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'''रीता गांगुली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rita Ganguly'', जन्म: [[1940]] [[लखनऊ]] भारतीय शास्त्रीय संगीत गायिका थीं। अपनी प्रतिभा और लगन की वजह से वह अपनी दोनों उस्तादों यानी [[सिद्धेश्वरी देवी]] और [[बेगम अख़्तर|बेग़म अख़्तर]] के भरोसे पर खरी उतरीं। रीता गांगुली को उनके योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। इन दिनों वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में माइम का हुनर सिखाने के साथ ही साथ आजकल ग़रीब बच्चों को भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने में जुटी हुई हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.com/hindi/entertainment/story/2005/11/051127_rita_ganguly.shtml |title='जिसे सुनकर लोग रो पड़ें वो है संगीत' |accessmonthday=20 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.bbc.com/hindi |language=हिंदी }}</ref>
|चित्र=Siddheshwari-Devi.jpg
 
|चित्र का नाम=सिद्धेश्वरी देवी
 
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|जन्म=[[8 अगस्त]], [[1908]]
 
|जन्म भूमि=[[वाराणसी]]
 
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|कर्म भूमि=मुम्बई
 
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|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्मश्री]]
 
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'''सिद्धेश्वरी देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Siddheshwari Devi'', जन्म: [[8 अगस्त]], [[1908]], [[वाराणसी]]; मृत्यु: [[17 मार्च]], [[1977]]) प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत गायिका थीं। उस काल में गाने व नाचने वालों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था और महिला कलाकारों को तो वेश्या ही मान लिया जाता था। ऐसे समय में सिद्धेश्वरी देवी ने अपनी कला के माध्यम से भरपूर मान और सम्मान अर्जित किया। उन्हें निर्विवाद रूप से ठुमरी गायन की साम्राज्ञी मान लिया गया।<ref>{{cite web |url=https://www.facebook.com/GeneralKnowledgeandIndianHistory/posts/831936316908485 |title=सुरों की सिद्धेश्वरी |accessmonthday=18 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.facebook.com |language=हिंदी}}</ref>
 
 
 
 
==परिचय==
 
==परिचय==
सिद्धेश्वरी देवी का जन्म 8 अगस्त, 1908 को वाराणसी ([[उत्तर प्रदेश]]]) में हुआ था। अपने जीवन काल में निर्विवाद रूप से उन्हें ठुमरी गायन की साम्राज्ञी मान लिया गया । इनके पिता श्री श्याम तथा माता श्रीमती चंदा उर्फ श्यामा थीं। जब ये डेढ़ वर्ष की ही थीं, तब इनकी माता का निधन हो गया। अतः इनका पालन इनकी नानी मैनाबाई ने किया, जो एक लोकप्रिय गायिका व नर्तकी थीं। सिद्धेश्वरी देवी का बचपन का नाम गोनो था। उन्हें सिद्धेश्वरी देवी नाम प्रख्यात विद्वान व ज्योतिषी पंडित महादेव प्रसाद मिश्र (बच्चा पंडित) ने दिया।
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रीता गांगुली का जन्म 1940 में लखनऊ के ब्राह्मण घराने में था। उनका सुर से रिश्ता तभी जुड़ गया था जब बचपन में उनकी माँ लोरी सुनाया करती थीं। हमारे यहाँ किसी ने कभी भी गाना नहीं गाया। मैं ब्राह्मण घराने में पैदा हुई जहां घर के अलावा गाने पर पाबंदी थी हालाँकि मेरे पिता गाने सुनने के शौकीन थे। मुझे याद है बचपन की, हमारे घर रसूलन बाई आती थीं. वो मेरे पिता को भाई मानती थीं। तो इस तरह मुझे बचपन में ही बहुतों को सुनने का मौक़ा मिला।
 
====संगीत की शिक्षा====
 
====संगीत की शिक्षा====
सिद्धेश्वरी देवी ने संगीत की शिक्षा पंडित सिया जी मिश्र, पंडित बड़े रामदास जी, उस्ताद रज्जब अली खां और इनायत खां आदि से ली। ईश्वर प्रदत्त जन्मजात प्रतिभा के बाद ऐसे श्रेष्ठ गुरुओं का सान्निध्य पाकर सिद्धेश्वरी देवी गीत-संगीत के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध हस्ती बन गयीं।
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रीता गांगुली सिद्धेश्वरी देवी की पहली गंडा-बंद शिष्या थीं। बेगम अख़्तर से उनकी मुलाकात लखनऊ के एक कार्यक्रम के दौरान हुई जहाँ वो उन्हें पसंद आ गई। कार्यक्रम ख़त्म होने पर बेगम अख़्तर ने सिद्धेश्वरी देवी से कहा, "मुझे तुम से कुछ चाहिए।" सिद्धेश्वरी देवी ने कहा, "ज़िदगी भर मांगती आई हो, कभी किसी को कुछ दिया भी है?" बेगम ने अपनी खूबसूरत मुस्कुराहट के साथ कहा, “यह तो अपनी अपनी-अपनी क़िस्मत है। मैं मांगती हूँ मुझे मिल जाता है और तुम हो कि मांगना ही नहीं जानती।" वह बहुत ऐतिहासिक दिन था। तक़रीबन तीस साल बाद दोनों कलाकार रूबरू हुई थीं। इस तरह बेगम ने मुझे सिद्धेश्वरी देवी से मांग लिया और मैं उनकी शिष्या बन गई। बेगम अख़्तर की यह ख़ासियत और खूबी थी कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि जो तुमने सिद्धेश्वरी से सीखा है उसे भूल जाओ। रीता गांगुली के घर के लोग गाना सीखने के ख़िलाफ़ थे। बेगम अख़्तर कहती थीं, "जो तुमने सिद्धेश्वरी देवी से सीखा है वह ख़ालिस चौबीस कैरट सोना है। लेकिन ख़ालिस सोने के गहने से तो कुछ होगा नहीं उसमें एक दो हीरे के नग भी जड़ने चाहिए। तब वह बेशकीमती गहना बन पाएगा और वह मैं जड़ूँगी।" इस तरह वह हमारी क़ाबिलियत के मुताबिक़ हमें सिखाती थी। मैंने बेगम से शायरी का चयन और तर्ज़ देने का हुनर सीखा।
==कॅरियर की शुरुआत==
 
सिद्धेश्वरी देवी को पहली बार 17 साल की अवस्था में सरगुजा के युवराज के विवाहोत्सव में गाने का अवसर मिला। उनके पास अच्छे वस्त्र नहीं थे। ऐसे में विद्याधरी देवी ने इन्हें वस्त्र दिये। वहां से सिद्धेश्वरी देवी का नाम सब ओर फैल गया। एक बार तो [[मुंबई]] के एक समारोह में वरिष्ठ गायिका केसरबाई इनके साथ ही उपस्थित थीं। जब उनसे ठुमरी गाने को कहा गया, तो उन्होंने कहा कि जहां ठुमरी साम्राज्ञी सिद्धेश्वरी देवी हों वहां मैं कैसे गा सकती हूं। अधिकांश बड़े संगीतकारों का भी यही मत था कि मलका और गौहर के बाद ठुमरी के सिंहासन पर बैठने की अधिकार सिद्धेश्वरी देवी ही हैं। उन्होंने [[पाकिस्तान]], [[अफ़ग़ानिस्तान]], [[नेपाल]] तथा अनेक यूरोपीय देशों में जाकर भारतीय ठुमरी की धाक जमाई। उन्होंने राजाओं और जमीदारों के दरबारों से अपने प्रदर्शन प्रारम्भ किये और बढ़ते हुए आकाशवाणी और दूरदर्शन तक पहुंचीं। जैसे-जैसे समय और श्रोता बदले, उन्होंने अपने संगीत में परिवर्तन किया, यही उनका सफलता का रहस्य था। सिद्धेश्वरी देवी ने श्रीराम भारतीय कला केन्द्र, [[दिल्ली]] और कथक केन्द्र में नये कलाकारों को ठुमरी सिखाई।
 
  
सिद्धेश्वरी देवी ने उषा मूवीटोन की कुछ फ़िल्मों में अभिनय भी किया पर शीघ्र ही वे समझ गयीं कि उनका क्षेत्र केवल गायन है। उन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन में खुलकर तो भाग नहीं लिया पर उसके लिए वे आर्थिक सहायता करती रहती थीं। उन दिनों वे अपने कार्यक्रमों में यह भजन अवश्य गाती थीं।
 
  
:::'''मथुरा सही गोकुल न सही, रहो वंशी बजाते कहीं न कहीं।'''
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रीता गांगुली अपनी दोनों गुरूओं की तुलना करूँ तो सिद्धेश्वरी जी बहुत मेहनत चाहती थीं वह चाहती थीं कि हूबहू उनकी नक़ल की जाए। जबकि बेग़म हमें अपनी शख़्सियत उभारने का पूरा मौक़ा देती थीं। वो कहती थीं,” मैं चाहती हूं मेरी रूह तुम्हारी मौसीक़ी में झलके” दोनो में यह बुनियादी फर्क था। घर पर संगीत का माहौल तो था नहीं लिहाज़ा प्रोत्साहन का तो सवाल ही नहीं उठता। बल्कि जब संगीत की तरफ रूझान बढ़ने लगा तो पिता जी ने समझाया कि अपना ध्यान पढ़ाई में लगाओ क्योंकि जिस दिन तुम क्लास में दूसरे नंबर पर आओगी उस दिन तुम्हें अपना गाना छोड़ना पड़ेगा। लेकिन उनकी ज़िद कहें या कि लगन पढ़ाई में अव्वल आते हुए  भी उन्होंने संगीत जारी रखा।
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==फ़िल्म के लिए गाना==
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रीता गांगुली को फ़िल्मी दुनिया में जाने की ख़्वाहिश कभी नहीं रहीं। उन्हें लगता है कि आज भी वह किसी मुक़ाम पर नहीं पहुँची हैं। यह महज़ इत्तेफ़ाक़ है कि उन्होंने जगमोहन मूदड़ा जी की फ़िल्म 'बवंडर' में 'केसारिया बालम' गाया। हालांकि [[राज कपूर]] ने फ़िल्म 'हिना' के लिए भी गाने को कहा था लेकिन वह 'हां' न कर सकी। 'परिणीता' में उन्हें इसलिए गाना पड़ा क्योंकि शरतचंद और प्रदीप सरकार की वो भक्त हैं। प्रदीप सरकार आज के [[सत्यजीत राय]] हैं।
  
:::'''दीन भारत का दुख अब दूर करो, रहो झलक दिखाते कहीं न कहीं।।'''
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[[शम्भू महाराज]] जी लोगों को नाच कर रुलाते थे, [[सिद्धेश्वरी देवी|सिद्धेश्वरी जी]] के क्या कहने, [[बेगम अख़्तर]] उस तरह से आज भी ज़िंदा हैं। आजकल वह कुछ ऐसे ग़रीब बच्चों को संगीत सिखा रही हैं जिनके पास किसी उस्ताद के पास जाकर सीखने के साधन नहीं हैं। एक कोशिश है, बच्चों को सिख कर ख़ुशी मिल रही है और मुझे उन्हें सिखा कर मज़ा आ रहा है।"
==सम्मान एवं पुरस्कार==
 
सिद्धेश्वरी देवी को अपने जीवन काल बहुत-से पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है-
 
*[[भारत सरकार]] द्वारा [[पद्मश्री]] पुरस्कार
 
*साहित्य कला परिषद सम्मान ([[उत्तर प्रदेश]])
 
*संगीत नाटक अकादमी सम्मान
 
*केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी सम्मान
 
==निधन==
 
सिद्धेश्वरी देवी पर [[26 जून]], [[1976]] को उन पर पक्षाघात का आक्रमण हुआ और [[17 मार्च]], [[1977]] की प्रातः वे ब्रह्मलीन हो गयीं। उनकी पुत्री सविता देवी भी प्रख्यात गायिका हैं। उन्होंने अपनी मां की स्मृति में 'सिद्धेश्वरी देवी एकेडेमी ऑफ़ म्यूजिक' की स्थापना की है। इसके माध्यम से वे प्रतिवर्ष संगीत समारोह आयोजित कर वरिष्ठ संगीत साधकों को सम्मानित करती हैं।
 

13:11, 20 जून 2017 का अवतरण

रीता गांगुली (अंग्रेज़ी: Rita Ganguly, जन्म: 1940 लखनऊ भारतीय शास्त्रीय संगीत गायिका थीं। अपनी प्रतिभा और लगन की वजह से वह अपनी दोनों उस्तादों यानी सिद्धेश्वरी देवी और बेग़म अख़्तर के भरोसे पर खरी उतरीं। रीता गांगुली को उनके योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। इन दिनों वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में माइम का हुनर सिखाने के साथ ही साथ आजकल ग़रीब बच्चों को भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने में जुटी हुई हैं।[1]

परिचय

रीता गांगुली का जन्म 1940 में लखनऊ के ब्राह्मण घराने में था। उनका सुर से रिश्ता तभी जुड़ गया था जब बचपन में उनकी माँ लोरी सुनाया करती थीं। हमारे यहाँ किसी ने कभी भी गाना नहीं गाया। मैं ब्राह्मण घराने में पैदा हुई जहां घर के अलावा गाने पर पाबंदी थी हालाँकि मेरे पिता गाने सुनने के शौकीन थे। मुझे याद है बचपन की, हमारे घर रसूलन बाई आती थीं. वो मेरे पिता को भाई मानती थीं। तो इस तरह मुझे बचपन में ही बहुतों को सुनने का मौक़ा मिला।

संगीत की शिक्षा

रीता गांगुली सिद्धेश्वरी देवी की पहली गंडा-बंद शिष्या थीं। बेगम अख़्तर से उनकी मुलाकात लखनऊ के एक कार्यक्रम के दौरान हुई जहाँ वो उन्हें पसंद आ गई। कार्यक्रम ख़त्म होने पर बेगम अख़्तर ने सिद्धेश्वरी देवी से कहा, "मुझे तुम से कुछ चाहिए।" सिद्धेश्वरी देवी ने कहा, "ज़िदगी भर मांगती आई हो, कभी किसी को कुछ दिया भी है?" बेगम ने अपनी खूबसूरत मुस्कुराहट के साथ कहा, “यह तो अपनी अपनी-अपनी क़िस्मत है। मैं मांगती हूँ मुझे मिल जाता है और तुम हो कि मांगना ही नहीं जानती।" वह बहुत ऐतिहासिक दिन था। तक़रीबन तीस साल बाद दोनों कलाकार रूबरू हुई थीं। इस तरह बेगम ने मुझे सिद्धेश्वरी देवी से मांग लिया और मैं उनकी शिष्या बन गई। बेगम अख़्तर की यह ख़ासियत और खूबी थी कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि जो तुमने सिद्धेश्वरी से सीखा है उसे भूल जाओ। रीता गांगुली के घर के लोग गाना सीखने के ख़िलाफ़ थे। बेगम अख़्तर कहती थीं, "जो तुमने सिद्धेश्वरी देवी से सीखा है वह ख़ालिस चौबीस कैरट सोना है। लेकिन ख़ालिस सोने के गहने से तो कुछ होगा नहीं उसमें एक दो हीरे के नग भी जड़ने चाहिए। तब वह बेशकीमती गहना बन पाएगा और वह मैं जड़ूँगी।" इस तरह वह हमारी क़ाबिलियत के मुताबिक़ हमें सिखाती थी। मैंने बेगम से शायरी का चयन और तर्ज़ देने का हुनर सीखा।


रीता गांगुली अपनी दोनों गुरूओं की तुलना करूँ तो सिद्धेश्वरी जी बहुत मेहनत चाहती थीं वह चाहती थीं कि हूबहू उनकी नक़ल की जाए। जबकि बेग़म हमें अपनी शख़्सियत उभारने का पूरा मौक़ा देती थीं। वो कहती थीं,” मैं चाहती हूं मेरी रूह तुम्हारी मौसीक़ी में झलके” दोनो में यह बुनियादी फर्क था। घर पर संगीत का माहौल तो था नहीं लिहाज़ा प्रोत्साहन का तो सवाल ही नहीं उठता। बल्कि जब संगीत की तरफ रूझान बढ़ने लगा तो पिता जी ने समझाया कि अपना ध्यान पढ़ाई में लगाओ क्योंकि जिस दिन तुम क्लास में दूसरे नंबर पर आओगी उस दिन तुम्हें अपना गाना छोड़ना पड़ेगा। लेकिन उनकी ज़िद कहें या कि लगन पढ़ाई में अव्वल आते हुए भी उन्होंने संगीत जारी रखा।

फ़िल्म के लिए गाना

रीता गांगुली को फ़िल्मी दुनिया में जाने की ख़्वाहिश कभी नहीं रहीं। उन्हें लगता है कि आज भी वह किसी मुक़ाम पर नहीं पहुँची हैं। यह महज़ इत्तेफ़ाक़ है कि उन्होंने जगमोहन मूदड़ा जी की फ़िल्म 'बवंडर' में 'केसारिया बालम' गाया। हालांकि राज कपूर ने फ़िल्म 'हिना' के लिए भी गाने को कहा था लेकिन वह 'हां' न कर सकी। 'परिणीता' में उन्हें इसलिए गाना पड़ा क्योंकि शरतचंद और प्रदीप सरकार की वो भक्त हैं। प्रदीप सरकार आज के सत्यजीत राय हैं।

शम्भू महाराज जी लोगों को नाच कर रुलाते थे, सिद्धेश्वरी जी के क्या कहने, बेगम अख़्तर उस तरह से आज भी ज़िंदा हैं। आजकल वह कुछ ऐसे ग़रीब बच्चों को संगीत सिखा रही हैं जिनके पास किसी उस्ताद के पास जाकर सीखने के साधन नहीं हैं। एक कोशिश है, बच्चों को सिख कर ख़ुशी मिल रही है और मुझे उन्हें सिखा कर मज़ा आ रहा है।"

  1. 'जिसे सुनकर लोग रो पड़ें वो है संगीत' (हिंदी) www.bbc.com/hindi। अभिगमन तिथि: 20 जून, 2017।