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− | + | ;दिनांक- 30 मई, 2016 | |
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मुझसे मेरे एक मित्र ने पूछा कि अगर तुम्हें एक हज़ार करोड़ रुपए दे दिए जाएँ तो क्या करोगे? | मुझसे मेरे एक मित्र ने पूछा कि अगर तुम्हें एक हज़ार करोड़ रुपए दे दिए जाएँ तो क्या करोगे? | ||
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अब मैं क्या कहता… | अब मैं क्या कहता… | ||
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+ | ;दिनांक- 24 अप्रैल, 2016 | ||
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कुछ समय पहले मुझसे एक प्रश्न किया गया था। जोकि फ़ेसबुक मित्र ने ही किया था। उसका जवाब आज दे रहा हूँ- | कुछ समय पहले मुझसे एक प्रश्न किया गया था। जोकि फ़ेसबुक मित्र ने ही किया था। उसका जवाब आज दे रहा हूँ- | ||
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जहाँ तक मेरा अन्दाज़ा है मेरा आशय स्पष्ट है। | जहाँ तक मेरा अन्दाज़ा है मेरा आशय स्पष्ट है। | ||
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+ | ;दिनांक- 23 अप्रैल, 2016 | ||
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आज [[विश्व पुस्तक दिवस]] है। मुझे बचपन से ही पढ़ने का शौक़ रहा है। शुरुआत हुई थी चंदामामा, नंदन और पराग से... फिर धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान और सारिका पढ़े। कॉमिक्स में ली फ़ॉक की फ़ैन्टम, मॅन्ड्रेक और फ़्लॅश गॉर्डन से शुरुआत हुई और बाद में मेरे पसंदीदा बने ऍस्टेरिक्स-ऑबेलिक्स, जिन्हें फ़्रांसीसी गोसिनी और उडेरज़ो तैयार करते थे। ऍस्टेरिक्स कॉमिक साल में एक बार ही आती थी और बार-बार पढ़ी जाती थी। | आज [[विश्व पुस्तक दिवस]] है। मुझे बचपन से ही पढ़ने का शौक़ रहा है। शुरुआत हुई थी चंदामामा, नंदन और पराग से... फिर धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान और सारिका पढ़े। कॉमिक्स में ली फ़ॉक की फ़ैन्टम, मॅन्ड्रेक और फ़्लॅश गॉर्डन से शुरुआत हुई और बाद में मेरे पसंदीदा बने ऍस्टेरिक्स-ऑबेलिक्स, जिन्हें फ़्रांसीसी गोसिनी और उडेरज़ो तैयार करते थे। ऍस्टेरिक्स कॉमिक साल में एक बार ही आती थी और बार-बार पढ़ी जाती थी। | ||
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'इजिप्ट' यानी मिस्र में बिल्कुल ही दूसरे तरीक़े का कार्य चल रहा था। मिस्री फ़राउन (राजा), मंत्री, धर्माधिकारी या प्रमुख वैद्य के पास एक व्यक्ति बैठा रहता था और वह मुख्य बातों को बड़े सलीक़े से सहेजता था। मिस्र में लेखन 'पेपिरस' पर होने लगा था। पेपिरस पौधे से बनाया गया एक प्रकार का काग़ज़ होता था जो मिस्र के दलदली इलाक़ों में पाया जाता था। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि संस्कृत में काग़ज़ के लिए कोई शब्द नहीं है, हाँ पालि में अवश्य 'कागद' शब्द मिलता है। कालांतर में अंग्रेज़ी में प्रयुक्त होने वाला शब्द 'पेपर' पेपिरस या यूनानी शब्द 'पिप्युरस' से ही बना। मिस्र की भाषा को 'हायरोग्लिफ़िक' कहा गया है जिसका अर्थ 'पवित्र' (हायरो) लेखन (ग्लिफ़िक) है। | 'इजिप्ट' यानी मिस्र में बिल्कुल ही दूसरे तरीक़े का कार्य चल रहा था। मिस्री फ़राउन (राजा), मंत्री, धर्माधिकारी या प्रमुख वैद्य के पास एक व्यक्ति बैठा रहता था और वह मुख्य बातों को बड़े सलीक़े से सहेजता था। मिस्र में लेखन 'पेपिरस' पर होने लगा था। पेपिरस पौधे से बनाया गया एक प्रकार का काग़ज़ होता था जो मिस्र के दलदली इलाक़ों में पाया जाता था। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि संस्कृत में काग़ज़ के लिए कोई शब्द नहीं है, हाँ पालि में अवश्य 'कागद' शब्द मिलता है। कालांतर में अंग्रेज़ी में प्रयुक्त होने वाला शब्द 'पेपर' पेपिरस या यूनानी शब्द 'पिप्युरस' से ही बना। मिस्र की भाषा को 'हायरोग्लिफ़िक' कहा गया है जिसका अर्थ 'पवित्र' (हायरो) लेखन (ग्लिफ़िक) है। | ||
− | इसमें भी एक अजीब रोचक संयोग है कि जिस समय मिस्र में पिरामिड जैसी आश्चर्यजनक इमारत बनी, वहाँ लिपि की वर्णमाला अति दरिद्र थी। 3 हज़ार वर्षों में 24 अक्षरों की वर्णमाला में केवल 'व्यंजन' ही थे 'स्वर' एक भी नहीं। बिना स्वरों के केवल व्यंजन लिख कर ही लोगों के सम्बंध में लिखा जाता था। उसे वो कैसे बाद में पढ़ते थे और किस तरीक़े से उसका उच्चारण होता था, यह बात रहस्य ही बनी रही। सीधे संक्षिप्त रूप में कहें तो 'वर्तनी' लापता थी और सरल करें तो 'मात्राएँ' नहीं थीं। स्वर न होने के कारण शब्द को किस तरीक़े से बोला जाएगा यह जटिल और अस्पष्ट था। स्वरों के लिए अलग से प्रावधान थे, जो बेहद अवैज्ञानिक थे, जबकि भारत में पाणिनी रचित 'अष्टाध्यायी' का व्याकरण अपना पूर्ण परिष्कृत रूप ले चुका था। वर्तनी की इस कमी के चलते मिस्री लिपि को पढ़ना ठीक उसी तरह मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था जैसे कि अमिताभ बच्चन की 'डॉन' फ़िल्म में 'डॉन' को पकड़ना लेकिन बाद में ये लिपि पढ़ ली गई। 'रॉसेटा अभिलेख' और फ़्रांसीसी | + | इसमें भी एक अजीब रोचक संयोग है कि जिस समय मिस्र में पिरामिड जैसी आश्चर्यजनक इमारत बनी, वहाँ लिपि की वर्णमाला अति दरिद्र थी। 3 हज़ार वर्षों में 24 अक्षरों की वर्णमाला में केवल 'व्यंजन' ही थे 'स्वर' एक भी नहीं। बिना स्वरों के केवल व्यंजन लिख कर ही लोगों के सम्बंध में लिखा जाता था। उसे वो कैसे बाद में पढ़ते थे और किस तरीक़े से उसका उच्चारण होता था, यह बात रहस्य ही बनी रही। सीधे संक्षिप्त रूप में कहें तो 'वर्तनी' लापता थी और सरल करें तो 'मात्राएँ' नहीं थीं। स्वर न होने के कारण शब्द को किस तरीक़े से बोला जाएगा यह जटिल और अस्पष्ट था। स्वरों के लिए अलग से प्रावधान थे, जो बेहद अवैज्ञानिक थे, जबकि भारत में पाणिनी रचित 'अष्टाध्यायी' का व्याकरण अपना पूर्ण परिष्कृत रूप ले चुका था। वर्तनी की इस कमी के चलते मिस्री लिपि को पढ़ना ठीक उसी तरह मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था जैसे कि अमिताभ बच्चन की 'डॉन' फ़िल्म में 'डॉन' को पकड़ना लेकिन बाद में ये लिपि पढ़ ली गई। 'रॉसेटा अभिलेख' और फ़्रांसीसी विद्वान् 'शाँपोल्यों' के कारण यह कार्य सफल हो गया। |
− | मिस्र में राजवंशों की शुरुआत आज से 5 हज़ार वर्ष पहले ही हो गयी थी। मशहूर फ़राउन रॅमसी ( ये वही रॅमसी या रामासेस है जो मूसा के समय में था) का नाम पढ़ने में भी यही कठिनाई सामने आयी। कॉप्टिक भाषा (मिस्री ईसाइयों की भाषा) में इसका अर्थ है- रे या रा (सूर्य) का म-स (बेटा) | + | मिस्र में राजवंशों की शुरुआत आज से 5 हज़ार वर्ष पहले ही हो गयी थी। मशहूर फ़राउन रॅमसी ( ये वही रॅमसी या रामासेस है जो मूसा के समय में था) का नाम पढ़ने में भी यही कठिनाई सामने आयी। कॉप्टिक भाषा (मिस्री ईसाइयों की भाषा) में इसका अर्थ है- रे या रा (सूर्य) का म-स (बेटा) अर्थात् सूर्य का पुत्र। सोचने वाली बात ये है कि भगवान 'राम' का नाम भी इसी प्रकार का है और वे भी सूर्य वंशी ही हैं। अगर ये महज़ एक इत्तफ़ाक़ है तो बेहद दिलचस्प इत्तफ़ाक़ है। नाम कोई भी रहा हो रेमसी, इमहोतेप या टॉलेमी; स्वरों के बिना उन्हें सही पढ़ना बहुत कठिन था। मशहूर रानी क्लिओपात्रा के नाम में भी दिक़्क़त आयी उसे 'क ल प त र' ही पढ़ा जाता रहा जब तक कि स्वरों की गुत्थी नहीं सुलझी। 'क्लिओपात्रा' कोई नाम नहीं बल्कि रानी की उपाधि थी जिस क्लिओपात्रा को हम-आप जानते हैं वह सातवीं क्लिओपात्रा थी। उस समय मिस्र के राजाओं की उपाधि 'टॉलेमी' हुआ करती थी। उस समय भारत में भी उपाधियाँ चल रही थीं जिन्हें व्यक्ति समझ लिया जाता है जैसे व्यास, नारद, वशिष्ठ आदि। |
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बहुत कम लोग जानते हैं कि अपने जीवन की वास्तविक स्थिति और अपनी क्षमताओं का वास्तविक ज्ञान होना एक प्रतिभा है। | बहुत कम लोग जानते हैं कि अपने जीवन की वास्तविक स्थिति और अपनी क्षमताओं का वास्तविक ज्ञान होना एक प्रतिभा है। | ||
यह सभी व्यक्तियों में नहीं होती। | यह सभी व्यक्तियों में नहीं होती। | ||
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यदि वास्तविक विनम्रता का अभ्यास करना हो तो अपनों से छोटों, कमज़ोरों और ज़रूरतमंदों के प्रति करें। | यदि वास्तविक विनम्रता का अभ्यास करना हो तो अपनों से छोटों, कमज़ोरों और ज़रूरतमंदों के प्रति करें। | ||
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+ | ;दिनांक- 19 मार्च, 2016 | ||
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उम्र के बढ़ने के साथ, जिज्ञासाओं के प्रति उदासीनता होना ही जीवित रहते हुए भी मर जाने के समान है। | उम्र के बढ़ने के साथ, जिज्ञासाओं के प्रति उदासीनता होना ही जीवित रहते हुए भी मर जाने के समान है। | ||
− | आप जितने अधिक जिज्ञासु हैं, उतने ही अधिक जीवन से भरे हुए हैं | + | आप जितने अधिक जिज्ञासु हैं, उतने ही अधिक जीवन से भरे हुए हैं अर्थात् जीवंत हैं। |
जिसके पास नये-नये प्रश्न नहीं हैं वह कैसे साबित करेगा कि वह जीवित है। | जिसके पास नये-नये प्रश्न नहीं हैं वह कैसे साबित करेगा कि वह जीवित है। | ||
छोटे बच्चों में अपार जिझासा होती है, असंख्य प्रश्न होते हैं। | छोटे बच्चों में अपार जिझासा होती है, असंख्य प्रश्न होते हैं। | ||
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जिझासा का मर जाना, मनुष्य के मर जाने जैसा ही है। | जिझासा का मर जाना, मनुष्य के मर जाने जैसा ही है। | ||
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− | जिस समय हम किसी मुद्दे पर बहस कर रहे होते हैं तो सामने वाले की बात को | + | जिस समय हम किसी मुद्दे पर बहस कर रहे होते हैं तो सामने वाले की बात को 'जितना' ग़लत साबित करने की कोशिश कर रहे होते हैं उतनी ग़लत उसकी बात होती नहीं है। |
इसी तरह हम अपनी बात को जितना सही साबित करने की कोशिश कर रहे होते हैं वह उतनी सही भी नहीं होती। | इसी तरह हम अपनी बात को जितना सही साबित करने की कोशिश कर रहे होते हैं वह उतनी सही भी नहीं होती। | ||
इन बहसों में हमारे उत्तेजित हो जाने का कारण भी अक्सर यही होता है। | इन बहसों में हमारे उत्तेजित हो जाने का कारण भी अक्सर यही होता है। | ||
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तनाव मुक्ति के बहुत से साधन हैं | तनाव मुक्ति के बहुत से साधन हैं | ||
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उस व्यक्ति से कोई उम्मीद न रखें | उस व्यक्ति से कोई उम्मीद न रखें | ||
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सफल होने का तरीक़ा कोई जाने न जाने लेकिन | सफल होने का तरीक़ा कोई जाने न जाने लेकिन | ||
अपनी असफलता का रहस्य सबको पता होता है | अपनी असफलता का रहस्य सबको पता होता है | ||
और इसी छिपा होता है सफलता का रहस्य | और इसी छिपा होता है सफलता का रहस्य | ||
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07:55, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
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