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'''गिरधारी लाल विश्वकर्मा''' पेंटिंग आर्टिस्ट हैं और [[भारत]] के पश्चिमी [[राजस्थान]] के [[जोधपुर]] में एक हस्तकला व्यवसाय चलाते हैं। उन्हें मास्टर आर्टिस्ट के रूप में भारत के [[राष्ट्रपति]] से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। ये पुराने रिकॉर्ड्स के डिजिटाइजेशन का कार्य करते है। इन्होंने [[1932]] से लेकर [[1953]] तक के बारह हज़ार गानों को डिजिटल रूप में बदल दिया है। इस संग्रह में हिंदी फ़िल्मी गीतों के अलावा कई राजस्थानी दुर्लभ गीत भी शामिल हैं।
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'''राम मोहन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ram Mohan'', जन्म: [[2 नवंबर]], [[1929]], [[अंबाला]]) हिंदी सिनेमा के चरित्र अभिनेता थे, जिन्हें हिंदी सिनेमा में कदम रखे छह दशकों से भी ज़्यादा का समय गुज़र चुका है। 84 साल के राममोहन आज भी शारीरिक और मानसिक तौर पर पूरी तरह से स्वस्थ हैं।
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==परिचय==
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राम मोहन का जन्म 2 नवंबर, 1929 को अंबाला कैंट में हुआ था। इनके पिता डॉक्टर साधुराम शर्मा मूल रूप से जगाधरी के रहने वाले थे और अंबाला में अपना चिकित्सालय चलाते थे। राममोहन की माताजी श्रीमती योगमाया शर्मा गृहिणी थीं। ये उनकी इकलौती संतान थे, हालांकि पिता की पहली शादी से भी इनका एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहन थे।
  
*मूलरूप से बाड़मेर ज़िले के अलमसर गांव के रहने वाले गिरधारी लाल विश्वकर्मा को बचपन में ही रेडियो पर पुराने गीत सुनने का शौक था।
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राम मोहन ने अंबाला के आर्या स्कूल से मैट्रिक शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद उसी स्कूल से जुड़े जी.एम.एन.कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा देने के बाद ही ये [[मुंबई]] [[1949]] में चले गये। फ़िल्में देखने का उन्हें बेहद शौक़ था। राम मोहन के तीन बेटे और एक बेटी है। उनकी विवाहिता बेटी [[दिल्ली]] में रहती है और उनकी पत्नी, बड़ा और छोटा बेटा [[मुंबई]] में और मंझला बेटा [[अमेरिका]] में हैं। दोनों बड़े बेटों का अपना व्यवसाय है और छोटा बेटा एयर इंडिया में पायलट है।
*इन्होंने [[2005]] में कम्प्यूटर से ग्रामोफोन को जोड़कर पुराने रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन का काम शुरू किया।
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==फ़िल्मी कॅरियर==
*गिरधारी लाल का लक्ष्य [[1970]] तक के रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन करना है।
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राममोहन के एक परिचित और अंबाला के ही रहने वाले महेश उप्पल [[मुंबई]] सेंट्रल के पास ही मौजूद 'फेमस आर्ट स्टूडियो' में चित्रकार की नौकरी करते थे और रहते भी स्टूडियो में ही थे। राममोहन ने क़रीब 2 महिने महेश उप्पल के साथ रहकर गुज़ारे। राममोहन के मुताबिक़ वो उस दौरान रोज़ाना आसपास के इलाक़ों दादर और महालक्ष्मी में मौजूद 'रंजीत मूवीटोन' और 'फ़ेमस स्टूडियो' जैसे फ़िल्म स्टूडियोज़ के चक्कर काटते थे। कभी कभार उन स्टूडियोज़ में घुसने के लिए दरबान को रिश्वत भी देनी पड़ती थी। 2 महिने बाद उन्हें महेश उप्पल का स्टूडियो छोड़ना पड़ा तो वो रहने के लिए विले पारले चले आए।
*इनके पास पुरानी फ़िल्मी पत्रिकाएं भी हैं जिनमें [[हिंदी]] फ़िल्म गीतकोश के आलावा ‘दो घड़ी मौज़, मौज़ मघ, रंगभूमि, चित्रपट, सिनेमा संसार, द मूवीज जैसी पत्रिकाएं शामिल हैं। ये पत्रिकाएं [[गुजराती]], [[मराठी]], [[हिंदी]] व [[अंग्रेज़ी]] में हैं। जिसमें पुरानी फ़िल्मों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध हैं।
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====अभिनय जीवन की शुरूआत====
*भविष्य में गिरधारी लाल संगीत प्रेमियों के लिए एक कैफे खोलने का विचार कर रहे हैं, जहां वे रिकॉर्ड के लिए एक गैलरी बनाएंगे और संगीत प्रेमियों को उनके मनपसंद गाने अपने संग्रह में से उपलब्ध करवाएंगे। फिलहाल संगीत प्रेमी उनके गानों को यूट्यूब पर सुन सकते हैं।
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राममोहन के अनुशार एक रोज़ किसी ने उन्हें जगदीश सेठी से मिलने की सलाह दी। जगदीश सेठी उस ज़माने के जानेमाने अभिनेता और निर्माता-निर्देशक थे। वो जगदीश सेठी के पैडर रोड स्थित घर पर जाकर उनसे मिले। जगदीश सेठी राममोहन से इतने प्रभावित हुए कि उस दिन के बाद वे उनके साथ-साथ नज़र आने लगा। कई फ़िल्मों में बेहद छोटी-छोटी भूमिकाओं से उनके अभिनय जीवन की शुरूआत हुई। जगदीश सेठी द्वारा निर्देशित फ़िल्म 'इंसान' में पहली बार उन्हें एक अच्छी भूमिका मिली"।
*[[1941]] से [[1950]] के दौर में बने रिकॉर्ड पर गायक के नाम की जगह फ़िल्म के कलाकारों के नाम लिखे जाते थे, जिससे गायकों को विशेष पहचान नहीं मिलती थी। [[1984]] में लिसनर बुलेटिन पत्रिका के संपादक हरमंदिर सिंह ‘हमराज’ की हिंदी फ़िल्मकोश पुस्तक के दो वॉल्यूम मंगवाए। इनमें उन्हें फ़िल्मों के नाम, उसके बोल संगीतकार, गीतकारों के नाम तो मिले लेकिन कई जगहों पर गायकों का ज़िक्र नहीं था। गिरधारीलाल ने इन खाली जगहों को अपने श्रोता मित्रों से बातचीत के ज़रिये तथ्य इकट्ठे कर भरना शुरू किया और इस प्रकार उन्होंने गायकों को पहचान दिलाई।
 
  
 
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साल [[1952]] में बनी फ़िल्म 'इंसान' की मुख्य भूमिकाओं में [[पृथ्वीराज कपूर |पृथ्वीराज कपूर]], रागिनी और [[कमल कपूर]] थे। राममोहन भी इस फ़िल्म में एक छोटी सी भूमिका निभा रहे थे। राममोहन के मुताबिक, 'इस फ़िल्म के एक सीन में कमल कपूर को घुड़सवारी करनी थी, लेकिन घुड़सवारी उन्हें आती नहीं थी। उन्होंने मुझे अपनी परेशानी बताई और फिर जगदीश सेठी से स्क्रिप्ट में बदलाव करके घुड़सवारी मुझसे कराने का आग्रह किया। ये काम हालांकि मेरे लिए भी आसान नहीं था इसके बावजूद मैंने इसे चुनौती समझकर स्वीकार कर लिया। और थोड़ी बहुत कोशिशों के बाद मैं कामयाब भी हुआ। मेरे काम से जगदीश सेठी इतने ख़ुश हुए कि उन्होंने न सिर्फ़ फ़िल्म 'इंसान' में मेरी भूमिका बढ़ाई बल्कि वादा किया कि भविष्य में वो मुझे और भी बेहतर भूमिकाएं देंगे"। जगदीश सेठी ने अपना वादा निभाते हुए साल 1952 में ही बनी फ़िल्म 'जग्गू' में राममोहन को सहनायक की भूमिका दी। इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में कमल कपूर और श्यामा थे।
 
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==प्रमुख फ़िल्में==
 
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राममोहन की फ़िल्म 'जग्गू' की कामयाबी के बाद उनके रास्ते आसान हो गये। अगले कुछ सालों में उन्होंने 'श्री चैतन्य महाप्रभु' (1953), 'पेंशनर' (1954), 'होटल', 'लाल-ए-यमन' (दोनों 1956), 'देवर भाभी', 'मिस 58', 'नाईट क्लब', 'राजसिंहासन' (सभी 1958), 'भगवान और शैतान', 'चाचा ज़िंदाबा', 'दो बहनें', 'टीपू सुल्तान' (सभी 1959), 'अंगुलिमाल', 'बहादुर लुटेरा', 'चोरों की बारात', 'काला आदमी' और 'मिस्टर सुपरमैन की वापसी' (सभी 1960) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाएं निभायीं।     
 
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;खलनायक के रूप में
 
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राममोहन को नायक या सहनायक के रूप में ज़्यादा मौक़े नहीं मिल पाए लेकिन बहुत जल्द वो खलनायक और आगे चलकर चरित्र अभिनेता के तौर पर पहचाने जाने लगे। 60 सालों के अपने करियर के दौरान राममोहन ने 'हरियाली और रास्ता',  'मेरे हुज़ूर', 'तक़दीर', 'शोर', 'किताब', 'जियो तो ऐसे जियो', 'अंगूर', 'सावन को आने दो', 'शान', 'नदिया के पार', 'बंटवारा', 'ग़ुलामी', 'रंगीला' और 'कोयला' सहित क़रीब 240 फ़िल्मों में अभिनय किया।
 
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;टेलिविज़न धारावाहिक
 
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राममोहन ने 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'तारा', 'शतरंज', 'संसार', 'बहादुर शाह ज़फ़र', 'ये दिल्ली है' और 'महाभारत' जैसे 15 टेलिविज़न धारावाहिकों में अभिनय किया। इसके साथ ही 4 साल 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' के उपाध्यक्ष और 6 साल महासचिव पद पर रहने के अलावा वो सिनेमा से जुड़े लोगों के हित में कार्यरत विभिन्न एसोसिएशनों में भी सक्रिय रहे।
 
 
 
 
'''अन्नपूर्णा देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Annapurna Devi'' मूल नाम- रोशनआरा ख़ान, जन्म: [[23 अप्रैल]], [[1927]], [[मध्य प्रदेश]]) भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र (बास का [[सितार]]) बजाने वाली एकमात्र महिला उस्ताद हैं। ये प्रख्यात संगीतकार [[अलाउद्दीन ख़ान]] की बेटी और शिष्या हैं। वह विश्व प्रसिद्ध [[सितार वादक]] [[रवि शंकर|पंडित रवि शंकर]] की पूर्व पत्नि हैं। इनके पिता तत्कालीन प्रसिद्ध ‘सेनिया मैहर घराने’ या ‘सेनिया मैहर स्कूल’ के संस्थापक थे। यह घराना 20वीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित घराना के रूप में अपना स्थान बनाए हुए था।<ref>{{cite web |url=http://www.itshindi.com/annapurna-devi.html |title=अन्नपूर्णा देवी |accessmonthday=24 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.itshindi.com |language=हिंदी }}</ref>
 
 
 
वर्ष [[1950]] के दशक में पंडित रवि शंकर और अन्नपूर्णा देवी युगल संगीतकार के रूप में अपनी प्रस्तुति देते रहे, विशेषकर अपने भाई अली अकबर ख़ान के संगीत विद्यालय में। लेकिन बाद में शंकर कार्यक्रमों के दौरान संगीत को लेकर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि दर्शक शंकर की अपेक्षा अन्नपूर्णा के लिए अधिक तालियाँ और उत्साह दिख़ाने लगे थे। इसके परिणाम स्वरूप अन्नपूर्णा ने सार्वजानिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति न देने का निश्चय कर लिया।
 
 
 
यद्यपि अन्नपूर्णा देवी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को कभी भी अपने पेशे के रूप में नहीं लिया और न कोई संगीत का एलबम ही बनाया, फिर भी अभी तक इन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत से प्रेम करने वाले प्रत्येक भारतीय से पर्याप्त आदर और सम्मान मिलता रहा है।
 
====प्रारम्भिक जीवन====
 
{{मुख्य| अन्नपूर्णा देवी का परिचय}}
 
अन्नपूर्णा देवी (रोशनआरा ख़ान) का जन्म [[चैत्र|चैत्र माह]] की [[पूर्णिमा]] को 23 अप्रैल, 1927 को ब्रिटिश कालीन भारतीय राज्य मध्य क्षेत्र (वर्तमान मध्य प्रदेश) के मैहर में हुआ था। इनके पिता का नाम अलाउद्दीन ख़ान तथा माता का नाम मदनमंजरी देवी था। इनके एकमात्र भाई उस्ताद [[अली अकबर ख़ान]] तथा तीन बहनें शारिजा, जहानारा और स्वयं अन्नपूर्णा (रोशनारा ख़ान) थीं।
 
;पारिवारिक जीवन
 
अलाउद्दीन ख़ान के अनेक शिष्यों में से एक [[रवि शंकर]] भी थे और उनका [[विवाह]] अन्नपूर्णा से करा दिया गया। इन दोनों का विवाह वर्ष [[1941]] में हो गया था। उस समय रवि शंकर की उम्र 21 वर्ष और अन्नपूर्णा की उम्र मात्र 14 वर्ष थी। हालांकि रवि शंकर एक [[हिन्दू]] परिवार से थे जबकि अन्नपूर्णा मुस्लिम परिवार से परंतु इनके पिता को इस बात से कोई एतराज नहीं था। विवाह से ठीक पहले अन्नपूर्णा देवी ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया था। विवाह के बाद इनको एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शुभेन्द्र शंकर था, जिनकी मात्र 50 वर्ष की अवस्था में ही वर्ष [[1992]] में निधन हो गया जो अपने पीछे तीन बच्चों और पत्नी को छोड़ गए।
 
 
 
लगभग 21 वर्षों तक वैवाहिक जीवन एक साथ व्यतीत करने के बाद अन्नपूर्णा का रवि शंकर के साथ किसी बात को लेकर तलाक हो गया। इसके बाद इन्होंने कभी भी फिर से सार्वजनिक मंच पर अपने गायन-वादन का प्रस्तुतिकरण नहीं किया। ये [[मुंबई]] चली गईं और वहां पर एकाकी जीवन व्यतीत करने लगीं एवं संगीत का शिक्षण कार्य प्रारम्भ कर दिया। वर्ष [[1982]] में इन्होंने अपने से 13 वर्ष छोटे रूशी कुमार पंड्या से पुन: विवाह कर लिया, जिनका वर्ष [[2013]] में निधन हो गया।
 
==संगीत शिक्षा==
 
{{मुख्य| अन्नपूर्णा देवी की संगीत शिक्षा}}
 
बड़ी बहन शारिजा का अल्पायु में ही निधन हो गया, दूसरी बहन जहानारा की शादी हुई परंतु उसकी सासु माँ ने संगीत से द्वेषवश उसके तानपुरे को जला दिया। इस घटना से दु:खी होकर इनके पिता ने निश्चय किया कि वे अपनी छोटी बेटी (अन्नपूर्णा) को [[संगीत]] की शिक्षा नहीं देंगे। एक दिन जब इनके पिता घर वापस आये तो उन्होंने देखा कि अन्नपूर्णा अपने भाई अली अकबर ख़ान को संगीत की शिक्षा दे रही है, इनकी यह कुशलता देखकर पिता का मन बदल गया। आगे चलकर अन्नपूर्णा देवी ने शास्त्रीय संगीत, सितार और सुरबहार (बांस का सितार) बजाना अपने पिता से सीखा। मैहर में इनके पिता [[अलाउद्दीन ख़ान]] यहां के तत्कालीन महाराजा बृजनाथ सिंह के दरबारी संगीतकार थे। इनके पिता ने जब महाराजा बृजनाथ सिंह को दरबार में यह बताया कि उनको लड़की हुई है तो महाराजा ने स्वयं ही नवजात लड़की का नाम ‘अन्नपूर्णा’ रखा था।
 
;संगीत इनके परिवार के रग-रग में
 
अन्नपूर्णा देवी के पिता अलाउद्दीन ख़ान मैहर महाराज के यहां स्वयं तो एक दरबारी संगीतकार थे साथ ही इनके चाचा फ़क़ीर अफ्ताबुद्दीन ख़ान और अयेत अली ख़ान अपने पैतृक जन्म स्थान (वर्तमान [[बांग्लादेश]]) के प्रसिद्ध संगीतकार थे। इनके भाई [[अली अकबर ख़ान]] प्रसिद्ध और सम्मानित सरोद वादक थे, जिन्होंने [[भारत]] और [[अमेरिका]] में संगीत के अनेकों यादगार कार्यक्रमों में भाग लिया। इनके पूर्व पति और विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत के भारत तथा विश्व में सबसे बड़े संगीतकार माने जाते हैं। इनके एकमात्र पुत्र शुभेन्द्र शंकर (सुभो) सितार वादन में माहिर थे। सुभो ने सितार वादन में अपनी माता से गहन प्रशिक्षण लिया था। बाद में सुभो को उनके पिता रवि शंकर संगीत में पारंगत करने के लिए अपने साथ लेकर अमेरिका चले गए। शुभेन्द्र शंकर ने भी भारतीय शास्त्रीय संगीतकार के रूप में देश-विदेश में अपनी प्रस्तुति दी।
 
==कॅरियर==
 
{{मुख्य| अन्नपूर्णा देवी का कॅरियर}}
 
अन्नपूर्णा देवी अपने पिता से संगीत की गूढ़ शिक्षा लेने के कुछ वर्षों बाद ही मैहर घराने (स्कूल) की सुरबहार (बांस का सितार) वादन की एक बहुत ही प्रभावशाली संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं। परिणामत: इन्होंने अपने पिता के बहुत से संगीत शिष्यों को मार्गदर्शन देना प्रारम्भ कर दिया था, इनमें प्रमुख हैं- [[हरिप्रसाद चौरसिया]], [[निखिल बनर्जी]], अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बारोट और सस्वत्ति साहा (सितार वादक) और बहादुर ख़ान। इन सभी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान अन्नपूर्णा देवी से ही प्राप्त किया।
 
 
 
अन्नपूर्णा देवी ने आजीवन कोई म्यूजिक एल्बम नहीं बनाया। कहा जाता है कि उनके कुछ संगीत कार्यक्रमों को गुप्त रूप से रिकॉर्ड कर लिया गया था, जो आजकल देखने को मिल जाता है। इन्होंने हमेशा अपने को मिडिया के प्रचार-प्रसार से दूर रखा। ये हमेशा भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ आगे बढ़ाने के बारे में सोचती रहती थीं।
 
==पुरस्कार एवं सम्मान==
 
अन्नपूर्णा देवी को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है-
 
*[[2004]] - [[भारत सरकार]] द्वारा स्थापित ‘संगीत नाटक अकादमी’ ने इन्हें अपना (ज्वेल फेलो) घोषित किया।
 
*[[1999]] - रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित ‘विश्व-भारती विश्वविद्यालय’ ने इन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया।
 
*[[1991]] - संगीत नाटक अकादमी द्वारा भारतीय संगीत कला को आगे बढ़ाने में इनके द्वारा दिये गये विशेष योगदान के लिए इन्हें सर्वोच्च सम्मान ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ से नवाजा गया।
 
*[[1977]] - अन्नपूर्णा देवी को भारत सरकार ने अपने तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘[[पद्मभूषण]]’ से सम्मानित किया।
 

13:11, 29 जून 2017 का अवतरण

राम मोहन (अंग्रेज़ी: Ram Mohan, जन्म: 2 नवंबर, 1929, अंबाला) हिंदी सिनेमा के चरित्र अभिनेता थे, जिन्हें हिंदी सिनेमा में कदम रखे छह दशकों से भी ज़्यादा का समय गुज़र चुका है। 84 साल के राममोहन आज भी शारीरिक और मानसिक तौर पर पूरी तरह से स्वस्थ हैं।

परिचय

राम मोहन का जन्म 2 नवंबर, 1929 को अंबाला कैंट में हुआ था। इनके पिता डॉक्टर साधुराम शर्मा मूल रूप से जगाधरी के रहने वाले थे और अंबाला में अपना चिकित्सालय चलाते थे। राममोहन की माताजी श्रीमती योगमाया शर्मा गृहिणी थीं। ये उनकी इकलौती संतान थे, हालांकि पिता की पहली शादी से भी इनका एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहन थे।

राम मोहन ने अंबाला के आर्या स्कूल से मैट्रिक शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद उसी स्कूल से जुड़े जी.एम.एन.कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा देने के बाद ही ये मुंबई 1949 में चले गये। फ़िल्में देखने का उन्हें बेहद शौक़ था। राम मोहन के तीन बेटे और एक बेटी है। उनकी विवाहिता बेटी दिल्ली में रहती है और उनकी पत्नी, बड़ा और छोटा बेटा मुंबई में और मंझला बेटा अमेरिका में हैं। दोनों बड़े बेटों का अपना व्यवसाय है और छोटा बेटा एयर इंडिया में पायलट है।

फ़िल्मी कॅरियर

राममोहन के एक परिचित और अंबाला के ही रहने वाले महेश उप्पल मुंबई सेंट्रल के पास ही मौजूद 'फेमस आर्ट स्टूडियो' में चित्रकार की नौकरी करते थे और रहते भी स्टूडियो में ही थे। राममोहन ने क़रीब 2 महिने महेश उप्पल के साथ रहकर गुज़ारे। राममोहन के मुताबिक़ वो उस दौरान रोज़ाना आसपास के इलाक़ों दादर और महालक्ष्मी में मौजूद 'रंजीत मूवीटोन' और 'फ़ेमस स्टूडियो' जैसे फ़िल्म स्टूडियोज़ के चक्कर काटते थे। कभी कभार उन स्टूडियोज़ में घुसने के लिए दरबान को रिश्वत भी देनी पड़ती थी। 2 महिने बाद उन्हें महेश उप्पल का स्टूडियो छोड़ना पड़ा तो वो रहने के लिए विले पारले चले आए।

अभिनय जीवन की शुरूआत

राममोहन के अनुशार एक रोज़ किसी ने उन्हें जगदीश सेठी से मिलने की सलाह दी। जगदीश सेठी उस ज़माने के जानेमाने अभिनेता और निर्माता-निर्देशक थे। वो जगदीश सेठी के पैडर रोड स्थित घर पर जाकर उनसे मिले। जगदीश सेठी राममोहन से इतने प्रभावित हुए कि उस दिन के बाद वे उनके साथ-साथ नज़र आने लगा। कई फ़िल्मों में बेहद छोटी-छोटी भूमिकाओं से उनके अभिनय जीवन की शुरूआत हुई। जगदीश सेठी द्वारा निर्देशित फ़िल्म 'इंसान' में पहली बार उन्हें एक अच्छी भूमिका मिली"।

साल 1952 में बनी फ़िल्म 'इंसान' की मुख्य भूमिकाओं में पृथ्वीराज कपूर, रागिनी और कमल कपूर थे। राममोहन भी इस फ़िल्म में एक छोटी सी भूमिका निभा रहे थे। राममोहन के मुताबिक, 'इस फ़िल्म के एक सीन में कमल कपूर को घुड़सवारी करनी थी, लेकिन घुड़सवारी उन्हें आती नहीं थी। उन्होंने मुझे अपनी परेशानी बताई और फिर जगदीश सेठी से स्क्रिप्ट में बदलाव करके घुड़सवारी मुझसे कराने का आग्रह किया। ये काम हालांकि मेरे लिए भी आसान नहीं था इसके बावजूद मैंने इसे चुनौती समझकर स्वीकार कर लिया। और थोड़ी बहुत कोशिशों के बाद मैं कामयाब भी हुआ। मेरे काम से जगदीश सेठी इतने ख़ुश हुए कि उन्होंने न सिर्फ़ फ़िल्म 'इंसान' में मेरी भूमिका बढ़ाई बल्कि वादा किया कि भविष्य में वो मुझे और भी बेहतर भूमिकाएं देंगे"। जगदीश सेठी ने अपना वादा निभाते हुए साल 1952 में ही बनी फ़िल्म 'जग्गू' में राममोहन को सहनायक की भूमिका दी। इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में कमल कपूर और श्यामा थे।

प्रमुख फ़िल्में

राममोहन की फ़िल्म 'जग्गू' की कामयाबी के बाद उनके रास्ते आसान हो गये। अगले कुछ सालों में उन्होंने 'श्री चैतन्य महाप्रभु' (1953), 'पेंशनर' (1954), 'होटल', 'लाल-ए-यमन' (दोनों 1956), 'देवर भाभी', 'मिस 58', 'नाईट क्लब', 'राजसिंहासन' (सभी 1958), 'भगवान और शैतान', 'चाचा ज़िंदाबा', 'दो बहनें', 'टीपू सुल्तान' (सभी 1959), 'अंगुलिमाल', 'बहादुर लुटेरा', 'चोरों की बारात', 'काला आदमी' और 'मिस्टर सुपरमैन की वापसी' (सभी 1960) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाएं निभायीं।

खलनायक के रूप में

राममोहन को नायक या सहनायक के रूप में ज़्यादा मौक़े नहीं मिल पाए लेकिन बहुत जल्द वो खलनायक और आगे चलकर चरित्र अभिनेता के तौर पर पहचाने जाने लगे। 60 सालों के अपने करियर के दौरान राममोहन ने 'हरियाली और रास्ता', 'मेरे हुज़ूर', 'तक़दीर', 'शोर', 'किताब', 'जियो तो ऐसे जियो', 'अंगूर', 'सावन को आने दो', 'शान', 'नदिया के पार', 'बंटवारा', 'ग़ुलामी', 'रंगीला' और 'कोयला' सहित क़रीब 240 फ़िल्मों में अभिनय किया।

टेलिविज़न धारावाहिक

राममोहन ने 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'तारा', 'शतरंज', 'संसार', 'बहादुर शाह ज़फ़र', 'ये दिल्ली है' और 'महाभारत' जैसे 15 टेलिविज़न धारावाहिकों में अभिनय किया। इसके साथ ही 4 साल 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' के उपाध्यक्ष और 6 साल महासचिव पद पर रहने के अलावा वो सिनेमा से जुड़े लोगों के हित में कार्यरत विभिन्न एसोसिएशनों में भी सक्रिय रहे।