"नगरकोट" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''नगरकोट''' हिमाचल प्रदेश के वर्तमान नगर कांगड़ा क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{सूचना बक्सा पर्यटन
 +
|चित्र=Kangra-1.jpg
 +
|चित्र का नाम=[[कांगड़ा]] (नगरकोट) का एक दृश्य
 +
|विवरण=नगरकोट''' [[हिमाचल प्रदेश]] के वर्तमान नगर [[कांगड़ा]] का प्राचीन नाम है। यह नगर [[हिमालय]] की तराइ के दक्षिणी सिरे पर बसा हुआ है।
 +
|राज्य=[[हिमाचल प्रदेश]]
 +
|केन्द्र शासित प्रदेश=
 +
|ज़िला=[[कांगड़ा]] ज़िला
 +
|निर्माता=
 +
|स्वामित्व=
 +
|प्रबंधक=
 +
|निर्माण काल=
 +
|स्थापना=
 +
|भौगोलिक स्थिति=उत्तर- 31.97°, पूर्व- 77.10°
 +
|मार्ग स्थिति=
 +
|प्रसिद्धि=
 +
|कब जाएँ=[[अप्रैल]] और [[जून]]
 +
|यातायात=
 +
|हवाई अड्डा=
 +
|रेलवे स्टेशन=
 +
|बस अड्डा=
 +
|कैसे पहुँचें=पर्यटक मणिकरण रेल मार्ग, हवाई मार्ग या फिर सड़क मार्ग द्वारा भी आसानी से आ सकते हैं।
 +
|क्या देखें=
 +
|कहाँ ठहरें=होटल, अतिथि-ग्रह, धर्मशाला
 +
|क्या खायें=
 +
|क्या ख़रीदें=
 +
|एस.टी.डी. कोड=
 +
|ए.टी.एम=
 +
|सावधानी=
 +
|मानचित्र लिंक=
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=
 +
|पाठ 1=
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 
'''नगरकोट''' [[हिमाचल प्रदेश]] के वर्तमान नगर [[कांगड़ा]] का प्राचीन नाम है। यह नगर [[हिमालय]] की तराइ के दक्षिणी सिरे पर बसा हुआ है, जो [[व्यास नदी]] के द्वारा अपवाहित होती है। यह धर्मशाला से ठीक दक्षिण-पश्चिम में रेलवे की छोटी लाइन पर 734 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
 
'''नगरकोट''' [[हिमाचल प्रदेश]] के वर्तमान नगर [[कांगड़ा]] का प्राचीन नाम है। यह नगर [[हिमालय]] की तराइ के दक्षिणी सिरे पर बसा हुआ है, जो [[व्यास नदी]] के द्वारा अपवाहित होती है। यह धर्मशाला से ठीक दक्षिण-पश्चिम में रेलवे की छोटी लाइन पर 734 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
प्राचीन और मध्य काल में कांगड़ा को नगरकोट के नाम से जाना जाता था। तब यह [[राजपूत]] राजाओं का गढ़ था। 1009 ई. में अफ़ग़ानी विजेता [[महमूद गज़नवी]] ने इस नगर में लूटपाट की और 1360 में बादशाह [[फ़िरोज़शाह तुग़लक़]] ने भी इसे लूटा। बाद में यह मुग़लों के अधिकार में आ गया। 18वीं और 19वीं शताब्दी में कांगड़ा, [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा घाटी चित्रकला]] की प्रख्यात शैली का केन्द्र बन गया, जिसे राजपूत लघु चित्रकला के नाम से भी जाना जाता है। [[1905]] में एक [[भूकम्प]] ने इस नगर को तबाह कर दिया; इस भूकम्प में देवी का मन्दिर, जो [[उत्तरी भारत]] के प्राचीनतम मन्दिरों में से एक था, भी नेस्तनाबूद हो गया, लेकिन इसका पुर्ननिर्माण करवाया गया। 18वीं शती में फ़िरोज़ तुग़लक़ ने नगरकोट पर आक्रमण किया तथा यहाँ के ज्वालामुखी मन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। किन्तु लगभग नौ मास तक दुर्ग के घिरे रहने के पश्चात ही वहाँ के राजा रूपचंद्र ने सुल्तान से सन्धि की वार्ता प्रारम्भ की। 14वीं शती के प्रारम्भ में काँगड़ा नरेश हरिश्चंद्र [[गुलेर]] के जंगलों में आख़ेट करता हुआ एक कुएँ में गिर गया। उसके राजधानी में न लौटने पर उसके छोटे भाई को कांगड़ा की गद्दी पर बिठा दिया गया किन्तु हरिश्चंद्र को पास से गुज़रते हुए एक व्यापारी ने कुएँ से निकाल लिया और वह कांगड़ा लौट आया। [[चित्र:Kangra-1.jpg|thumb|left|250px|कांगड़ा का एक दृश्य]]  हरिश्चंद्र का अपने भाई के साथ झगड़ा स्वाभाविक रूप से हो सकता था, किन्तु उसने उदारता और बुद्धिमानी से काम लिया और नए राज्य की नींव डाली, और कांगड़ा पर छोटे भाई को ही राज्य करने दिया। मुग़ल सम्राट [[अकबर]] के समय में कांगड़ा नरेश ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। 1619 ई. में [[जहाँगीर]] ने एक वर्ष के घेरे के उपरान्त दुर्ग को हस्तगत कर लिया। वह [[नूरजहाँ]] के साथ दो वर्ष पश्चात कांगड़ा आया, जिसका स्मारक दुर्ग का जहाँगीर दरवाज़ा है।
+
प्राचीन और मध्य काल में कांगड़ा को नगरकोट के नाम से जाना जाता था। तब यह [[राजपूत]] राजाओं का गढ़ था। 1009 ई. में अफ़ग़ानी विजेता [[महमूद गज़नवी]] ने इस नगर में लूटपाट की और 1360 में बादशाह [[फ़िरोज़शाह तुग़लक़]] ने भी इसे लूटा। बाद में यह मुग़लों के अधिकार में आ गया। 18वीं और 19वीं शताब्दी में कांगड़ा, [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा घाटी चित्रकला]] की प्रख्यात शैली का केन्द्र बन गया, जिसे राजपूत लघु चित्रकला के नाम से भी जाना जाता है। [[1905]] में एक [[भूकम्प]] ने इस नगर को तबाह कर दिया; इस भूकम्प में देवी का मन्दिर, जो [[उत्तरी भारत]] के प्राचीनतम मन्दिरों में से एक था, भी नेस्तनाबूद हो गया, लेकिन इसका पुर्ननिर्माण करवाया गया। 18वीं शती में फ़िरोज़ तुग़लक़ ने नगरकोट पर आक्रमण किया तथा यहाँ के ज्वालामुखी मन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। किन्तु लगभग नौ मास तक दुर्ग के घिरे रहने के पश्चात् ही वहाँ के राजा रूपचंद्र ने सुल्तान से सन्धि की वार्ता प्रारम्भ की। 14वीं शती के प्रारम्भ में काँगड़ा नरेश हरिश्चंद्र [[गुलेर]] के जंगलों में आख़ेट करता हुआ एक कुएँ में गिर गया। उसके राजधानी में न लौटने पर उसके छोटे भाई को कांगड़ा की गद्दी पर बिठा दिया गया किन्तु हरिश्चंद्र को पास से गुज़रते हुए एक व्यापारी ने कुएँ से निकाल लिया और वह कांगड़ा लौट आया। हरिश्चंद्र का अपने भाई के साथ झगड़ा स्वाभाविक रूप से हो सकता था, किन्तु उसने उदारता और बुद्धिमानी से काम लिया और नए राज्य की नींव डाली, और कांगड़ा पर छोटे भाई को ही राज्य करने दिया। मुग़ल सम्राट [[अकबर]] के समय में कांगड़ा नरेश ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। 1619 ई. में [[जहाँगीर]] ने एक वर्ष के घेरे के उपरान्त दुर्ग को हस्तगत कर लिया। वह [[नूरजहाँ]] के साथ दो वर्ष पश्चात् कांगड़ा आया, जिसका स्मारक दुर्ग का जहाँगीर दरवाज़ा है।
  
  
पंक्ति 8: पंक्ति 46:
 
<references/>
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक नगर}}
+
{{हिमाचल प्रदेश के नगर}}
 
[[Category:हिमाचल प्रदेश]][[Category:हिमाचल प्रदेश के नगर]][[Category:हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]][[Category:भारत के नगर]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
 
[[Category:हिमाचल प्रदेश]][[Category:हिमाचल प्रदेश के नगर]][[Category:हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]][[Category:भारत के नगर]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

07:48, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

नगरकोट
कांगड़ा (नगरकोट) का एक दृश्य
विवरण नगरकोट हिमाचल प्रदेश के वर्तमान नगर कांगड़ा का प्राचीन नाम है। यह नगर हिमालय की तराइ के दक्षिणी सिरे पर बसा हुआ है।
राज्य हिमाचल प्रदेश
ज़िला कांगड़ा ज़िला
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 31.97°, पूर्व- 77.10°
कब जाएँ अप्रैल और जून
कैसे पहुँचें पर्यटक मणिकरण रेल मार्ग, हवाई मार्ग या फिर सड़क मार्ग द्वारा भी आसानी से आ सकते हैं।
कहाँ ठहरें होटल, अतिथि-ग्रह, धर्मशाला

नगरकोट हिमाचल प्रदेश के वर्तमान नगर कांगड़ा का प्राचीन नाम है। यह नगर हिमालय की तराइ के दक्षिणी सिरे पर बसा हुआ है, जो व्यास नदी के द्वारा अपवाहित होती है। यह धर्मशाला से ठीक दक्षिण-पश्चिम में रेलवे की छोटी लाइन पर 734 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

इतिहास

प्राचीन और मध्य काल में कांगड़ा को नगरकोट के नाम से जाना जाता था। तब यह राजपूत राजाओं का गढ़ था। 1009 ई. में अफ़ग़ानी विजेता महमूद गज़नवी ने इस नगर में लूटपाट की और 1360 में बादशाह फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने भी इसे लूटा। बाद में यह मुग़लों के अधिकार में आ गया। 18वीं और 19वीं शताब्दी में कांगड़ा, कांगड़ा घाटी चित्रकला की प्रख्यात शैली का केन्द्र बन गया, जिसे राजपूत लघु चित्रकला के नाम से भी जाना जाता है। 1905 में एक भूकम्प ने इस नगर को तबाह कर दिया; इस भूकम्प में देवी का मन्दिर, जो उत्तरी भारत के प्राचीनतम मन्दिरों में से एक था, भी नेस्तनाबूद हो गया, लेकिन इसका पुर्ननिर्माण करवाया गया। 18वीं शती में फ़िरोज़ तुग़लक़ ने नगरकोट पर आक्रमण किया तथा यहाँ के ज्वालामुखी मन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। किन्तु लगभग नौ मास तक दुर्ग के घिरे रहने के पश्चात् ही वहाँ के राजा रूपचंद्र ने सुल्तान से सन्धि की वार्ता प्रारम्भ की। 14वीं शती के प्रारम्भ में काँगड़ा नरेश हरिश्चंद्र गुलेर के जंगलों में आख़ेट करता हुआ एक कुएँ में गिर गया। उसके राजधानी में न लौटने पर उसके छोटे भाई को कांगड़ा की गद्दी पर बिठा दिया गया किन्तु हरिश्चंद्र को पास से गुज़रते हुए एक व्यापारी ने कुएँ से निकाल लिया और वह कांगड़ा लौट आया। हरिश्चंद्र का अपने भाई के साथ झगड़ा स्वाभाविक रूप से हो सकता था, किन्तु उसने उदारता और बुद्धिमानी से काम लिया और नए राज्य की नींव डाली, और कांगड़ा पर छोटे भाई को ही राज्य करने दिया। मुग़ल सम्राट अकबर के समय में कांगड़ा नरेश ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। 1619 ई. में जहाँगीर ने एक वर्ष के घेरे के उपरान्त दुर्ग को हस्तगत कर लिया। वह नूरजहाँ के साथ दो वर्ष पश्चात् कांगड़ा आया, जिसका स्मारक दुर्ग का जहाँगीर दरवाज़ा है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख