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'''अन्नपूर्णा देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Annapurna Devi'' मूल नाम- रोशनआरा ख़ान, जन्म: [[23 अप्रैल]], [[1927]], [[मध्य प्रदेश]]) भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र (बास का [[सितार]]) बजाने वाली एकमात्र महिला उस्ताद हैं। ये प्रख्यात संगीतकार [[अलाउद्दीन ख़ान]] की बेटी और शिष्या हैं। वह विश्व प्रसिद्ध [[सितार वादक]] [[रवि शंकर|पंडित रवि शंकर]] की पूर्व पत्नि हैं। इनके पिता तत्कालीन प्रसिद्ध ‘सेनिया मैहर घराने’ या ‘सेनिया मैहर स्कूल’ के संस्थापक थे। यह घराना 20वीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित घराना के रूप में अपना स्थान बनाए हुए था।
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'''अन्नपूर्णा देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Annapurna Devi'' मूल नाम- रोशनआरा ख़ान, जन्म: [[23 अप्रैल]], [[1927]], [[मध्य प्रदेश]]) भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र (बास का [[सितार]]) बजाने वाली एकमात्र महिला उस्ताद हैं। ये प्रख्यात संगीतकार [[अलाउद्दीन ख़ान]] की बेटी और शिष्या हैं। वह विश्व प्रसिद्ध [[सितार वादक]] [[रवि शंकर|पंडित रवि शंकर]] की पूर्व पत्नि हैं। इनके पिता तत्कालीन प्रसिद्ध ‘सेनिया मैहर घराने’ या ‘सेनिया मैहर स्कूल’ के संस्थापक थे। यह घराना 20वीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित घराना के रूप में अपना स्थान बनाए हुए था।<ref>{{cite web |url=http://www.itshindi.com/annapurna-devi.html |title=अन्नपूर्णा देवी |accessmonthday=24 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.itshindi.com |language=हिंदी }}</ref>
  
 
वर्ष [[1950]] के दशक में पंडित रवि शंकर और अन्नपूर्णा देवी युगल संगीतकार के रूप में अपनी प्रस्तुति देते रहे, विशेषकर अपने भाई अली अकबर ख़ान के संगीत विद्यालय में। लेकिन बाद में शंकर कार्यक्रमों के दौरान संगीत को लेकर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि दर्शक शंकर की अपेक्षा अन्नपूर्णा के लिए अधिक तालियाँ और उत्साह दिख़ाने लगे थे। इसके परिणाम स्वरूप अन्नपूर्णा ने सार्वजानिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति न देने का निश्चय कर लिया।
 
वर्ष [[1950]] के दशक में पंडित रवि शंकर और अन्नपूर्णा देवी युगल संगीतकार के रूप में अपनी प्रस्तुति देते रहे, विशेषकर अपने भाई अली अकबर ख़ान के संगीत विद्यालय में। लेकिन बाद में शंकर कार्यक्रमों के दौरान संगीत को लेकर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि दर्शक शंकर की अपेक्षा अन्नपूर्णा के लिए अधिक तालियाँ और उत्साह दिख़ाने लगे थे। इसके परिणाम स्वरूप अन्नपूर्णा ने सार्वजानिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति न देने का निश्चय कर लिया।
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==पुरस्कार एवं सम्मान==
 
==पुरस्कार एवं सम्मान==
 
अन्नपूर्णा देवी को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है-
 
अन्नपूर्णा देवी को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है-
वर्ष [[2004]] - [[भारत सरकार]] द्वारा स्थापित ‘संगीत नाटक अकादमी’ ने इन्हें अपना (ज्वेल फेलो) घोषित किया।
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*वर्ष [[2004]] - [[भारत सरकार]] द्वारा स्थापित ‘संगीत नाटक अकादमी’ ने इन्हें अपना (ज्वेल फेलो) घोषित किया।
वर्ष [[1999]] - रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित ‘विश्व-भारती विश्वविद्यालय’ ने इन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया।
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*वर्ष [[1999]] - रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित ‘विश्व-भारती विश्वविद्यालय’ ने इन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया।
वर्ष [[1991]] - संगीत नाटक अकादमी द्वारा भारतीय संगीत कला को आगे बढ़ाने में इनके द्वारा दिये गये विशेष योगदान के लिए इन्हें सर्वोच्च सम्मान ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ से नवाजा गया।
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*वर्ष [[1991]] - संगीत नाटक अकादमी द्वारा भारतीय संगीत कला को आगे बढ़ाने में इनके द्वारा दिये गये विशेष योगदान के लिए इन्हें सर्वोच्च सम्मान ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ से नवाजा गया।
वर्ष [[1977]] - अन्नपूर्णा देवी को भारत सरकार ने अपने तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘[[पद्मभूषण]]’ से सम्मानित किया|
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*वर्ष [[1977]] - अन्नपूर्णा देवी को भारत सरकार ने अपने तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘[[पद्मभूषण]]’ से सम्मानित किया।
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{{सूचना बक्सा ख़्वाजा खुर्शीद अनवर}}
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'''ख़्वाजा खुर्शीद अनवर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Khwaja Khurshid Anwar'', जन्म: [[21 मार्च]], [[1912]], [[पंजाब]], मृत्य: [[30 अक्टूबर]], [[1984]], [[लाहौर]]) प्रसिद्ध संगीतकार थे, जिन्होंने [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] दोनों में काफी लोकप्रियता हासिल की थी।<ref>{{cite web |url=http://radioplaybackindia.blogspot.in/search/label/khursheed%20anwar |title="दिल आने के ढंग निराले हैं" - वाक़ई निराला था ख़ुर्शीद अनवर का संगीत जिनकी आज १०१-वीं जयन्ती है! |accessmonthday=24 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=radioplaybackindia.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref>
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==परिचय==
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{{मुख्य| ख़्वाजा खुर्शीद अनवर का परिचय}}
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खुर्शीद अनवर का जन्म 21 मार्च, 1912 को मियाँवाली, पंजाब (अब [[पाकिस्तान]]) में हुआ था। उनके नाना ख़ान बहादुर डॉ. शेख़ अट्टा मोहम्मद सिविल सर्जन थे और उनके पिता ख़्वाजा फ़िरोज़ुद्दीन अहमद [[लाहौर]] के एक जानेमाने बैरिस्टर। [[1947]] में देश के विभाजन के बाद वह भारत से पाक़िस्तान जा बसे।
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====शिक्षा====
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खुर्शीद अपने [[नाना]] और [[पिता]] की ही तरह मेधावी भी थे। वे सरकारी कॉलेज, [[लाहौर]] के एक मेधावी छात्र रहे। खुर्शीद अनवर ने [[पंजाब विश्वविद्यालय]] से एम.ए [[दर्शनशास्त्र]] में प्रथम श्रेणी आने के बाद प्रतिष्ठित ICS परीक्षा के लिखित चरण में सफल होने के बावजूद उसके साक्षात्कार चरण में शामिल न होकर संगीत के क्षेत्र को चुना था।
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==संगीत की शिक्षा==
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खुर्शीद अनवर के पिता को संगीत का इतना ज़्यादा शौक था कि उनके पास ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड्स का एक बहुत बड़ा संग्रह था। इस तरह से बेटे खुर्शीद को घर पर ही संगीत का माहौल मिल गया। बेटे की संगीत में दिलचस्पी के मद्देनज़र उनके पिता ने उन्हें ख़ानसाहिब तवक्कल हुसैन के पास संगीत सीखने भेज दिया। खुर्शीद अनवर ने अपनी मेधा को संगीत क्षेत्र में लाकर अत्यन्त कर्णप्रिय धुनें उन्होंने बनाई। नौशाद, रोशन, शंकर जयकिशन जैसे संगीतकार खुर्शीद अनवर को पाँचवे दशक के सर्वोत्तम संगीतकारों में मानते थे।
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==कॅरियर==
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{{मुख्य| ख़्वाजा खुर्शीद अनवर का कॅरियर}}
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ख़ुरशीद अनवर ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत आल इण्डिया रेडियो के संगीत विभाग में प्रोड्युसर-इन-चार्ज की हैसियत से की थी। फ़िल्मों में संगीत निर्देशक के रूप में पहली बार उन्हें पंजाबी फ़िल्म 'कुड़माई' में सन [[1941]] में संगीत देने का अवसर मिला जिसमें वास्ती, जगदीश, राधारानी, [[जीवन (अभिनेता)|जीवन]] आदि कलाकारों ने अभिनय किया था। निर्देशक थे जे. के. नन्दा। उनके मधुर संगीत से सजी पहली हिंदी फ़िल्म थी 'इशारा' जो सन [[1943]] में प्रदर्शित हुई थी। फ़िल्म के डी. एन. मधोक लिखित सभी 9 गीतों को सुरैय्या के गाए 'पनघट पे मुरलिया बाजे' तथा गौहर सुल्ताना के गाए 'शबनम क्यों नीर बहाए' विशेष लोकप्रिय हुए थे। अभिनेत्री वत्सला कुमठेकर ने भी फ़िल्म में दो गीत गाए थे - 'दिल लेके दगा नहीं देना' तथा 'इश्क़ का दर्द सुहाना'।
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खुर्शीद अनवर देश-विभाजन के बाद [[पाकिस्तान]] चले गए थे, जहाँ जनवरी [[1948]] में उनका [[विवाह]] हुआ। अपने घनिष्ठ मित्र व फ़िल्म निर्माता जे. के. नन्दा के बुलावे पर मध्य 1948 में पुन: [[बम्बई]] आकर फ़िल्म 'सिंगार' में संगीत दिया जो [[1949]] में जाकर प्रदर्शित हुई। 'सिंगार' के मुख्य कलाकार थे- [[जयराज |जयराज]], [[मधुबाला]] और [[सुरैया]]। जहाँ एक तरफ़ सुरैया ने अपने ऊपर फ़िल्माए गानें ख़ुद ही गाए, वहीं दूसरी तरफ़ मधुबाला के पार्श्वगायन के लिए गायिका सुरिन्दर कौर को चुना गया। खुर्शीद अनवर ने सुरिन्दर कौर से इस फ़िल्म में कुल पाँच गानें गवाए।
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;पहली फ़िल्म
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खुर्शीद अनवर की पहली हिन्दी फ़िल्म 'इशारा' और 'सिंगार' में यह समानता है कि दोनों फ़िल्मों में उन्होंने हरियाणा के लोक संगीत का शुद्ध रूप से प्रयोग किया है। 'इशारा' में 'पनघट पे मुरलिया बाजे' और 'सजनवा आजा रे खेलें दिल के खेल' जैसे गीत थे तो 'सिंगार' में 'चंदा रे मैं तेरी गवाही लेने आई' और 'नया नैंनो में रंग' जैसी मधुर रचनाएँ थीं। इस फ़िल्म के संगीत के लिए खुर्शीद अनवर को पुरस्कृत भी किया गया था। फ़िल्म 'सिंगार' में रोशन ने बतौर सहायक काम किया था। फ़िल्म का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत था सुरिन्दर कौर का गाया 'दिल आने के ढंग निराले हैं'। खुर्शीद अनवर के बारे में सुरिन्दर कौर ने एक बार बताया था कि इस फ़िल्म के गीतों के रेकॉर्डिंग के समय खुर्शीद अनवर यह चाहते थे कि सुरिन्दर कौर गाने के साथ-साथ हाव-भाव भी प्रदर्शित करें, पर उन्होंने असमर्थता दिखाई कि वे भाव आवाज़ में ला सकती हैं, एक्शन में नहीं। यह काम मधुबाला ने कर दिखाया जिन पर यह गीत फ़िल्माया गया था।
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==प्रमुख फ़िल्में==
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{{मुख्य| ख़्वाजा खुर्शीद अनवर की मुख्य फ़िल्में}}
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ए. आर. कारदार की पंजाबी फ़िल्म 'कुड़माई' ([[1941]]) से शुरुआत करने के बाद खुर्शीद अनवर ने 'इशारा' ([[1943]]), 'परख' ([[1944]]), 'यतीम' ([[1945]]), 'आज और कल' ([[1947]]), 'पगडंडी' ([[1947]]) और 'परवाना' ([[1947]]) जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। स्वाधीनता मिलने के बाद [[1949]] में फिर उनके संगीत से सजी एक फ़िल्म आई 'सिंगार'। पाकिस्तान में खुर्शीद अनवर की जो फ़िल्में मशहूर हुईं थीं उनमें शामिल हैं- 'ज़हरे-इश्क़', 'घुंघट', 'चिंगारी', 'इंतज़ार', 'कोयल', 'शौहर', 'चमेली', 'हीर रांझा' इत्यादि।।
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==निधन==
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[[भारत]] विभाजन के बाद विशुद्ध व्यावसायिकता को दृष्टिगत रखते हुए [[पाकिस्तान]] जा बसने वाले, अपने समय के प्रसिद्ध संगीतकार खुर्शीद अनवर का [[30 अक्टूबर]], [[1984]] को [[लाहौर]] में दुखद निधन हो गया। वे लगभग 70 वर्ष के थे।

13:06, 24 जून 2017 का अवतरण

गिरधारी लाल विश्वकर्मा पेंटिंग आर्टिस्ट हैं और भारत के पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर में एक हस्तकला व्यवसाय चलाते हैं। उन्हें मास्टर आर्टिस्ट के रूप में भारत के राष्ट्रपति से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। ये पुराने रिकॉर्ड्स के डिजिटाइजेशन का कार्य करते है। इन्होंने 1932 से लेकर 1953 तक के बारह हज़ार गानों को डिजिटल रूप में बदल दिया है। इस संग्रह में हिंदी फ़िल्मी गीतों के अलावा कई राजस्थानी दुर्लभ गीत भी शामिल हैं।

  • मूलरूप से बाड़मेर ज़िले के अलमसर गांव के रहने वाले गिरधारी लाल विश्वकर्मा को बचपन में ही रेडियो पर पुराने गीत सुनने का शौक था।
  • इन्होंने 2005 में कम्प्यूटर से ग्रामोफोन को जोड़कर पुराने रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन का काम शुरू किया।
  • गिरधारी लाल का लक्ष्य 1970 तक के रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन करना है।
  • इनके पास पुरानी फ़िल्मी पत्रिकाएं भी हैं जिनमें हिंदी फ़िल्म गीतकोश के आलावा ‘दो घड़ी मौज़, मौज़ मघ, रंगभूमि, चित्रपट, सिनेमा संसार, द मूवीज जैसी पत्रिकाएं शामिल हैं। ये पत्रिकाएं गुजराती, मराठी, हिंदीअंग्रेज़ी में हैं। जिसमें पुरानी फ़िल्मों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध हैं।
  • भविष्य में गिरधारी लाल संगीत प्रेमियों के लिए एक कैफे खोलने का विचार कर रहे हैं, जहां वे रिकॉर्ड के लिए एक गैलरी बनाएंगे और संगीत प्रेमियों को उनके मनपसंद गाने अपने संग्रह में से उपलब्ध करवाएंगे। फिलहाल संगीत प्रेमी उनके गानों को यूट्यूब पर सुन सकते हैं।
  • 1941 से 1950 के दौर में बने रिकॉर्ड पर गायक के नाम की जगह फ़िल्म के कलाकारों के नाम लिखे जाते थे, जिससे गायकों को विशेष पहचान नहीं मिलती थी। 1984 में लिसनर बुलेटिन पत्रिका के संपादक हरमंदिर सिंह ‘हमराज’ की हिंदी फ़िल्मकोश पुस्तक के दो वॉल्यूम मंगवाए। इनमें उन्हें फ़िल्मों के नाम, उसके बोल संगीतकार, गीतकारों के नाम तो मिले लेकिन कई जगहों पर गायकों का ज़िक्र नहीं था। गिरधारीलाल ने इन खाली जगहों को अपने श्रोता मित्रों से बातचीत के ज़रिये तथ्य इकट्ठे कर भरना शुरू किया और इस प्रकार उन्होंने गायकों को पहचान दिलाई।






अन्नपूर्णा देवी (अंग्रेज़ी: Annapurna Devi मूल नाम- रोशनआरा ख़ान, जन्म: 23 अप्रैल, 1927, मध्य प्रदेश) भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र (बास का सितार) बजाने वाली एकमात्र महिला उस्ताद हैं। ये प्रख्यात संगीतकार अलाउद्दीन ख़ान की बेटी और शिष्या हैं। वह विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर की पूर्व पत्नि हैं। इनके पिता तत्कालीन प्रसिद्ध ‘सेनिया मैहर घराने’ या ‘सेनिया मैहर स्कूल’ के संस्थापक थे। यह घराना 20वीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित घराना के रूप में अपना स्थान बनाए हुए था।[1]

वर्ष 1950 के दशक में पंडित रवि शंकर और अन्नपूर्णा देवी युगल संगीतकार के रूप में अपनी प्रस्तुति देते रहे, विशेषकर अपने भाई अली अकबर ख़ान के संगीत विद्यालय में। लेकिन बाद में शंकर कार्यक्रमों के दौरान संगीत को लेकर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि दर्शक शंकर की अपेक्षा अन्नपूर्णा के लिए अधिक तालियाँ और उत्साह दिख़ाने लगे थे। इसके परिणाम स्वरूप अन्नपूर्णा ने सार्वजानिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति न देने का निश्चय कर लिया।

यद्यपि अन्नपूर्णा देवी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को कभी भी अपने पेशे के रूप में नहीं लिया और न कोई संगीत का एलबम ही बनाया, फिर भी अभी तक इन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत से प्रेम करने वाले प्रत्येक भारतीय से पर्याप्त आदर और सम्मान मिलता रहा है।

प्रारम्भिक जीवन

अन्नपूर्णा देवी (रोशनआरा ख़ान) का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को 23 अप्रैल, 1927 को ब्रिटिश कालीन भारतीय राज्य मध्य क्षेत्र (वर्तमान मध्य प्रदेश) के मैहर में हुआ था। इनके पिता का नाम अलाउद्दीन ख़ान तथा माता का नाम मदनमंजरी देवी था। इनके एकमात्र भाई उस्ताद अली अकबर ख़ान तथा तीन बहनें शारिजा, जहानारा और स्वयं अन्नपूर्णा (रोशनारा ख़ान) थीं।

पारिवारिक जीवन

अलाउद्दीन ख़ान के अनेक शिष्यों में से एक रवि शंकर भी थे और उनका विवाह अन्नपूर्णा से करा दिया गया। इन दोनों का विवाह वर्ष 1941 में हो गया था। उस समय रवि शंकर की उम्र 21 वर्ष और अन्नपूर्णा की उम्र मात्र 14 वर्ष थी। हालांकि रवि शंकर एक हिन्दू परिवार से थे जबकि अन्नपूर्णा मुस्लिम परिवार से परंतु इनके पिता को इस बात से कोई एतराज नहीं था। विवाह से ठीक पहले अन्नपूर्णा देवी ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया था। विवाह के बाद इनको एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शुभेन्द्र शंकर था, जिनकी मात्र 50 वर्ष की अवस्था में ही वर्ष 1992 में निधन हो गया जो अपने पीछे तीन बच्चों और पत्नी को छोड़ गए।

लगभग 21 वर्षों तक वैवाहिक जीवन एक साथ व्यतीत करने के बाद अन्नपूर्णा का रवि शंकर के साथ किसी बात को लेकर तलाक हो गया। इसके बाद इन्होंने कभी भी फिर से सार्वजनिक मंच पर अपने गायन-वादन का प्रस्तुतिकरण नहीं किया। ये मुंबई चली गईं और वहां पर एकाकी जीवन व्यतीत करने लगीं एवं संगीत का शिक्षण कार्य प्रारम्भ कर दिया। वर्ष 1982 में इन्होंने अपने से 13 वर्ष छोटे रूशी कुमार पंड्या से पुन: विवाह कर लिया, जिनका वर्ष 2013 में निधन हो गया।

संगीत शिक्षा

बड़ी बहन शारिजा का अल्पायु में ही निधन हो गया, दूसरी बहन जहानारा की शादी हुई परंतु उसकी सासु माँ ने संगीत से द्वेषवश उसके तानपुरे को जला दिया। इस घटना से दु:खी होकर इनके पिता ने निश्चय किया कि वे अपनी छोटी बेटी (अन्नपूर्णा) को संगीत की शिक्षा नहीं देंगे। एक दिन जब इनके पिता घर वापस आये तो उन्होंने देखा कि अन्नपूर्णा अपने भाई अली अकबर ख़ान को संगीत की शिक्षा दे रही है, इनकी यह कुशलता देखकर पिता का मन बदल गया। आगे चलकर अन्नपूर्णा देवी ने शास्त्रीय संगीत, सितार और सुरबहार (बांस का सितार) बजाना अपने पिता से सीखा। मैहर में इनके पिता अलाउद्दीन ख़ान यहां के तत्कालीन महाराजा बृजनाथ सिंह के दरबारी संगीतकार थे। इनके पिता ने जब महाराजा बृजनाथ सिंह को दरबार में यह बताया कि उनको लड़की हुई है तो महाराजा ने स्वयं ही नवजात लड़की का नाम ‘अन्नपूर्णा’ रखा था।

संगीत इनके परिवार के रग-रग में

अन्नपूर्णा देवी के पिता अलाउद्दीन ख़ान मैहर महाराज के यहां स्वयं तो एक दरबारी संगीतकार थे साथ ही इनके चाचा फ़क़ीर अफ्ताबुद्दीन ख़ान और अयेत अली ख़ान अपने पैतृक जन्म स्थान (वर्तमान बांग्लादेश) के प्रसिद्ध संगीतकार थे। इनके भाई अली अकबर ख़ान प्रसिद्ध और सम्मानित सरोद वादक थे, जिन्होंने भारत और अमेरिका में संगीत के अनेकों यादगार कार्यक्रमों में भाग लिया। इनके पूर्व पति और विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत के भारत तथा विश्व में सबसे बड़े संगीतकार माने जाते हैं। इनके एकमात्र पुत्र शुभेन्द्र शंकर (सुभो) सितार वादन में माहिर थे। सुभो ने सितार वादन में अपनी माता से गहन प्रशिक्षण लिया था। बाद में सुभो को उनके पिता रवि शंकर संगीत में पारंगत करने के लिए अपने साथ लेकर अमेरिका चले गए। शुभेन्द्र शंकर ने भी भारतीय शास्त्रीय संगीतकार के रूप में देश-विदेश में अपनी प्रस्तुति दी।

कॅरियर

अन्नपूर्णा देवी अपने पिता से संगीत की गूढ़ शिक्षा लेने के कुछ वर्षों बाद ही मैहर घराने (स्कूल) की सुरबहार (बांस का सितार) वादन की एक बहुत ही प्रभावशाली संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं। परिणामत: इन्होंने अपने पिता के बहुत से संगीत शिष्यों को मार्गदर्शन देना प्रारम्भ कर दिया था, इनमें प्रमुख हैं- हरिप्रसाद चौरसिया, निखिल बनर्जी, अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बारोट और सस्वत्ति साहा (सितार वादक) और बहादुर ख़ान। इन सभी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान अन्नपूर्णा देवी से ही प्राप्त किया।

अन्नपूर्णा देवी ने आजीवन कोई म्यूजिक एल्बम नहीं बनाया। कहा जाता है कि उनके कुछ संगीत कार्यक्रमों को गुप्त रूप से रिकॉर्ड कर लिया गया था, जो आजकल देखने को मिल जाता है। इन्होंने हमेशा अपने को मिडिया के प्रचार-प्रसार से दूर रखा। ये हमेशा भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ आगे बढ़ाने के बारे में सोचती रहती थीं।

पुरस्कार एवं सम्मान

अन्नपूर्णा देवी को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है-

  • वर्ष 2004 - भारत सरकार द्वारा स्थापित ‘संगीत नाटक अकादमी’ ने इन्हें अपना (ज्वेल फेलो) घोषित किया।
  • वर्ष 1999 - रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित ‘विश्व-भारती विश्वविद्यालय’ ने इन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया।
  • वर्ष 1991 - संगीत नाटक अकादमी द्वारा भारतीय संगीत कला को आगे बढ़ाने में इनके द्वारा दिये गये विशेष योगदान के लिए इन्हें सर्वोच्च सम्मान ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ से नवाजा गया।
  • वर्ष 1977 - अन्नपूर्णा देवी को भारत सरकार ने अपने तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया।






कविता बघेल 7
ख़्वाजा खुर्शीद अनवर
पूरा नाम ख़्वाजा खुर्शीद अनवर
जन्म 21 मार्च, 1912
जन्म भूमि पंजाब, (अब पाकिस्तान)
मृत्यु 30 अक्टूबर, 1984
मृत्यु स्थान लाहौर
अभिभावक ख़्वाजा फ़िरोज़ुद्दीन अहमद
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार
मुख्य फ़िल्में कुड़माई, इशारा, सिंगार, परख, यतीम
विषय दर्शनशास्त्र
शिक्षा एम.ए
विद्यालय पंजाब विश्वविद्यालय
अन्य जानकारी खुर्शीद अनवर दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी आने के बाद प्रतिष्ठित ICS परीक्षा के लिखित चरण में शामिल हुए और सफल भी हुए। परंतु उसके साक्षात्कार चरण में शामिल न होकर संगीत के क्षेत्र को उन्होंने अपना कॅरियर चुना।
अद्यतन‎

ख़्वाजा खुर्शीद अनवर (अंग्रेज़ी: Khwaja Khurshid Anwar, जन्म: 21 मार्च, 1912, पंजाब, मृत्य: 30 अक्टूबर, 1984, लाहौर) प्रसिद्ध संगीतकार थे, जिन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों में काफी लोकप्रियता हासिल की थी।[2]

परिचय

खुर्शीद अनवर का जन्म 21 मार्च, 1912 को मियाँवाली, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके नाना ख़ान बहादुर डॉ. शेख़ अट्टा मोहम्मद सिविल सर्जन थे और उनके पिता ख़्वाजा फ़िरोज़ुद्दीन अहमद लाहौर के एक जानेमाने बैरिस्टर। 1947 में देश के विभाजन के बाद वह भारत से पाक़िस्तान जा बसे।

शिक्षा

खुर्शीद अपने नाना और पिता की ही तरह मेधावी भी थे। वे सरकारी कॉलेज, लाहौर के एक मेधावी छात्र रहे। खुर्शीद अनवर ने पंजाब विश्वविद्यालय से एम.ए दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी आने के बाद प्रतिष्ठित ICS परीक्षा के लिखित चरण में सफल होने के बावजूद उसके साक्षात्कार चरण में शामिल न होकर संगीत के क्षेत्र को चुना था।

संगीत की शिक्षा

खुर्शीद अनवर के पिता को संगीत का इतना ज़्यादा शौक था कि उनके पास ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड्स का एक बहुत बड़ा संग्रह था। इस तरह से बेटे खुर्शीद को घर पर ही संगीत का माहौल मिल गया। बेटे की संगीत में दिलचस्पी के मद्देनज़र उनके पिता ने उन्हें ख़ानसाहिब तवक्कल हुसैन के पास संगीत सीखने भेज दिया। खुर्शीद अनवर ने अपनी मेधा को संगीत क्षेत्र में लाकर अत्यन्त कर्णप्रिय धुनें उन्होंने बनाई। नौशाद, रोशन, शंकर जयकिशन जैसे संगीतकार खुर्शीद अनवर को पाँचवे दशक के सर्वोत्तम संगीतकारों में मानते थे।

कॅरियर

ख़ुरशीद अनवर ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत आल इण्डिया रेडियो के संगीत विभाग में प्रोड्युसर-इन-चार्ज की हैसियत से की थी। फ़िल्मों में संगीत निर्देशक के रूप में पहली बार उन्हें पंजाबी फ़िल्म 'कुड़माई' में सन 1941 में संगीत देने का अवसर मिला जिसमें वास्ती, जगदीश, राधारानी, जीवन आदि कलाकारों ने अभिनय किया था। निर्देशक थे जे. के. नन्दा। उनके मधुर संगीत से सजी पहली हिंदी फ़िल्म थी 'इशारा' जो सन 1943 में प्रदर्शित हुई थी। फ़िल्म के डी. एन. मधोक लिखित सभी 9 गीतों को सुरैय्या के गाए 'पनघट पे मुरलिया बाजे' तथा गौहर सुल्ताना के गाए 'शबनम क्यों नीर बहाए' विशेष लोकप्रिय हुए थे। अभिनेत्री वत्सला कुमठेकर ने भी फ़िल्म में दो गीत गाए थे - 'दिल लेके दगा नहीं देना' तथा 'इश्क़ का दर्द सुहाना'।

खुर्शीद अनवर देश-विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे, जहाँ जनवरी 1948 में उनका विवाह हुआ। अपने घनिष्ठ मित्र व फ़िल्म निर्माता जे. के. नन्दा के बुलावे पर मध्य 1948 में पुन: बम्बई आकर फ़िल्म 'सिंगार' में संगीत दिया जो 1949 में जाकर प्रदर्शित हुई। 'सिंगार' के मुख्य कलाकार थे- जयराज, मधुबाला और सुरैया। जहाँ एक तरफ़ सुरैया ने अपने ऊपर फ़िल्माए गानें ख़ुद ही गाए, वहीं दूसरी तरफ़ मधुबाला के पार्श्वगायन के लिए गायिका सुरिन्दर कौर को चुना गया। खुर्शीद अनवर ने सुरिन्दर कौर से इस फ़िल्म में कुल पाँच गानें गवाए।

पहली फ़िल्म

खुर्शीद अनवर की पहली हिन्दी फ़िल्म 'इशारा' और 'सिंगार' में यह समानता है कि दोनों फ़िल्मों में उन्होंने हरियाणा के लोक संगीत का शुद्ध रूप से प्रयोग किया है। 'इशारा' में 'पनघट पे मुरलिया बाजे' और 'सजनवा आजा रे खेलें दिल के खेल' जैसे गीत थे तो 'सिंगार' में 'चंदा रे मैं तेरी गवाही लेने आई' और 'नया नैंनो में रंग' जैसी मधुर रचनाएँ थीं। इस फ़िल्म के संगीत के लिए खुर्शीद अनवर को पुरस्कृत भी किया गया था। फ़िल्म 'सिंगार' में रोशन ने बतौर सहायक काम किया था। फ़िल्म का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत था सुरिन्दर कौर का गाया 'दिल आने के ढंग निराले हैं'। खुर्शीद अनवर के बारे में सुरिन्दर कौर ने एक बार बताया था कि इस फ़िल्म के गीतों के रेकॉर्डिंग के समय खुर्शीद अनवर यह चाहते थे कि सुरिन्दर कौर गाने के साथ-साथ हाव-भाव भी प्रदर्शित करें, पर उन्होंने असमर्थता दिखाई कि वे भाव आवाज़ में ला सकती हैं, एक्शन में नहीं। यह काम मधुबाला ने कर दिखाया जिन पर यह गीत फ़िल्माया गया था।

प्रमुख फ़िल्में

ए. आर. कारदार की पंजाबी फ़िल्म 'कुड़माई' (1941) से शुरुआत करने के बाद खुर्शीद अनवर ने 'इशारा' (1943), 'परख' (1944), 'यतीम' (1945), 'आज और कल' (1947), 'पगडंडी' (1947) और 'परवाना' (1947) जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। स्वाधीनता मिलने के बाद 1949 में फिर उनके संगीत से सजी एक फ़िल्म आई 'सिंगार'। पाकिस्तान में खुर्शीद अनवर की जो फ़िल्में मशहूर हुईं थीं उनमें शामिल हैं- 'ज़हरे-इश्क़', 'घुंघट', 'चिंगारी', 'इंतज़ार', 'कोयल', 'शौहर', 'चमेली', 'हीर रांझा' इत्यादि।।

निधन

भारत विभाजन के बाद विशुद्ध व्यावसायिकता को दृष्टिगत रखते हुए पाकिस्तान जा बसने वाले, अपने समय के प्रसिद्ध संगीतकार खुर्शीद अनवर का 30 अक्टूबर, 1984 को लाहौर में दुखद निधन हो गया। वे लगभग 70 वर्ष के थे।

  1. अन्नपूर्णा देवी (हिंदी) www.itshindi.com। अभिगमन तिथि: 24 जून, 2017।
  2. "दिल आने के ढंग निराले हैं" - वाक़ई निराला था ख़ुर्शीद अनवर का संगीत जिनकी आज १०१-वीं जयन्ती है! (हिंदी) radioplaybackindia.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 24 जून, 2017।