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-अलवर शैली | -अलवर शैली | ||
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− | ||राजा उम्मेद सिंह ने | + | ||राजा उम्मेद सिंह ने कोटा चित्रकला शैली को मौलिकता प्रदान की। राजा उम्मेद सिंह (1771-1820 ई.), के काल में कोटा शैली की बड़ी उन्नति हुई। राजा उम्मेद सिंह के शिकार के शौक के चलते चित्रकारों ने शिकार के चित्रण को काफी महत्त्व दिया। |
− | {' | + | {'[[आइना-ए-अकबरी]]' पुस्तक के लेखक कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-6 |
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− | -केशव | + | -[[केशव]] |
-जगन्नाथ | -जगन्नाथ | ||
− | -दसवन्त | + | -[[दसवन्त]] |
+[[अबुल फ़ज़ल]] | +[[अबुल फ़ज़ल]] | ||
− | ||'आइने अकबरी' अकबर के दरबारी अबुल | + | ||'आइने अकबरी' [[अकबर]] के दरबारी [[अबुल फ़ज़ल]] द्वारा रचित (चित्रित) '[[अकबरनामा]]' का ही एक भाग है। अकबरनामा तीन भागों में है जिसमें से तीसरे भाग को '[[आइना-ए-अकबरी]]' कहते हैं। आइने अकबरी के भी अपने आप में पांच भाग हैं। [[मुग़ल साम्राज्य]] का भौगोलिक सर्वेक्षण तथा सभी प्रांतों विशेष तौर पर [[बंगाल]] के बारे में आंकड़ों पर आधारित विवरण प्रदान करता है। इस पुस्तक में शासन प्रणाली के नियमों का वर्णन किया गया है तथा इसमें अकबर द्वारा सभी सरकारी विभागों पर नियंत्रण के बारे में जानकरी मिलती है। |
{पहाड़ी पेंटिंगें किस समय विकसित थीं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-6 | {पहाड़ी पेंटिंगें किस समय विकसित थीं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-6 | ||
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{राजा रवि वर्मा की मृत्यु किस वर्ष हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-6 | {राजा रवि वर्मा की मृत्यु किस वर्ष हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-6 | ||
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− | +1906 | + | +[[1906]] |
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− | ||राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए | + | ||राजा रवि वर्मा का जन्म [[29 अप्रैल]], [[1848]] को [[केरल]] के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: [[रामायण]] एवं [[महाभारत]] महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु [[2 अक्टूबर]], [[1906]] को हुई थी। |
− | {प्रथम चरण की बाइजेन्टाइन-कला | + | {प्रथम चरण की बाइजेन्टाइन-कला कहाँ पाई जाती है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-7 |
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− | +कांस्टेन्टीनोपल | + | +कांस्टेन्टीनोपल |
− | -मास्को | + | -मास्को |
− | -रैवेन्ना | + | -रैवेन्ना |
− | -इस्ताम्बुल | + | -इस्ताम्बुल |
− | ||प्रथम चरण की बाइजेन्टाइन-कला कान्स्टेन्टीनेपल में पाई जाती है। बाइजेंटिम नामक नगर को ही सम्राट कांस्टेन्टाइन ने जीतकर इसका नाम कान्स्टेन्टीनोपल (कुस्तुंतुनिया) रख दिया। प्रथम चरण की बाइजेन्टाइन कला में रोम, रैवेन्न तथा सैलोनिका प्रमुख थे। | + | ||प्रथम चरण की बाइजेन्टाइन-कला कान्स्टेन्टीनेपल में पाई जाती है। बाइजेंटिम नामक नगर को ही सम्राट कांस्टेन्टाइन ने जीतकर इसका नाम कान्स्टेन्टीनोपल ([[कुस्तुंतुनिया]]) रख दिया। प्रथम चरण की बाइजेन्टाइन कला में [[रोम]], रैवेन्न तथा सैलोनिका प्रमुख थे। |
− | {यूरोप की कला के पुनर्जागरण काल का प्रमुख कलाकार कौन था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-6 | + | {[[यूरोप]] की [[कला]] के पुनर्जागरण काल का प्रमुख कलाकार कौन था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-6 |
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-मैसेचियो | -मैसेचियो | ||
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-पाओलो उचेल्लो | -पाओलो उचेल्लो | ||
-टिटियन | -टिटियन | ||
− | ||पुनर्जागरण काल के प्रमुख कलाकारों में दिए गए विकल्पों में मैसेचियो तथा पाओलो उचेल्लो दोनों शामिल हैं। उ.प्र. माध्यमिक शिक्षा चयन | + | ||पुनर्जागरण काल के प्रमुख कलाकारों में दिए गए विकल्पों में मैसेचियो तथा पाओलो उचेल्लो दोनों शामिल हैं। उ.प्र. माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने अपने प्रारंभिक उत्तर कुंजी में इसका उत्तर (b) माना था किंतु पतिवर्तित उत्तर-कुंजी में इसे गलत बताया है। चूंकि विकल्प में दो उत्तर सही हैं। अत: दोनों उत्तर सही हैं। |
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-कागज पर बने चित्र | -कागज पर बने चित्र | ||
-वस्त्र पर बने चित्र | -वस्त्र पर बने चित्र | ||
− | ||प्रागैतिहासिक चित्र गुहा चित्र है। पाषाण युग के मनुष्यों ने अपने चारो ओर के वातावरण की स्मृति को बनाए रखने के लिए तथा अपनी विजय का इतिहास व्यक्त करने की भावना के वशीभूत होकर इन चित्राकृतियों का निर्माण किया। | + | ||प्रागैतिहासिक चित्र गुहा चित्र है। [[पाषाण युग]] के मनुष्यों ने अपने चारो ओर के वातावरण की स्मृति को बनाए रखने के लिए तथा अपनी विजय का इतिहास व्यक्त करने की भावना के वशीभूत होकर इन चित्राकृतियों का निर्माण किया। |
− | {प्रागैतिहासिक काल के चित्र कहां स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-7 | + | {[[प्रागैतिहासिक काल]] के चित्र कहां स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-7 |
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+अल्टामीरा | +अल्टामीरा | ||
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-हॉलैंड | -हॉलैंड | ||
-रोमीरा | -रोमीरा | ||
− | ||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफ़ा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफ़ा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफ़ाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफ़ा की छत कहीं-कहीं 6-7 | + | ||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफ़ा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफ़ा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफ़ाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफ़ा की छत कहीं-कहीं 6-7 फ़ीट ऊंची है, अत: छत पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी। |
− | {जयपुरी | + | {जयपुरी फ्रेस्को चित्रण निम्न में से वर्तमान में किस केंद्र पर सिखाया जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-2 |
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− | + | + | +बनस्थली |
− | -मद्रास | + | -[[मद्रास]] |
− | -बंबई | + | -[[बंबई]] |
− | -वाराणसी | + | -[[वाराणसी]] |
||जयपुरी फ्रेस्को कला चित्रण वर्तमान में वनस्थली केंद्र पर सिखाया जाता है। वनस्थली विश्वविद्यालय महिलाओं की शिक्षा के लिए एक बेहतरीन विश्वविद्यालय है। | ||जयपुरी फ्रेस्को कला चित्रण वर्तमान में वनस्थली केंद्र पर सिखाया जाता है। वनस्थली विश्वविद्यालय महिलाओं की शिक्षा के लिए एक बेहतरीन विश्वविद्यालय है। | ||
− | {गोथिक कला के विकास में प्रमुख कारण कौन-से थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-11 | + | {[[गोथिक कला]] के विकास में प्रमुख कारण कौन-से थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-11 |
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-नगरीकरण, व्यापारिक विकास एवं शक्ति-संपन्न राजसत्ता | -नगरीकरण, व्यापारिक विकास एवं शक्ति-संपन्न राजसत्ता | ||
− | -जनमानस की आकांक्षाएं, नगरीकरण, धर्म गुरुओं | + | -जनमानस की आकांक्षाएं, नगरीकरण, धर्म गुरुओं का प्रभाव |
− | +कलाकारों के समूह, धर्म, नवीन चेतना | + | +कलाकारों के समूह, [[धर्म]], नवीन चेतना |
-नवीन कला धाराएं, नवीन विचार, धर्म | -नवीन कला धाराएं, नवीन विचार, धर्म | ||
− | ||गोथिक कला के विकास में प्रमुख कारण कलाकारों के समूह, धर्म तथा नवीन चेतना था। | + | ||[[गोथिक कला]] के विकास में प्रमुख कारण कलाकारों के समूह, [[धर्म]] तथा नवीन चेतना था। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) गोथिक शैली का आरंभ 12 वीं शती में [[फ़्राँस]] में हुआ। (2) सामाज के प्रत्येक व्यक्ति ने [[गोथिक कला]] में सहयोग दिया तथा सुंदर से सुंदर शैली के चर्चों (पूजा घरों) का निर्माण हुआ। |
− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
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− | {महान कला प्रेमी राजा | + | {महान कला प्रेमी राजा उम्मेद सिंह (1771-1820 ई.) के समय में किस शैली में कार्य हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-7 |
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− | -बूंदी | + | -[[बूंदी चित्रकला|बूंदी शैली]] |
− | +कोटा | + | +कोटा शैली |
− | -कांगड़ा | + | -[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] |
− | - | + | -[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] |
− | ||राजा उम्मेद सिंह ने | + | ||राजा उम्मेद सिंह ने कोटा चित्रकला शैली को मौलिकता प्रदान की। राजा उम्मेद सिंह (1771-1820 ई.), के काल में कोटा शैली की बड़ी उन्नति हुई। राजा उम्मेद सिंह के शिकार के शौक के चलते चित्रकारों ने शिकार के चित्रण को काफी महत्त्व दिया। |
− | {' | + | {'[[आइना-ए-अकबरी]]' का मुख्य चित्रकार कौन था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-7 |
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-केशू दास | -केशू दास | ||
− | +अबुल | + | +[[अबुल फ़ज़ल]] |
-समशाद | -समशाद | ||
-मोलाराम | -मोलाराम | ||
− | ||'आइने अकबरी' अकबर के दरबारी अबुल | + | ||'आइने अकबरी' [[अकबर]] के दरबारी [[अबुल फ़ज़ल]] द्वारा रचित (चित्रित) '[[अकबरनामा]]' का ही एक भाग है। अकबरनामा तीन भागों में है जिसमें से तीसरे भाग को '[[आइना-ए-अकबरी]]' कहते हैं। आइने अकबरी के भी अपने आप में पांच भाग हैं। [[मुग़ल साम्राज्य]] का भौगोलिक सर्वेक्षण तथा सभी प्रांतों विशेष तौर पर [[बंगाल]] के बारे में आंकड़ों पर आधारित विवरण प्रदान करता है। इस पुस्तक में शासन प्रणाली के नियमों का वर्णन किया गया है तथा इसमें अकबर द्वारा सभी सरकारी विभागों पर नियंत्रण के बारे में जानकरी मिलती है। |
− | {पहाड़ी चित्रकला | + | {पहाड़ी चित्रकला मुख्यत: किस क्षेत्र की है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-7 |
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− | -राजस्थान की | + | -[[राजस्थान]] की पहाड़ियाँ |
− | -कश्मीर की | + | -[[कश्मीर]] की पहाड़ियाँ |
− | +पंजाब की | + | +[[पंजाब]] की पहाड़ियाँ |
− | -उत्तर प्रदेश की | + | -[[उत्तर प्रदेश]] की पहड़ियाँ |
− | ||पहाड़ी (कांगड़ा) चित्रकला को डॉ. आर. ए. अग्रवाल ने मुख्यत: चार क्षेत्रों में विभक्त किया है- (1) कश्मीर राज्य (सिंधु तथा चिनाव | + | ||पहाड़ी ([[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा]]) चित्रकला को डॉ. आर. ए. अग्रवाल ने मुख्यत: चार क्षेत्रों में विभक्त किया है- (1) [[कश्मीर|कश्मीर राज्य]] ([[सिंधु नदी|सिंधु]] तथा [[चिनाव नदी|चिनाव]] के बीच का क्षेत्र), (2) [[जम्मू]] (चिनाव एवं [[रावी नदी|रावी]] के मध्य के क्षेत्र), (3) जाति (रावी एवं [[सतलुज नदी|सतलुज]] के मध्य का क्षेत्र)-इसी में कांगड़ा, गुलेर, चम्बा, मंडी, नूरपुर व कुल्लू रियासतें थीं, (4) विलासपुर, टिहरी व [[गढ़वाल|गढ़वाल राज्य]] (सतलज के दक्षिण-पूर्व तथा [[गंगा]]-[[जमुना]] के मध्य)। |
− | {राजा रवि वर्मा जाने जाते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-7 | + | {राजा रवि वर्मा किस लिए जाने जाते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-7 |
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− | -वॉश पेंटिंग | + | -वॉश पेंटिंग |
− | -टेम्परा पेंटिंग | + | -टेम्परा पेंटिंग |
− | -जल रंग पेंटिंग | + | -जल रंग पेंटिंग |
− | +तैल रंग पेंटिंग | + | +तैल रंग पेंटिंग |
− | ||राजा रवि वर्मा तैल रंग की पेंटिंग के लिए जाने जाते थे। इन्होंने भारतीय जीवन और परंपरा को इस नई कला के द्वारा प्रतिष्ठा दिलाई। इस प्रकार तैल रंगों का आधुनिक चित्रकला में प्रयोग करने का श्रेय सर्वप्रथम राजा रवि वर्मा को जाता है। | + | ||राजा रवि वर्मा तैल रंग की पेंटिंग के लिए जाने जाते थे। इन्होंने भारतीय जीवन और परंपरा को इस नई [[कला]] के द्वारा प्रतिष्ठा दिलाई। इस प्रकार तैल रंगों का आधुनिक चित्रकला में प्रयोग करने का श्रेय सर्वप्रथम राजा रवि वर्मा को जाता है। |
{सेंट बसील का गिर्जा कहां है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-8 | {सेंट बसील का गिर्जा कहां है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-8 | ||
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− | -रोम | + | -[[रोम]] |
− | +मॉस्को | + | +मॉस्को |
− | -कांस्टेन्टीनोपल | + | -कांस्टेन्टीनोपल |
− | -वियना | + | -वियना |
− | ||सेंट बसील का गिर्जा रेड स्क्वायर, | + | ||सेंट बसील का गिर्जा रेड स्क्वायर, मॉस्को ([[रूस]]) में स्थित है। |
− | { | + | {यूरोपीय-चित्रकला में नवशास्त्रीयतावाद की प्रकृति को किसने बढ़ावा दिया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-114,प्रश्न-1 |
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− | + | -विलियम हंट | |
− | - | + | -टर्नर |
− | + | +डेविड | |
− | - | + | -फ्रांस हाल्स |
− | || | + | ||जैक्स लुईस डेविड (Jacques Louis David, 1748-1825) नव-शास्त्रीयता-वादी (Neoclassical) शैली का अपने युग का श्रेष्ठ कलाकार था। |
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-पक्षी | -पक्षी | ||
+पशु-मानव-पक्षी | +पशु-मानव-पक्षी | ||
− | ||प्रागैतिहासिक काल के चित्रों का विषय आखेट, युद्ध करते हुए तथा विजय के अवसर पर नृत्य करते हुए चित्रण करना ही तत्कालीन मानव का मुख्य रुचिकर विषय रहा है। स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी आदि के चित्र भी आदियुगीन मानव की | + | ||प्रागैतिहासिक काल के चित्रों का विषय आखेट, युद्ध करते हुए तथा विजय के अवसर पर नृत्य करते हुए चित्रण करना ही तत्कालीन मानव का मुख्य रुचिकर विषय रहा है। स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी आदि के चित्र भी आदियुगीन मानव की विषय वस्तु रहे हैं। इस काल में जादू-टोने के रूप में अमूर्त भावन को भी विकसित किया गया। |
{स्पेन की किस गुफ़ा में अंगुलियों से बनाई गई रेखाएं हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-8 | {स्पेन की किस गुफ़ा में अंगुलियों से बनाई गई रेखाएं हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-8 | ||
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+अल्टामीरा | +अल्टामीरा | ||
-ल कम्बारेली | -ल कम्बारेली | ||
− | ||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफ़ा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफ़ा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफ़ाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफ़ा की छत कहीं-कहीं 6-7 | + | ||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफ़ा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफ़ा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफ़ाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफ़ा की छत कहीं-कहीं 6-7 फ़ीट ऊंची है, अत: छत पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी। |
− | { | + | {जयपुरी फ्रेस्को में निहित दीप्त रूप (चमचमाती सतह) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प सही है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-3 |
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-क्योंकि ये चमकदार पत्थर की सरह पर बनाए जाते हैं। | -क्योंकि ये चमकदार पत्थर की सरह पर बनाए जाते हैं। | ||
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{किस काल में आंतरिक एवं ब्राह्म सज्जा एक साथ करने का विचार किया गया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-13 | {किस काल में आंतरिक एवं ब्राह्म सज्जा एक साथ करने का विचार किया गया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-13 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | -आधुनिक काल | + | -[[आधुनिक काल]] |
-रोमनस्क काल | -रोमनस्क काल | ||
-बाइजेन्टाइन काल | -बाइजेन्टाइन काल | ||
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||गोथिक काल में आंतरिक एवं बाह्य सज्जा एक साथ करने का विचार किया गया। इस काल के भवन प्राय: लंबे-पतले खंभों और नुकीले मेहराबों से बने होते थे। खंभों पर मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। | ||गोथिक काल में आंतरिक एवं बाह्य सज्जा एक साथ करने का विचार किया गया। इस काल के भवन प्राय: लंबे-पतले खंभों और नुकीले मेहराबों से बने होते थे। खंभों पर मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। | ||
− | {'कोटा शैली' के उत्कृष्ट भित्ति-चित्र देखने को मिलते हैं | + | {'कोटा शैली' के उत्कृष्ट भित्ति-चित्र कहाँ देखने को मिलते हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-48,प्रश्न-8 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | +झाला जी की हवेली | + | +झाला जी की हवेली |
− | - | + | -[[बगोर की हवेली]] |
− | -सिटी पैलेस | + | -[[सिटी पैलेस जयपुर|सिटी पैलेस]] |
− | -माधव निवास | + | -माधव निवास |
− | ||'कोटा शैली' के उत्कृष्ट भित्ति-चित्र' झाला जी की हवेली' में देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त कोटा शैली के भित्ति-चित्र 'राजमहल' तथा 'देवता जी' की हवेली में भी देखने को मिलते हैं। | + | ||'कोटा शैली' के उत्कृष्ट भित्ति-चित्र' झाला जी की हवेली' में देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त कोटा शैली के भित्ति-चित्र 'राजमहल' तथा 'देवता जी' की हवेली में भी देखने को मिलते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) [[राजस्थान चित्रकला|राजस्थान शैली]] के लघु चित्र कागज की मोटी तह (वसली) पर बनाए जाते थे। (2) कोटा शैली के पुष्टि मार्ग कथा प्रसंगों को अधिकांश 'रघुनाथ' तथा गोविंद नामक कलाकारों ने चिन्हित किया। |
− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
− | |||
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− | {अकबर ने किस राज्य पर अपनी विजय के स्मारक के रूप में बुलंद | + | {[[अकबर]] ने किस राज्य पर अपनी विजय के स्मारक के रूप में [[बुलंद दरवाज़ा]] बनवाया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-57,प्रश्न-8 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | +गुजरात | + | +[[गुजरात]] |
− | -बंगाल | + | -[[बंगाल]] |
− | -उड़ीसा | + | -[[उड़ीसा]] |
− | -दिल्ली | + | -[[दिल्ली]] |
− | ||अकबर ने गुजरात विजय (1572-1573 ई.) के उपरांत 1601 ई. में फतेहपुर सीकरी में 'बुलंद | + | ||[[अकबर]] ने गुजरात विजय (1572-1573 ई.) के उपरांत 1601 ई. में [[फतेहपुर सीकरी]] में '[[बुलंद दरवाज़ा]]' बनवाया था। इसकी ऊंचाई 134 फ़ीट है। यह 42 फ़्रीट ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। यह फतेहपुर सीकरी की [[जामा मस्जिद आगरा]] की दक्षिण दीवार में निर्मित है तथा [[भारत]] का सबसे ऊंचा और वैभवशाली प्रवेश द्वारा भी है। |
{प्रकृति चित्रण को किस शैली के चित्रों में महत्त्व मिला? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-72,प्रश्न-8 | {प्रकृति चित्रण को किस शैली के चित्रों में महत्त्व मिला? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-72,प्रश्न-8 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | +पहाड़ी | + | +पहाड़ी शैली |
− | -राजस्थानी | + | -[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]] |
− | - | + | -[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] |
− | -आधुनिक | + | -आधुनिक शैली |
− | ||प्रकृति चित्रण को पहाड़ी चित्र शैली में अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया गया। पहाड़ी शैली के अंतर्गत 'बारहमासा' का अंकन किया गया है, जिसमें चैत्र माह से लेकर फाल्गुन माह तक की प्रकृति की शोभा को केंद्रित करके चित्रण किया गया है। | + | ||प्रकृति चित्रण को पहाड़ी चित्र शैली में अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया गया। पहाड़ी शैली के अंतर्गत 'बारहमासा' का अंकन किया गया है, जिसमें [[चैत्र|चैत्र माह]] से लेकर [[फाल्गुन|फाल्गुन माह]] तक की प्रकृति की शोभा को केंद्रित करके चित्रण किया गया है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) पहाड़ी शैली में [[बसंत ऋतु|बसंत माह]] की शोभा का भी चित्रण प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त पर्वतों, नदी, काले बादल, नीले-आकाश, वन-उपवन, उद्यान तथा वाटिकाओं का मनोहारी अंकन प्राप्त होता है। |
− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
− | |||
− | {'तैल चित्रण विधि' से चित्र बनाने वाले विख्यात भारतीय चित्रकार थे | + | {'तैल चित्रण विधि' से चित्र बनाने वाले विख्यात भारतीय चित्रकार कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-8 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | -नंदलाल बोस | + | -[[नंदलाल बोस]] |
+राजा रवि वर्मा | +राजा रवि वर्मा | ||
− | -अमृता शेरगिल | + | -[[अमृता शेरगिल]] |
-अबरीन्द्रनाथ टैगोर | -अबरीन्द्रनाथ टैगोर | ||
− | ||राजा रवि वर्मा तैल रंग की पेंटिंग के लिए जाने जाते थे। इन्होंने भारतीय जीवन और परंपरा को इस नई कला के द्वारा प्रतिष्ठा दिलाई। इस प्रकार तैल रंगों का आधुनिक चित्रकला में प्रयोग करने का श्रेय सर्वप्रथम राजा रवि वर्मा को जाता है। | + | ||राजा रवि वर्मा तैल रंग की पेंटिंग के लिए जाने जाते थे। इन्होंने भारतीय जीवन और परंपरा को इस नई [[कला]] के द्वारा प्रतिष्ठा दिलाई। इस प्रकार तैल रंगों का आधुनिक चित्रकला में प्रयोग करने का श्रेय सर्वप्रथम राजा रवि वर्मा को जाता है। |
− | {बाइजेंटाइन-कला की श्रेष्ठ दूसरी बड़ी इमारत है | + | {बाइजेंटाइन-कला की श्रेष्ठ दूसरी बड़ी इमारत कौन-सी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-9 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
-डेन का गिर्जा | -डेन का गिर्जा | ||
− | -रोम का सेंट मारिया मेजिओरी गिर्जा | + | -[[रोम]] का सेंट मारिया मेजिओरी गिर्जा |
-पूर्व यूरोप के केटाकौम्ब | -पूर्व यूरोप के केटाकौम्ब | ||
+हेगिया सोफिया गिर्जा | +हेगिया सोफिया गिर्जा | ||
− | ||बाइजेन्टाइन-कला की अन्य प्रसिद्ध इमारतें निम्न हैं- गेला प्लेसीडिया सान विताले, सांतासोफिया, | + | ||बाइजेन्टाइन-कला की अन्य प्रसिद्ध इमारतें निम्न हैं- गेला प्लेसीडिया सान विताले, सांतासोफिया, सेटमार्क, टोरसेल्लो तथा चर्च ऑफ़ द होली एपोसिल्स आदि। जस्टीनियन ने बहुत सारी इमारतें का निर्माण किया, लेकिन हेगिया सोफिया गिर्जाघर का कार्य उसके महानतम् कार्यों (कलाओं) में से एक है। इस चर्च में मणीकुट्टम शैली से निर्माण कार्य किया गया है बाइजेन्टाइन कला की पहली श्रेष्ठ इमारत रैवेन्ना का सान विताले नामक चर्च है। |
− | {उच्च पुनर्जागरण काल के चित्रकार का नाम | + | {उच्च पुनर्जागरण काल के चित्रकार का नाम क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-105,प्रश्न-8 |
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− | - | + | -जिओत्तो |
-फ्रा एंजेलिको | -फ्रा एंजेलिको | ||
-बोत्तिचेल्ली | -बोत्तिचेल्ली | ||
+राफेल | +राफेल | ||
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{प्रागैतिहासि काल के चित्रों में सबसे अधिक चित्र किस प्रकार के मिले हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-6,प्रश्न-9 | {प्रागैतिहासि काल के चित्रों में सबसे अधिक चित्र किस प्रकार के मिले हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-6,प्रश्न-9 | ||
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− | - | + | -पशु |
− | +आखेट | + | +आखेट |
− | - | + | -मनुष्य |
− | - | + | -औजार |
||प्रागैतिहासिक काल के चित्रों में सबसे अधिक आखेट के चित्र मिले हैं। आदिम मनुष्य ने सांभर, महिष, गैंडा, हाथी, बारहसिंगा, घोड़ा, खरगोश, सुअर जैसे पशुओं का स्वाभाविकता के साथ अंकन किया है। यह पशु उसने अपने आखेट में देखे थे तथा उसने पन पशुओं की गति और शक्ति पर विजय प्राप्त की थी, इस कारण उसके प्रमुख चित्रण विषय के रूप में पशु जीवन का स्वभाविक था। | ||प्रागैतिहासिक काल के चित्रों में सबसे अधिक आखेट के चित्र मिले हैं। आदिम मनुष्य ने सांभर, महिष, गैंडा, हाथी, बारहसिंगा, घोड़ा, खरगोश, सुअर जैसे पशुओं का स्वाभाविकता के साथ अंकन किया है। यह पशु उसने अपने आखेट में देखे थे तथा उसने पन पशुओं की गति और शक्ति पर विजय प्राप्त की थी, इस कारण उसके प्रमुख चित्रण विषय के रूप में पशु जीवन का स्वभाविक था। | ||
11:56, 11 अप्रैल 2017 का अवतरण
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