"प्रयोग:कविता बघेल 3" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कविता बघेल (चर्चा | योगदान) |
कविता बघेल (चर्चा | योगदान) |
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
+ | {निम्नलिखित कलाकारों में स्वच्छंदतावाद से किसका संबंध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-114,प्रश्न-7 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -पिकासो | ||
+ | -बेरनिनी | ||
+ | -वरमीयर | ||
+ | +देलाका | ||
+ | ||'स्वच्छंदतावाद' (Romanticism) से देलाक्रा का संबंध है। स्वच्छंदतावाद की शुरुआत यद्यपि जरिको (थियोडोर जेरिकॉल्ट) ने की परंतु उसमें अधिक संवेदना और चेतना डालकर उसे सामर्थ्यशाली बनाने का काम ओजेन देलाफ्रा ने किया। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .देलाक्रा ने ऑटोमॅन सेना द्वारा किओस में बरो लोगों पर हमले की भीषण घटना को विषय बनाते हुए अपना बहुविख्यात चित्र 'किओस में नरसंहार' (The Massacre of chios) बनाया। | ||
+ | .देलाक्रा के विषय-चयन के साहस, स्फोटक रंगांकन और वस्तु-विन्यास ने एक नए-विचार का सूत्रपाल किया। | ||
+ | |||
+ | {पिकासो किसके समय में पैदा हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-6 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -फासिज्म | ||
+ | -रिनेसांस | ||
+ | +घनचित्रणशैली | ||
+ | -आभास चित्रण | ||
+ | ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय (1907 ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .पिकाओ का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' (1912) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। | ||
+ | .आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर भूरे रंगों का प्रयोग किया। | ||
+ | .पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। | ||
+ | .मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, विल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति हिल्प हैं। | ||
+ | .पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि। | ||
+ | |||
+ | {भारत में समीक्षावाद किसने स्थापित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-6 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -आर.एस. बिष्ट | ||
+ | -एम.एच. अंसारी | ||
+ | -जी.बी. लाल | ||
+ | +आए.सी. शुक्ला | ||
+ | ||रामचंद्र शुक्ल एक प्रख्यात कला समीक्षक थे। इसके साथ ही शुक्ल की एक चित्रकार और कला लेखक भी थे। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .रामचंद्र शुक्ल फ्रांस द्वारा 'जीवन ऑनर फ्रैगानार्ड' सम्मान पाने वाले पहले भारतीय चित्रकार हैं। रामचंद्र शुल्क ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चित्रकला विभाग में अध्यापन का कार्य किया तथा आगे चलकर इस विभाग के विभागाध्यक्ष भी हुए। | ||
+ | .प्रो. रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक कला-समीक्षावाद, भारतीय चित्रकला शिक्षण पद्धति, रेखावली, कला दर्शन, कला-प्रसंग और पश्चिमी आधुनिक चित्रकार आदि पुस्तकों की भी रचना की। | ||
+ | .कागज की नाव, आपात काल, अंतिम भोज, चंद्र यात्रा, बैलेट बॉक्स आदि रामचंद्र शुक्ल की प्रमुख चित्र कृतिया हैं। | ||
+ | |||
+ | {"कला सहजानुभूति है"- किस महान दार्शनिक ने इस तथ्य को स्पष्ट किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-6 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -हीगल | ||
+ | -कांट | ||
+ | +क्रोचे | ||
+ | -प्लेटो | ||
+ | ||पाश्चात्य सौन्दर्यशास्त्र 'सहजानुभूति' (Intuition) का सिद्धांत क्रोचे ने प्रतिपादित किया। क्रोचे ने कला को सहजानुभूति माना है। क्रोचे आधुनिक काल के महान सौन्दर्यशास्त्रियों में गिना जाता है। 'What is Beauty' की विवेचना करते हुए उसने 'एस्थेटिक' ग्रंथ की रचना की। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .क्रोचे ने कला को तत्वत: भाषा माना है और भाषा को तत्वत: अभिव्यक्ति। | ||
+ | .क्रोचे ने अभिव्यक्त के दो विभेद किए हैं- एस्थेटिक सेंस और नेचुरोलिस्टक सेंस। | ||
+ | .क्रोचे ने अभिव्यक्त एवं सौन्दर्य को एक माना है। उन्हीं के शब्दों में- अभिव्यक्त एवं सौन्दर्य दो अवधारणाएं नहीं हैं बल्कि एक ही अवधारणा है (Expression and beauty are not two concapts dut a Single concapt)| | ||
+ | .'एक्सप्रेशनिस्ट थ्योरी' का सबसे प्रमुख प्रवर्तक क्रोचे था। | ||
+ | |||
+ | .हीगल की भांति ही क्रोचे ने भी कलाकृति को बौद्धिक माना है। क्रोचे माइकेल एंजेलो के कथन का उल्लेख करता है- "मैं अपने दिमाग से चित्र बनाता हूं, हाथ से नहीं"। | ||
+ | |||
+ | {नाट्यशास्त्र के प्रणेता हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-6 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -कालिदास | ||
+ | -वात्स्यायन | ||
+ | +भरतमुनि | ||
+ | -अरस्तु | ||
+ | ||भरतमुनि (2-3 शती ई.) ने काव्य के आवश्यक तत्त्व के रूप में रस की प्रतिष्ठा करते हुए शृंगार, हास्य, रौद्र, करुण, वीर, अद्भुत, वीभत्स तथा भयानक नाम से उसके आठ भेदों का स्पष्ट उल्लेख किया है। उन्होंने अपनी कृति नाट्यशास्त्र में इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। कतिपय विद्वानों की कल्पना है कि उन्होंने शांत नामक नवें रस को भी स्वीकृति दी है। | ||
+ | |||
+ | {आप किन दो रंगों को मिलाकर काला रंग बनाएंगे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-7 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +लाल+नीला | ||
+ | -हरा+लाल | ||
+ | -कत्थई+नीला | ||
+ | -कत्थई+हरा | ||
+ | ||चित्रकार के लिए नीला, लाल एवं पीला रंग प्राथमिक रंग होते हैं। बैंगनी, हरा और नारंगी रंग द्वितीयक रंग होते हैं। प्राथमिक और द्वितीयक रंगों के संयोजन से ही अन्य रंगों को प्राप्त किया जाता है। काले रंग को प्राप्त करने के लिए प्राथमिक रंगों (नीला, लाल एवं पीला रंग) को एक साथ मिलाना पड़ेगा। अत: विकल्प (a) सत्य हो सकता है। | ||
+ | |||
+ | {जल रंगीय (Wash) पेंटिंग को जल में कितनी बार डुबाना चाहिए? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-6 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -8 बार | ||
+ | -10 बार | ||
+ | +आवश्यकतानुसार | ||
+ | -11 बार | ||
+ | ||जल रंगीय चित्रों (Wash Painting) को जल में आवश्यकतानुसार डुबाया जाता है। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .जलरंगीय (Wash) पेंटिंग बंगाल शैली और जापान शैली के चित्रकारों के सहयोग से विकसित हुई। | ||
+ | .जलरंगीय (Wash) शैली के चित्रण के लिए सबसे उपयुक्त कागज सफेद कैंट पेपर व हैंडमेड पेपर होता है। | ||
+ | |||
+ | {भारतीय चित्रकला के षडंग में अनुपात को किस शब्द से परिभाषित किया गया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-6 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -सादृश्य | ||
+ | -लावण्ययोजना | ||
+ | -वर्णिका भंग | ||
+ | +प्रमाण | ||
+ | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- | ||
+ | रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। | ||
+ | यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ | ||
+ | अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
+ | |||
+ | {एल.सी.डी. मॉनिटर में एल.सी.डी. का अर्थ है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-6 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले | ||
+ | -लो कॉस्ट डिजिट | ||
+ | -लिक्विड कैडमियम डिस्पले | ||
+ | -लो कंजाम्पशन डिस्पले | ||
+ | ||लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले एल.सी.डी. का विस्तार रूप है। यह तरल क्रिस्टल मिश्रण के साथ ध्रुवीय धात्विक दो चद्दर होता है जिसके बीच में विद्युत धारा प्रवाहित होती है। | ||
+ | |||
+ | {अंग्रेजी भाषा के लगभग सभी अक्षर किस आवर लिपि से आए हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-37 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +लैटिन | ||
+ | -रोमन | ||
+ | -फ्रेंच | ||
+ | -स्वीडिश | ||
+ | ||अंग्रेजी भाषा के लगभग सभी अक्षर 'लैटिन' अक्षर लिपि से आए हैं। 750 ई.पू. के आस-पास स्वरों को जोड़कर (फोनिशियाई वर्णमाला) के आधार पर ग्रीक अक्षर बना। बाद में यह लैटिन वर्णमाला से विनियोगित किया गया जो आगे चलकर रोमन बना। | ||
+ | |||
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+ | |||
+ | {स्वच्छंदतावाद का वह कौन-सा चित्रकार था, जो चित्रण के लिए घर में लाशें रखा करता था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-115,प्रश्न-8 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -देलाक्रा | ||
+ | -इन्जर्स | ||
+ | +जेरीकॉल्ट | ||
+ | -माने | ||
+ | ||थियोडोर जेरीकॉल्ट स्वच्छंफतावाद (रोमांसवाद) का चित्रकार था। वह चित्रण के लिए घर में लाशें रखा करता था। | ||
+ | |||
+ | {ब्राक और पिकाओ ने जिस शैली को जन्म दिया उसे किस नाम से पुकारा जाता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-7 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -फन्तासी | ||
+ | -अति यथार्थवाद | ||
+ | +घनवाद | ||
+ | -प्रभाववाद | ||
+ | ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय (1907 ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .पिकाओ का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' (1912) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। | ||
+ | .आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर भूरे रंगों का प्रयोग किया। | ||
+ | .पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। | ||
+ | .मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, विल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति हिल्प हैं। | ||
+ | .पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि। | ||
+ | |||
+ | {भारत में प्रोफेसर रामचंद शुक्ल किस भारतीय समकालीन कला से संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-7 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -मुगल शैली | ||
+ | -अजंता शैली | ||
+ | +बंगाल शैली | ||
+ | -समीक्षावादी शैली | ||
+ | ||रामचंद्र शुक्ल एक प्रख्यात कला समीक्षक थे। इसके साथ ही शुक्ल की एक चित्रकार और कला लेखक भी थे। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .रामचंद्र शुक्ल फ्रांस द्वारा 'जीवन ऑनर फ्रैगानार्ड' सम्मान पाने वाले पहले भारतीय चित्रकार हैं। रामचंद्र शुल्क ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चित्रकला विभाग में अध्यापन का कार्य किया तथा आगे चलकर इस विभाग के विभागाध्यक्ष भी हुए। | ||
+ | .प्रो. रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक कला-समीक्षावाद, भारतीय चित्रकला शिक्षण पद्धति, रेखावली, कला दर्शन, कला-प्रसंग और पश्चिमी आधुनिक चित्रकार आदि पुस्तकों की भी रचना की। | ||
+ | .कागज की नाव, आपात काल, अंतिम भोज, चंद्र यात्रा, बैलेट बॉक्स आदि रामचंद्र शुक्ल की प्रमुख चित्र कृतिया हैं। | ||
+ | |||
+ | {पाश्चात्य सौन्दर्यशास्त्र के 'अनुकृति सिद्धांत' (Mimesis throty) स्पष्ट किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न- 7 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -कांट | ||
+ | -हीगेल | ||
+ | -प्लेटो | ||
+ | +अरिस्टॉटल | ||
+ | ||अरिस्टॉटल (अरस्तू) के अनुसार, अनुकृति करना करना कला का परम पावन धर्म है। मानव में बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। संसार का सर्वश्रेंष्ट प्राणी सब कुछ नकल करके सीखता है। नकल में उसे आनंद आता है। उसने स्पष्ट लिखा है कि 'कला प्रकृति की अनुकृति करती है'। | ||
+ | अन्य अहत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .प्लेटो ने भी अपनी पुस्तक The Republic में 'अनुकृति' सिद्धांत का वर्णन किया है। | ||
+ | .होमी भाभा ने भी 'अनुकृति' सिद्धांत पर लिखा है। | ||
+ | |||
+ | {नाट्यशास्त्र में भारत ने कितने भावों का विवेचन किया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-155,प्रश्न-7 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -42 | ||
+ | -36 | ||
+ | +49 | ||
+ | -45 | ||
+ | ||भरमुनि ने नाट्यशास्त्र में कुल 49 भावों को प्रस्तुत किया है, जिनमें 8 स्थायी भाव, 33 संचारी भाव तथा 8 सात्विक भाव शामिल हैं। | ||
+ | |||
+ | {कौन-से रंगों में अधिक भार होता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-8 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -ठंडे रंग | ||
+ | -जलरंग | ||
+ | -तैल रंग | ||
+ | +गर्म | ||
+ | ||रेखा तथा रूप के समान वर्णों में भी भार होता है। गहरे वर्णों में अधिक तथा हल्के वर्षों में कम भार होता है। इसी प्रकार उष्ण (गरम) वर्णों में अधिक तथा शीतल वर्णों में कम भार होता है। | ||
+ | |||
+ | {निम्न में से कौन रूपप्रद कला का तत्त्व नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-7 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -रेखा | ||
+ | +कोलाज | ||
+ | -वर्ण | ||
+ | -अंतराल | ||
+ | ||कागज या कपड़ों के टुकड़ों को चित्र-तल पर चिपका कर तैयार की गई चित्र कृतियां, 'कोलॉज कृतियां' कहलाती हैं। | ||
+ | |||
+ | {षडंग सिद्धान्त किस ग्रंथ में है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-7 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -कामसूत्र | ||
+ | -विष्णुधर्मोत्तर | ||
+ | -अपराजितपृच्छा | ||
+ | +जयमंगला | ||
+ | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर | ||
+ | ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- | ||
+ | रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। | ||
+ | यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ | ||
+ | अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
+ | |||
+ | {लेजर प्रिंटिंग में रिजोल्यूशन की इकाई को क्या कहते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-7 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -आईपीटी | ||
+ | +डीपीआई | ||
+ | -टीपीआई | ||
+ | -एलपीआई | ||
+ | ||लेजर प्रिंटिंग में रिजोल्यूशन की इकाई को डीपीआई (Dost Per Inch) से प्रदर्शित करते हैं। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .IPT-Internet Packet Time (इंटरनेट पैकेट टाइम) | ||
+ | .TPI-Tracks Per Inch (ट्रैक्स पर इंच) | ||
+ | .LPI-Line Printer Interface (लाइन प्रिंटर इंटरफेस) | ||
+ | |||
+ | {किसने कहा था "मैं यह जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता"? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-38 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +सुकरात | ||
+ | -प्लेटो | ||
+ | -अरस्तू | ||
+ | -आगस्टाइन | ||
+ | ||महान विचारक सुकरात का जन्म 470 ई.पू. में एथेंस (ग्रीस) में हुआ था। एथेंस के नवयुबकों को गुमराह करने का आरोप लगाकर 399 ई.पू. में सुकरात को जहर देकर मृत्युदंड की सजा दी गई। उसने कहा था- "मैं यह जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता"। | ||
+ | |||
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+ | |||
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+ | |||
+ | {'मेडुसा का बेड़ा' चित्र किसने चित्रित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-115,प्रश्न-9 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +थियोडोर जेरिकॉल्ट ने | ||
+ | -जांक दावि ने | ||
+ | -मोने ने | ||
+ | -सिसली ने | ||
+ | ||जीन-लुइस आंद्रे थियोडोर जेरिकॉल्ट फ्रांसीसी चित्रकार एवं लिथोग्राफर थे। वे 'समुद्री जहाज' की दुर्घटना पर बनी पेंटिग 'मेडुसा का बेड़ा' (The Raft of the Medusa) नामक चित्रण के लिए जाने जाते हैं। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .'मेडुसा का बेड़ा' रोमांसवाद का सर्वप्रथम चित्र माना गया। | ||
+ | .अपने चित्रों की रंग योजना पर जेरिकॉल्ट ने इटालियन चित्रकार काराद्ज्यो का अनुसरण किया है। | ||
+ | |||
+ | {'मुर्गा' किस कलाकार की मूर्ति है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-8 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -वान गॉग | ||
+ | -एम.एफ. हुसैन | ||
+ | -सेजां | ||
+ | +पिकाओ | ||
+ | ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय (1907 ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .पिकाओ का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' (1912) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। | ||
+ | .आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर भूरे रंगों का प्रयोग किया। | ||
+ | .पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। | ||
+ | .मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, विल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति हिल्प हैं। | ||
+ | .पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि। | ||
+ | |||
+ | {Op कलाकार का नाम बताएं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-8 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -एंडी वारहोल | ||
+ | -कीथ क्लुजनर | ||
+ | +वासरली | ||
+ | -रूबेन्स | ||
+ | ||आधुनिक कला में Op (ऑप आर्ट) की शुरुआत वर्ष 1904 में विक्टर वासरली ने की। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .ऑप आर्ट में ज्यामितीय आकार के कुछ छोटे टुकड़ों की पच्चीकारी करके चित्र बनाया जाता है जो हिलता हुआ प्रतीत होता है। इसे 'ऑप आर्ट' कहते हैं। ऑप आर्ट (Op) को 'नेत्रीय कला' भी कहा जाता है। | ||
+ | |||
+ | {अरस्तू के अनुसार कला क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-8 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +अनुकृति | ||
+ | -प्रमाण | ||
+ | -अभिव्यक्ति | ||
+ | -प्रकृति | ||
+ | ||अरिस्टॉटल (अरस्तू) के अनुसार, अनुकृति करना करना कला का परम पावन धर्म है। मानव में बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। संसार का सर्वश्रेंष्ट प्राणी सब कुछ नकल करके सीखता है। नकल में उसे आनंद आता है। उसने स्पष्ट लिखा है कि 'कला प्रकृति की अनुकृति करती है'। | ||
+ | अन्य अहत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .प्लेटो ने भी अपनी पुस्तक The Republic में 'अनुकृति' सिद्धांत का वर्णन किया है। | ||
+ | .होमी भाभा ने भी 'अनुकृति' सिद्धांत पर लिखा है। | ||
+ | |||
+ | {'रस' उत्पत्ति को सबसे पहले किसने परिभाषित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-8 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -अरस्तु | ||
+ | -अभिनव गुप्त | ||
+ | +भरतमुनि | ||
+ | -ब्रडले | ||
+ | ||'रस' उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरतमुनि को जाता है। उन्होंने अपने 'नाट्यशास्त्र' में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है। रस की व्याख्या करते हुए भरतमुनि कहते हैं कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत एक भाव मूलक कलात्मक अनुभूति है। रस का केंद्र रंगमंच है। भाव रस नहीं, उसका आधार है किंतु भरत ने स्थायी भाव को ही रस माना है। भरतमुनि ने लिखा है- 'विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। अत: भरतमुनि के 'रस तत्त्व' का आधारभूत विषय नाट्य में रस की निष्पत्ति है। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .काव्य शात्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने काव्य की आत्मा को ही रस माना है। | ||
+ | .आचार्य धनंजय के अनुसार, 'विभाव, अनुभाव, सात्विक, साहित्य भाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से आस्वाद्यमान स्थायी भाव ही रस है। | ||
+ | .साहित्य दर्पणकार आचार्य विश्वनाथ ने रस की परिभाषा इस प्रकार दी है- "विभावेनानुभावेन व्यक्त: सच्चारिणा तथा। रसतामेति रत्यादि: स्थायिभाव: सचेतसाम्॥ | ||
+ | .डॉ. विश्वम्भर नाथ कहते हैं, "भावों के छंदात्मक समन्वय का नाम ही रस है।" | ||
+ | .आचार्य श्याम सुंदर दास के अनुसार, "स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के योग से आस्वादन करने योग्य हो जाता है, तब सहृदय प्रेक्षक के हृदय में रस रूप में उसका आस्वादन होता है। | ||
+ | .आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है। उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है।" | ||
+ | |||
+ | {निम्नलिखित में से गरम रंग कौन-सा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-9 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -बैंगनी | ||
+ | -हरा | ||
+ | +लाल | ||
+ | -भूरा | ||
+ | ||प्रकाशयुक्तता एवं अक्ष-पटल की उत्तेजना के विचार से कुछ वर्ण गरम और शीतल माने जाते हैं। लाल और नारंगी वर्ण उष्ण (गरम) हैं, नीला एवं हरा वर्ष शीतल (ठंडा)। पीला एवं बैंगनी न उष्ण हैं, न शीतल। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .लाल रंग सर्वाधिक उत्तेजक एवं आकर्षक है। यह सक्रिय और आक्रामकता का प्रतीक है। इस रंग से वीरता (पराक्रम), साहस, शृंगारिक, तीव्र और कामुक भावनाओं का अभिव्यक्तिकरण संभव हो जाता है। | ||
+ | .नीला रंग, शांत, मधुर, निष्क्रिय, ईमानदारी, आशा लगन आदि का प्रतीक है और हरा रंग, विकास, प्रजनन और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। | ||
+ | .अफ्रीका में लाल रंग शोक का प्रतीक है। | ||
+ | .पश्चिमी संस्कृति में लाल रंग घातक पापों के क्रोध का प्रतीक है। | ||
+ | .पीला रंग प्रसन्नता, दिव्यता तथा यश आदि का प्रतीक है। | ||
+ | .श्वेत रंग प्रकाशयुक्त हल्का व कोमल होता है। स्वच्छता, पवित्रता एवं सत्य का प्रतीक है। | ||
+ | |||
+ | {भारत के उस राज्य का नाम बताइए जहां बड़े आकार में कपड़े पर 'पबूजी का फड़' नामक चित्रकारी चित्रित की जाती है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-167,प्रश्न-8 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -बिहार | ||
+ | -उड़ीसा | ||
+ | +राजस्थान | ||
+ | -हिमाचल प्रदेश | ||
+ | ||राजस्थान राज्य में बड़े आकार में कपड़े पर 'पबूजी का फड़' नामक चित्रकारी चित्रित की जाती है। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .पबूजी का फड़ एक प्राचीन पारंपरिक लोक कला है, जिसे गायन के साथ प्रयोग किया जाता है। | ||
+ | .राजस्थान के राबरी आदिवासियों द्वारा 'पबूजी का फड़' नामक चित्रकारी का प्रयोग देवी-देवताओं की छवियों का चित्रण करने में किया जाता है। | ||
+ | .पबूजी की कथा को फड़ पर लाल व हरे रंगों में चित्रित किया जाता है और भोप लोग उस कथा को लोकवाद्य 'रावनहत्ता' पर गाकर वर्णन करते हैं। | ||
+ | {भारतीय चित्रकला के षडंग में अनुपात को किस शब्द से परिभाषित किया गया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-8 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +यशोधर कृत जयमंगला में | ||
+ | -नारायण मुनि कृत चित्र सूत्र में | ||
+ | -राजा भोज कृत समरांगण सूत्र में | ||
+ | -बाणभट्ट कृत कादंबरी में | ||
+ | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगो वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण की तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर | ||
+ | ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- | ||
+ | रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। | ||
+ | यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ | ||
+ | अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
+ | {एच.टी.एम.एल. इंगित करता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-8 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +हाइपर टेक्स्ट मार्क-अप लैंग्विज | ||
+ | -हाइपर टेक्स्ट मैनिपुलेशन लैंग्विज | ||
+ | -हाइपर टेक्स्ट मैनेजिंग लिंक्स | ||
+ | -हाइपर टेक्स्ट मैन्यूपुलेटिंग लिंक्स | ||
+ | ||हाइपर टेक्स्ट मार्क-अप लैंग्विज एच.टी.एम.एल. का विस्तार रूप है। इसका प्रयोग वेब ब्राउजर पर सूचना डिसप्ले करने के लिए किया जाता है। इसकी खोज वर्ष 1990 में टिम बर्नर्सो-ली ने की थी। | ||
+ | |||
+ | {कश्मीर का शालीमार बाग बनवाया था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-39 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -बाबर | ||
+ | -हुमायूं | ||
+ | +जहांगीर | ||
+ | -शाहजहां | ||
+ | ||कश्मीर का शालीमार बाग जहांगीर ने बनवाया था। कश्मीर के शासक प्रवरसेन द्वितीय ने कश्मीर के उत्तर-पूर्व के कोने पर एक झील का निर्माण करवाया था। इसी स्थान पर 1619 ई. में मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा शालीमार बाग लगवाया गया। कश्मीर की स्थापना प्रवरमेन द्वितीय ने किया जबकि कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार इसकी स्थापना अशोक ने किया था। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ने अपने प्रारंभिक उत्तर-कुंजी में इस प्रश्न का उत्तर (a)माना था किंतु परिवर्तित उत्तर-कुंजी में इस प्रश्न का उत्तर विकल्प(c) माना है। | ||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | {'समुद्री जहाज' की दुर्घटना पर बनी पेंटिंग 'मेडुसा का बेड़ा' के कलाकार का क्या नाम था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-115,प्रश्न-10 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +जेरिकॉल्ट | ||
+ | -एलग्रेको | ||
+ | -अॅग्र | ||
+ | -गोया | ||
+ | ||जीन-लुइस आंद्रे थियोडोर जेरिकॉल्ट फ्रांसीसी चित्रकार एवं लिथोग्राफर थे। वे 'समुद्री जहाज' की दुर्घटना पर बनी पेंटिग 'मेडुसा का बेड़ा' (The Raft of the Medusa) नामक चित्रण के लिए जाने जाते हैं। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .'मेडुसा का बेड़ा' रोमांसवाद का सर्वप्रथम चित्र माना गया। | ||
+ | .अपने चित्रों की रंग योजना पर जेरिकॉल्ट ने इटालियन चित्रकार काराद्ज्यो का अनुसरण किया है। | ||
+ | |||
+ | {'एविगनन सुंदरियां' चित्र किसने चित्रित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-9 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -मोदिग्लियानी ने | ||
+ | +पिकाओ ने | ||
+ | -लोत्रेक ने | ||
+ | -ज्वां ग्रीस ने | ||
+ | ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय (1907 ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .पिकाओ का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' (1912) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। | ||
+ | .आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर भूरे रंगों का प्रयोग किया। | ||
+ | .पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। | ||
+ | .मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, विल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति हिल्प हैं। | ||
+ | .पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि। | ||
+ | |||
+ | {किस कलाकार ने अपने चित्रों में बाइबिल के विषयों को मानवतावादी दृष्टि से अनूदित किया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-9 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -रेम्ब्रां | ||
+ | +रूबेन्स | ||
+ | -वान आइक | ||
+ | -पिकाओ | ||
+ | ||पीटर पॉल रूबेन्स ने बाइबिल के विषयों को मानवतावादी दृष्टि से अनूदित किया। रूबेन्स ने बाइबिल की कथाओं, घटनाओं और प्राकृतिक जीवन का चित्रण किया। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .पीटर पॉल रूबेन्स का जन्म सन् 1577 में जर्मनी में हुआ था। | ||
+ | .रूबेन्स ने 1612 ई. में 'ईसा का सूली से उतारा जाना' नामक चित्र बनाया जिसे उनकी सर्वोत्तम कृति मानी जाती है। | ||
+ | .इन्होंने 1609-10 ई. में 'क्रांस का खड़ा किया जाना' नामक चित्र बनाया यह भी इनकी अद्वितीय कृति थी। | ||
+ | .रूबेन्स ने एण्टवर्प के टाउन हाल हेतु 'मैजाइ की वंदना' नामक चित्र बनाया जिसमें मानवाकार की 28 आकृतियां हैं। | ||
+ | .रूबेंस एक बैरोक चित्रकार (Flemish Baroque Painter) था। | ||
+ | .पेरिस का निर्णय (The Judgement of paris) रूबेन्स की पेंटिंग है। | ||
+ | |||
+ | {अरस्तू ने कला को कहा था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-9 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +प्रकृति की नकल | ||
+ | -सत्य की अनुकृति | ||
+ | -अंत:ज्ञान | ||
+ | -भावों की अभिव्यक्ति | ||
+ | ||अरिस्टॉटल (अरस्तू) के अनुसार, अनुकृति करना करना कला का परम पावन धर्म है। मानव में बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। संसार का सर्वश्रेंष्ट प्राणी सब कुछ नकल करके सीखता है। नकल में उसे आनंद आता है। उसने स्पष्ट लिखा है कि 'कला प्रकृति की अनुकृति करती है'। | ||
+ | अन्य अहत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .प्लेटो ने भी अपनी पुस्तक The Republic में 'अनुकृति' सिद्धांत का वर्णन किया है। | ||
+ | .होमी भाभा ने भी 'अनुकृति' सिद्धांत पर लिखा है। | ||
+ | |||
+ | {भरतमुनि के 'रस तत्त्व' के आधारभूत विषय हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-155,प्रश्न-9 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -रस-कोटि | ||
+ | -रस-चेतना | ||
+ | -रस-चिंतन | ||
+ | +नाट्य में रस की निष्पत्ति | ||
+ | ||'रस' उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरतमुनि को जाता है। उन्होंने अपने 'नाट्यशास्त्र' में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है। रस की व्याख्या करते हुए भरतमुनि कहते हैं कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत एक भाव मूलक कलात्मक अनुभूति है। रस का केंद्र रंगमंच है। भाव रस नहीं, उसका आधार है किंतु भरत ने स्थायी भाव को ही रस माना है। भरतमुनि ने लिखा है- 'विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। अत: भरतमुनि के 'रस तत्त्व' का आधारभूत विषय नाट्य में रस की निष्पत्ति है। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .काव्य शात्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने काव्य की आत्मा को ही रस माना है। | ||
+ | .आचार्य धनंजय के अनुसार, 'विभाव, अनुभाव, सात्विक, साहित्य भाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से आस्वाद्यमान स्थायी भाव ही रस है। | ||
+ | .साहित्य दर्पणकार आचार्य विश्वनाथ ने रस की परिभाषा इस प्रकार दी है- "विभावेनानुभावेन व्यक्त: सच्चारिणा तथा। रसतामेति रत्यादि: स्थायिभाव: सचेतसाम्॥ | ||
+ | .डॉ. विश्वम्भर नाथ कहते हैं, "भावों के छंदात्मक समन्वय का नाम ही रस है।" | ||
+ | .आचार्य श्याम सुंदर दास के अनुसार, "स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के योग से आस्वादन करने योग्य हो जाता है, तब सहृदय प्रेक्षक के हृदय में रस रूप में उसका आस्वादन होता है। | ||
+ | .आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है। उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है।" | ||
+ | |||
+ | {लाल रंग किसका प्रतीक है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-10 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -घृणा | ||
+ | -प्रेम | ||
+ | -शांतु | ||
+ | +पराक्रम | ||
+ | ||प्रकाशयुक्तता एवं अक्ष-पटल की उत्तेजना के विचार से कुछ वर्ण गरम और शीतल माने जाते हैं। लाल और नारंगी वर्ण उष्ण (गरम) हैं, नीला एवं हरा वर्ष शीतल (ठंडा)। पीला एवं बैंगनी न उष्ण हैं, न शीतल। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .लाल रंग सर्वाधिक उत्तेजक एवं आकर्षक है। यह सक्रिय और आक्रामकता का प्रतीक है। इस रंग से वीरता (पराक्रम), साहस, शृंगारिक, तीव्र और कामुक भावनाओं का अभिव्यक्तिकरण संभव हो जाता है। | ||
+ | .नीला रंग, शांत, मधुर, निष्क्रिय, ईमानदारी, आशा लगन आदि का प्रतीक है और हरा रंग, विकास, प्रजनन और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। | ||
+ | .अफ्रीका में लाल रंग शोक का प्रतीक है। | ||
+ | .पश्चिमी संस्कृति में लाल रंग घातक पापों के क्रोध का प्रतीक है। | ||
+ | .पीला रंग प्रसन्नता, दिव्यता तथा यश आदि का प्रतीक है। | ||
+ | .श्वेत रंग प्रकाशयुक्त हल्का व कोमल होता है। स्वच्छता, पवित्रता एवं सत्य का प्रतीक है। | ||
+ | |||
+ | {किसी संरचना के प्रमुख दो तत्त्व क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-167,प्रश्न-9 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +रूप और स्थान | ||
+ | -वर्ण एवं बनावट | ||
+ | -रेखा एवं आकृति | ||
+ | -छाया एवं प्रकाश | ||
+ | ||किसी संरचना के प्रमुख दो तत्त्व हैं रूप और स्थां। किसी संरचना से उसके बाह्य रूप और स्थान की प्रकृति का ज्ञान होता है जबकि वर्ण एवं बनावट, रेखा एवं आकृति तथा छाया एवं प्रकाश से कलाकृतियों की अनुभूति होती है। | ||
+ | |||
+ | {वात्स्यायन रत्रित कामशास्त्र की व्याख्या या टीका में कला के षडंग का उल्लेख किसने किया है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-178,प्रश्न-9 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -कालिदास ने | ||
+ | -बाणभट्टा ने | ||
+ | +यशोधर ने | ||
+ | -शूद्रक ने | ||
+ | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण की तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर | ||
+ | ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- | ||
+ | रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। | ||
+ | यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ | ||
+ | अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
+ | |||
+ | {'फादर ऑफ कंम्यूटर' कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-9 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -हर्मन हालरिथ | ||
+ | -बिल गेट्स | ||
+ | -मार्क जुकरबर्ग | ||
+ | +चार्ल्स बैबेज | ||
+ | ||चार्ल्स बैबेज को फादर ऑफ़ कंम्यूटर कहा जाता है। इनका जन्म 26 दिसंबर, 1791 को लंदन में तथा मृत्यु 18 अक्टूबर, 1871 को हुई। | ||
+ | |||
+ | {'संत रैदास' के गुरु का क्या नाम था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-40 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +रामचंद्र | ||
+ | -कबीर दास | ||
+ | -शंकर देव | ||
+ | -इनमें से कोई नहीं | ||
+ | ||संत रैदास को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। उन्हें रविदास भी कहा जाता है। इनका जन्म काशी (वाराणसी) के पास एक गांव में माना जाता है। इनके जन्म के समय का विभिन्न विद्वानों में मतभेद है। रविवार के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम 'रविदास' रखा गया। रविदास को रामानंद का शिष्य माना जाता है। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .रविदास का जन्म चर्मकार (चमार) कुल में हुआ था। | ||
+ | .इनके पिता का नाम 'रग्घू' तथा माता का नाम 'घुरविनिया' था। | ||
+ | .रविदास, राम और कृष्ण भक्त परंपरा के कवि और संत माने जाते हैं। | ||
+ | .रविदास, कबीर के समकालीन थे। | ||
+ | .हिंदी साहित्य में मध्यकाल, भक्तिकाल के नाम से प्रख्यात हैं। वे इसी काल के कवि माने जाते हैं। | ||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | {घनवाद का प्रथम चित्र किसका था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-10 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -एडवर्ड मंच | ||
+ | -जॉर्ज रूओल | ||
+ | +पाब्लो पिकाओ | ||
+ | -मातिस | ||
+ | ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय (1907 ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। | ||
+ | |||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .पिकाओ का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' (1912) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। | ||
+ | .आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर भूरे रंगों का प्रयोग किया। | ||
+ | .पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। | ||
+ | .मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, विल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति हिल्प हैं। | ||
+ | .पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि। | ||
+ | |||
+ | {'पेरिस का निर्णय' का कलाकार कौन था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-10 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +रूबेन्स | ||
+ | -रेम्ब्रां | ||
+ | -डेविड | ||
+ | -कुर्बे | ||
+ | ||पीटर पॉल रूबेन्स ने बाइबिल के विषयों को मानवतावादी दृष्टि से अनूदित किया। रूबेन्स ने बाइबिल की कथाओं, घटनाओं और प्राकृतिक जीवन का चित्रण किया। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .पीटर पॉल रूबेन्स का जन्म सन् 1577 में जर्मनी में हुआ था। | ||
+ | .रूबेन्स ने 1612 ई. में 'ईसा का सूली से उतारा जाना' नामक चित्र बनाया जिसे उनकी सर्वोत्तम कृति मानी जाती है। | ||
+ | .इन्होंने 1609-10 ई. में 'क्रांस का खड़ा किया जाना' नामक चित्र बनाया यह भी इनकी अद्वितीय कृति थी। | ||
+ | .रूबेन्स ने एण्टवर्प के टाउन हाल हेतु 'मैजाइ की वंदना' नामक चित्र बनाया जिसमें मानवाकार की 28 आकृतियां हैं। | ||
+ | .रूबेंस एक बैरोक चित्रकार (Flemish Baroque Painter) था। | ||
+ | .पेरिस का निर्णय (The Judgement of paris) रूबेन्स की पेंटिंग है। | ||
+ | |||
+ | {भारतीय सौंदर्यशास्त्र के प्रथम दार्शनिक थे- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-10 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -भट्टलोल्लट | ||
+ | -अभिनवगुप्त | ||
+ | +भरत | ||
+ | -आनन्दवर्धन | ||
+ | ||भारतीय सौन्दर्य के प्रथम दार्शनिक भरत थे। इन्होंने 'नाट्यशास्त्र' नामक ग्रंथ का प्रतिपादन किया जो सर्वाधिक प्राचीनतम ग्रंथ है। इस ग्रंथ में रंग-मंच एवं अभिनय के माध्यम से रस के स्वरूप, उनकी निष्पत्ति एवं अनुभूति के विषय में सविस्तार वर्णन किया गया है। | ||
+ | |||
+ | {'शांत रस' पहली बार किसने प्रस्तुत किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-155,प्रश्न-10 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -भरतमुनि | ||
+ | -वात्स्यायन | ||
+ | -मार्कण्डेय मुनि | ||
+ | +अभिनव गुप्त | ||
+ | ||भरतमुनि ने आठ प्रकर के रसों का वर्णन किया है। अभिनव गुप्त ने 'शांत रस' को नवां रस माना है। अत: अभिनव गुप्त ने 'शान्त रस' को पहली बार प्रस्तुत किया। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .सुनीति शतक में आचार्य विद्यासागर ने लिखा है, "जिस प्रकार तिलक के बिना चंद्रमुखी, उद्यम के बिना देश, सम्यक् दृष्टि के बिना मुनि का चरित्र सुशोभित नहीं होता, उसी प्राअर 'शांत रस' के बिना कवि सुशोभित नहीं होता।" | ||
+ | |||
+ | {A4कागज का वास्तविक माप क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-10 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +201x297 मिमी. | ||
+ | -297x420 मिमी. | ||
+ | -210x287 मिमी. | ||
+ | -228x287 मिमी. | ||
+ | ||A4 कागज का प्रयोग ऑफिस तथा स्टेशनरी आदि कार्यों के लिए किया जाता है। A4 कागज का वास्तविक माप 201x297 मिमी. है। अन्य साइज के कागजों का वास्तविक माप इस प्रकार है- | ||
+ | A0कागज का वास्तविक माप 841x1189 मिमी. है। | ||
+ | A1कागज का वास्तविक माप 594x841 मिमी. है। | ||
+ | A2कागज का वास्तविक माप 420x594 मिमी. है। | ||
+ | A3कागज का वास्तविक माप 297x420 मिमी. है। | ||
+ | A5कागज का वास्तविक माप 148x210 मिमी. है। | ||
+ | A0सबसे बड़े साइज का होता है जबकि A5नोट पैड के लिए तथा A6पोस्टकार्ड की साइज होती है। | ||
+ | |||
+ | {भारतीय चित्र षडंग के सूत्रधार कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-178,प्रश्न-10 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +पंडित यशोधर | ||
+ | -बाणभट्ट | ||
+ | -भास | ||
+ | -शूद्रक ने | ||
+ | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने | ||
+ | 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण की तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर | ||
+ | ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- | ||
+ | रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। | ||
+ | यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ | ||
+ | अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
+ | |||
+ | {विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-10 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -5 सितंबर | ||
+ | +19 अगस्त | ||
+ | -14 नवंबर | ||
+ | -7 दिसंबर | ||
+ | ||विश्व फोटोग्राफी दिवस 19 अगस्त को मनाया जाता है। विश्व फोटोग्राफी लुईस देगुरे द्वारा विकसित एक फोटोग्राफिक प्रक्रिया 'देगुरियोटाइप' की खोज से उत्पन्न हुई। 9 जनवरी, 1839 को 'फ्रेंच एकेडमी ऑफ़ साइंसेज ने 'देगुरियोटाइप' की घोषणा की। कुछ महीने बाद 19 अगस्त, 1819 को फ्रांस सरकार की घोषणा के बाद यह खोज विश्व को उपहार में मिला। | ||
− | { | + | {शेरशाह का प्रसिद्ध मकबरा कहां है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-41 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | + | -कलकत्ता | |
− | - | + | -दिल्ली |
− | - | + | -अजमेर |
− | + | +सासाराम | |
− | || | + | ||शेरशाह का प्रसिद्ध मकबरा 'सासाराम' (बिहार) में है। शेरशाह सूरी ने शासनिक, प्रशासनिक और सामरिक दृष्टि से गंगा के मैदानों के किनारे-किनारे अनेक सड़कों का निर्माण कराया था। उसने ग्रेंड ट्रंक रोड का निर्माण कराया जो कलकत्ता से पेशावर तक जाती है। |
− | { | + | {कला समीक्षा से कौन संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-81 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -के.एस. कुलकर्णी |
− | - | + | -रामेश्वर बरूटा |
− | - | + | +रतन परिमू |
− | + | -हिम्मत शाह | |
+ | ||रतन परिमू कला समीक्षासे संबंधित हैं। वह एक प्रसिद्ध कला अध्यापक, इतिहासकार एवं समीक्षक है। अपनी इन्हीं प्रतिभाओं के आधार पर उन्होंने वर्ष 1968 में ऑस्ट्रेलिया में आयोजित कला के माध्यम से शिक्षा की अंतर्राष्ट्रीय सोसाइटी के तेईसवें विश्व कांग्रेस में प्रतीभाव किया। उन्होंने वर्ष 2010 में समकालीन भारतीय कला 1880-1947 के ऐतिहासिक विकास का संपादन किया। उनके प्रकाशनों में शामिल हैं- 'Painting of three Tagore's in Modern Indian art' तथा 'sculptures of Sheshasayi Vishnu' इत्यादि। | ||
− | { | + | {वास्तु-विद्या और सृजन के देवता हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-83 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -विष्णु |
− | - | + | -इन्द्र |
− | + | + | +विश्वकर्मा |
− | - | + | -गणेश |
− | || | + | ||अग्नि पुराण 15,400 छंदों से युक्त है और वास्तुशास्त्र तथा रत्नशास्त्र (Gemology) के विवरण प्रस्तुत करता है, अग्नि पुराण में कलाकार को ब्रह्मांड का वास्तुकार (विश्वकर्मण) कहा गया है। वास्तु-विद्या और सृजन (निर्माण) के देवता विश्वकर्मा थे। प्रश्न का स्पष्ट उत्तर विकल्प में नहीं है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेक्सा चयन बोर्ड ने इस का उत्तर अपने प्रारंभिक उत्तर-कुंजी में (c) माना था किंतु परिवर्तित उत्तर-कुंजी में से गलत बताया है। |
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10:44, 16 अप्रैल 2017 का अवतरण
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