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'''असद भोपाली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Asad Bhopali'', जन्म: [[10 जुलाई]], [[1921]], [[भोपाल]]; मृत्यु: [[9 जून]], [[1990]]), बॉलीवुड के एक गीतकार थे। उन्हें ऐसे गीतकार में शुमार किया जाता है, जिन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में 40 साल तक का लंबा संघर्ष किया।  
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'''असद भोपाली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Asad Bhopali'', जन्म: [[10 जुलाई]], [[1921]], [[भोपाल]]; मृत्यु: [[9 जून]], [[1990]]), बॉलीवुड के एक गीतकार और शायर  थे। उन्हें ऐसे गीतकार में शुमार किया जाता है, जिन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में 40 साल तक का लंबा संघर्ष किया। उन्हें फ़िल्म 'मैंने प्यार किया' के लिए लिखे गीत 'कबूतर जा जा जा' के लिए प्रतिष्ठित फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
असद भोपाली का जन्म 10 जुलाई, 1921 को भोपाल के इतवारा इलाके में पैदा हुए थे। उनका वास्तविक नाम असदुल्लाह खान था। उनके पिता मुंशी अहमद खाँ  भोपाल के आदरणीय व्यक्तियों में शुमार था। वे एक शिक्षक थे और बच्चों को अरबी-फारसी पढ़ाया करते थे। पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा भी उनके शिष्यों में से एक थे। वो घर में ही बच्चों को पढ़ाया करते थे, इसीलिए मेरे पिताजी भी अरबी-फारसी के साथ साथ उर्दू में भी वो महारत हासिल कर पाए जो उनकी शायरी और गीतों में हमेशा झलकती रही। उनके पास शब्दों का खज़ाना था। एक ही अर्थ के बेहिसाब शब्द हुआ करते थे उनके पास। इसलिए उनके जाननेवाले संगीतकार उन्हें गीत लिखने की मशीन कहा करते थे।  
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{{मुख्य|असद भोपाली का जीवन परिचय]]
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असद भोपाली का जन्म 10 जुलाई, 1921 को भोपाल के इतवारा इलाके में पैदा हुए थे। उनका वास्तविक नाम असदुल्लाह खान था। उनके पिता मुंशी अहमद खाँ  भोपाल के आदरणीय व्यक्तियों में शुमार थे। वे एक शिक्षक थे और बच्चों को [[अरबी भाषा|अरबी]]-[[फ़ारसी भाषा|फारसी]] पढ़ाया करते थे। पूर्व राष्ट्रपति [[शंकरदयाल शर्मा]] भी उनके शिष्यों में से एक थे। वो घर में ही बच्चों को पढ़ाया करते थे, इसीलिए असद भी अरबी-फारसी के साथ-साथ [[उर्दू]] में भी महारत हासिल कर पाए, जो उनकी शायरी और गीतों में हमेशा झलकती रही। उनके पास शब्दों का खज़ाना था। एक ही अर्थ के बेहिसाब शब्द हुआ करते थे उनके पास। इसलिए उनके जानने वाले संगीतकार उन्हें गीत लिखने की मशीन कहा करते थे।<ref>{{cite web |url=http://radioplaybackindia.blogspot.in/2015/11/14.html |title=असद भोपाली |accessmonthday=13 जुलाई |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=radioplaybackindia.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref>
 
;जेल यात्रा
 
;जेल यात्रा
असद भोपाली को शायरी का शौक़ किशोरावस्था से ही था। उस दौर में जब कवियों और शायरों ने आज़ादी की लड़ाई में अपनी कलम से योगदान किया था, उस दौर में उन्हें भी अपनी क्रान्तिकारी लेखनी के कारण जेल की हवा खानी पड़ी थी। आज़ादी की लड़ाई में हर वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया था। इनमें साहित्यकारों की भी भूमिका रही है। असद भोपाली ने एक बुद्धिजीवी के रूप में इस लड़ाई में अपना योगदान किया था। क्रान्तिकारी लेखनी के कारण अँग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल में बन्द कर दिया था। ये और बात है कि अँग्रेज़ जेलर भी उनकी 'गालिबी' का प्रशंसक हो गये थे। जेल से छूटने के बाद असद मुशायरों में हिस्सा लेते रहे।   
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असद भोपाली को शायरी का शौक़ किशोरावस्था से ही था। उस दौर में जब कवियों और शायरों ने आज़ादी की लड़ाई में अपनी कलम से योगदान किया था, उस दौर में उन्हें भी अपनी क्रान्तिकारी लेखनी के कारण जेल की हवा खानी पड़ी थी। आज़ादी की लड़ाई में हर वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया था। इनमें साहित्यकारों की भी भूमिका रही है। असद भोपाली ने एक बुद्धिजीवी के रूप में इस लड़ाई में अपना योगदान किया था। क्रान्तिकारी लेखनी के कारण अँग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल में बन्द कर दिया था। ये और बात है कि अँग्रेज़ जेलर भी उनकी 'गालिबी' के प्रशंसक हो गये थे। जेल से छूटने के बाद असद मुशायरों में हिस्सा लेते रहे।   
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==कॅरियर==
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{{मुख्य|असद भोपाली का फ़िल्मी कॅरियर]]
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[[1940]] के अंतिम दौर में मशहूर फ़िल्म निर्माता फजली ब्रादर्स 'दुनिया' नामक फ़िल्म बना रहे थे। फ़िल्म के गीत मशहूर शायर आरजू लखनवी लिख रहे थे, लेकिन दो गीत लिखने के बाद वे पाकिस्तान चले गए। बाद में [[एस. एच. बिहारी]], सरस्वती कुमार दीपक और तालिब इलाहाबादी ने भी उसके गीत लिखे। मगर, फजली बंधु और निदेशक एस. एफ. हसनैन लगातार नए गीतकार की तलाश कर रहे थे। इसी मकसद से उन्होंने [[5 मई]], [[1949]] को भोपाल टॉकिज में मुशायरे का आयोजन किया। असद भोपाली ने भी उसमें भाग लिया और अपने कलाम से महफिल लूट ली साथ ही फजली बंधुओं का दिल भी। फिर क्या था, अगले दिन भोपाल-भारत टॉकिज के मैनेजर सैयद मिस्बाउद्दीन साहब के जरिए असद को पांच सौ रुपए का एडवांस देकर फ़िल्म 'दुनिया' के लिए बतौर गीतकार साइन कर लिया गया। कुछ दिन बाद असद बंबई रवाना हो गए। 'दुनिया' उनकी पहली फ़िल्म थी। संगीतकार थे सी. रामचन्द्र और मुख्य भूमिकाओं में करण दीवान, [[सुरैया]], और याकूब जैसे महान कलाकार थे। इस फ़िल्म का गीत “अरमान लुटे दिल टूट गया...” लोकप्रिय भी हुआ था।<ref>{{cite web |url=http://vinitutpal.blogspot.in/2010/09/blog-post_27.html |title=असद भोपाली |accessmonthday=13 जुलाई |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=vinitutpal.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref>
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असद भोपाली की पहली फ़िल्म बहुत बड़े बजट की 'अफसाना' थी, जिसमें [[अशोक कुमार]], [[प्राण]] आदि थे। सालों साल तक वह एन.के. दत्ता, हंसराज बहल, रवि, सोनिक ओमी, ऊषा खन्ना, [[लक्ष्मीकांत प्यारेलाल]] आदि संगीतकारों के साथ करते रहे। इस तरह असद भोपाली के फ़िल्मी सफर की शुरुआत हुई। 'दुनिया' के दो गीत 'अरमान लुटे, दिल टूट गया..' और 'रोना है तो चुपके-चुपके रो..' उन्होंने ही लिखे, लेकिन उन्हें ख्याति न दिला पाये। हालांकि काम मिलता गया लेकिन पहचान न मिली। उन्होंने हुस्नलाल-भगतराम के साथ फ़िल्म 'आधी रात' में दो ही गीत लिखे और दोनों को आवाज [[लता मंगेशकर]] ने दी। वो गीत थे- 'दिल ही तो है तड़प गया..' और 'इधर तो आओ मेरी सरकार..'।
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[[बी. आर. चोपड़ा]] की फ़िल्म 'अफसाना' में 'वो आए बहारें लाए, बजी शहनाई..', 'कहां है तू मेरे सपनों के राजा', 'वो पास भी रहकर पास नहीं' आदि लिखा। असद भोपाली उस वक्त बंबई पहुंचे जब फ़िल्म संगीत में नया मोड़ आ रहा था। [[शंकर-जयकिशन]] की पहली फ़िल्म 'बरसात' भी इसी साल रिलीज हुई। [[1963]] में लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल की पहली रिलीज फ़िल्म 'पारसमणि' का सबसे हिट गीत 'हंसता हुआ नूरानी चेहरा..' भी असद भोपाली का ही लिखा हुआ था। इसी फ़िल्म के गीत 'मेरे दिल में हल्की सी जो खलिश है.' और 'वो जब याद आए..' भी इन्होंने ही लिखे थे। [[1964]] की फ़िल्म 'आया तूफान' के सारे गीत हिट रहे, जो असद भोपाली ने लिखे थे। [[1965]] की फ़िल्म 'हम सब उस्ताद है', में सफलता की वही कहानी दोहराई गई। संगीतकार रवि के साथ काम करने के दौरान असद भोपाली ने सदाबहार गीत 'ऐ मेरे दिले नादां.', 'मै खुशनसीब हूं..' लिखा। [[29 दिसम्बर]], [[1989]] को जब 'मैने प्यार किया' बंबई में रिलीज हुई, तो फ़िल्म के सभी गीतों ने देशभर में धूम मचा दी। उन्हें साल के बेहतरीन गीतकार का फ़िल्मफेयर अवार्ड भी दिया गया, लेकिन उसे लेने वह नहीं जा सके। 40 साल के अरसे में करीब 100 फ़िल्मों के लिए असद साहब ने 400 गीत लिखे।
 
==निधन==
 
==निधन==
[[1990]] में असद को उनके द्वारा फ़िल्म मैंने प्यार किया के लिए लिखे गीत कबूतर जा जा जा के लिए प्रतिष्ठित फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया, हालांकि, तब तक वह पक्षाघात होने से अपाहिज हो गये थे। 9 जून 1990 को उनका निधन हो गया।
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[[1990]] में असद को उनके द्वारा फ़िल्म 'मैंने प्यार किया' के लिए लिखे गीत 'कबूतर जा जा जा' के लिए प्रतिष्ठित फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया, हालांकि, तब तक वह पक्षाघात होने से अपाहिज हो गये थे और वह उसे लेने नहीं जा सके। [[9 जून]], [[1990]] को उनका निधन हो गया।
 
लोकप्रिय गीत
 
लोकप्रिय गीत
 
 
==असद भोपाली द्वारा लिखे कुछ लोकप्रिय गीत==
 
==असद भोपाली द्वारा लिखे कुछ लोकप्रिय गीत==
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{{मुख्य|असद भोपाली के लोकप्रिय गीत]]
 
*दिल दीवाना बिन सजना के माने ना - मैंने प्यार किया
 
*दिल दीवाना बिन सजना के माने ना - मैंने प्यार किया
 
*कबूतर जा जा जा - मैने प्यार किया
 
*कबूतर जा जा जा - मैने प्यार किया
* हम तुम से जुदा होक - एक सपेरा एक लुटेरा
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*हम तुम से जुदा होक - एक सपेरा एक लुटेरा
* दिल का सूना साज़ - एक नारी दो रूप
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*दिल का सूना साज़ - एक नारी दो रूप
* ऐ मेरे दिल-ए-नादां तू ग़म से न घबराना - टॉवर हाउस
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*ऐ मेरे दिल-ए-नादां तू ग़म से न घबराना - टॉवर हाउस
 
*दिल की बातें दिल ही जाने - रूप तेरा मस्ताना
 
*दिल की बातें दिल ही जाने - रूप तेरा मस्ताना
* हसीन दिलरुबा करीब आ ज़रा - रूप तेरा मस्ताना
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*हसीन दिलरुबा करीब आ ज़रा - रूप तेरा मस्ताना
* अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो - हम सब उस्ताद हैं
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*अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो - हम सब उस्ताद हैं
* इना मीना डीका दाई डम नीका - आशा
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*इना मीना डीका दाई डम नीका - आशा
 
*वो जब याद आये बहुत याद आये - पारसमणि
 
*वो जब याद आये बहुत याद आये - पारसमणि
 
*हम कश्म-ए कशे गम से गुज़र क्यों नही जाते – फ्री लव
 
*हम कश्म-ए कशे गम से गुज़र क्यों नही जाते – फ्री लव
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* सुनो जाना सुनो जाना - हम सब उस्ताद हैं
 
* सुनो जाना सुनो जाना - हम सब उस्ताद हैं
 
* हंसता हुआ नूरानी चेहरा- पारसमणि
 
* हंसता हुआ नूरानी चेहरा- पारसमणि
*मैने कह था आना संडे को – उस्तादों के उस्ताद
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* मैने कह था आना संडे को – उस्तादों के उस्ताद
 
* पजामा तंग है कुर्ता ढीला - शिमला रोड
 
* पजामा तंग है कुर्ता ढीला - शिमला रोड
 
*आप की इनायतें आप के करम - वंदना
 
*आप की इनायतें आप के करम - वंदना
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{{सूचना बक्सा वैज्ञानिक
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'''डॉ. नौतम भट्ट''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nautam Bhatt'', जन्म: [[10 अप्रैल]], [[1909]], [[गुजरात]]; मृत्यु: [[6 जुलाई]], [[2005]]) [[भारत]] के एक रक्षा वैज्ञानिक थे। उन्होंने भारत को रक्षा-सामग्री के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। [[आग्नेयास्त्र|अग्‍नि]], पृथ्वी, त्रिशूल, नाग, ब्रह्मोस, धनुष, तेजस, ध्रुव, पिनाका, अर्जुन, लक्ष्य, निशान्त, इन्द्र, अभय, राजेन्द्र, भीम, मैसूर, विभुति, कोरा, सूर्य आदि भारतीय शस्त्रों के विकास में उनका अद्वितीय योगदान रहा। डॉ॰ नौतम भट्ट को "विज्ञान और इंजीनियरिंग" में योगदान के लिए [[पद्मश्री]] पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
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==परिचय==
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डॉ नौतम भट्ट का जन्म गुजरात के जामनगर में सन 1909 में हुआ था। भावनगर के में अपनी स्कूली शिक्षा के पूरी की। उसके बाद उन्होंने गुजरात कॉलेज अहमदाबाद से बी. ए की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान (आई.आई.एस.सी), बैंगलोर में नोबेल पुरस्कार विजेता सी. वी. रमन के तहत भौतिकी में अपनी एम.एस.सी की डिग्री प्राप्त की। नौतम भट्ट ने [[1939]] में अमेरिका की मेसेचुएट्स इन्स्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी भौतिकी में डॉक्टरेट की पदवी हासिल की। उन्होंने भौतिक विज्ञान के विद्वान के रूप में भारतीय विज्ञान संस्थान में डॉ. सी. वी. रमन के तहत अपना कॅरियर शुरू किया है। भारतीय स्वतंत्रता के बाद उन्होंने देश के लिए काम करना शुरू किया और "रक्षा विज्ञान प्रयोगशाला" की स्थापना की और रक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए काम किया।
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==योगदान==
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*उन्हें भारत के रक्षा अनुसंधान की नीव रखने वाला वैज्ञानिक माना जाता है।
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*नौतम भट्ट ने [[1960]] के दशक के मध्य में रक्षा विभाग के लिए वीटी फ्यूज का विकास किया।
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*दिल्ली में उन्होंने ठोस राज्य भौतिकी प्रयोगशाला की स्थापना की और इसके संस्थापक निदेशक बने।
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*उन्होंने सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सी.ई.ई.आर.आई), पिलानी की स्थापना की।
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*नौतम भट्ट ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, [[बैंगलोर]] में इलेक्ट्रिकल संचार इंजीनियरिंग विभाग की स्थापना की।
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*इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार इंजीनियर्स (आई.ई.टी.ई) के नौतम भट्ट संस्थापक सदस्य थे।
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*सरंक्षण के क्षेत्र में डॉ नौतम भट्ट ने संशोधकों-वैज्ञानिकों की एक फौज ही खड़ी कर दी थी, जो भविष्य में अग्नि, पृथ्वी एवं नाग जैसी मिसाइल्स और राजेन्द्र तथा इन्द्र जैसे रेडार, वायर गाईडेड टोरपीडो तथा एन्टी सबमरीन सोनार का निर्माण करने वाली थी।
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*मुंबई के बिरला मातुश्री सभागृह की 2000 वॉट के स्पीकर्स वाली साउंड सिस्टम भी डॉ भट्ट ने ही बनाई थी।
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==पुरस्कार==
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[[1969]] में नौतम भट्ट द्वारा "विज्ञान और इंजीनियरिंग" के क्षेत्र में अपने महान काम के लिए भारतीय राष्ट्रपति [[जाकिर हुसैन]] द्वारा प्रतिष्ठित [[पद्मश्री]] पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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==निधन==
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नौतम भट्ट का निधन [[6 जुलाई]], [[2005]] को हुआ था।

12:56, 13 जुलाई 2017 का अवतरण

असद भोपाली (अंग्रेज़ी: Asad Bhopali, जन्म: 10 जुलाई, 1921, भोपाल; मृत्यु: 9 जून, 1990), बॉलीवुड के एक गीतकार और शायर थे। उन्हें ऐसे गीतकार में शुमार किया जाता है, जिन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में 40 साल तक का लंबा संघर्ष किया। उन्हें फ़िल्म 'मैंने प्यार किया' के लिए लिखे गीत 'कबूतर जा जा जा' के लिए प्रतिष्ठित फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला था।

परिचय

{{मुख्य|असद भोपाली का जीवन परिचय]] असद भोपाली का जन्म 10 जुलाई, 1921 को भोपाल के इतवारा इलाके में पैदा हुए थे। उनका वास्तविक नाम असदुल्लाह खान था। उनके पिता मुंशी अहमद खाँ भोपाल के आदरणीय व्यक्तियों में शुमार थे। वे एक शिक्षक थे और बच्चों को अरबी-फारसी पढ़ाया करते थे। पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा भी उनके शिष्यों में से एक थे। वो घर में ही बच्चों को पढ़ाया करते थे, इसीलिए असद भी अरबी-फारसी के साथ-साथ उर्दू में भी महारत हासिल कर पाए, जो उनकी शायरी और गीतों में हमेशा झलकती रही। उनके पास शब्दों का खज़ाना था। एक ही अर्थ के बेहिसाब शब्द हुआ करते थे उनके पास। इसलिए उनके जानने वाले संगीतकार उन्हें गीत लिखने की मशीन कहा करते थे।[1]

जेल यात्रा

असद भोपाली को शायरी का शौक़ किशोरावस्था से ही था। उस दौर में जब कवियों और शायरों ने आज़ादी की लड़ाई में अपनी कलम से योगदान किया था, उस दौर में उन्हें भी अपनी क्रान्तिकारी लेखनी के कारण जेल की हवा खानी पड़ी थी। आज़ादी की लड़ाई में हर वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया था। इनमें साहित्यकारों की भी भूमिका रही है। असद भोपाली ने एक बुद्धिजीवी के रूप में इस लड़ाई में अपना योगदान किया था। क्रान्तिकारी लेखनी के कारण अँग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल में बन्द कर दिया था। ये और बात है कि अँग्रेज़ जेलर भी उनकी 'गालिबी' के प्रशंसक हो गये थे। जेल से छूटने के बाद असद मुशायरों में हिस्सा लेते रहे।

कॅरियर

{{मुख्य|असद भोपाली का फ़िल्मी कॅरियर]] 1940 के अंतिम दौर में मशहूर फ़िल्म निर्माता फजली ब्रादर्स 'दुनिया' नामक फ़िल्म बना रहे थे। फ़िल्म के गीत मशहूर शायर आरजू लखनवी लिख रहे थे, लेकिन दो गीत लिखने के बाद वे पाकिस्तान चले गए। बाद में एस. एच. बिहारी, सरस्वती कुमार दीपक और तालिब इलाहाबादी ने भी उसके गीत लिखे। मगर, फजली बंधु और निदेशक एस. एफ. हसनैन लगातार नए गीतकार की तलाश कर रहे थे। इसी मकसद से उन्होंने 5 मई, 1949 को भोपाल टॉकिज में मुशायरे का आयोजन किया। असद भोपाली ने भी उसमें भाग लिया और अपने कलाम से महफिल लूट ली साथ ही फजली बंधुओं का दिल भी। फिर क्या था, अगले दिन भोपाल-भारत टॉकिज के मैनेजर सैयद मिस्बाउद्दीन साहब के जरिए असद को पांच सौ रुपए का एडवांस देकर फ़िल्म 'दुनिया' के लिए बतौर गीतकार साइन कर लिया गया। कुछ दिन बाद असद बंबई रवाना हो गए। 'दुनिया' उनकी पहली फ़िल्म थी। संगीतकार थे सी. रामचन्द्र और मुख्य भूमिकाओं में करण दीवान, सुरैया, और याकूब जैसे महान कलाकार थे। इस फ़िल्म का गीत “अरमान लुटे दिल टूट गया...” लोकप्रिय भी हुआ था।[2]

असद भोपाली की पहली फ़िल्म बहुत बड़े बजट की 'अफसाना' थी, जिसमें अशोक कुमार, प्राण आदि थे। सालों साल तक वह एन.के. दत्ता, हंसराज बहल, रवि, सोनिक ओमी, ऊषा खन्ना, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि संगीतकारों के साथ करते रहे। इस तरह असद भोपाली के फ़िल्मी सफर की शुरुआत हुई। 'दुनिया' के दो गीत 'अरमान लुटे, दिल टूट गया..' और 'रोना है तो चुपके-चुपके रो..' उन्होंने ही लिखे, लेकिन उन्हें ख्याति न दिला पाये। हालांकि काम मिलता गया लेकिन पहचान न मिली। उन्होंने हुस्नलाल-भगतराम के साथ फ़िल्म 'आधी रात' में दो ही गीत लिखे और दोनों को आवाज लता मंगेशकर ने दी। वो गीत थे- 'दिल ही तो है तड़प गया..' और 'इधर तो आओ मेरी सरकार..'।

बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्म 'अफसाना' में 'वो आए बहारें लाए, बजी शहनाई..', 'कहां है तू मेरे सपनों के राजा', 'वो पास भी रहकर पास नहीं' आदि लिखा। असद भोपाली उस वक्त बंबई पहुंचे जब फ़िल्म संगीत में नया मोड़ आ रहा था। शंकर-जयकिशन की पहली फ़िल्म 'बरसात' भी इसी साल रिलीज हुई। 1963 में लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल की पहली रिलीज फ़िल्म 'पारसमणि' का सबसे हिट गीत 'हंसता हुआ नूरानी चेहरा..' भी असद भोपाली का ही लिखा हुआ था। इसी फ़िल्म के गीत 'मेरे दिल में हल्की सी जो खलिश है.' और 'वो जब याद आए..' भी इन्होंने ही लिखे थे। 1964 की फ़िल्म 'आया तूफान' के सारे गीत हिट रहे, जो असद भोपाली ने लिखे थे। 1965 की फ़िल्म 'हम सब उस्ताद है', में सफलता की वही कहानी दोहराई गई। संगीतकार रवि के साथ काम करने के दौरान असद भोपाली ने सदाबहार गीत 'ऐ मेरे दिले नादां.', 'मै खुशनसीब हूं..' लिखा। 29 दिसम्बर, 1989 को जब 'मैने प्यार किया' बंबई में रिलीज हुई, तो फ़िल्म के सभी गीतों ने देशभर में धूम मचा दी। उन्हें साल के बेहतरीन गीतकार का फ़िल्मफेयर अवार्ड भी दिया गया, लेकिन उसे लेने वह नहीं जा सके। 40 साल के अरसे में करीब 100 फ़िल्मों के लिए असद साहब ने 400 गीत लिखे।

निधन

1990 में असद को उनके द्वारा फ़िल्म 'मैंने प्यार किया' के लिए लिखे गीत 'कबूतर जा जा जा' के लिए प्रतिष्ठित फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया, हालांकि, तब तक वह पक्षाघात होने से अपाहिज हो गये थे और वह उसे लेने नहीं जा सके। 9 जून, 1990 को उनका निधन हो गया। लोकप्रिय गीत

असद भोपाली द्वारा लिखे कुछ लोकप्रिय गीत

{{मुख्य|असद भोपाली के लोकप्रिय गीत]]

  • दिल दीवाना बिन सजना के माने ना - मैंने प्यार किया
  • कबूतर जा जा जा - मैने प्यार किया
  • हम तुम से जुदा होक - एक सपेरा एक लुटेरा
  • दिल का सूना साज़ - एक नारी दो रूप
  • ऐ मेरे दिल-ए-नादां तू ग़म से न घबराना - टॉवर हाउस
  • दिल की बातें दिल ही जाने - रूप तेरा मस्ताना
  • हसीन दिलरुबा करीब आ ज़रा - रूप तेरा मस्ताना
  • अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो - हम सब उस्ताद हैं
  • इना मीना डीका दाई डम नीका - आशा
  • वो जब याद आये बहुत याद आये - पारसमणि
  • हम कश्म-ए कशे गम से गुज़र क्यों नही जाते – फ्री लव
  • प्यार बांटते चलो - हम सब उस्ताद हैं
  • सुनो जाना सुनो जाना - हम सब उस्ताद हैं
  • हंसता हुआ नूरानी चेहरा- पारसमणि
  • मैने कह था आना संडे को – उस्तादों के उस्ताद
  • पजामा तंग है कुर्ता ढीला - शिमला रोड
  • आप की इनायतें आप के करम - वंदना



कविता बघेल 7
डॉ. नौतम भट्ट
पूरा नाम डॉ. नौतम भट्ट
जन्म 10 अप्रैल, 1909
जन्म भूमि गुजरात
मृत्यु 6 जुलाई, 2005
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र वैज्ञानिक
विषय भौतिक
शिक्षा पी.एच.डी
विद्यालय मेसेचुएट्स इन्स्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी, अमेरिका
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री (1969)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी नौतम भट्ट को भारत के रक्षा अनुसंधान की नीव रखने वाला वैज्ञानिक माना जाता है।

डॉ. नौतम भट्ट (अंग्रेज़ी: Nautam Bhatt, जन्म: 10 अप्रैल, 1909, गुजरात; मृत्यु: 6 जुलाई, 2005) भारत के एक रक्षा वैज्ञानिक थे। उन्होंने भारत को रक्षा-सामग्री के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अग्‍नि, पृथ्वी, त्रिशूल, नाग, ब्रह्मोस, धनुष, तेजस, ध्रुव, पिनाका, अर्जुन, लक्ष्य, निशान्त, इन्द्र, अभय, राजेन्द्र, भीम, मैसूर, विभुति, कोरा, सूर्य आदि भारतीय शस्त्रों के विकास में उनका अद्वितीय योगदान रहा। डॉ॰ नौतम भट्ट को "विज्ञान और इंजीनियरिंग" में योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

परिचय

डॉ नौतम भट्ट का जन्म गुजरात के जामनगर में सन 1909 में हुआ था। भावनगर के में अपनी स्कूली शिक्षा के पूरी की। उसके बाद उन्होंने गुजरात कॉलेज अहमदाबाद से बी. ए की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान (आई.आई.एस.सी), बैंगलोर में नोबेल पुरस्कार विजेता सी. वी. रमन के तहत भौतिकी में अपनी एम.एस.सी की डिग्री प्राप्त की। नौतम भट्ट ने 1939 में अमेरिका की मेसेचुएट्स इन्स्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी भौतिकी में डॉक्टरेट की पदवी हासिल की। उन्होंने भौतिक विज्ञान के विद्वान के रूप में भारतीय विज्ञान संस्थान में डॉ. सी. वी. रमन के तहत अपना कॅरियर शुरू किया है। भारतीय स्वतंत्रता के बाद उन्होंने देश के लिए काम करना शुरू किया और "रक्षा विज्ञान प्रयोगशाला" की स्थापना की और रक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए काम किया।

योगदान

  • उन्हें भारत के रक्षा अनुसंधान की नीव रखने वाला वैज्ञानिक माना जाता है।
  • नौतम भट्ट ने 1960 के दशक के मध्य में रक्षा विभाग के लिए वीटी फ्यूज का विकास किया।
  • दिल्ली में उन्होंने ठोस राज्य भौतिकी प्रयोगशाला की स्थापना की और इसके संस्थापक निदेशक बने।
  • उन्होंने सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सी.ई.ई.आर.आई), पिलानी की स्थापना की।
  • नौतम भट्ट ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बैंगलोर में इलेक्ट्रिकल संचार इंजीनियरिंग विभाग की स्थापना की।
  • इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार इंजीनियर्स (आई.ई.टी.ई) के नौतम भट्ट संस्थापक सदस्य थे।
  • सरंक्षण के क्षेत्र में डॉ नौतम भट्ट ने संशोधकों-वैज्ञानिकों की एक फौज ही खड़ी कर दी थी, जो भविष्य में अग्नि, पृथ्वी एवं नाग जैसी मिसाइल्स और राजेन्द्र तथा इन्द्र जैसे रेडार, वायर गाईडेड टोरपीडो तथा एन्टी सबमरीन सोनार का निर्माण करने वाली थी।
  • मुंबई के बिरला मातुश्री सभागृह की 2000 वॉट के स्पीकर्स वाली साउंड सिस्टम भी डॉ भट्ट ने ही बनाई थी।

पुरस्कार

1969 में नौतम भट्ट द्वारा "विज्ञान और इंजीनियरिंग" के क्षेत्र में अपने महान काम के लिए भारतीय राष्ट्रपति जाकिर हुसैन द्वारा प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

निधन

नौतम भट्ट का निधन 6 जुलाई, 2005 को हुआ था।

  1. असद भोपाली (हिंदी) radioplaybackindia.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2017।
  2. असद भोपाली (हिंदी) vinitutpal.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2017।