"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट अप्रैल 2017" के अवतरणों में अंतर
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सबसे पहले मेरा ही उदाहरण लीजिए- | सबसे पहले मेरा ही उदाहरण लीजिए- | ||
− | मेरे परम पितामह को 1857 में अग्रेज़ों ने | + | मेरे परम पितामह को 1857 में अग्रेज़ों ने फाँसी दी थी। यह ऐतिहासिक तथ्य सरकारी दस्तावेज़ों का हिस्सा है। मेरे पिता भी स्वतंत्रता सेनानी थे, उनकी जवानी जेलों में कटी। अंग्रज़ों ने हमारे घर की कुर्की करा दी। एक ज़मीदार परिवार के होने के बावजूद भी दर-दर भटकना पड़ा। |
क्या हम तटस्थ थे या हैं ??? अगर हम जैसे लोग तटस्थ होते तो आज भी अंग्रेज़ भारत पर शासन कर रहे होते। | क्या हम तटस्थ थे या हैं ??? अगर हम जैसे लोग तटस्थ होते तो आज भी अंग्रेज़ भारत पर शासन कर रहे होते। | ||
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‘सन्त’ शब्द संस्कृत का नहीं है बल्कि प्राकृत का है। संस्कृत के एक शब्द ‘शान्त’ से बिगड़ कर बना है। शान्त से सान्त हुआ और सान्त से सन्त। यह पंजाबी क्षेत्र के प्रभाव का शब्द है। वास्तव में इस शब्द में ही इसका स्वभाव भी निहित है। सन्त को शान्त ही होना चाहिए। सहजता शान्त स्वभाव में ही बसती है। यह शब्द उस व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है जो सहज है। सहज प्रवृत्ति को ही हम सन्त प्रवृत्ति भी कहते हैं। सन्त की साधना सहजता के प्रति होती है। वास्तव में ‘सन्त’ होना मनुष्यता की सर्वोपरि स्थिति है। | ‘सन्त’ शब्द संस्कृत का नहीं है बल्कि प्राकृत का है। संस्कृत के एक शब्द ‘शान्त’ से बिगड़ कर बना है। शान्त से सान्त हुआ और सान्त से सन्त। यह पंजाबी क्षेत्र के प्रभाव का शब्द है। वास्तव में इस शब्द में ही इसका स्वभाव भी निहित है। सन्त को शान्त ही होना चाहिए। सहजता शान्त स्वभाव में ही बसती है। यह शब्द उस व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है जो सहज है। सहज प्रवृत्ति को ही हम सन्त प्रवृत्ति भी कहते हैं। सन्त की साधना सहजता के प्रति होती है। वास्तव में ‘सन्त’ होना मनुष्यता की सर्वोपरि स्थिति है। | ||
− | सन्त होना गुण भी है और योग्यता भी। | + | सन्त होना गुण भी है और योग्यता भी। अर्थात् यह स्वयंभू भी है और अर्जन योग्य भी। कोई भी ऋषि,मुनि, साधु या संन्यासी यदि सन्त भी होता है तो यह परम पद की स्थिति बनती है। सन्त को सभ्यता से नहीं बल्कि भद्रता से सरोकार होता है। भद्रता वह सभ्यता है जो परम एकान्त में भी बरती जाती है। |
‘संन्यासी’ वह है जो त्याग करता है। त्यागी ही संन्यासी है। वैदिक काल या धर्म में किसी संन्यासी का उल्लेख नहीं है। सन्न्यास वास्तव में प्राचीन हिन्दू धर्म की क्रिया या स्थिति नहीं है। सन्न्यास का प्रचलन तो जैन धर्म और बौद्ध धर्म के प्रकाशन के बाद ही हुआ। हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य सबसे प्रसिद्ध संन्यासी हुए। जिन्हें कुछ विद्वानों ने प्रच्छन्न बुद्द भी कहा। | ‘संन्यासी’ वह है जो त्याग करता है। त्यागी ही संन्यासी है। वैदिक काल या धर्म में किसी संन्यासी का उल्लेख नहीं है। सन्न्यास वास्तव में प्राचीन हिन्दू धर्म की क्रिया या स्थिति नहीं है। सन्न्यास का प्रचलन तो जैन धर्म और बौद्ध धर्म के प्रकाशन के बाद ही हुआ। हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य सबसे प्रसिद्ध संन्यासी हुए। जिन्हें कुछ विद्वानों ने प्रच्छन्न बुद्द भी कहा। |
10:41, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
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