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|अन्य जानकारी=राज खोसला की अस्सी के दशक में फ़िल्में व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं रही। इन फ़िल्मों में 'दासी' (1981), 'तेरी मांग सितारों से भर दूं', 'मेरा दोस्त मेरा दुश्मन' (1984) और 'माटी मांगे खून' शामिल है।
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'''राज खोसला''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Raj Khosla'', जन्म: [[31 मई]], [[1925]], [[पंजाब]]; मृत्यु: [[9 जून]], [[1991]]) [[1950]] से [[1980]] के दशक तक [[हिंदी]] फ़िल्मों में शीर्ष निर्देशक, निर्माणकर्ता और पटकथाकारों में से एक थे। उन्हें [[देव आनंद]] जैसे अभिनेताओं की सफलता के लिए श्रेय दिया जाता है। [[गुरु दत्त]] के तहत अपना कॅरियर शुरू करने के बाद, वह सी.आई.डी की की तरह हिट फ़िल्में बनाते रहे। (1956), 'वो कौन थी'? (1964), 'मेरा साया' (1966), 'दोस्ताना' (1980) और मुख्य फ़िल्म 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' (1978) थी, जिसने उन्हें फ़िल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ मूवी पुरस्कार दिलाया था।  
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'''संजय ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sanjay Khan'', जन्म: [[3 जनवरी]], [[1941]] [[बैंगलोर]]) भारतीय फ़िल्म [[अभिनेता]], निर्माता-निर्देशक और टेलीविजन निर्देशक है। अब्बास ख़ान निर्देशित [[चेतन आनंद]] की फ़िल्म (1964) 'हकीकत' से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी। 1960 और 1970 के दशक में, ख़ान ने कई हिट फ़िल्मों में अभिनय किया, जैसे 'दो लाख', 'एक फूल दो माली', 'इंतकाम' आदि। संजय ख़ान ने 30 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय किया है। 1990 में उन्हें प्रसिद्ध ऐतिहासिक कथा टेलीविजन श्रृंखला ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया जिसमें उनका किरदार टीपू काफी लोकप्रिय रहा था।  
 
==परिचय==
 
==परिचय==
राज खोसला का जन्म 31 मई, 1925 को पंजाब के [[लुधियाना]] शहर में हुआ था। उनका बचपन से ही गीत संगीत की ओर रूझान था और वे प्लेबैक सिंगर बनना चाहते थे। आकाशवाणी में बतौर उद्घोषक और पार्श्वगायक का काम करने के बाद राज खोसला 19 वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ पार्श्वगायक की तमन्ना लिए [[मुंबई]] आ गए। उनके चाचा देवानंद के पिता किशोरी आनंद के गहरे दोस्त थे। राज खोसला की प्रारंभिक शिक्षा अंजुमन इस्लामिक स्कूल में हुई। उन्होंने एलिफोस्टन कॉलेज से [[अंग्रेज़ी]] में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।<ref>{{cite web |url=http://rgurbaxani.blogspot.in/2010/07/blog-post_06.html |title=राज खोसला- हिंदी सिनेमा के असली “हिचकॉक” |accessmonthday= |accessyear=8 जून |last=2017 |first= |authorlink= |format= |publisher=rgurbaxani.blogspot.in |language=हिंदी}}</ref>
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{{मुख्य| संजय ख़ान का जीवन परिचय}}
==फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत==
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संजय ख़ान का जन्म 3 जनवरी, 1941 में बैंगलोर (अब [[कर्नाटक]]) में एक गजनीवी पठान मुस्लिम उदारवादी परिवार में हुआ था। इन्हें आज भी नई चीजों को सीखने और अपनी जिंदगी में आजमाने का शौक बरकरार है। इन्होंने बिशप कॉटन बॉयज़ स्कूल, बैंगलोर और सेंट जर्मेन हाई स्कूल, बैंगलोर में शिक्षा प्राप्त की। संजय की दूसरी पहचान फिरोज ख़ान और अकबर ख़ान जैसे एक्टर्स के भाई के तौर पर भी होती है। इसके साथ, उनकी फैमिली के कई दूसरे सदस्य भी इंडस्ट्री में रहे हैं। उनके दो और भाई शाहरुख शाह अली ख़ान और सेमीर ख़ान हैं। उनकी बहनें खुर्शीद शाहनवाड़ और दिलशाद बेगम शेख हैं, जिन्हें दिलशाद बीबी के नाम से जाना जाता है। बैंगलोर में स्कूली शिक्षा के बाद, वह मुंबई गए जहां उन्होंने अपने भाई फिरोज ख़ान से जुड़कर अपनी फ़िल्मों के निर्देशकों की सहायता की।
{{मुख्य|राज खोसला का फ़िल्मी कॅरियर}}
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==विवाह==
मुंबई आने के बाद राज खोसला ने रंजीत स्टूडियों में अपना स्वर परीक्षण कराया और इस कसौटी पर वह खरे भी उतरे लेकिन रंजीत स्टूडियों के मालिक सरदार चंदू लाल ने उन्हें बतौर पार्श्वगायक अपनी फ़िल्म में काम करने का मौका नहीं दिया। उन दिनों रंजीत स्टूडियो की स्थिती ठीक नही थी और सरदार चंदूलाल को नए पार्श्वगायक की अपेक्षा [[मुकेश]] पर ज़्यादा भरोसा था अतः उन्होंने अपनी फ़िल्म में मुकेश को ही पार्श्वगायन करने का मौका देना उचित समझा।
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संजय ख़ान का विवाह ज़रीन कटराक, जो एक प्रसिद्ध मॉडल थी, से हुआ था। [[1963]] में जरीन ने फ़िल्म 'तेरे घर के सामने' में [[देवानंद]] के सचिव के रूप में अभिनय किया। [[1966]] में संजय से शादी करने के बाद, उन्होंने अभिनय छोड़ दिया। संजय ख़ान और जरीन ख़ान का रिश्ता ज्यादा समय तक टिक ना सका और उनका तलाक हो गया। उसके बाद संजय ख़ान ने जीनत अमान से दूसरा विवाह कर लिया, पर यह विवाह भी ज़्यादा दिनों तक सफल ना हो सका।
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==बच्चे==
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संजय खान पहली पत्नी ज़रीन खान से उन्हें तीन बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी फराह का जन्म [[28 दिसंबर]], [[1969]], जिसने डीजे अकील से विवाह किया, दूसरी बेटी सिमोन का जन्म [[12 फरवरी]], [[1971]], जिसका विवाह अजय अरोड़ा के प्रबंध निदेशक और डी 'सज्जा के मालिक से हुआ, और उनकी सबसे छोटी बेटी सुज़ान ख़ान का जन्म [[26 अक्टूबर]], [[1978]] को हुआ था, जो अभिनेता रितिक रोशन की पूर्व पत्नी थीं।  इनका एक पुत्र जायद ख़ान जिसका जन्म [[5 जुलाई]], [[1980]] को हुआ। अभिनेता फरदीन ख़ान इनके भतीजे है।<ref>{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2013/01/03/%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B8%E0%A4%AC%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE/ |title= |accessmonthday=10 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=days.jagranjunction.com |language=हिंदी}}</ref>
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==फ़िल्मी सफ़र==
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{{मुख्य| संजय ख़ान का फ़िल्मी क्षेत्र}}
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संजय ख़ान ने फिल्मों के निर्माता और निर्देशक बने, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई और चंडी सोना (1 977), अब्दुल्ला (1980) और कल ढांडा गोरो लॉग (1986) जैसी लोकप्रिय फिल्मों के लेख लिखें।
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1990 में उन्होंने अभिनय किया और उसी नाम के उपन्यास के आधार पर भारत की पहली मेगा ऐतिहासिक कथा टेलीविजन श्रृंखला ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ का निर्देशन किया। उन्होंने मराठा जनरल महाद जी सिंधिया के जीवन पर आधारित मेगा भारतीय टीवी श्रृंखला का निर्माण और निर्देशन किया। 'द ग्रेट मराठा' यह तीसरे पानीपत युद्ध को मराठों के साहस और दृढ़ता को दर्शाता है, जो 1769 में अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली की एक ताकतवर सेना का सामना कर रहे थे। 1990 के दशक के दौरान उन्होंने जय-हनुमान, 1857 क्रांति और महारथी कर्ण जैसी टीवी-सीरीज का निर्माण और निर्देशन किया।
 
==मुख्य फ़िल्में==
 
==मुख्य फ़िल्में==
{{मुख्य|राज घोसला निर्देशित फ़िल्में}}
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{{मुख्य| संजय ख़ान अभिनित फ़िल्में}}
राज खोसला द्वारा निर्देशित अन्य फ़िल्मों में 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'दो रास्ते' 'सोलहवां साल' 'काला पानी' 'एक मुसाफिर एक हसीना', 'चिराग', 'दासी' और 'सन्नी' प्रमुख हैं। 
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संजय ख़ान ने ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया। जिसमें उनका किरदार टीपू काफी लोकप्रिय रहा। फिर बाद में आई उनकी कुछ सुपरहिट फ़िल्में 1975 में ‘जिंदगी और तूफान’, 1977 ‘मेरा वचन गीता की कसम’, 1971 ‘मेला’, 1972 ‘सबका साथी’, दोस्ती, बेटी, सोने के हाथ, नागिन, वो दिन याद करो, एक फूल दो माली, हैं। इतना ही नहीं संजय ख़ान ने ‘जय हनुमान’, ‘मर्यादावाद पुरुषोत्तम’ जैसे टी.वी. सीरियल करके निर्देशन की दुनिया में अपनी नई पहचान बनाई।
==निधन==
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==पुरस्कार एवं उपलब्धियां==
अपने दमदार निर्देशन से लगभग चार दशक तक सिनेप्रेमियों का भरपूर मनोरंजन करने वाले महान निर्माता निर्देशक राज खोसला [[9 जून]], [[1991]] को इस दुनिया अलविदा कह गए।
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{{मुख्य| संजय ख़ान को मिले पुरस्कार एवं उपलब्धियां}}
 
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*उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार एसोसिएशन अवार्ड (1981)
 
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*आंध्र प्रदेश पत्रकार पुरस्कार (1986)
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*[[भारत रत्न]] का पुरस्कार (1993)
{{राज खोसला विषय सूची}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
{{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}
 
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12:55, 10 जून 2017 का अवतरण

कविता बघेल 7
संजय ख़ान
पूरा नाम संजय ख़ान
जन्म 3 जनवरी, 1941
जन्म भूमि बैंगलोर
अभिभावक पिता: सादिक अली ख़ान तानोली और माता - फातिमा ख़ान
पति/पत्नी जीनत अमान (1978-1979), जरीन ख़ान (1955)
संतान फ़रात ख़ान अली, सिमोन अरोड़ा, सुज़ान ख़ान, जायद ख़ान
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता, निर्माता-निर्देशक
पुरस्कार-उपाधि उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार एसोसिएशन अवार्ड (1981), आंध्र प्रदेश पत्रकार पुरस्कार (1986), भारत रत्न का पुरस्कार (1993)
प्रसिद्धि अभिनेता
नागरिकता भारतीय

संजय ख़ान (अंग्रेज़ी: Sanjay Khan, जन्म: 3 जनवरी, 1941 बैंगलोर) भारतीय फ़िल्म अभिनेता, निर्माता-निर्देशक और टेलीविजन निर्देशक है। अब्बास ख़ान निर्देशित चेतन आनंद की फ़िल्म (1964) 'हकीकत' से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी। 1960 और 1970 के दशक में, ख़ान ने कई हिट फ़िल्मों में अभिनय किया, जैसे 'दो लाख', 'एक फूल दो माली', 'इंतकाम' आदि। संजय ख़ान ने 30 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय किया है। 1990 में उन्हें प्रसिद्ध ऐतिहासिक कथा टेलीविजन श्रृंखला ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया जिसमें उनका किरदार टीपू काफी लोकप्रिय रहा था।

परिचय

संजय ख़ान का जन्म 3 जनवरी, 1941 में बैंगलोर (अब कर्नाटक) में एक गजनीवी पठान मुस्लिम उदारवादी परिवार में हुआ था। इन्हें आज भी नई चीजों को सीखने और अपनी जिंदगी में आजमाने का शौक बरकरार है। इन्होंने बिशप कॉटन बॉयज़ स्कूल, बैंगलोर और सेंट जर्मेन हाई स्कूल, बैंगलोर में शिक्षा प्राप्त की। संजय की दूसरी पहचान फिरोज ख़ान और अकबर ख़ान जैसे एक्टर्स के भाई के तौर पर भी होती है। इसके साथ, उनकी फैमिली के कई दूसरे सदस्य भी इंडस्ट्री में रहे हैं। उनके दो और भाई शाहरुख शाह अली ख़ान और सेमीर ख़ान हैं। उनकी बहनें खुर्शीद शाहनवाड़ और दिलशाद बेगम शेख हैं, जिन्हें दिलशाद बीबी के नाम से जाना जाता है। बैंगलोर में स्कूली शिक्षा के बाद, वह मुंबई गए जहां उन्होंने अपने भाई फिरोज ख़ान से जुड़कर अपनी फ़िल्मों के निर्देशकों की सहायता की।

विवाह

संजय ख़ान का विवाह ज़रीन कटराक, जो एक प्रसिद्ध मॉडल थी, से हुआ था। 1963 में जरीन ने फ़िल्म 'तेरे घर के सामने' में देवानंद के सचिव के रूप में अभिनय किया। 1966 में संजय से शादी करने के बाद, उन्होंने अभिनय छोड़ दिया। संजय ख़ान और जरीन ख़ान का रिश्ता ज्यादा समय तक टिक ना सका और उनका तलाक हो गया। उसके बाद संजय ख़ान ने जीनत अमान से दूसरा विवाह कर लिया, पर यह विवाह भी ज़्यादा दिनों तक सफल ना हो सका।

बच्चे

संजय खान पहली पत्नी ज़रीन खान से उन्हें तीन बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी फराह का जन्म 28 दिसंबर, 1969, जिसने डीजे अकील से विवाह किया, दूसरी बेटी सिमोन का जन्म 12 फरवरी, 1971, जिसका विवाह अजय अरोड़ा के प्रबंध निदेशक और डी 'सज्जा के मालिक से हुआ, और उनकी सबसे छोटी बेटी सुज़ान ख़ान का जन्म 26 अक्टूबर, 1978 को हुआ था, जो अभिनेता रितिक रोशन की पूर्व पत्नी थीं। इनका एक पुत्र जायद ख़ान जिसका जन्म 5 जुलाई, 1980 को हुआ। अभिनेता फरदीन ख़ान इनके भतीजे है।[1]

फ़िल्मी सफ़र

संजय ख़ान ने फिल्मों के निर्माता और निर्देशक बने, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई और चंडी सोना (1 977), अब्दुल्ला (1980) और कल ढांडा गोरो लॉग (1986) जैसी लोकप्रिय फिल्मों के लेख लिखें।

1990 में उन्होंने अभिनय किया और उसी नाम के उपन्यास के आधार पर भारत की पहली मेगा ऐतिहासिक कथा टेलीविजन श्रृंखला ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ का निर्देशन किया। उन्होंने मराठा जनरल महाद जी सिंधिया के जीवन पर आधारित मेगा भारतीय टीवी श्रृंखला का निर्माण और निर्देशन किया। 'द ग्रेट मराठा' यह तीसरे पानीपत युद्ध को मराठों के साहस और दृढ़ता को दर्शाता है, जो 1769 में अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली की एक ताकतवर सेना का सामना कर रहे थे। 1990 के दशक के दौरान उन्होंने जय-हनुमान, 1857 क्रांति और महारथी कर्ण जैसी टीवी-सीरीज का निर्माण और निर्देशन किया।

मुख्य फ़िल्में

संजय ख़ान ने ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया। जिसमें उनका किरदार टीपू काफी लोकप्रिय रहा। फिर बाद में आई उनकी कुछ सुपरहिट फ़िल्में 1975 में ‘जिंदगी और तूफान’, 1977 ‘मेरा वचन गीता की कसम’, 1971 ‘मेला’, 1972 ‘सबका साथी’, दोस्ती, बेटी, सोने के हाथ, नागिन, वो दिन याद करो, एक फूल दो माली, हैं। इतना ही नहीं संजय ख़ान ने ‘जय हनुमान’, ‘मर्यादावाद पुरुषोत्तम’ जैसे टी.वी. सीरियल करके निर्देशन की दुनिया में अपनी नई पहचान बनाई।

पुरस्कार एवं उपलब्धियां

  • उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार एसोसिएशन अवार्ड (1981)
  • आंध्र प्रदेश पत्रकार पुरस्कार (1986)
  • भारत रत्न का पुरस्कार (1993)
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