्ष बड़े एक विधुर से कर दी गई थी। हिंदू समाज के रिवाज के अनुसार शादी के बाद इनका नाम बदल कर आनंदी रख दिया गया और डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी यमुना से आनंदी बन गर्इं।[1]

डॉक्टर बनने का संकल्प

आनंदी गोपाल जोशी उस मात्र चौदह साल की थी, जब उन्होंने अपने बेटे को जन्म दिया। लेकिन दुर्भाग्यवश उचित चिकित्सा के अभाव में दस दिनों में उसका देहांत हो गया। इस घटना से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा। वह भीतर-ही-भीतर टूट-सी गई। उनके पति गोपल राव एक प्रगतिशील विचारक थे और महिला-शिक्षा का समर्थन भी करते थे। आनंदी गोपाल जोशी ने कुछ दिनों बाद अपने आपको संभाला और खुद एक डॉक्टर बनने का निश्चय लिया। वह चिकित्सा के अभाव में असमय होने वाली मौतों को रोकने का प्रयास करना चाहती थी चूँकि उस समय भारत में ऐलोपैथिक डॉक्टरी की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए उन्हें पढ़ाई करने के लिए विदेश जाना पड़ता था।[2]

रूढ़िवादी हिंदू समाज द्वारा विद्रोह करना

आनंदी गोपाल जोशी द्वारा अचानक लिए गए उनके इस फ़ैसले से उनके परिजन और आस-पड़ोस में विरोध की लहर उठ खड़ी हुई। उनकी काफी आलोचना भी की गयी। समाज को यह कतई गवारा नहीं था कि एक शादीशुदा हिंदू औरत विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करे क्योंकि उन्हें आशंका थी कि वहां जाकर दोनों पति-पत्नी अपना धर्म बदल कर ईसाई धर्म अपना लेंगे। जब यह बात डॉक्टर आनंदी राव को पता चली, तो उन्होंने सिरमपुर कॉलेज के हॉल में लोगों को जमा करके यह ऐलान किया कि मैं केवल डॉक्टरी की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका जा रही हूं। मेरा इरादा न तो धर्म बदलने का है न वहां नौकरी करने का। मेरा मकसद भारत में रह कर यहां के लोगों की सेवा करने का है, क्योंकि भारत में एक भी महिला डॉक्टर नहीं है, जिसके अभाव में असमय ही बहुत-सी महिलाओं और बच्चों की मौत हो जाती है। आनंदी गोपाल जोशी के भाषण का रूढ़िवादी लोगों पर व्यापक असर हुआ और पूरे देश से उनकी डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए मदद देने के लिए पेशकश की गई।[3]

अमेरिका में उनके द्वारा किया गया संघर्ष

आनंदी गोपाल जोशी के इस वक्तव्य के प्रकाशित होने के बाद पूरे भारत ने उन्हें सहायता प्रदान की, यहां तक की वाइसराय ने भी उन्हें 200 रुपये की सहायता राशि भेजी। उन्होंने अपने सोने के सभी जेवरात बेच दिए और कुछ यूरोपियन महिलाओं के साथ कोलकाता से न्यूयार्क के लिए रवाना हो गईं। जहां जून 1883 में उनकी मुलाकात मसेज कारपेंटर से हुई। इसके बाद उन्होंने वीमेन्स कॉलेज ऑफ फिलाडेल्फिया के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए आवेदन किया और शीघ्र ही कॉलेज के डीन का पत्र उन्हें मिला जिसमें उनसे कालेज में प्रवेश लेने के लिए कहा गया था। अमेरिका आनंदी के लिए एक अजनबी शहर था। वहां की बहुत सारी बातें उन्हें समझ नहीं आती। उनके और अमरीकियों के रहन-सहन और खान-पान में बहुत अंतर था। लेकिन उनके और मिसेज कारपेंटर के बीच एक आत्मीय रिश्ता कायम हो गया था। कॉलेज के सुपरिंटेंडेट और सेक्रेट्री इस बात से बहुत प्रभावित थे कि एक लड़की सामाजिक विरोधों को झेलते हुए यहां इतनी दूर पढ़ने आयी है। उन्होंने तीन साल की उनकी पढ़ाई के लिए 600 डॉलर की स्कॉलरशिप मंजूर कर दी।

लेकिन समस्याएं अभी खत्म नहीं हुई थी। उनके वस्त्र वहां की सर्दी के अनुकूल नहीं थे। नौ गजी महाराष्ट्रियन साड़ी पहनने पर उनकी कमर और हाथ खुले रहते थे। जबकि पश्चिमी पोशाकें सर्दी से बचाव के लिए ज्यादा उपयुक्त थीं। वैसे उनके पति ने उन्हें आश्वस्त किया था कि यदि वे मांसाहार करती है और पश्चिमी ढंग की पोशाक पहनती हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन वे इसके लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी। उन्होंने गीता का स्मरण किया जिसमें कहा गया है कि शरीर तो मात्र आत्मा का आवरण है जो अपवित्र नहीं हो सकता। उन्होंने सोचा कि अगर यह सत्य हैं तो मेरे पश्चिमी सभ्यता के वस्त्र पहनने से मेरी आत्मा कैसे अपवित्र हो सकती है? काफी सोचने-विचारने के बाद उन्होंने गुजराती ढंग से साड़ी पहनने का निश्चय किया और अपने पति को इस बात की सूचना भी दे दी। कॉलेज की तरफ से उनको रहने के लिए जो कमरा दिया गया था, उसका फायर प्लेस ठीक से काम नहीं करता था। लकड़ियां जलाते वक्त उससे लगातार धुँआ उठता रहता। उनके पास दो ही विकल्प थे या तो ठंड में रहो या धुँएं में। उन्होंने दूसरा कमरा तलाश करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी भारतीय हिंदू लड़की को जो डॉक्टर बनने की कोशिश कर रही थी, कमरा देने को तैयार नहीं था। लगातार डेढ़-दो साल तक उस कमरे में रहने के कारण उन्हें बुखार और खाँसी की शिकायत हो गई।

बनी देश की पहली महिला डॉक्टर

डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी के पति गोपालराव ने हर कदम पर इनका हौसला अफजाई किया। साल 1883 में आनंदी गोपाल ने अमेरिका (पेनसिल्वेनिया) के जमीं पर कदम रखा उस दौर में वे किसी भी विदेशी जमीं पर कदम रखने वाली वह पहली भारतीय हिंदू महिला थी। न्यू जार्नी में रहने वाली थियोडिशिया ने उनका पढ़ाई के दौरान सहयोग किया। उन्नीस साल की उम्र में साल 1886 में आनंदीबाई ने एमडी कर लिया। डिग्री लेने के बाद वह भारत लौट आई। जब उन्होंने यह डिग्री प्राप्त की, तब महारानी विक्टोरिया ने उन्हें बधाई-पत्र लिखा और भारत में उनका स्वागत एक नायिका के तरह किया गया।[4]

मृत्यु

डॉक्टर आनंदी राव जोशी 1886 के अंत में भारत लौट आईं और अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल, प्रिंसलि स्टेट आॅफ़ कोल्हापुर में एक महिला डॉक्टर के रूप में चार्ज ले लिया। लेकिन कुछ ही दिनों बाद ही वह टीबी की शिकार हो गई| जिससे 26 फ़रवरी, 1987 को मात्र इक्कीस साल की उम्र में इनका निधन हो गया। इनके जीवन पर कैरोलिन विल्स ने साल 1888 में बायोग्राफी भी लिखी। इस बायोग्राफी पर दूरदर्शन चैनल ‘आनंदी गोपाल’ नाम से हिंदी टीवी सीरियल का प्रसारण किया गया जिसका निर्देशन कमलाकर सारंग ने किया था।[5]

  1. डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर (हिंदी) tarzezindagi.com। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2017।
  2. आनंदीबाई जोशी: देश की पहली महिला डॉक्टर (हिंदी) feminisminindia.com। अभिगमन तिथि: 18 मार्च, 2017।
  3. डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर (हिंदी) pratibhaba-bhagwanbharose.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 18 मार्च, 2017।
  4. आनंदीबाई जोशी: देश की पहली महिला डॉक्टर (हिंदी) feminisminindia.com। अभिगमन तिथि: 18 मार्च, 2017।
  5. डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर (हिंदी) tarzezindagi.com। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2017।